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शनिवार, जुलाई 18, 2020

रूप ऐसा कि, दर्पन सह न सके

रूप ऐसा कि, दर्पन सह न सके
💐💐💐💐💐💐💐💐
दाम अपने न ऊंचे, बताया करो
टाट तुम न ज़री से सजाया करो !
तन है भीगा हुआ, प्रीत-बौछार से
छाछ से मन को, मत भिगाया करो ।
ताल स्वर लय, मौलिक न हो अगर
गीत मेरे बेवज़ह तुम न गाया करो ।
रूप ऐसा कि, दर्पन सह न सके
ऐसे दर्पन के सनमुख न जाया करो ।
ग़र भरोसा नहीं , मुकुल के प्यार पर
प्रेम गीत मुझको न, सुनाया करो ।।

  • *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

सोमवार, जून 15, 2020

क्यों करते हैं सितारे आत्मघात कभी सोचा आपने...!


आत्महत्या करना सामान्य रूप से एक अवसाद की स्थिति का दुष्परिणाम है सुशांत की आत्महत्या और इसके पहले भी लगभग 15 चर्चित कलाकारों तथा कई गुमनाम कलाकारों ने आत्महत्या की है और जब भी कोई कलाकार आत्म हंता बनता है तो बेहद पीढ़ा होती है !   व्यक्ति के लिए आत्महत्या बेहद सरल विकल्प होता  है क्योंकि एकाकीपन और विकल्पों का अभाव कुछ ऐसे ही मनोवैज्ञानिक नजरिए से विध्वंसक माने जाने वाले निर्णय लेने के लिए बाध्य कर देते हैं।
सारेगामापा 18-19 में 
सुशांत ने इशिता को क्या 
कहा था सुनिए ।
वीडियो स्रोत Zeetv से
आभार सहित । 
सौजन्य  तेजल विश्वकर्मा 


