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बुधवार, मई 14, 2025

भोलाराम का विमोचन

#भोलाराम_का_विमोचन
(व्यंग्यकार गिरीश बिल्लौरे मुकुल 
जबलपुर मध्य प्रदेश)
  सम्मान-सम्मान का यह खेल इतना मस्त है कि इसे ओलंपिक में शामिल कर देना चाहिए। ओलंपिक न सही, तो एशियाई खेलों में। और अगर वह भी न हो, तो जिला-स्तरीय तमाशे में तो जरूर!
यह खेल जेब ढीली कराता है, आत्ममुग्धता को चाँद पर ले जाता है, और भीड से़ तालियां बजवाता  है।
  अर्थात यह खेल बहुत सारे शास्त्रों पर आधारित  है।  अर्थशास्त्र, छापस-शास्त्र, दिखास-शास्त्र, और बकास-शास्त्र का गजब का कॉकटेल।   
     हर शहर में यह खेल जोर-शोर से खेला जाता है। मेरा शहर कोई अपवाद नहीं—बल्कि इस खेल का प्रयागराज, मानसरोवर, येरुशलम मक्का-मदीना है।
   वैचारिकता को ठेंगा दिखाते हुए रोज "सम्मान का ड्रामा" रचा जाता है।
  खेल तो खेल है, खेलने के लिए ही बना है। तो इसे खेलना जरूरी है—बिल्कुल जरूरी!
आयोजक इस खेल का अर्थशास्त्र बखूबी समझते हैं। आप कवि हों, शायर हों, या साहित्य के तुर्रमखाँ—जब तक इस विमोचन की भट्टी से न गुजरें, तब तक आपका नामोनिशान नहीं।
खुशी की बात यह है कि आजकल तो पद्म सम्मानों के लिए कंसलटेंसी एजेंसियाँ खुल गई हैं। दिल्ली की एक रेडियो जॉकी और एक लेखक, जिनका नाम गिनीज बुक में चमकता है, इस धंधे में सर से पाँव तक डूबे हैं।
    यूं तो ये धंधा बड़ा आराम का है, लेकिन जैसा राहत इंदौरी ने फरमाया:
हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है कितना लहू,
सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है।
  पर क्या करें, कितना भी लहू से भीगो लें कोई हमें साहित्यकार मानता ही नहीं।
  पर हमें अचानक एक दिन भोलाराम जी के टेलीफोन कॉल ने ब्रह्म ज्ञान दे दिया ! तो यह भोलाराम जी कौन है ?
वास्तव में भोलाराम परसाई जी वाले भोलाराम का पुनर्जन्म है । जो इस जन्म में कवि के तौर पर पैदा हुआ है।
  कवि भोलाराम ने जिंदगी भर पुर्जों पर कविताएँ ठूँसीं और पहुंच गए परमज्ञानी जी के दरबार। "साहब, मेरी कविताएँ छपवानी हैं," भोलाराम ने गुहार लगाई।
  परम ज्ञानी, जो ग्राहकों की टोह में बैठे थे, बोले, "कविता पढ़ने की क्या जरूरत? एक नजर में समझ गया। अरे, तुम तो मनोज मुंतशिर को पानी पिलाते हो! ये तो छपनी ही चाहिए।
परम ज्ञानी जी ने "प्रशंसा का ऐसा बम गिरा कि भोलाराम शहीद-ए-आजम हो गए। तीस दिन में किताब मुद्रणालय से बाहर।
  लेकिन सवाल था—दुनिया को कैसे पता चले कि भोलाराम छप गए? परम ज्ञानी जी ने आँख मारी, "चिंता मत करो, फार्मूला मेरे पास है।
"उनका बैकग्राउंड फार्मूला था—सम्मान बाँटो, भीड़ बटोरो। रामलाल, श्यामलाल, लल्लू, जगदर, भुनगे-बगदर—हर कोई सम्मानित होगा। और हर सम्मानित शख्स अपने साथ बीवी, बच्चे, रिश्तेदार, और शायद गर्लफ्रेंड भी लाएगा। बस, इंस्टाग्राम लाइव के लिए भीड़ जुट गई।
विमोचन का तमाशा यानि आयोजन शुरू हुआ। मंच पर मालाएँ, शाल-श्रीफल, और यशगान के फलक।
मुख्य अतिथि त्रैलोक्य स्वामी से कम नज़र न आते थे।
कुछ अतिथि तो क्षीरसागर में विष्णु की तरह विराजमान लग रहे थे। आयोजन में शहर के नामी-गिरामी और "फुर्सत के रात-दिन" वाले लोग जुटे।
हर वक्ता अपने दिमाग के जखीरे को चटखारे ले-लेकर उवाच रहा था। माइक बार-बार खराब हो रहा था, और आयोजक- सह- मंच संचालक पहली लाइन से लेकर हाल के प्रवेश द्वार तक रेकी करते हुए नजर आ रहे थे । हर आमद पर आए हुए आगंतुक के नाम का उल्लेख करते हुए , अपने कार्यक्रम से जोड़ने वाले मंच संचालक उर्फ आयोजक उर्फ परम ज्ञानी की प्रतिभा को शहर का बच्चा-बच्चा जानता है। उनके व्यक्तित्व पर मेरे जैसे अकिंचन का कुछ कहना सूरज को एलईडी लाइट दिखाने के बराबर है।
परम ज्ञानी लीलाधर कृष्ण से कम नहीं हैं तभी तो, महीने में दो-चार साहित्यिक महाभारत हो जाया करते हैं शहर में..!
इस अप्रतिम दृश्य को देखकर भोलाराम को लगा, वे इंद्र सभा में गंधर्वों के बीच बैठे हैं।