   क्योंकि उसके पास जीवन की विषम परिस्थितियों में जीने के लिए निदान खोजते खोजते जब कभी भी डेडएंड नजर आने लगता है सब उसके पास नकारात्मक विकल्प सहज ही उपलब्ध होते हैं? 
और वह सुसाइड करना परंतु अत्यधिक संवेदनशील होते हैं अगर आप देखें तो कलाकार बहुत जल्दी ऐसे निर्णय लेने में देर नहीं लगाते और आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। यह उनकी अत्यधिक संवेदनशीलता का परिणाम होता है। 
सामान्य व्यक्तियों में अधिकतर विकल्पों की तलाश होती है जो भले ही उसके पास घर परिवार जिम्मेदारी और संघर्ष सब कुछ एक विकल्प के रूप में सामने आता और बेहद डार्कनेस नजर आती है तब ही वह आत्महत्या को अंजाम देता है। जबकि कलाकार ऐसा नहीं करता उसके पास बहुत सारे विकल्प होते हैं परंतु संवेदनशीलता इस कदर हावी होती है कलाकार सबसे पहला कदम आत्महत्या ही सोचता है। सुशांत सिंह का जाना उसी क्रम में घटना समझ में आती है। 
अक्सर देखा गया है कि लोग हारना स्वीकार नहीं करते हैं !
     क्योंकि उन्हें उनके जन्म के साथ दी जाने वाली घुट्टी में जितना है जितना है जितना है इतनी बार लिखा जाता है कि वह पराजय बर्दाश्त नहीं कर पाना सबसे पहले सीखता है। जबकि जीवन में हाथ को स्वीकार ना और उसके साथ नए विकल्पों को जोड़ना बहुत जरूरी है गार्जियन बचपन से ऐसा नहीं सिखाते। सभी को यह लगता है कि उनका बच्चा पड़ोस वाले पांडे जी गुप्ता जी के बच्चों से कमजोर क्यों? और बच्चा भी इसी कोशिश में लग जाता है कि मैं पांडे जी गुप्ता जी शर्मा जी जैन साहब आदि सब के बच्चों से आगे होकर दिखाऊंगा । अब तो जानते हैं कि सुशांत सिंह एआई ट्रिपल ई के एंट्रेंस एग्जाम में सबसे टॉप वाली लिस्ट में शायद सातवें रैंक के साथ चुन लिए गए थे कुछ साल उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की थी। सुनते हैं इंस्टाग्राम पर पर सुशांत नहीं अपनी मां को याद किया शायद यह उनका अंतिम मैसेज रहा है वे बीती यादों को याद करते हैं और उपलब्धियों को मां के अभाव में सुने मानते रहे। यह एक अलग साइक्लोजिकल पहलू भर के आ रहा है जिसे जीत और हार के पहलू से भी नहीं देखा जा सकता। क्योंकि एमएस धोनी में उनकी सफलता पर शायद उन्होंने कहा था शायद क्या निश्चित ही कहा था कि वह इस सफलता से अत्यधिक प्रसन्न है नहीं है क्योंकि वह अपनी मां को अपनी उपलब्धि दिखाना चाहते थे भौतिक रूप में मां उनके साथ नहीं है यह एक भावनात्मक संबंध भी है हो सकता है की सुशांत ने विरक्ति भाव जो आमतौर पर किसी भी बच्चे में होता है अब तक सक्रिय रहा ? यह सब हमारी सोच और कयास ही हैं । पर व्यक्तिगत तौर पर एक संवेदनशील लेखक के रूप में मैं अक्सर हिल जाता हूं जब कोई कलाकार आत्महत्या करता है हाल ही में प्रेक्षा की आत्महत्या से मुझे इसलिए दुख हुआ क्योंकि उसके साथ के कई संघर्षशील कलाकार आज भी मेरे संपर्क में हैं और भी काफी हताश थे। यद्यपि कई बच्चों का तो यह मानना था किस तरह का नकारात्मक एनवायरमेंट नहीं बनना चाहिए। बच्चे तो बच्चे हैं फर्क इतना है अत्यधिक सुख सुविधा और सफलता मैं अगर किसी भी तरह की नकारात्मक परिस्थिति सामने आ जाती है तो संवेदनशील कलाकार सबसे पहले आत्महत्या का रास्ता अख्तियार करता है। मध्य प्रदेश ड्रामा अकादमी के वर्तमान छात्र अक्षय ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा- हमें पराजय और हार से डर जाना या घबराकर हमें प्रेक्षा जैसे कदम उठाना उचित नहीं लगता। अक्षय से मैं पूर्ण तरह सहमत हूं परंतु यह भी सत्य है के अक्सर बच्चों को हारने में प्रताड़ित करना या उसे ऐसा महसूस कर आना कि वह शर्मा जी गुप्ता जी आदि के बच्चों से पीछे हैं सही तरीका नहीं है। मुझसे जब अभिभावक यह पूछते थे कि तुम्हारे बच्चों के रिजल्ट क्या रहे? मैं अक्सर कहता था फेल भी हो जाएगा कोई बच्चा तो भी मैं मिठाई लेकर जाऊंगा और उसके लिए दुलार में मेरी कोई कमी नहीं होगी। क्योंकि मैं जानता हूं कि निर्माण फेल या पास होने से नहीं होता व्यक्तित्व का निर्माण होता है उसके व्यक्तिगत गुणों में सकारात्मक बदलाव से। और वही सकारात्मक चिंतन अगर बच्चों में डाल दिया जाता है तो फिर क्या कहने ना सुशांत आत्महत्या करता है और ना प्रेक्षा । ऐसा नहीं कि मैं स्वयं दूध का धुला हूं कई बार इस तरह के विचार मस्तिष्क में आते हैं परंतु जब यह विचार आता है की विकल्प यहीं नहीं है हमारे पास विकल्पों की संख्या कम नहीं है जीवन को साबित करने के लिए जीवन के प्रबंधन के लिए हजारों हजार विकल्प मिल जाएंगे और अगर वह विकल्प मिल जाते हैं फिजिकल कोई कमजोरी के कारण हम शरीर को छोड़ना पड़ता है तो इससे बेहतर और क्या होगा कि हम ईश्वर की सत्ता के अनुरूप काम करते इस दुनिया को अलविदा कहेंगे।
मेरे मित्र एक गंभीर अवसाद के समय मुझे खोजते हुए मुझ तक पहुंचे और मुझे हताश देखकर ढांढस बंधाया और कहा- रात के बाद सुबह होती है। और हां यह भी कि पंडित नौशाद अली जब जबलपुर में आए और उनके कार्यक्रम को मैंने सुना जब यह गीत पेश किया जा रहा था- "वो सुबह कभी तो आएगी...!" तो ऐसा लगा कि मित्र मेरे साथ गुनगुना रहा है। आत्महत्या के मुहाने से लौटना या लौटा कर लाना सच में बहुत बड़ी घटना होती है। कोविड-19 के दौर में सुना है 15 से अधिक प्रसिद्ध कलाकार और सैकड़ों साधारण कलाकारों ने अपनी जान गवाई है। मेरी समझ में तो एक मात्र कारण आता है और वह यह है कि वह मुख्य रूप से अत्यधिक संवेदनशील है और उनकी यह अत्यधिक संवेदनशीलता उन्हें शहर ही गुमराह कर देती है । 
छोटे शहरों की प्रतिभाएं जब चकाचौंध वाली माया नगरी में जाते हैं तो आप जानते हैं वास्तव में वह अकेले रहते हैं कहने को भीड़ रहती है उनके साथ और उनके साथ रहता है आभासी संसार जो दिखता तो है पर संवेदी कितना है इसका अंदाज कोई नहीं लगा पाता मित्रों माया नगरी कुछ ऐसी ही है। अब तक कई बार ऐसे मौके आए कि जब मुझे मुंबई से बुलावा आया हूं पर कोई ना कोई प्राकृतिक अथवा आकस्मिक परिस्थिति ने रोक दिया यही है नियति का खेल जो नियति सबके साथ खेलती है। कभी भी मुझे वहां पहुंचने का आत्मिक क्लेश नहीं रहा दुख अवश्य हुआ इसे छिपाने की कोई बात नहीं है। और मुझे मालूम है कि नियति जब चाहेगी तब मुझे वैसे काम मुहैया कराएगी अभी मेरी यहां जरूरत है जो भी होता है बेहतर के लिए होता है इसमें अत्यधिक संवेदी होने की आवश्यकता तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। मित्रों अक्सर हम देखते हैं कि बच्चे किसी स्पर्धा में हार जाते हैं तो रोने लगते हैं स्वभाविक है । बच्चों का रोना स्वभाविक है उनका कोमल मन बहुत जल्दी हताश हो जाता है दुखी हो जाता है। मैं अपने कला साधक बच्चों को यही बताता हूं जो तुम विजेता हो तो अगली जीत की तैयारी करो और जो आज की जीत है आज का यह है उसे मां नर्मदा को अर्पित कर दो। मैं इस बात को कभी नहीं सुनता और ना सुनना चाहता कि फला स्पर्धा में जजमेंट गलत हुआ अब तो बच्चे यह समझने भी लगे और भी अपनी जीत से अवगत अवश्य कराते हैं पर अत्यधिक उत्साह और अभिव्यक्ति में उत्तेजना नहीं व्यक्त करते। और जिन बच्चों का कोई रंग नहीं लगता वे बच्चे भी बहुत दुखी मन से नहीं आती नहीं निर्णायकों पर संवाद ही उठाते हैं। यानी पहला पाठ है पराजय को समझना और अगली विजय के लिए खुद को तैयार रखना। इसका बेहतर उदाहरण थिएटर से मैं समझ पाया। थिएटर में बहुत बड़ा कलाकार छोटी सी भूमिका में आ जाता है और बहुत छोटा सा कलाकार जो अभी-अभी अरुण पांडे जी अथवा संजय गर्ग जी के समूह में आता है उसे बड़ा रोल में जाता है। शायद यह प्रयोगवादी निर्देशक यह देखना चाहते हैं की मजबूती किसमें है। माया नगरी में ऐसा नहीं है क्योंकि वहां शुद्ध व्यवसाय है आपका चेहरा आपके संवाद आपकी आवाज किस भाव खरीदी जा रही है उसी स्तर पर आपको लाकर फिक्स कर दिया जाता है। कभी-कभी तो खेमे बाजी भी हावी होती है । 
हम सरकारी लोग भी ऐसे ही वातावरण को दिनभर भोंकते हैं डायरेक्ट इनडायरेक्ट प्रमोटी कैजुअल यह मूर्खता और से भरी शब्दावली महसूस होती है पर आप जानते हैं गालिब ने कहा है-
बाज़ीचा ए अतफाल है दुनियां मेरे आगे ..! इस फलसफे को मैं कभी भूलता नहीं भूलना भी नहीं चाहिए चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति हो चाहे आप से बड़ा व्यक्ति आप से प्रतिस्पर्धा करने लगे तब भी आप पर्वत जैसे दृढ़ बने कितना भी चूहे पर्वत को बुनियाद से कुतरने की कोशिश करते रहें पर्वत को कोई असर होता है। यानी दृढ़ता प्रतिबद्धता यह कोई साहित्यिक शब्द मात्र नहीं है इनके अर्थों में प्रवेश कीजिए तो पता चल जाएगा वास्तव में दुनिया में बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं और हम हमारी समझ और दृढ़ता के साथ हम अपनी मंजिले मकसूद तक पहुंच ही जाएंगे
सुशांत के ह्रदय में आध्यात्मिक चिंतन कितना था जो उसे मजबूती देता शायद उतना नहीं जितना होना चाहिए था। सुशांत की एक्टिंग देख कर मुझे उनके व्यक्तित्व में एक असरदार सुशांत व्यक्तित्व नजर आता था। कलाकारों को बहुत करीब से देखा है उनके प्रति बहुत अधिक संवेदनशील पर अगर कुबेर होता तो इन गन्धर्वों पर सारा खजाना लुटा देता क्योंकि मुंबई वाले कलाकारों से ज्यादा मेरे इस शहर के कलाकार अभावों में श्रजन करते चले आ रहे हैं और बरसो अपना जीवन होम करते आ रहे हैं बस एक जुनून है कला के माध्यम से दुनिया को जगाते रहना । 
कई तो फक्कड़ बाबा है फक्कड़ बाबा लोगों का नाम अभी जिक्र करना लाजमी नहीं है पर घटनाओं का जिक्र कर देता हूं ऐसे ऐसे कलाकार है जो ₹5 जेब में होने पर किसी भूखे गरीब या जरूरतमंद को दे देते हैं और खुद मुस्कुराते हुए घर चले आते हैं यह वही शहर है जहां कलाकार बनते हैं और महानगर मुंबई वह शहर है जहां कलाकार बिकते हैं।
वहां चमक गए तो स्टार वरना वही वर्षों तक खाक छानना इसके अलावा एक ऐसे ग्रुप का वहां पर साम्राज्य है जो सिर्फ और सिर्फ स्वयं की ओर देखता है । दूसरों के कामों को दोयम बताकर और अपना काम श्रेष्ठ साबित कर जो वास्तव में कभी-कभी होता भी है दूसरों के काम हो तो बाधित कर देते हैं। मुंबई की गलियां कलाकारों के लिए स्वर्ग कम नर्क से ज्यादा बदतर है। मुंबई से प्रोफेशनल लोगों के लिए एक स्वर्ग है और संवेदनशीलों के लिए स्वर्ग तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। वैसे भी कलाकार संवेदनशीलता के साथ ही जाते हैं वहाँ । 
लेकिन अगर वे प्रोफेशनल स्किल के साथ मजबूत व्यक्ति के रूप में जाते हैं जैसे अमिताभ !
मुंबई जैसी भ्रामक जगह पर जाने से पहले विकल्पों को तलाश लेना चाहिए और उसका सही समय पर उपयोग करें तो सफल हो जाता है। 
सुशांत सिंह की अभिनय क्षमता फिल्मों में बरसों से जमे हुए ( फूहड़ अभिनेताओं ) से जो अपने बड़बोले पन घमंड और यहां तक कि बाउंसरों के लिए भी प्रसिद्ध हैं से मजबूत और परिपक्व हो रहा है। रितेश देशमुख, विवेक ओबरॉय और कुछ और ऐसे नाम है जिन्हें इंडस्ट्री में जमना एक खास खेमे के प्रोड्यूसर और कलाकारों को बिल्कुल पसंद नहीं है। परंतु वे भी अत्यधिक संवेदनशीलता और भावुकता  से परे आज भी संघर्ष कर रहे हैं। अभिनेत्रियों की भी दशा लगभग ऐसी ही है। प्रोड्यूसर यह देखता है कि आपके अभिनय कितने पैसे उगेंगे ? यह स्थिति उन कलाकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है। जनता को क्या देखना चाहिए इसका सर्वेक्षण प्रोड्यूसर पास नहीं होता लेकिन जनता को क्या दिखाना फायदेमंद होगा यह वह बखूबी जानते हैं पैसा ही आधार आधार है बॉलीवुड का। इंडस्ट्री सबसे ज्यादा वही फोकस करती है। अब तो फिल्मी स्टार्स भी यह समझने लगे। 
गुरुदत्त को भी इसी संकट का सामना करना पड़ा उन दिनों के कलाकारों और अन्य दूसरे कलाकारों के बीच आपसी अंतराल बड़ा हुआ था। संगीतकारों की भी कमोबेश यही स्थिति थी। अब तो निर्माता निर्देशकों को साफ कह दिया जाता है कि आप अमुक व्यक्ति को प्रमोट कीजिए अमुक पर ध्यान देने की जरूरत नहीं। इस तरह है बॉलीवुड दो भागों में बांट दिया है और एक बात इनमें भी दो समूह सक्रिय हैं एक आयातित विचारधारा के पोषक और दूसरे राष्ट्रवादी।
राष्ट्रवादी कलाकारों को दोयम दर्जे का सिद्ध करने की जबरदस्त होड़ लगी हुई है और स्वयं को श्रेष्ठ बताने का जो मुहिम चल रहा है वह भी इन कलाकारों की कला का सही मूल्यांकन नहीं करने देता। खास तौर पर जितने भी कलाकार हिंदी पट्टी के हैं वे तो दो कारणों से प्रभावित है एक तो उनका हिंदी पट्टी से होना दूसरा अगर वह दुर्भाग्य से राष्ट्रवादी नजर आ गया तो फिर उसे यंत्रणा उसके काम पर रोक लगाने की उपहार सहित ही मिल जाती है। हो सकता है जितना मैंने जो लिखा हो वह गलत साबित हो यह मेरे लिए भी अच्छा है । कोई और भी कारण हो सकते हैं इस आत्महत्या के पीछे जो भी हो सुशांत का आत्महत्या करना दुखद तो है। एक संदेश अवश्य देना चाहूंगा गार्जियंस अपने बच्चों को केवल जीतना ही न सिखाएं ! हारना भी सिखाए और हादसे उभरना भी फिलहाल सुशांत सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि और उनके परिजनों पर इस वज्रपात को सहने की शक्ति की ईश्वर से कामना करता हूं ॐ शांति शांति 

बुधवार, जून 03, 2020

मध्य प्रदेश के बाल भवनों में ऑनलाइन प्रवेश सुविधा प्रारंभ


कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन 1 से 4 तक एवं अनलॉक वन के दौरान प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रभावित होने के कारण संभागीय बाल भवन द्वारा पंजीकृत बच्चों को ऑनलाइन प्रशिक्षण की सुविधा लॉक डाउन 1 से 4 तक उपलब्ध कराई गई किंतु भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा ज़ूम ऐप के संदर्भ में जारी एडवाइजरी के कारण ऑनलाइन प्रशिक्षण व्हाट्सएप के माध्यम से किया जा रहा था। किंतु इससे हम बहुत कम उपलब्धियां हासिल कर पा रहे थे। व्हाट्सएप के जरिए ऑनलाइन प्रशिक्षण एक बार में केवल चार विद्यार्थियों तक पहुंच सकता था किंतु फेसबुक के माध्यम से संख्या में बढ़ोतरी अवश्य हुई परंतु बच्चों को उसके संबंध में अत्यधिक ज्ञान ना होने के कारण भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके फल स्वरूप गूगल मीट ऐप आने के बाद अब इस ऐप के जरिए एक साथ कई बच्चों को ऑनलाइन प्रशिक्षण देने की सुविधा उपलब्ध होगी। इस तरह के प्रयास प्रदेश के अन्य बाल भवनों द्वारा भी किए जा रहे हैं
 इस क्रम में जबलपुर  बाल भवन द्वारा और अधिक विस्तार देते हुए  समस्त संबद्ध ज़िलों  क्रमशः जबलपुर छिंदवाड़ा बालाघाट मंडला सिवनी कटनी नरसिंहपुर डिंडोरी उमरिया सिंगरौली के बच्चों को लाभान्वित करने का प्रयास किया गया है । 
सुविधा कैसे प्राप्त करें - 
 बालभवनों में प्रवेश हेतु संचालक जवाहर बाल भवन मध्यप्रदेश भोपाल द्वारा ऑनलाइन प्रवेश सुविधा उपलब्ध करा दी गई है।
अभिभावकों को सूचित किया गया है कि पुत्र या पुत्री अगर किसी कला का ऑनलाइन या ऑफलाइन प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहे तो वह ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। विभिन्न विधाओं में प्रवेश के लिए 5 वर्ष से 16 वर्ष आयु वर्ग के बालक बालिकाओं को ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत करना है आवेदन के पूर्व ₹60 (वर्ष में एक बार ) की राशि का ऑनलाइन भुगतान कर प्राप्त रसीद ऑनलाइन आवेदन  पत्र में  दिए गए  ऑप्शन पर अपलोड करना है ।
आइडेंटिटी कार्ड प्राप्त करना- 
अपना आई कार्ड प्राप्त करने के लिए दो पासपोर्ट साइज फोटो संभागीय बाल भवन जबलपुर के पोस्टल एड्रेस सहायक संचालक संभागीय बाल भवन 383 जवाहर वार्ड गड़ा फाटक मेन रोड डाक के माध्यम से अथवा स्थानीय आवेदक रसीद की छाया प्रति भेज कर प्राप्त कर सकते हैं। कटनी नरसिंहपुर बालाघाट छिंदवाड़ा मंडला सिवनी डिंडोरी उमरिया शहडोल सिंगरौली के आवेदकों द्वारा दिए गए पते पर डाक से भेज दिए जाएंगे। ऑनलाइन पंजीयन उपरांत संभागीय बाल भवन  जबलपुर  प्रत्येक अभिभावक कृपया पत्राचार द्वारा समस्या अथवा सुझाव व्हाट्सएप नंबर 79990038 94 पर पंजीयन क्रमांक के साथ भी सकते हैं। साथ ही
सभी अभिभावक बाल भवन जबलपुर के फेसबुक खाते में भी अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज सकते हैं ताकि उन्हें समय-समय पर अपडेट प्राप्त होता रहे। इसके अतिरिक्त आप balbhavanjbp@gmail.com मेल कर सकते हैं।
ऑफलाइन आवेदन प्रस्तुत करने के लिए कोई भी आवेदक प्रातः 10:30 से 5:30 के बीच सीधे बाल भवन जबलपुर के पते पर संपर्क कर सकते हैं। संपर्क हेतु कोविड-19 के संदर्भ में जारी शासकीय एवं कलेक्ट्रेट जबलपुर द्वारा जारी अनुदेशकों का पालन करना होगा। अभिभावक अपने बच्चों को फार्म भरने के लिए साथ में ना लाएं परिवार से केवल एक ही व्यक्ति को आने की अनुमति होगी। प्राथमिकता के आधार पर ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया का पालन किया जाए।
ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए परिवार में उपलब्ध स्मार्टफोन में
 #गूगल_मीट ऐप को डाउनलोड कीजिए तथा ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों को एक लिंक प्रदान किया जाएगा। उस पर क्लिक करके मासिक प्रशिक्षण कैलेंडर अनुसार  निर्धारित समय के 10 मिनट पूर्व आपके व्हाट्सएप नंबर एवं Balbhavan Jabalpur फेसबुक हैंडल पर प्रकाशित की जाएगी। उस लिंक को क्लिक करके ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों को ज्वाइन कराया जा सकेगा। 
बाल भवन जबलपुर तक पहुंचने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए ताकि आप व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो सकें
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*संकट में सृजन के तहत राज्य स्तरीय बालश्री कला  प्रतियोगिता 06 मई से प्रारम्भ हो 20 जून 2020 तक आयोजित की जायेगी। जो बच्चे इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं,  वे नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर जवाहर बाल भवन में अपना *Online Registration*  करा सकते हैं। प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए भी इसी लिंक पर क्लिक करें।
#बालभवन_भोपाल
http://www.jawaharbalbhawanbhopal.com
राज्य स्तरीय बाल प्रतियोगिता 2000 
प्रतियोगिता से संबंधित जानकारी एवं नियम लिंक में दिये गये हैं। 
#1. प्रशासनिक कठिनाई के निराकरण हेतु
 *सजन सिंह कठैत -8959503202,*
#2. विधावार ऑनलाइन जानकारी हेतु 
*के जी त्रिवेदी- 9425011719,* 
#3. मीडिया संबंधी एवं ऑनलाइन पंजीयन हेतु - *अरविन्द शर्मा 9669333020* 
#4. वेबसाइट, पंजीयन एवं प्रतियोगिता हेतु वीडियो डाऊनलोड की जानकारी हेतु तरुण बामा 9303130173 