  मंच के सामने दर्शक दीर्घा में पीछे वाली पंक्ति में अपन जी और तुपन जी की कानाफूसी शुरू
हो गई थी।
अपन जी: (कान खोजते हुए) गजब आयोजन! कवि को पैसे वाला होना चाहिए है न?
तुपन जी: बिल्कुल! इसे छठी का पूजन कहां कीजिए ।
अपन जी: तुपन जी, बिल्कुल सही कहा आपने।  अब तो हिंदी साहित्य का ये प्रचंड वेग कोई नहीं रोक सकता!
तुपन जी: प्रचंड? अरे, प्रलयंकारी कहो! हां एक बात कि  तुम भी तो सम्मानित हो रहे हो?
अपन जी: (कलकतिया पान से रंगी खीस निपोरते बोले ) हाँ, भाई, दबाव था, वरना अपन अम्मान सम्मान के चक्कर में पड़ते नहीं।
तुपन जी: अरे, पिछले महीने भी तो तुझे किसी किताब की छटी पर शाल-श्रीफल मिला था?
अपन जी: हाँ, मेरा भी सम्मान हुआ था। सम्मान में मिले श्रीफल की चटनी बनवाई। पाइल्स के लिए मुफीद है, बब्बू भाई बता रहे थे।
तुपन जी: अरे, पाइल्स तो मुझे भी है! आजमाऊँगा।
तभी मंच से चीख: "संस्था ‘दो और दो पांच’ श्री तुपन जी को भी उनकी साहित्य साधना के लिए सम्मानित करती है! यह उनका संस्था की ओर से दिए जाने वाला लाइफटाइम सम्मान है । जोरदार तालियों से इनका सम्मान कीजिए। "
पूरे  हॉल में तालियों की आवाज़ गूंजने लगीं।
तुपन जी भी फट्ट से मंच पर जा पहुँचे, यह अलग बात है कि कथित तौर पर उन्हें सम्मान की दरकार नहीं रहती। खचाखच्च फोटो हैंचे गए, स्वयंभू पत्रकार पर और आमंत्रित पत्रकार वीडियो जर्नलिस्ट ने मंच का घेराव करके फोटो वीडियो रिकॉर्ड किए। तुपन जी के सम्मान की कार्रवाई 5 मिनट के अंदर निपटा दी गई। लाइफटाइम अवॉर्ड के लिए इतना टाइम काफी है।
तुपन जी, लौटते वक्त कलगीदार मुर्गे की तरह दाएं बाएं बैठे दर्शकों  के प्रति आभार प्रदर्शित करते गर्दन हिलाते आभार  जताते, वापस सीधे अपन जी के पास लौट आए।
आज  भोलाराम का साहित्यकार बन जाने का सपना भी पूरा होने वाला था परंतु उनके विमोचित होने के पहले मंच से लगभग बीस सम्मान आवंटित हो चुके थे ।
हॉल में भगदड़ मच गई। उद्घोषक चीख रहा था। सम्मान वितरण में  "कछु मारे, कछु मर्दिसी" वाली स्थिति बन गई थी।
   भीड़ सेल्फी ले रही थी, इंस्टाग्राम रील्स बना रही थी, और यूट्यूब पर लाइव बाइट्स चल रहे थे।
  इस बीच उद्घोषक ने भोलाराम जी को इनवाइट कर लिया। मंच के मध्य में गणेश जी की तरह स्थापित होने के निर्देश का पालन करते हुए  भोलाराम भावुक हो उठे। कभी  उन्हें लगा, वे साहित्य जगत में स्थापित हो गए।
   वे यह महसूस कर रहे थे गोया उनकी एक ओर दिनकर दूसरी ओर भवानी प्रसाद तिवारी जी खड़े दिखते,  यह भी महसूस किया होगा उनने कि माखनलाल चतुर्वेदी , सुभद्रा दीदी बिल्कुल आसपास मौजूद हैं ।
     कभी हॉल में मचे तमाशे देख कर उसे लगा कि वे ठगे गए हैं।
   तभी पीछे से आवाज़ आई - "काय भोलू , कवि कब बन गए रे?
झल्ले की आवाज़ सुन  भोलाराम पानदरीबा वाले भोलू बन गए ।
*****
लेकिन सच यही है साहित्यकार की प्राण प्रतिष्ठा का यह अजीबोगरीब खेल एकदम नया नहीं।
हर शहर में यह तमाशा होता रहता है।
जहां परम ज्ञानी जैसे लोग इसके सर्जनहार, और भोलाराम जैसे कवि इसके शिकार।
साहित्य के नाम पर यह "दूल्हा-दुल्हन आपके, बाकी सब हमारा" का धंधा है।
और हाँ, अगली बार विमोचन में वायरल रील्स का बजट भी जोड़ लीजिएगा।
(नोट: परसाई के शहर में व्यंग्य लिखना अपराध हो, तो यह अपराध बार-बार करूँगा!)
#डिस्क्लेमर: यह व्यंग्य है। किसी व्यक्ति, स्थान, या घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं। समानता महज संयोग है।
#गिरीशबिल्लौरेमुकुल 

शनिवार, फ़रवरी 08, 2025

"स्व. भवानी दादा का कृतित्व गीतांजलि प्राण पूजा प्राण धारा : एक लघु पुस्तक समीक्षा"

"स्व. भवानी दादा का कृतित्व गीतांजलि प्राण पूजा प्राण धारा : पुस्तक समीक्षा"
 