शुक्रवार, मई 29, 2020

Muskan Soni live on me and my status official group of balbhavan



Hi world Greetings From This is Balbhavan Jabalpur Me and My daughter's : official group of balbhavan Jabalpur 💐💐💐💐💐 Balbhavan Jabalpur is a government organisation under WCD MP for creative activity . During coronavirus pandemic: (lockdown05 ) Bal Bhawan is continuously working to promoting their artists especially girl child and student of institution. We have decided to include our Ex-Students of balbhavan in BalBhavan's live all Facebook *me and my daughters group.* Next and sixth episode the Muskaan Soni D/o Mrs. Maya & Mr. Rakesh will perform. She was very talented student of the Institutions since 2007 ( first batch ) She completed her study MBA recently. She is self composer and singer. Mr Sanjay Garg Davinder Singh Grover, of Natylok decided to add live music pit with theatre under guidance of Dr Shipra sullere & she became the backbone of the music pit. In my words -"Ye meri Sher Beti Hai..!" Please don't miss her live performance on Facebook Balbhavan Jabalpur Date: 29th of May 2020 Friday Time :- 5:30 to 6:15 Kindly! Remember the date and time. Thanks and Regards, Girish K Billore On behalf of team BalBhavan Jabalpur. 💐💐💐💐💐💐💐 Please search and Subscribe Facebook group *Me and My daughters* The official group of Bal Bhawan Jabalpur https://m.facebook.com/groups/2195912257380868?tsid=0.24589334563000498&source


 

गुरुवार, मई 28, 2020

कोरोना काल मे लिखी एक कविता


नर्मदा के किनारे
ध्यान में बैठा योगी
सुनता है
अब रेवा की धार से
उभरती हुई कलकल कलकल
सुदूर घाट पर आते
गाते जत्थे लमटेरा
लमटेरा सुन जोगी
भावविह्लल हो जाता
अन्तस् की रेवा छलकाता
छलछल....छलछल .
हो जाता है निर्मल...!
नदी जो जीवित है
मां कभी मरती नहीं !
सरिता का सामवेदी प्रवाह !
खींच लाता है...
अमृतलाल वेगड़ की
यादों को वाह !
सम्मोहित कर देता है
ऐसा सरित  प्रवाह..!!
नदी नहीं बूंदों का संग्रह है..!
यह आपसी अंतर्संबंध और
प्रेम और सामंजस्य भरा अनुग्रह .. है..!
 है न ?
शंकर याचक सा करबद्ध..!
न मन में क्लेश न क्रोध ....!
अंतत से निकली प्रार्थना
गुरु को रक्षित करने का अनुरोध त्वदीय अपाद पंकजम
करते हो न तुम सब ?
सच कहा
मां है ना रुक जाती है
माँ ही
बच्चे की पुकार सुन पाती है
मां कभी नहीं मरती मां अविरल है !
माँ जो शास्वत निश्छल है !
मां रगों में दौड़ती है जैसे
बूंदें मिलकर दौड़ती हैं
रेवा की तरह आओ चलें
इस कैदखाने से मुक्त होते ही
नर्मदा की किनारे मां से मिलने

#फोटोग्राफ Mukul Yadav
#वीडियो #आशीष_पटेल
लमटेरा (Lamtera Bundeli Folk Song) का अर्थ होता है एक लंबी गायकी बुंदेलखंड महाकौशल हिस्से में नर्मदा की यात्रा करते समय लमटेरा गीत गाया जाता है।

मंगलवार, मई 26, 2020

"जब भारत के गांव ठहाके लगाते हैं तो शहरों में ठहाके लगते हैं जिसे विश्व सुनता है"


"जब भारत के गांव ठहाके लगाते हैं तो शहरों में ठहाके लगते हैं जिसे विश्व सुनता है"
           मोदी जी ने जब आत्मनिर्भरता पर अपनी बात रखी तो कुछ लोग जोक बनाने लगे । कुछ सोशल मीडिया पर ट्रोल करते नज़र आ रहे हैं । पर हम जैसों को महसूस होता है कि -"गांधी जी ने सही कहा था कि आत्मनिर्भरता ही स्वतंत्रता का आधार है !"
यहाँ संकेत साफ है कि गांधी जी के आत्मनिर्भरता के सन्देश में एक दीर्घकालिक चिंतन था । हर किसी ने उसे लॉक डाउन के दौर में महसूस किया है ।
गांधी जी स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे । वे अत्यधिक महत्व स्थानीय उत्पादन को देते थे । यहां तक की वैयक्तिक उत्पादन सबके लिए बहुत प्रेरक था । रुई तकली पौनी का अर्थ बैकवर्ड होना नहीं । हमें इसका अर्थ समझना चाहिए ।
लॉक डाउन के दौर में साफ हो गया कि यांत्रिक विकास से जब पहिए थम गए तब गांव याद आया ।
सबने देखा मज़दूरों और मजबूरों के पांव छलनी हुए थे है न...पसीना चुहचुहाता सड़कों को सींचता हुआ
किसने नहीं देखा ?
      रेल से मारे गए, बुखार ताप से मारे गए पथचारियों का दर्द कवियों ने लेखकों ने भी बखूबी महसूस किया ।
क्या सिर्फ हमें गांव छोड़कर ही तरक़्क़ी के स्वप्न देखा है ? यदि हाँ तो सबसे बड़ी मूर्खता है। शहर में जिस कारखाना मालिक को आप मालिक समझ रहे थे उसने लॉक डाउन में आपको शैल्टर तो छोड़ो खाना भी मुहैया न कराया होगा । वो मौलिक रूप से शोषक था है और कल भी रहेगा ।
मजबूर मज़दूर शायद ही अब बड़े शहरों की तरफ जाएंगे । अगर व्यवस्था, उनको अपने गांव में ही रोटी मुहैया करा दी जाती है । ऐसे संक्रमण काल में सबसे सुखी गांव ही रहेंगे । एक आंकलन से यह तथ्य सामने आया है कि - "कृषि उपज प्रति हेक्टेयर जमीन में उत्पादित होने वाली फसल की मात्रा होती है। ... इसके मुकाबले भारत की उपज 2.0 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3.6 टन प्रति हेक्टेयर हो गई। इस अवधि में चीन में चावल की उत्पादकता भी 4.3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 6.7 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।"
भारत-चीन तुलना (कृषि क्षेत्र में)
चीन एवम भारत कृषि योग्य भूमि क्रमशः 120 मिलियन हेक्टेयर156 मिलियन हेक्टेयर जबकि चीन का कुल सिंचित क्षेत्र41 और भारत का प्रतिशत 48
सकल बुआई के लिए चीन का कुल क्षेत्र 166 मिलियन हेक्टेयर और 198 मिलियन हेक्टेयर
फिर भी कृषि उत्पादन की कीमत चीन के 1367 बिलियन ( रुपए 103,714.29 बिलियन ) और भारत में 407 बिलियन डॉलर अर्थात 30,879.09 विलयन रुपए मात्र है ।
कृषि आधारित अन्य मुद्दे पर हम पीछे ही हैं । क्योंकि हमने फुलपेंट शर्ट पसन्द आने लगा है । ये अलग पर महत्वपूर्ण मुद्दा है कि - कृषि अनुसंधान स्किल डवेलपमेंट आदि हमारी प्राथमिकता में नहीं है ।
*शहर मुकुराते हैं तो सिर्फ शहर ही मुस्कुराते हैं परंतु जब गांव ठहाका लगाता है तो देश के ठहाके विश्व में गूंजते हैं...!*
विकास का अर्थ सर्वांगीण विकास ही होता है । हमारा परिवार ही आधी शताब्दी पहले शहर में आ बसा गांव से नाता तोड़कर । हमारे गांव के तब के कृषि मज़दूर अब बड़े कृषक हैं । हमसे अधिक सामर्थ्यवान और महत्वपूर्ण भी । अब एक इंच भूमि नहीं है गांव में । और न ही सामर्थ्य शेष है ।
केवल स्थानीय अर्थात 200 किलोमीटर तक ही अनस्किल्ड श्रमिक को पलायन करने की ज़रूरत हो ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए । कृषि को सामर्थ्यवान बनाए बगैर किसी बेहतर स्थिति का सपना सपना ही रहेगा ।
22 सितंबर 1931 को गांधी जी से चार्ली चैपलिन से मुलाक़ात हुई आप सब इस तथ्य से परिचित हैं ।
इसका विवरण चार्ली चैपलिन की आत्म कथा में दर्ज है । चैपलिन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे गांधीजी से मुलाकात के लिए कुछ समय पहले ही निर्धारित स्थान पर पहुँच गए थे. चैपलिन ने लिखा “अंततः जब वे (गांधीजी) पहुंचे और अपने पहनावे की तहें संभालते हुए टैक्सी से उतरे तो स्वागत में जयकारों की भारी गूंज उठ पड़ी. उस छोटी तंग बस्ती में अजब दृश्य था, जब एक बाहरी शख्स एक छोटे-से घर में जन-समुदाय के जय घोष के बीच दाखिल हो रहा था.” चैपलिन आगे लिखते है “गांधीजी से तो मैं उम्मीद नहीं कर सकता था कि मेरी किसी फिल्म पर बात शुरू करते हुए कहेंगे कि बड़ा मजा आया. ‘मुझे नहीं लगता था कि उन्होंने कभी कोई फिल्म देखी होगी.’ तो चैपलिन ने ही बात शुरू करते हुए कहा मैं स्वाधीनता के लिए भारत के संघर्ष के साथ हूँ, लेकिन आप मशीनों के खिलाफ क्यों है, उनसे तो दासता से मुक्ति मिलती है, काम जल्दी होता है और मनुष्य सुखी रहता है?”
मशीनों से गांधी जी को कोई एतराज न था वे विरोधी भी न थे वे रेल का सफर करते थे पर वे स्वाधीनता के मशीनों को सापेक्ष रखते ही वे गम्भीर हो जाते और चर्खा तकली रुई पौनी के महत्व यानी आत्मनिर्भरता को श्रेष्ठ मानते थे ।
उधर घर से कम्यून ले जाकर विकास का दम्भ भरते हुए प्रोफेसर चंद्रमोहन जी जो आगे चलकर आचार्य रजनीश हुए ने गांधी जी का भरपूर खंडन किया...और हमारा ब्रेनवाश ।
समाज को समझना होगा कि अगर गांव आत्मनिर्भर न हुए तो बाक़ी सब कयास बेमानी होंगे ।  