स्वर्गीय लुकमान से जब माटी की गगरिया गीत सुनता तो लगता की है अध्यात्म की परा

काष्ठा तक पहुंचने वाला गीत किसने लिखा है ? जल्द ही पता चल गया कि यह दार्शनिक गीत पंडित भवानी प्रसाद तिवारी की लेखनी से निकाला और सीधे मेरे जैसे का जीवन का दर्शन बन पड़ा है। भवानी प्रसाद तिवारी जी यानी हमारे भवानी दादा फ्रीडम फाइटर थे इनका जन्म 12 फरवरी 1912 में हुआ था। पंडित विनायक राव के पुत्र के रूप में सागर में जन्मे इस महासागर की कर्मभूमि जबलपुर रही. पूज्य भवानी दादा का निधन 13 दिसंबर 1977 को हुआ था। वह दौर ही कुछ अलग था जब, कविताई किसी कवि के अंतस में विराजे दार्शनिक व्यक्तित्व को उजागर करता था। गीतांजलि, प्राण- पूजा, प्राण - धारा, जैसी महान काव्य संग्रह, इसी पत्थर के शहर में रहने वाले महान दार्शनिक कवि भवानी प्रसाद जी तिवारी रचे थे। आज के दौर को सीखना चाहिए अपने इतिहास से, जहां कभी अपने सम्मानों की संख्या बढ़ाने के लिए कविता लिखते हैं यह ऐसे लोगों का शहर पहले तो न था। व्याकरण आचार्य कामता प्रसाद जी स्वर्गीय श्री केशव पाठक, तथा उनकी मानस बहन देवी मां सुभद्रा कुमारी चौहान, श्री,भवानी प्रसाद तिवारी, श्री पन्नालाल श्रीवास्तव नूर, पूज्य श्री गोविंद प्रसाद तिवारी, स्व जवाहरलाल चौरसिया तरुण, गीतकार श्री श्याम श्रीवास्तव चाचा जी, परम पूज्य घनश्याम चौरसिया बादल जैसी हस्तियों का शहर साहित्य के के साथ क्या कर रहा है इससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। शहर साहित्य के तथा कथित सम्मान वितरण केंद्र के रूप में मेरे लिए दारुण दुख है , आपका नजरिया जो भी हो मुझे माफ करें न करें मैंने अपनी बात खुलकर रख दी है। गीत कविता शहर की तासीर को बता देते हैं कि इस शहर में किस प्रकार की हवा चल रही है। कामोंबेस प्रत्येक शहर में यही कुछ हो रहा है। खैर हम मुद्दे पर बात करें ज्यादा बेहतर होगा। डॉ अनामिका तिवारी जी ने जब पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की तीन पुस्तकों का समेकन काव्य रचनावली के रूप में कर प्रकाशित कर विमोचन किया उन दिनों मैं भी एक व्याधि से संघर्ष कर रहा था। पिछले महीने ही अचानक भाई रमाकांत गौतम जी ने पूछ लिया - कि आपको काव्यांजलि की जानकारी है ! मैंने अपनी अभिज्ञता अभिव्यक्त की, और पूछा कि यह कृति कहां मिलेगी। गौतम जी ने कृति डॉ अनामिका दीदी से लेकर आने का वादा किया और वादे के पक्के जीवट गौतम जी ने मुझ पर कृपा की। शहर में बहुत से लोग बहुत वादे करते हैं, पूरे आदमी भाव से मुस्कुरा कर गार्डन में मटका मटका कर प्रॉमिस करते हैं और फिर कहां विलुप्त हैं यह वादा करने वाले और उनका अंतस ही जानता है। गीतांजलि के बहुत अनुवाद हुए हैं, इस पर टीकाएं लिखी गईं , पर रवींद्र बाबू के मानस को गीतांजलि के माध्यम से अगर हिंदी के किसी गीतकार ने पढ़ा है तो वे भवानी दादा के अलावा कोई और होगा मुझे विश्वास नहीं है। फिर भी यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि आदरणीय भवानी दादा केवल गीतांजलि के अनुगायन के कारण स्थापित हुए ऐसा नहीं है, प्राण पूजा प्राण धारा और गद्य में उनकी मौजूदगी से वे स्थापित साहित्यकार के रूप में युगों युग तक याद किए जाएंगे। आपको याद ही होगा बांग्ला भाषा में विश्व कवि रविंद्र नाथ टैगोर जी की गीतांजलि का प्रकाशन 1910 में हुआ था। गुरुदेव ने इसका अंग्रेजी अनुवाद स्वयं किया था और उसी अंग्रेजी अनुवाद के सहारे पूज्य भवानी दादा ने गीतांजलि लिखी। 1947 में सुषमा साहित्य मंदिर जबलपुर द्वारा प्रकाशित किया गया। यही कृति 1985 में अक्षय प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा पुनः प्रकाशित की गई। इसके अतिरिक्त प्राण - पूजा, प्राण- धारा, काव्य संग्रह 70 से 80 के बीच लोक चेतना प्रकाशन से सुधी पाठकों के पास आए थे। इन कृतियों की प्रति अब अनुपलब्ध होती जा रही थीं। बस पुत्रवधू डॉक्टर अनामिका तिवारी ने, अपने ससुर की तीनों कृतियों का समेकित रूप से प्रशासन समग्र के रूप में कराया है। राज्यसभा सदस्य नगर के महापौर तथा अनेकों उपलब्धियां उपाधियां हासिल करने वाले पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जबलपुर के अप्रतिम सार्वकालिक हस्ताक्षर कहे जा सकते हैं। भवानी दादा पर उपलब्धियां और पदवियां कभी हावी नहीं हुई। आइए व्यक्तित्व से आप उनके कृतित्व की ओर चलते हैं। अगर हम गीतांजलि की चर्चा करते हैं तो गीतांजलि रविंद्र नाथ टैगोर जी की वैश्विक कृति है। भवानी दादा ने हम हिंदी वालों का परिचय गुरुदेव रविंद्र जी से कराया है। हम आपके इस कर्ज को चुका नहीं सकते। संग्रह को प्रकाशित करने वाली पुत्रवधू डॉक्टर अनामिका तिवारी ने अपने ससुर जी के बारे में लिखा कि वे कविता नहीं लिखते थे बल्कि कविता जीते थे। उनकी ही बात अपनी शैली में कहना चाहता हूं कि जीवन ने उन्हें कविता दी और कविता ने उन्हें उनकी अनुपस्थिति में जीवंत कर दिया। गीतांजलि के गद्य को हिंदी में अनुचित करने वाले भवानी दादा प्रोफेशनल ट्रांसलेटर के समान नजर नहीं आते बल्कि ऐसा लगता है कि गुरुदेव और भवानी दादा के मन मानस में एक ही नर्मदा प्रवाहित रही होगी। इस बात की पुष्टि बिना लाग- लपेट के भवानी दादा के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा करने वाले आचार्य (डॉ) हरिशंकर दुबे भी करते हैं। वे कहते हैं कि दादा ने गीतांजलि को महसूस करके उसका अनुवाद किया है, । अगर कोई कभी संगीत की सरगम से भली भांति परिचित हो तो उसके गीत का गेय होना स्वाभाविक है। परंतु बंगाल से अंग्रेजी अंग्रेजी से हिंदी यानी भाषा तीसरे पड़ाव में आकर शब्द अर्थ और संगीतिक परिवर्तन कर सकती है परंतु, गीतांजलि के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। संगीतकार अगर गीतांजलि के हिंदी वर्जन का कंपोजीशन तैयार करें तो उन्हें बिल्कुल कठिनाई नहीं होगी यह मेरा दावा है। यह दावा इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि माटी की गगरिया गीत सुनकर लोगों को नाचते हमने देखा है। लुकमान शेषाद्री जब इस गीत को गया करते थे पूरा माहौल भौतिक एवं आध्यात्मिक नर्तन के लिए बाध्य हो जाता। अगर यहां एक भी कविता का उदाहरण पेश किया तो आपकी पढ़ने की इच्छा कदाचित कम न हो जाए इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि आप यदि कवि है तो इस कृति को अवश्य पढ़ें क्योंकि, आपके मस्तिष्क सार्वकालिक गीत रचना का साहस बढ़ जाएगा। फिर भी बात ही देता हूं मैं नहीं जानता मीत कि तुम कैसे गाते हो मधुर गीत ! यह तो एक उदाहरण मात्र है। भवानी दादा गीत लोक व्यवहार के गीत हैं , जिनको दार्शनिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से परखें तो उनके गीत सकारात्मक जीवन दर्शन अनावरित करते हैं। पूज्य भवानी दादा का समकालीन वातावरण कुल मिलाकर केवल पॉलिटिकल नहीं था स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और उसमें शामिल व्यक्तित्व विराट भावी हुआ करते थे। जिसका प्रभाव उनके सृजन पर देखा जा सकता है। फिर चाहे निराला फणीश्वर नाथ रेणु गोपाल दास नीरज हरिवंश राय बच्चन, जैसे महाकवि क्यों न हों? कृति पर चर्चा अंतिम नहीं है, यह एक परिचय मात्र है,। उनकी जीवनी रचनाकारों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करती है जो कविताई को पुरस्कार का मार्ग बनाते हैं। उनके लिए भी जो मंच पर सस्ती लोकप्रियता के लिए आधे आधे घंटे तक चुटकुले बाजी करते हैं जिसे टोटका कह सकते हैं और फिर शब्दों की स्वेटर दिखा दिया करते हैं।