सोमवार, मई 25, 2020

Me and my daughter's group

Hi world
Greetings From
This is Balbhavan Jabalpur 

   
balbhavan Jabalpur is  organisation  for  creative activity .  coronavirus pandemic【 lockdown 5 】Bal Bhawan continuously working for their child artist.
We will present BalBhavan's fifth live performance of Unnati Tiwari D/o Mrs Shobhana Tiwari & Mr. Gauri Shankar Tiwari
Unnati brand is  ambassador for #POCSO_ACT awareness campaigning in Jabalpur district . She is appointed by the district collector Jabalpur after recommendation of district programme officer women and child development department Jabalpur.
 Her mother Mrs Shobhana Tiwari is a house manager and her father Mr Gouri Shankar Tiwari is preacher and Purohit . She is a student of 10th class  in Kendriya Vidyalaya CMM Civil Line Jabalpur. Unnati is very laborious student of Bal Bhawan Jabalpur. 
    She is always busy in study as well as in music, oration , poetry and theater  . Unnati is a good performer and always tries  to achieve her goals . Unnati will perform under guidance Dr Shipra sullere call Facebook.
    Unnati wants to be a  collector and administrative officer.
date of performance on Facebook me and my daughter official group of Bal Bhawan Government of MP women child development department
Date: 26th  of May 2020
Tuesday
Time :- 5:30 to 6:15
Kindly! Remember the date and time.
Regards,

Girish K Billore
Director
BalBhavan Jabalpur.

with Dr Shipra sullere music teacher of balbhavan Jabalpur
💐💐💐💐💐💐💐
Please search Scribe Facebook page Me and My daughter's biggest musical concert


#यूट्यूब_लिंक
https://youtu.be/o2FVeBLW6G4

शनिवार, मई 23, 2020

कैसे हो आप सब इस कोरोना काल में ? - सखी सिंह

लेखिका
लेखिका : सखी सिंह 

 भयंकर विपरीत समय चल रहा है जैसे, और ऐसे मे हाल पूछना कितनै सही है ? जबकि इस समय में कुछ राह में भटकते हुये दम तोड़ रहे है और भूंख से बेहाल है, मजबूर है, परेशान है, कुछ लोग अम्फन से भी त्रस्त है और कुछ जिंदगी के द्वारा अचानक सामने रखे गए इस प्रश्न से परेशान हैं कि उम्र के इस मोड़ पर पहुंच अचानक बेरोजगार है हम, अब परिवार का पालन पोषण कैसे हो? बच्चों की फीस कैसे भरे तमाम इतंजाम कैसे करें? जब तनख्वाह देने वाली नौकरी ही चली गयी।
 भारत की बेरोजगारी दर 15 मार्च खत्म हुए हफ्ते में 6.74 प्रतिशत थी, जो मई में बढ़कर 27.11 प्रतिशत हो गई. कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों को भारी झटका लगा है। 
बड़ी बड़ी कई कंपनियों ने व्हाट्सअप या मेल द्वारा मेसेज कर ढिया की अब उसकी नौकरी हमारे यहां खत्म। जिससे कितने ही लोग आज बेबस और लाचार हो गए हैं। जब हम समझ रहे थे कि हम सुविधा सम्पन्न हैं और विकसित राष्ट्र बन रहे हैं, तभी जैसे अपनी ही नज़र लग गयी हमें और हर तरफ ऑफर तफरी जैसी मच गई।

कुल मिलाकर सबके सामने शुरू से शुरुआत करने जैसी स्थिति आ खड़ी हुई है। अब नए शुरू से क्या और कैसे शुरू हो ये सोचना कितनी जिंदगियों को एक अजब बैचेनी में छोड़ गया हैं। जिंदगी बेज़ार हुई जा रही है और बेकार लोगों की तादात बाद जिसने से सामाजिक परिवेश में और खतरनाक बदलाव के संकेत मिलने आगे हैं। ये साल इतना कुछ भयावह लिए क्यो चल आया है? क्यों सबके इष्ट इतने रुष्ट हैं कि किसी भी तरह की प्रार्थना असर नही कर रही। इस संकटकाल में हर देश और धर्म के लोग अपने अपने घरों में बैठे दर्द से कराह रहे हैं। 

 अब कुछ दिन से  सब कहने लगे है की अब इस कोरोना के साथ ही जिंदगी भर रहना होगा। और सब कुछ रूल्स के साथ फुर खुलने लगा हैं जबकि अब बीमारी ज्यादा फैली हुई है।  ऑफिस खुल गए हैं , दुकानें खुल रही हैं और खुल गए है ज्यादा रास्ते कोरोना के फैलने के। अब बस एक ही रस्ता बचता है जो करना है खुद करो , सेल्फ हेल्प। जबकि हम जानते है सेल्फ हेल्प हम कितनी भी कर ले लेकिन जो कोरोना केरियर है उनके सम्पर्क के यदि हम आप आ गए तो हम भी इस बीमारों के वाहक बन लोगों को संक्रमित कर बैठेंगे। इसलिए आप सभी से प्रार्थना है बिना काम के घर से न निकले और सभी नियमों का पूर्ववत पैलां कर जीवन को पटरी पर लाये। जिससे जिंदगी की रेल फिर सरपट दौड़े अपनी मंजिल की ओर।

#रात #की #बात 

#कोरोना_प्रवासीमज़दूर_अम्फन

बुधवार, मई 20, 2020

स्वमेव मृगेन्द्रता : स्वामी विवेकानंद एवं महात्मा गांधी की प्रासंगिकता


किसे क्या पता था कि युवा सन्यासी सनातनी व्यवस्था को श्रेष्ठ स्थान दिला देगा। लोगों के पास अपने अनुभव और अधिकारिता मौजूद थी। बड़ा अजीब सा समय था। तब हम ब्रिटिश भारत थे औपनिवेशिक वातावरण कैसा हो सकता है यह एहसास 47 के बाद प्रसूत हुए लोगों को क्या जब मालूम ?
लोगों के विचार बापू के मामले में भिन्न हैं कोई कहता है - प्रयोगवादी महात्मा गांधी के socio-political चिंतन में कभी-कभी कमी नजर आती है परंतु ऐसा नहीं है कि वह इस कमी के लिए दोषी हैं।
तो किसी ने कहा - महात्मा ने अध्यात्मिक चैतन्य को प्रमुखता नहीं दी। इसका यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि महात्मा गांधी ने आध्यात्मिक चैतन्य की मीमांसा नहीं की वे क्रिया रूप में यह सब करते रहे .
कुछ तो मानते हैं कि गांधी जी चर्खे पर अटके हुए हैं । वे भारत का विकास स्वीकार रास्ता बनाते नज़र नहीं आते !
संक्षेप में कहें तो - लोगों को महात्मा से बहुत शिकायत हैं । इसमें गोडसे को शामिल नहीं किया । गोडसे के संदर्भ में बहुत बातें अलग से हो रहीं हैं और गोडसे ने तो गाँधी के साथ अक्षम्य अपराध किया पर कुछ चिंतक गांधी जी के विचारों को समूल विनिष्ट करते नज़र आ रहे हैं ।
गांधी जी और विवेकानंद दोनों महापुरुषों के जन्म और कार्य अवधि के कालखंड को देखें दोनों ही समकालीन थे । इन दोनों महापुरुषों में एक समानता और है वे भारत को भाषित करने विदेश गए ।
दक्षिण एशिया गए और दूसरे शिकागो। भारत के यह दोनों बेटे अलग-अलग देशों से अपने अपने गंतव्य पर पहुंचे थे। दक्षिण अफ्रीका से राजनैतिक तौर पर भारत में आजादी के स्वरों को मजबूती मिली तो दूसरी ओर शिकागो में भारत के आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली होने की घोषणा की आधिकारिक रूप से कर दी ।
उद्घोषणा करने वाले हमारे महान विद्वान स्वामी विवेकानंद ने भारतीय दर्शन और अध्यात्म का विश्लेषण कर विश्व को चकित और विस्मित कर दिया...महान विद्वान नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद हुए ! फिर स्वामी विवेकानंद ने भारत का भ्रमण किया वे जानते थे कि उन्हें बहुत कम समय मिला है। और इसी कारण से स्वामी ने तेजी से काम किया। वे मानव जीवन में चेतना विस्तार करते रहे ।
1947 के बाद के भारत ने ना तो महात्मा को आत्मसात किया और ना ही विवेकानंद को । मेरी पिछली पीढ़ी पर मेरा यह आरोप गलत नहीं है। गांधी के नाम पर सहकारिता लघु और कुटीर उद्योग स्कूलों में गांधी टोपी चरखा तकली आदि को आत्मसात किया लेकिन इसके पीछे वाले गणित को ना समझने की कोशिश की ना समझाने की। अगर सच में समझ लिया होता तो प्रत्येक गांव प्रत्येक पंचायत आत्मनिर्भर होती। ग्रामीण विकास एवं जमीन आत्मनिर्भरता की बात वर्ष 2020 में करने की जरूरत ना पड़ती वह भी कोरोना के भयावह संक्रमण के बाद आप सबको समझ में आया है कि- "भारत के हर एक गांव को आत्मनिर्भर एवं सक्षम बनाना क्यों जरूरी है..!"
गांधी का चरखा किसी तरह से भी बहुत छोटा मोटा संदेश नहीं दे रहा था। गांधी कह रहे थे नंगे मत रहो अपना कपड़ा खुद बुन लो न ..!
पर हमें तो शहर की जगमगाती रोशनी बुला रही थी और हम थे की पतंगों की तरह उस रोशनी की तरफ भागे जा रहे थे है ना झूठ बोल रहा हूं तो कहिए ?
ठीक उसी तरह विवेकानंद को भी उनकी जन्मतिथि और उनकी पुण्यतिथि पर याद करने की फॉर्मेलिटी कर ली गई। हमने भी कभी स्कूल प्रारंभ किया तो ऐसा ही कुछ किया था। हमारे दौर के लोग भी स्वामी को नहीं जानते जानने के लिए जरूरी अध्ययन चिंतन मनन ध्यान यह सब नहीं किया जाना भी भारत का दुर्भाग्य ही तो है।
कुछ वर्ष पूर्व विवेकानंद को राष्ट्रवाद से जोड़ने की कोशिश करने वाला एक आयोजन हुआ। उस आयोजन में सलिल समाधिया भी एक वक्ता थे। बुलाया तो मैं भी गया था परंतु मैंने नन्हे बच्चों को विवेकानंद जी से मिलाने का संकल्प जो लिया था। सलिल भी मेरे कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। सलिल को जाना पड़ा और गए जहां उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि- " स्वामी विवेकानंद मानवतावादी थे।"
लोग बहुत प्रेक्षागृह के लोग चकित थे ।
सलिल का अपना विचार था स्वीकार्य है सबको स्वीकार्य होना चाहिए स्वामी विवेकानंद किस तरह से उन्हें प्रभावित करते हैं। मुझे तो विशुद्ध आध्यात्मिक मानवतावादी विचारक भारत के ऐसे युवा सन्यासी जिसने ना केवल धर्म और अध्यात्म की अलख जगाई बल्कि उसने यह भी साबित कर दिया कि भारतीय दर्शन में मानवता सर्वोच्च स्थान पर है।
1. अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है. मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.
2. मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह ज़ाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है.
3. मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.
4. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली.
5. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है.
6. मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं. ''जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं.
स्वामी विवेकानंद यह उदाहरण शिव महिम्न स्त्रोत से दिया है जो मूल चाहे इस तरह है
त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति
प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।
7. मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है: ''जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं.''
8. सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है. उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए.
9. यदि ये ख़ौफ़नाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है. लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से.
【 धर्म सभा का भाषण साभार :- बीबीसी https://www.google.com/amp/s/www.bbc.com/hindi/amp/india-41228101 】
भारत का अध्यात्म भी तो यही कहता है दर्शन भी यही कहता है उसे हम भूल जाते हैं और यह भी भूल जाते हैं किसकी व्याख्या विश्व फोरम पर हो चुकी है।