रविवार, अगस्त 25, 2024

मानसिक स्मृति कोष : से उभरते दृश्य

 


   जीवन में  इंद्रिय सक्रियता एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो हमारे जीवन के संचालन के अलावा स्मृति कोष में जानकारी को सुरक्षित करने में भी सहायक है।
इस संबंध में आगे चर्चा करेंगे उसके पहले आपको बता देना आवश्यक है कि - हम केवल घटनाओं के पुनरूत्पादन के विषय में चर्चा कर रहे हैं न कि उस जैसी घटना की पुनरावृत्ति के विषय पर।
   इंद्रियों के माध्यम से हम सूचनाओं एकत्र करते हैं और वह सूचना हमारे स्मृति कोष में संचित हो जाती है। अर्थात हमारे मस्तिष्क में केवल वही बात जमा होती है जिसे हम  गंध,ध्वनि, आवाज़, स्वाद, दृश्य, भाव, के रूप में महसूस करते हैं।
  प जो जो घटनाएं हम महसूस कर सकते हैं केवल वह ही हमारे स्मृति कोष में जमा होती है ।  
आते हैं हमारा स्मृति कोष एक तरह से  एक डाटा बैंक है।
मस्तिष्क में संचित सूचनाओं को क्या हम पुनरूत्पादित कर सकते हैं अथवा क्या ऐसी जानकारी का पुनरूत्पादन हो सकता है?
   हम मस्तिष्क में संचित सूचनाओं को स्वयं भी पुनरुत्पादित कर सकते हैं तथा कई बार ऐसी घटनाएं जो  स्मृति कोष में संचित होती हैं, स्वयं ही पुनरूत्पादित हो जातीं हैं।
इनका  पुनरूत्पादन  जागते हुए या सोते हुए कभी भी हो सकता है।
जागृत अवस्था में हम घटित घटनाओं को भौतिक रूप से क्रिया रूप में कर सकते हैं।
  लेकिन जब हम सोते हैं तब हमें यह सब कुछ आभासी रूप में दिखाई देता है।
   अब आप सोच रहे होंगे कि क्या नेत्रहीन व्यक्ति  कोई घटना स्वप्न में देख सकता है ?
    यदि व्यक्ति की देखने की क्षमता जिस उम्र तक उपलब्ध होती है उसे उम्र तक के दृश्यों के आधार पर नेत्रहीन व्यक्ति स्वप्न देख सकता है। अर्थात उसके स्मृति कोष से स्वप्न के रूप में केवल वही दिखाई देता है जो उसके स्मृति कोष में संचित है।
   परंतु जन्मांध व्यक्ति केवल घटित हुई   घटनाओं का स्वप्न के रूप में पुनरुत्पाद
ध्वनि अर्थात वार्तालाप, गंध , स्पर्श के रूप में महसूस कर सकता है।
    इसी क्रम में एक प्रश्न यह है कि जन्म से मूकबधिर व्यक्ति स्वप्न देख सकता है ?
    वास्तव में हम स्वप्न नहीं देखे बल्कि हम महसूस करते हैं। जन्म से मूकबधिर  व्यक्ति केवल स्वप्न आने पर  घटना को महसूस करता है।
  जागृत अवस्था में ऐसे व्यक्ति मूकबधिर व्यक्ति कि मस्तिष्क में घटनाओं का पुनरूत्पादन सामान्य लोगों की तरह ही महसूस होता है।
अब आप हेलेन केलर जैसी किसी व्यक्ति की कल्पना कीजिए। जो देख सुन और बोल नहीं पाती थी, फिर भी महसूस कर लेने मात्र से उन्होंने अपने दौर में ऐसी ऐसी विचार रखे जो सोशियो इकोनामिक पॉलीटिकल परिस्थितियों के लिए उपयोगी साबित हुए। केवल महसूस कर लेने मात्र से हमारे ही स्मृति कोष में सूचनाएं जमा हो जाती हैं। जिसका पुनरूत्पादन सामान्य और सामान्य से बेहतर परिणाम देता है। हेलेन केलर इसका एक बेहतर उदाहरण है।
हेलेन केलर की जीवन गाथा बार-बार पढ़ने को मन करता है। एक लिंक में आपके साथ साझा कर रहा हूं, मेरे दृष्टिकोण में हेलेन केलर की जिंदगी इस यूट्यूब लिंक पर आपके लिए प्रस्तुत है
https://youtu.be/Cu_1wBT76fk
   स्टीफन हॉकिंग भी दूसरे बेहतरीन उदाहरण के रूप में एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक दार्शनिक के रूप में स्थापित है।
  जब भी कभी सपने में कोई घटना या  घटनाओं का पुनरूत्पादन अर्थात री- क्रिएशन होता है तो वह  केवल आभासी होता है। जबकि हमारे मस्तिष्क में जागृत अवस्था में पुनरूत्पादन होने से उसकी सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव पड़ते हैं।
  कभी-कभी आपने महसूस किया होगा कि किसी व्यक्ति के साथ आपके अच्छे अनुभव न रहने के कारण आप उसकी उपस्थिति में असहजता महसूस करते हैं
   और किसी व्यक्ति के साथ आपके विचार मिलने अथवा उनके साथ बिताए गए बेहतरीन समय के कारण आप सहज और उत्साहित होते हैं।
  कई बार ऐसी स्थितियों के कारण पाप निर्माण भी कर सकते हैं। तो कई बार ऐसी स्थितियां विनाशकारी भी बन सकती है।
   यह व्यक्तिगत चिंतन है, संभावना है कि आप इस चिंतन से सहमति न रखते होंगे, इस हेतु मैं आपका अग्रिम आभार व्यक्त करता हूं। जो उपरोक्त विवरण से सहमति रखते हैं उनके प्रति भी समान भाव से सम्मान और आभार व्यक्त करता हूं।
#Psychology, #स्वप्न    #निद्रा #संचित_स्मृति_कोष
#हेलेन_केलर #गिरीशबिल्लौरेमुकुल  #हॉकिंग्स 

शनिवार, अगस्त 10, 2024

life Sketch | আলোচক শ্রী মলয় দাশগুপ্ত | तीन देशों के राष्ट्रगान में टैगोर


গতকাল অর্থাৎ ৭ই আগস্ট ছিল রবীন্দ্রনাথ ঠাকুরের স্মরণ দিবস।
গতকালের পর্বে আমরা শুনেছি ঠাকুরের গান যা গেয়েছিলেন ডক্টর জাহাজের ডাক্তাররা সুলেরে নে।
‪@shiprasullere4379‬ 
‪@youtubecreators‬ 
‪@YouTube‬ ‪@worldview‬ 
🔗 গুরুদেব রবীন্দ্রনাথ ঠাকুরের স্মরণে
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के स्मृति दिवस 7 अगस्त पर
   • মন মোরো মাগেরো শোঙ্গি  অংশ 01  | स्वर...  


आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं श्री मलय दासगुप्ता की दृष्टि में #गुरुदेव_रविंद्रनाथ_टैगोर
के संस्मरण 
जिसे आप मेरे ब्लॉग मन की बात पर यहां पढ़ सकते हैं 
https://girishbilloremukulji.blogspot...
#podcast #facts 
#NationalAnthem of #bangladesh
   • Amaar Sonar Bangla Ami Tomai Bhalobas...  
National Anthem of India
   • National Anthem 52 Second || भारतीय र...  
National Anthem of 
#SriLanka
   • Sri Lankan National Anthem  
Rabindranath Tagore has contributed to all the three national anthems mentioned above. Two national anthems have been written by Rabindraji and the tune of the third national anthem has been composed by Ravindra Nath Tagore .


मंगलवार, अगस्त 06, 2024

B'desh Crisis | दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी ? 02


( #डिस्क्लेमर:हमारे इस विमर्श का उद्देश्य केवल दक्षिण एशिया में शांति एवं मित्र राष्ट्रों के सोशियो इकोनामिक डेवलपमेंट पर पढ़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की समीक्षा करना है। हमारी इस विमर्श का कोई स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल उद्देश्य कदापि नहीं है। )
    पिछले भाग में अपने जाना कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए किए गए तख्तापलट एक वैश्विक स्तर पर की गई करवाई हो सकती है अब आगे ...)
हमने आपको बताया था कि बांग्लादेश में डेमोग्राफिक अरेंजमेंट में 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़  जनसंख्या  हिंदुओं की है. इनके अलावा  बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख मत एवं संप्रदायों से जुड़े हुए लोग रहते हैं।
  सांप्रदायिकता को लेकर पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश भी अत्यधिक संवेदनशील है। आजादी के बाद अभिभाजित  पाकिस्तान के इस हिस्से में लगभग 27 प्रतिशत हिंदू आबादी निवास करती थी परंतु अब मात्र 8% आबादी ही हिंदू आबादी है।
    भारत में नागरिकता के परिपेक्ष में कानून लाने का उद्देश्य भी मानव अधिकार की रक्षा ही था। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय विशेष रूप से हिंदू और बौद्ध कथित रूप से इस आंदोलन के निशाने पर हैं।
उदाहरण स्वरूप नवग्रह मंदिर तथा अन्य मंदिरों को निशाना बनाना, हिंदू परिवारों के घर में तोड़फोड़ करना, इस्कॉन मंदिरों पर हम लोग को छात्र आंदोलन कहना अनुचित है। बांग्लादेश में मुस्लिम अतिवादियों ने कई वर्षों से हिंदू ब्लॉगर्स को निशाने पर रखा गया था और उनकी बेरहमी से हत्या भी कर दी थी।
   आंदोलनकारी छात्र यह भूल चुके हैं कि, पाकिस्तान ने अपने पूर्वी हिस्से यानी वर्तमान बांग्लादेश में एक लाख से अधिक महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया तथा लगभग 30 लाख लोगों मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश की युवा पीढ़ी को यह याद रखना चाहिए कि वे चीनी और पाकिस्तानी साजिशों का मोहरा बन गए हैं।   
   अब तो यह तय हो चुका है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत विरोधी वातावरण निर्मित करने के लिए दक्षिण एशिया में सक्रिय हो चुके हैं।
कुछ यूट्यूबर जैसे अंकित अवस्थी ने बताया है कि शेख हसीना की सरकार के विरुद्ध अमेरिका ने भी वातावरण तैयार किया है। उनका तर्क है कि अमेरिका द्वारा शेख हसीना सरकार को सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए पहले दबाव डाला गया था। परंतु शेख हसीना ने उनके प्रस्ताव को नकार दिया था।
इसके अतिरिक्त अमेरिका से जारी बयान से भी लगता है कि आर्मी कार्रवाई को संतोष जनक बताया है जबकि ग्राउंड रियलिटी यह है कि 24 घंटे से अधिक समय भी जाने के बाद हिंदू माइनॉरिटी, शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के सदस्यों एवं पदाधिकारीयों को हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है।
अगर यह स्थिति नियंत्रित नहीं होती है तो उन की पीसकीपिंग फोर्स को अपना दायित्व निभाना होगा।
फिलहाल बांग्लादेश में अराजकता के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया जाना जल्दबाजी होगा। 
  इसके परिणाम स्वरुप भारतीय उप महाद्वीप में अस्थिरता को स्थान मिलता नजर आ रहा है।
   यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि चीन और पाकिस्तान  का यह प्रयास है कि भारत की स्थिति दुश्मनों से घिरे इजरायल की तरह हो जाए। ताकि चीन अपने विस्तारवादी एजेंडे को संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र में लागू कर सके।
  अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक स्थिति जो भी हो किसी भी देश में सामाजिक अस्थिरता फैलाना मानव अधिकार का सबसे अपराध  है।
भारत के सीमावर्ती राज्यों मणिपुर असम पश्चिम बंगाल में अब सीमा सुरक्षा भारत के लिए चुनौती बन चुका है। निश्चित तौर पर भारत  सरकार इस मुद्दे पर भी विशेष ध्यान देगी।
    भारतीय उपमहाद्वीप में भारत को अलग-अलग कर देने की चीन की कोशिश है पहले भी जारी रही है इसका विवरण हम पिछले पॉडकास्ट में प्रस्तुत कर चुके हैं। 
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India's Foreign Policy

सोमवार, अगस्त 05, 2024

B'desh Crisis | दक्षिण एशिया के लिए खतरे की ?घंटी 01

( #डिस्क्लेमर:हमारे इस विमर्श का उद्देश्य केवल दक्षिण एशिया में शांति एवं मित्र राष्ट्रों के सोशियो इकोनामिक डेवलपमेंट पर पढ़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की समीक्षा करना है। हमारी इस विमर्श का कोई स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पॉलिटिकल उद्देश्य कदापि नहीं है। )
#बांग्लादेश #Socio_Economic_Effects

दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण देश बांग्लादेश के इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के लिए  भारत की प्रतिबद्धता सदा से ही रही है। पाकिस्तान से विभाजन के पूर्व तथा
1971 के पश्चात से ही भारत का दृष्टिकोण बांग्लादेश के लिए सकारात्मक रहा है।
    2024- 25 के भारतीय बजट में  बांग्लादेश को विकास सहायता के तहत 120 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की जाएगी 
   भारतीय अर्थव्यवस्था के सहयोग एवं मानव संसाधन विकास के महत्वपूर्ण स्वीकारते हुए बांग्लादेश ने अपने आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए प्रभावशाली रूप से भारत का सहयोग लिया है।
भारतीय विदेश नीति में  भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिण एशियाई देशों के प्रति सम्मानजनक सह अस्तित्व के कांसेप्ट को प्रमुखता दी जाती रही है।
   परंतु पाकिस्तान एक ऐसा राष्ट्र है जो भारतीय विदेश नीति के लिए आवश्यक मापदंडों को सहन नहीं कर रहा है।
पिछले कुछ दिनों से बांग्लादेश में असहज स्थिति उत्पन्न करने के लिए आंतरिक वातावरण बेहद हिंसक बनाया जा रहा है। भले ही अप्रत्यक्ष रूप से परंतु बांग्लादेश में भी एक लंबे अंतराल से शेख हसीना की पार्टी को हटाने की कोशिश लगातार जारी रही है।

5 जून 2024 को बांग्लादेश के न्यायालय निर्णय के बाद 4 जुलाई 2024 से आरक्षण के मुद्दे को लेकर बांग्लादेश के छात्र विगत कई महीनों से आंदोलन कर रहे थे। 
   आज 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना द्वारा इस्तीफा देकर अपनी बहन के साथ बांग्लादेश से बाहर निकल चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शेख हसीना ने भारत में आ चुकी है तथा उनकी मुलाकात NSA श्री अजीत डोभाल से बातचीत हो चुकी है।

   16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान से मुक्त हुए बांग्लादेश शेख मुजीबुर रहमान एवं उनके परिवार के 17 सदस्यों की हत्या आर्मी के तख्ता पलट में 1975 में कर दी गई थी।
  शेख मुजीबुर रहमान जिन्हें बंगबंधु के नाम से जाना जाता है, की हत्या के बाद सेना ने बांग्लादेश आर्मी चीफ जियाउर रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश की सत्ता संभाली थी। हालांकि उन पर यह आरोप लगाता रहा है कि वे मुजीब की हत्या के दोषी हैं। जबकि उन्होंने ही शेख हसीना को प्रजातांत्रिक रास्ते से वापस स्थापित किया।
  विकसित राष्ट्रों से लेकर अल्प विकसित राष्ट्रों तक राष्ट्र प्रमुख के आवास पर हमला बोलना बेहद सोशियो पॉलीटिकल नजरिया से नकारात्मक स्थिति का परिचायक है।
डेमोक्रेटिक सिस्टम कभी भी हिंसा का हिमायती नहीं रहा परंतु डेमोक्रेसी में हिंसा का प्रवेश तख्ता पलट, राष्ट्र प्रमुख के आवास पर हमला बोलना, डेमोक्रेटिक सिस्टम की विकृति का उदाहरण माना जा सकता है।
  अपने अमेरिका में भी भीड़ का राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करना देखा होगा तो आपको श्रीलंका में भी इस तरह की गतिविधि नजर आई होगी।
  यह तीसरा मौका है जब भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश के राष्ट्र प्रमुख के आवास पर जनता ने हमला बोला है।
उपरोक्त स्थितियों के अलावा अगर हम गौर करें तो म्यांमार श्रीलंका के बाद बांग्लादेश में पॉलीटिकल अनरेस्ट की स्थिति कोई सामाजिक आंदोलन की परिणीति नहीं हो सकती।
  दोपहर बाद जब  बांग्लादेश से संबंधित खबर आनी शुरू हुई तो मुझे यह महसूस हो गया था कि - "यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर से प्रेरित  प्रजातंत्र को समाप्त करने वाला षड्यंत्र हो सकता है।"
  फिर धीरे-धीरे मीडिया इस बात का खुलासा करने लगा।
   अगर यह कयास लगाया जाता है कि - बांग्लादेश का मौजूदा नेतृत्व, दो अंतरराष्ट्रीय ताकतों के षडयंत्रों का शिकार हुआ है तो शायद गलत नहीं होगा।
   फिलहाल हम उन खबरों पर नजर बनाकर रखे हैं जो बांग्लादेश की स्थितियों पर सामने लाई जाएगी। फिर भी यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश श्रीलंका नेपाल म्यांमार मालदीव में दिखने वाले दृश्य दक्षिण एशिया के लिए सकारात्मक नहीं है।
बांग्लादेश से आने वाली खबरों को देखकर प्रतीत होता है कि दक्षिण एशिया अब मिडिल ईस्ट की तरह सोशियो इकोनामिक सिस्टम के संदर्भ में नकारात्मक दिशा की ओर जा रहा है।
   दक्षिण एशिया में भारत के बाद बांग्लादेश ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी अर्थव्यवस्था विकास का आभास देती है परंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है अब बांग्लादेश उग्र एवं कट्टरपंथी विचारधारा एवं आयातित अराजकतावादी विचारधारा का शिकार होकर अस्थिरता के चक्रव्यूह में घिरता चला जा रहा  है।
   देखना यह है कि 1971 में जन्मे इस राष्ट्र के आर्थिक सामाजिक विकास फिर कब स्थापित हो सकेगा। इतना तो तय है कि बांग्लादेश में अब जो भी सरकार बनेगी वह भारत की समर्थक होगी या नहीं यह कहना मुश्किल है।
प्राप्त समाचारों के अनुसार बांग्लादेश में गैर इस्लामिक नागरिकों को भी टारगेट किया जा रहा है।
  इससे प्रतीत होता है कि पाकिस्तान की आई एस आई का कहीं न कहीं बांग्लादेश की आंतरिक गतिविधियों  में हस्तक्षेप बढ़ गया है।
और संप्रदायिक रूप से बांग्लादेश संवेदनशील होता जा रहा है।
  बांग्लादेश में करीब 15 करोड़ मुसलमान हैं और इसके बाद 1.31 करोड़  जनसंख्या  हिंदुओं की है. इनके अलावा बांग्लादेश में 10 लाख बौद्ध धर्म को मानने वाले, 4.95 लाख ईसाई और 1.98 लाख दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग हैं ।
  इसका अर्थ यह है कि बांग्लादेश में अगर पंथनिरपेक्ष सरकार का गठन नहीं होता तो सामाजिक संरचना नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी। 

क्या तलाशते हैं लोग इंटरनेट पर


     साप्ताहिक पॉडकास्ट दुनिया इस सप्ताह में  आज से हम प्रत्येक रविवार की शाम दुनिया इस सप्ताह शीर्षक से एक पॉडकास्ट आपके लिए लाएंगे। जो पूरे सप्ताह में हुए महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर केंद्रित होगा।
    ( खबरें 4 अगस्त 2024 तक  )
  आज जानते हैं इस सप्ताह में उन समाचारों के बारे में जो सबसे ज्यादा खोजे गए अथवा चर्चित रहे हैं
    इस सप्ताह हम विश्लेषण कर रहे हैं कि विश्व में  खास तौर पर अमेरिका यूरोप तथा भारत, दक्षिण एशिया के अन्य देशों जैसे बांग्लादेश और पाकिस्तान में किन विषयों पर आधारित कंटेंट्स को देखा और दिखाया जा रहा है।
   इस समय गूगल पर अमेरिका में सर्वाधिक खोज की जा रही है वह अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर सर्वाधिक कंटेंट खोजा जा रहा है।
   जबकि पिछले दो दिनों से अर्थात एक अगस्त के पक्ष से अमेरिका सहित संपूर्ण विश्व के लोग इसराइल फिलिस्तीन  और हमास पर केंद्रित समाचारों को तलाश रहे हैं।
  अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव लिए अमेरिका की जनता ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की जनता और  मीडिया हाउस दोनों प्रत्याशियों कमला हैरिस एवं  डोनाल्ड ट्रंप  की स्थितियां समझना चाहते हैं।
  स्मरण हो कि जो बाइडन के बाद अब भारतीय मूल की कमला हैरिस अमेरिकी राष्ट्रपति के पद पर डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी हैं।
  विश्व भर के विशेषज्ञ डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार  कमला हैरिस एवं रिपब्लिकन ट्रंप की लोकप्रियता के बारे में जानना चाहते हैं और इसी आधार पर अमेरिका के इलेक्शन पर प्रिडिक्शन किया जा रहा है।
   मीडिया पर प्रचारित समाचारों को देखा जाए तो ज्ञात होता है कि रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवारों में अब कांटे का संघर्ष नजर आ रहा है। जबकि पिछले एक माह से स्थिति रिपब्लिक रिपब्लिकन पार्टी के पक्ष में थी।
अमेरिका में महंगाई की दर में वृद्धि के कारण सोने का बाजार भाव भी इन दिनों सुर्खियों में है।  सोने का भाव तय करने वाला इंग्लैंड का बुलियन बाजार सोने की कीमतों में यूरोप के प्रभाव को प्रदर्शित करता है। जब जब दुनिया में यूरोप की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है तब तक विश्व में सोने के भाव में अचानक वृद्धि देखी जाती है।
   विश्व में भले ही सोना एक निवेश का कारण हो परंतु भारत में सोना सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि भारत में सोने से जुड़े हुए समाचारों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  वैश्विक स्थिति में जहां एक को अमेरिका का इलेक्शन सबके लिए कौतूहल का विषय बना है वहीं दूसरी ओर इजरायल के खतरनाक जासूसी संगठन मोसाद द्वारा कथित रूप से तेहरान में हमास के चीफ  हानियां की हत्या को लेकर बेहद रहस्यमई कहानियां  सामने आ रही है।
   सर्च इंजन में हमास के प्रमुख हानिया की हत्या को लेकर यह खोजा जा रहा है कि किस तरह से इसराइल के जासूसी संगठन मोसाद ने उन्हें मौत के घाट उतारा।
  लगभग 1 वर्ष से या कहीं इसराइल के बने के बाद से इसराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष की परिणीति एक रहस्यमई हत्या के रूप में हुई है। आगे और क्या होता है यह भी विचारणीय है।
    कुछ मीडिया चैनल यह अंदाज लग रहे हैं कि ईरान के भीतर ही कोई ऐसे स्लीपर सेल है जो आतंकी संगठन के प्रमुख को निपटने में सहयोग कर रहे हैं।
भारत में जिन समाचारों में रुचि ली जा रही है उनमें संसद की गतिविधियों के अलावा बरसात एक प्रमुख मुद्दा है।
परंतु जब से हमास प्रमुख का की कथित तौर पर हत्या मोसाद द्वारा की गई है, उसके परिणाम पर चिंता व्यक्त की जा रही है।
   मीडिया जगत यह मान रहा है कि अब तीसरा विश्व युद्ध नजदीक है।
भारत में भी जो समाचार सर्च किया जा रहे हैं उनमें अब अचानक ट्रेंड बदलता नजर आ रहा है। कन्वेंशनल प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रकाशित होने वाले समाचार और विशेष आर्टिकल तीसरे विश्व युद्ध की आहट को महसूस करते नजर आ रहे हैं।
   भारत में अचानक पाकिस्तान से 600 आतंकवादियों की घुसपैठ चिंता का विषय है। परंतु अच्छी खबर यह है कि अब तक के एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों के रूप में घुसे पाकिस्तान सेना के कमांडोज में से एक को जिंदा पकड़ लिया गया है।
   इस सप्ताह में भारत के लिए से पाकिस्तानी कमांडो को जिंदा पकड़ना बेहद महत्वपूर्ण एवं आवश्यक भी है।
   भारत में सर्च की जाने वाली खबरों में 200  रोहिंग्याओं का लखनऊ के पास अवैध प्रवास भी सनसनी बना हुआ है।
   पाकिस्तान में औसत इंटरनेट यूजर वल्गर कंटेंट खोजने में नंबर वन है। स्मरण हो कि पाकिस्तान में सर्वाधिक पोर्न देखा जाता है।
    दक्षिण एशिया का एक और देश है बांग्लादेश, यूट्यूब पर लाइव होकर पैसे कमाने की दौड़ में बांग्लादेश पश्चिम बंगाल एवं बिहार, उत्तर प्रदेश से महिलाएं एवं पति पत्नी देर रात तक अश्लील प्रसारण में व्यस्त रहती हैं।
  भारत में  सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा कंटेंट संसद की पिछली कार्रवाई में हुई नोकझोंक पर मीम्स और कंटेंटस का आदान प्रदान हो रहा  है। 

रविवार, अगस्त 04, 2024

Eternal. | सनातनी अस्थि-पंजरों पूजन न करें..?