यहां अल्पायु का योगी मेरे ह्रदय पर आज भी राज करता है। ऐसा क्यों... ऐसा इसलिए कि जब भी भारत भ्रमण पर निकले तो उन्होंने जिन से भी मुलाकात की वह सब के सब भारतीय थे। ना हिंदू न मुसलमान थे ना सिक्ख थे, बौद्ध पारसी ईसाई कुछ भी नहीं थे। दौर ही ऐसा था जी हां इन सब से मिले थे वाह क्या बात है ऐसे विद्वान को मैं अपना भगवान क्यों ना मानूँ है कोई जवाब ?
परंतु कुछ बुद्धिवादी ब्रह्म सत्ता को अस्वीकार्य करते हुए अपने तर्कों और लोगों की अध्ययनगत कमी की चलते हर एक व्यक्ति को कृष्ण को राम को यहां तक कि भारत को ही नकारने किसी चेष्टा की है।
देश काल परिस्थिति के अनुसार धर्म सूत्रों की व्याख्या करनी चाहिए। लेकिन कुछ लोग जीवनशैली के मामले में और सामाजिक लोक व्यवहार के मामले में बनी बनाई परंपराओं को पकड़कर चलते हैं तो कुछ लोग अनावश्यक विद्रोही स्वरूप धारण कर लेते हैं। अब कोरोनाकाल को ही ले लीजिए अब जब सड़कों पर मजदूर मर रहे हैं तो दूसरे मजदूर यह सोच रहे हैं हम क्यों गए ? गांधी ने तो कहा ही था न की आत्मनिर्भर बनो ग्राम सुराज को मजबूत करो ।
भ्रमित मत रहो।
यहां तर्क शास्त्री आचार्य रजनीश को कोट करना चाहूंगा वे कहते थे कि- "महात्मा गांधी सोचते थे कि यदि चरखे के बाद मनुष्य और उसकी बुद्धि द्वारा विकसित सारे विज्ञान और टेक्नोलॉजी को समुद्र में डुबो दिया जाए, तब सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। और मजेदार बात इस देश ने उनका विश्वास कर लिया! और न केवल इस देश ने बल्कि दुनिया में लाखों लोगों ने उनका विश्वास कर लिया कि चरखा सारी समस्याओं का समाधान कर देगा।"
और अब सारा विश्व समझ रहा है चरखे, तकली, रुई पौनी के जरिए वह प्रयोगवादी बुजुर्ग क्या कह गए थे ।
वापस लौटता गोबर का खाद वापस लौटते वे लोग दो बैलों के गोबर को पिछड़ेपन का प्रतीक मानते थे किसी सेठ की फैक्ट्री के श्रमिक होकर स्वयं को विकसित मानते थे विस्तारित पल उन्हें याद आ रहे होंगे रास्ते भर । भारत की उपजाऊ भूमि पर लोगों के अभाव में जगह-जगह उगते इंजीनियरिंग कॉलेज ना पेट भर पा रहे हैं ना किसी को भी जीने की गारंटी दे रहे हैं।
रहा स्वामी विवेकानंद का प्रश्न तो उन्होंने कभी भी न तो वैचारिक रूप से उग्र बनाया और न ही उग्रता का युवाओं को पाठ पढ़ाया। इसीलिए मुझे प्रिय हैं पूज्य स्वामी विवेकानंद जो शिवांश है यानी शिव का अंश है।
यहां एक और उदाहरण दे रहा हूं। विवेकानंद ने आम भारतीय को आध्यात्मिक रूप से योगी बनने की सलाह दी थी। नई सलाह तो ना थी । भारत के अधिकांश महर्षि विद्वान और महान व्यक्तित्व गृहस्थ हुआ करते थे। उन्होंने प्रपंच अध्यात्म योग का संक्षिप्त हिंदू जरूरी विश्लेषण कर दिया था। जबकि आचार्य रजनीश ने नव सन्यास के नाम पर लोगों को कुछ अजीब सा विचार दे दिया। मित्रों मेरी दृष्टि से नव सन्यास उपलब्ध सुविधाओं विलासिता के साथ सन्यासी हो जाने का अनुज्ञा पत्र यानी लाइसेंस था।
और यह लाइसेंस उनके साधकों के लिए उपयोगी हो सकता है लेकिन समुद्र सनातन व्यवस्था के लिए तो बिल्कुल नहीं।
यहां एक जानकारी देना चाहता हूं कि प्रपंच अध्यात्म योग को विस्तार देने वाले समकालीन ब्रह्मलीन स्वामी शुद्धानंदनाथ ने अपने साधकों को एक आचार संहिता के साथ इस योग को अपनाने की अनिवार्यता और महत्व को प्रतिपादित किया।
*ब्रह्मलीन स्वामी शुद्धानंदनाथ* एक सन्यासी थे उनका कार्यक्षेत्र सतना मैहर कटनी जबलपुर नरसिंहपुर गाडरवारा सालीचौका रहा है। 【नोट-इससे अधिक जानकारी मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं देना चाहता कभी उन पर लिखूंगा सब विस्तार से जानकारी दूंगा।】
स्वामी शुद्धानंदनाथ के संदेशों थे आज्ञा से लगता है कि वे बिना वन गमन किए योगियों की तरह तप के बगैर गृहस्थों को आत्म परिष्कार का पथ दे गए।
परंतु यहां नव सन्यास का स्वरूप ही अजीबोगरीब देखा जा रहा है।
मित्रों जो लिखा है वह मेरा व्यक्तिगत विश्लेषण है। जो यह साबित करने के लिए पर्याप्त है भारत के महापुरुष स्वामी विवेकानंद के बिना भारत के आदर्श स्वरूप हो समझना और समझाना कठिन है।
आत्मनिर्भरता का अर्थ अनर्थ करने वालों को सतर्क रहना चाहिए प्रधान सेवक वही कह रहा है जो गांधी ने कहा था। गांधी के प्रयोगों का तात्पर्य समझना आज भी आवश्यक है भविष्य के लिए भी आवश्यक है। और स्वामी विवेकानंद को अपने चिंतन में समाहित कर लेना  आज की अनिवार्यता है।
  सदियों बाद भी आप हम जब ना होंगे तब भी गांधी और विवेकानंद अवश्य होंगे। बहुत सारे ढांचे गिर जाएंगे विकास सूर्य में घर बनाने तक का संभव हो सकता है परंतु वहां भी गांधी विवेकानंद प्रासंगिक होंगे। जहां मानवता है वहां यह दोनों महानुभाव आवश्यक हैं आवश्यक थे और आवश्यक रहेंगे। आचार्य रजनीश को सिरे से खारिज करता हूं गांधियन थॉट्स के मामले में मैं उसे नहीं कह रहा हूं ना उन्हें भगवान कह रहा हूं और आवश्यक भी नहीं भारत तो सनातन का पक्षधर है। सहिष्णुता समग्रता और आत्मनिर्भरता भारत के मूल में है .

गुरुवार, मई 14, 2020

स्वमेव मृगेन्द्रता : स्वामी कल्पतरु



मोनालिसा, बुद्ध,और भारत के अशोक स्तंभ में दिख रही कोई 3 शेरों की मुस्कुराहट इसलिए कह रहा हूं कि चौथा शेर हमेशा छुप जाता है यह चारों शेर मुस्कुराते हैं । इसी क्रम में पालघर से ईश्वर के घर तक की यात्रा करने वाले योगी कल्पतरु की मुस्कुराहट हजारों हजार साल के बाद सामने आई है । ऐसी मुस्कुराहट कभी प्रभात लाखो हजारों वर्ष बाद नजर आती है। यह मुस्कान नहीं निर्भीकता की पहचान है।
देखो ध्यान से देखो मृत्यु पूर्व निर्दोष पवित्र और आध्यात्मिक मुस्कुराहट कभी देखी है किसी ने यह वही है इस मुस्कान को अगर परिभाषित करना चाहूं तो मेरा कहना है कि *यह आत्मा की मुस्कान है*। योगी कल्पतरु के साक्षी भाव का परिचय। आत्मा समझ रही है कि उसे अब निकलना होगा आत्मा हँस रही है मूर्खों पर
यह भी कह रही हो शायद ईश्वर इन्हें माफ कर देना ये नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। प्रभु यीशु में ऐसे निर्देश नहीं दिए थे ?
परंतु मूर्खों ने अकेले लगाकर एक जुर्म कर दिया। मैं यहां यीशु को जानबूझकर कोट कर रहा हूं । हे हत्यारों पहचान लो सनातन में प्रेम है अखंडता है समरसता है इसने है करुणा है। वही करुणा जो कुष्ठ रोगियों के शरीर से मवाद साफ करने वाली मां टेरेसा ने महसूस की थी।
ईश्वर की अदालत में यही एकमात्र साक्ष्य जाएगा और बाक़ी सब बाकी सब तुम संसारी लोग निपटते उलझते रहना..!
यही है *स्वमेव मृगेन्द्रता* यानी जो जन्मजात महान है वह महान सिंहासन पर आसीन हो ही जाता है। अर्थात आपने किसी भी शेर का राज्य अभिषेक होते देखा क्या..?
स्वामी कल्पतरु इस तरह एक शेर की तरह खुद को मेरे जेहन में तो स्थापित कर गई आपकी आप जाने...!
फिर पूछता हूं आपने देखी है कभी ऐसी मुस्कान नहीं ना बिल्कुल नहीं देखी होगी ?
देखेंगे भी कैसे ? इसे देखने समझने के लिए बुद्ध के रास्ते क्रूस पर जाने वाली प्रभु यीशु को समझना होगा। चलिए पहले महात्मा बुद्ध को समझते हैं।
महात्मा गौतम बुद्ध सिद्धार्थ ही बने रह जाते सिद्धार्थ तो उनका भी राज्याभिषेक हो जाता ?
परंतु सिद्धार्थ तो स्वमेव मृगेन्द्रता को ही सार्थक करना चाहते थे ना ? बस फिर क्या था तुरंत सिद्धार्थ ने राजकुमार वाले अपने लबादे को उतार फेंका संसारी लोग इसे मूर्खता कह रहे होंगे ?
लोग क्या जाने कि सिद्धार्थ को बड़ा राज्य चाहिए दूसरी ओर बड़ा राज्य हाँ...बहुत बड़ा राज्य सिद्धार्थ की प्रतीक्षा कर रहा था शो सिद्धार्थ बुद्ध हो गए। और फिर ऐसा मुस्कुराए कि उनकी मुस्कुराहट देखकर ना जाने कितनी पीढ़ियाँ उसके रहस्य को समझने के लिए आध्यात्मिक यात्रा कर चुकीं है और यह जात्रा पहले जारी है !
मैंने भी भज गोविंदम भज गोविंदम कहते कहते इस जात्रा में शामिल होना तय किया है आप भी करो मुस्कुराहट का मतलब समझ जाओगे।
बुध के मामले में जब कभी भी चिंतन करता हूं तो लगता है कि उनके साथ जन्म लेता तो बार-बार जन्म नहीं लेना पड़ता।
ईश्वर बार-बार जन्म नहीं लेता स्वेच्छा से आ जाता है अवतार बनकर। लौकिक क्रिया करता है ! चला जाता है ! मैं ईश्वर हूं अहम् ब्रह्मास्मि कहा तो है वेदों में..! इसका मतलब यह नहीं कि आप सब मुझे ईश्वर कहने लगे समझने वाली बात यह है की वही समर्पण और संविलियन का भाव मुझ में होना चाहिए। अहम् ब्रह्मास्मि और थोड़ी सी क्रियाएं करने वाले कुछ लोग तो निरर्थक दावा मी कर देते हैं कि मैं भगवान हूं!
जैसे आदरणीय चंद्र मोहन जैन बनाम प्रोफेसर चंद्र मोहन जैन बनाम आचार्य रजनीश बनाम भगवान रजनीश बनाम ओशो !
आत्म उद्घोषणा से कभी कोई भगवान होता है क्या संसारी भी यही सोचते हैं अध्यात्म भी यही कहता है। जो उद्घोषणा करता है वह भगवान नहीं होता वह ओशो भी नहीं होता वह क्या होता है उसे स्वयं वही व्यक्ति स्वयं जानता है या उसका ईश्वर।
कई बार लगता है स्वयंभू के होते हैं लोग। स्वयंभू होने की जरूरत ही क्या है अरे भाई सीधी सी बात है जैसे हो वैसे सामने आ जाओ जो हो वही बन कर आओ निरर्थक अक़्ल ना लगाओ।
यादें अदम गोंडवी साहब ने क्या कहा है
अक़्ल हर चीज़ को, इक ज़ुर्म बना देती है
बेसबब सोचना, बे-सूद पशीमा होना ..!
यहां रियासत में सियासत में रिवायत में सब में लोग अक़्ल लगा देते हैं। अदम साहब आपने सच्ची सच्ची बात कह दी हम भी यही कहते हैं मिर्ची लगती है ! मैं क्या करूं...?