   बहुत दिनों से यह सवाल मेरे मित्र मुझसे पूछते थे। सनातन में अस्थि कलश विसर्जित किया जाता है। क्योंकि शरीर और प्राण दो अलग-अलग वस्तु है। कतिपय सनातनी उन स्थानों की पूजा करते हैं जहां शरीरों को प्रथा अनुसार मृत्यु के बाद भूमिगत कर दिया जाता हैं ।
 सनातनी लोगों के लिए ऐसा करना वर्जित है। 
    सामान्यतः  सनातन धर्म में देह को प्राण के देह से निकल जाने के बाद अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है उसकी अस्थियों एवं भस्म को गंगा या अन्य पवित्र नदी को सौंपा जाता है।  मृतक के मरने के 11 दिन बाद शरीर से पृथक हुए प्राण को पूर्वजों के साथ मिलाकर ब्रह्म के अर्थात परम उर्जा में समाविष्ट करने का नियम है। तदुपरांत सवा महीने तक दिवंगत आत्मा की स्मृति में ऐसे कार्य जो विलासिता की श्रेणी में आते हैं को संपन्न करने कराने की अनुमति सनातन में नहीं है।
सनातन ऐसे किसी विषय को रुकता नहीं है जिसमें कि किसी परिवार का हित छुपा हुआ हो। उदाहरण के तौर पर विवाह संस्कार रोजगार के लिए पर्यटन इत्यादि। क्योंकि सनातन व्यवस्था में विकल्पों का महत्व है तथा जीवन चर्या के लिए विकल्प भी मौजूद है ऐसी स्थिति में मृत्यु के उपरांत उत्तर कर्मों की काल अवधि में परिवर्तन किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप स्थाई नियम है किसी की मृत्यु के 1 वर्ष उपरांत घर में शुभ कार्य हो सकते हैं। परंतु आवश्यकता पड़ने पर 12 माह उपरांत होने वाली बरसी की तिथि में परिवर्तन किया जा सकता है। यहां तक कि अगर विवाह जैसा कार्य संपादित किया जा रहा हो और उसी समय परिवार में कोई मृत्यु हो जाए तो उत्तर कर्म तथा विवाह समानांतर रूप में संपन्न किए जा सकते हैं। सनातन कट्टर व्यवस्था को विकल्पों के तौर पर समाप्त करने की सलाह देता है। सनातन का हर संप्रदाय अपने अपने नियम बनाता है। इससे सनातन के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होता। सनातन धर्म है ना कि सांप्रदायिक व्यवस्था। सनातन जिस ईश्वर की कल्पना करता है वह ईश्वर प्रत्येक जीव के साथ समानता का व्यवहार करता है। सनातन का  अनुसरण करने वाला व्यक्ति चाहे वह शैव वैष्णव अथवा शाक्त हो सभी में एक ही ब्रह्म की अवधारणा दृढ़ता से समाहित होती है।
    स्वर्ग और नर्क की परिकल्पना मूल रूप से सनातन में नहीं की गई। ऐसी मेरी अवधारणा है सर्वमान्य ग्रंथों में स्वर्ग नरक की परिकल्पना नहीं है।  ब्रह्म एक परम ऊर्जा है। हमारे प्राण उसी परम उर्जा का अंश होते हैं। प्रतीकात्मक रूप से हम सनातन धर्म के अनुयाई मृतक के पिंड अपने पूर्वजों के  पिंडों के साथ मिलाकर सहपिंडी की प्रक्रिया का निष्पादन करते हैं। यह अनुष्ठान हम निरंतर करते हैं कहीं-कहीं  पुण्यतिथि पर अथवा श्राद्ध पक्ष में।
  यह वैज्ञानिक सत्य भी है। केवल हम उन शरीरों को भस्मी भूत करते हैं। विशेष परिस्थिति में समाधि देने का भी प्रावधान है। परंतु ऐसा सामान्य रूप से नहीं होता। मित्र को मेरी सलाह थी कि-" हम अमर आत्मा की पूजन करते हैं अगर वह हमारे पूर्वज है तो अगर समकक्ष या छोटी उम्र के हैं तो उन्हें श्रद्धा सहित आमंत्रित कर उनका स्मरण करते हैं। यह परम सत्य है कि आत्मा नामक ऊर्जा का मिलन अगर प्रमुख ऊर्जा अर्थात ब्रह्म से नहीं होता तो वह या तो पुन: जन्म लेती हैं ,अथवा ऐसी आत्माएं जन्म लेने के लिए किसी भी योनि में प्रविष्ट हो  सकती है। हमारी सनातनी मान्यता है कि हमें उन आत्माओं की प्रति तर्पण जैसी प्रक्रिया करने से आत्मा जिस योनि में जन्म लेती है को आत्मिक सुख का अनुभव होता है। 
हमें किन लोगों की समाधि पर पूजन करनी चाहिए
हमें केवल ऐसी मृत समाधिष्ट    महा ज्ञानियों तपस्वियों और ब्रह्मचारीयों की पूजन करने की आज्ञा है जो ऋषि परंपरा एवं लौकिक जीवन में जीव ब्रह्म के अनुरूप आचरण कर चुके हैं। ऋषि परंपरा के दिवंगत व्यक्तियों की समाधि यों को छोड़कर अन्य किसी भी मत एवं संप्रदाय के मृतकों की समाधि की पूजा करना वर्जित है इन समाधियों में नर कंकाल के अलावा कुछ नहीं होता।
यह भी मान्यता है कि जो लोग मृत शरीरों को संभाल कर रखते हैं तथा उनकी पूजन करते हैं उससे कुलदेवी या कुलदेवता रुष्ट हो जाते हैं। क्योंकि हमारी कुल की रक्षा कुलदेवी या कुलदेवता द्वारा की जाती है। कुलदेवी अथवा कुल देवता हमारे कुल की रक्षा और उन्हें सतत आशीर्वचन देने का दायित्व निभाते हैं। किंतु हम भ्रमित होकर अन्य संप्रदायों से संबंधित व्यक्तियों की समाधि पर आराधना करना सनातन में वर्जित है। ऐसा करने से कुलदेवी अथवा कुलदेवता के प्रति आपका अविश्वास प्रकट होता है। ऐसी स्थिति में जो सनातनी व्यक्ति है उसे कभी भी किसी अन्य संप्रदाय के प्रति आस्था रखने वालों से संबंधित समाधि पर ना तो जाना चाहिए और ना ही उन पर विश्वास ही करना चाहिए। क्योंकि हम अस्थि पूजक नहीं है बल्कि हम ब्रह्म के आराधक हैं। हमारी कुल देवी या देवता के प्रति आस्था ना रखते हुए हम अगर अन्य किसी पर विश्वास करते हैं तो यह अपने ही कुल देवी या देवता के प्रति सकारात्मक श्रद्धा से खुद को अलग कर लेते हैं। जिनके घर में श्राद्ध पक्ष एवं कुलदेवी और कुलदेवताओं का पूजन किया जाता है उन्हें किसी अन्य गैर सनातनी व्यक्ति की समाधि पर जाना शास्त्र सम्मत नहीं है भले ही वे कितने महत्वपूर्ण क्यों न हों। 
   आज से ही जो भी कब्रों दरगाह अथवा ऐसे किसी स्थान पर जाते हैं जहां उन्हें भ्रम होता है कि उनकी मनोकामना पूर्ण होगी । वास्तव में यह भ्रामक प्रचार के कारण होता है। पंडितों एवं आचार्यों को चाहिए कि वे इस संदेश को हर तरफ विस्तारित करें। 
  हां यदि आप अन्य किसी संप्रदाय को मानते हैं तो आप यह सब कर सकते हैं , इसे हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । परंतु सनातन धर्म के माननीय वालों के लिए यह सब वर्जित है।
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