मृत्यु…!!
तुम
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा !!
यह भाव ले आओ और मुस्कुराओ बुद्ध की तरह मोनालिसा की तरह और सारनाथ स्तंभ के शेरों की तरह यही तो है
*स्वमेव मृगेन्द्रता*
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

शनिवार, मई 09, 2020

"तेरे हाथ की तरकारी याद आती है अम्मा ओ अम्मा"

"मदर्स डे के अवसर पर भावात्मक एलबम अम्मा यूट्यूब पर जारी "

"तेरे हाथ की तरकारी याद आती है अम्मा ओ अम्मा"
*बहुत कम बोलते हैं बाल नायक मृगांक, सब कुछ कहा करतीं आँखें...!*
मदर्स डे 10 मई 2020 के 2 दिन पूर्व यानी 8 मई 2020 को Indie Routes ने एलबम अम्मा रिलीज़ कर दिया रिलीज के आधे घंटे के भीतर इस एल्बम 1000 दशकों तक पहुंच गया। इस बार आभाष-श्रेयस जोशी ने फिर एक बार रविंद्र जोशी के शब्दों को गुनगुनाया है । इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एल्बम को देखने वाले दर्शकों की संख्या 4000 से ज़्यादा हो गई है। फीडबैक से पता चला है कि एक ओर बेतरीन निर्देशन संगीत और लिरिक्स की वजह से एलबम स्तरीय है वहीं माँ और पुत्र के कैरेक्टर्स का अभिनय बांधता भी है भिगोता भी है । 
इस एलबम में जबलपुर के बाल कलाकार मृगांक उपाध्याय ने आंखों को भिगो देने वाला काम किया है । माँ की भूमिका में श्रीमती ज्योति आप्टे नज़र आईं 
वीडियो एल्बम के गीत का लेखन रविंद्र जोशी ने निर्माण एवं निर्देशन श्रीमती हर्षिता जोशी ने किया। इस एल्बम में स्वर एवं संगीत श्री श्रेयस जोशी एवं आभास जोशी का है । 
डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी हरि नाथ गोविंदन विष्णु की सिनेमेटोग्राफी ने एलबम बेहद प्रभावी बन गया है ।

Mrugank is my favourite student in Bal Bhavan jabalpur
😊😊😊😊😊😊😊😊
Name - Mrugank upadhyay 
Dob-5/10/2007 
School -- St Aloysius school polipather, Jabalpur MP Class--8th, 
performing art --tabla 3rd year in BalBhavan Jabalpur MP 
Contact - please call me on 7999380094 or mail me 
girishbillore@gmail.com 

https://youtu.be/d2IvZLKA8vs 
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गुरुवार, मई 07, 2020

गुलाबी चने, यूएफओ किचन, गोसलपुरी लब्दा और लोग डाउन 3.0


लॉक डाउन के तीसरे पार्ट में Udan Tashtari यानी जबलपुरिया कनाडा वाले भाई समीर लाल से जानिए एक ऐसी रेसिपी जो शाम को आप चाय के साथ जरूर ले सकते हैं । इसके लिए आपको काले चने बनाने के आधे घंटे पहले पानी में भिगो लेना और बाकी क्या करना है समीर लाल से जानी है.. समीर लाल जी के चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए अरे भाई किसी दिन मुझसे कोई चूक हो गई तो मुश्किल होगा ना आप तक नई रेसिपी पहुंचेगी कैसे।
याद होगा जब हम स्कूल जाते थे तो उबले हुए चने इसमें नमक मिर्च वाह और हां सूखे हुए उबले बेर का लब्दा बहुत बढ़िया लगता था। सुबह वाले स्कूल में लगभग नो 9:30 बजे लंच ब्रेक होता था। और तब गोसलपुर में स्कूल के सामने इमली के पेड़ के नीचे #लब्दा वाली बऊ दस्सी पंजी की उधारी भी हो जाती थी पर चने वाला दादा बहुत दुष्ट था उधार नहीं देता था। जेब खर्च में मिले चार आने बहुत होते थे भाई। आधे रुपए में यानी अठन्नी में तो बिल्कुल दादा के दुकान नुमा घर में बैठकर चटपटी चाट खा लेते थे। खास बात यह थी कि चाट के साथ पानी भी मिल जाता था। आधी छुट्टी के बाद श्रीवास्तव मशाल अंग्रेजी पढ़ाने आते थे। जो कभी आते ही ना थी। कहां रहते थे क्या होता था उन्हें अंग्रेजी आती भी थी कि नहीं ऊपरवाला जाने। तो क्लास रूम में पहुंचने में किसी भी तरह का डर नहीं था। बड़कुल दादा की होटल जो घर ही था में कितनी भी भीड़ हो बेफिक्री से नाश्ता किया जा सकता था। और हां अगर दो या तीन रुपए का जुगाड़ हो गया तो समझो कि हमसे बड़ा राजकुमार आसपास नजर ही नहीं आता। तो मित्रो बात निकली और दूर तक चली गई चुपचाप इस रेसिपी को याद कर लीजिए। अच्छा कई लोगों को याद भी नहीं रहता तो कोई बात नहीं ऐसा कीजिए भाभी से कहिए किचन में ना घुसे और यूट्यूब पर मौजूद इस वीडियो को चालू करके बना लीजिए चटपटा चना। और एक बात कान में सुन लीजिए सुन रहे हो अब तो आपके अमृत रस की दुकानें भी खुल चुकी हैं उन दुकानों से मंगा लीजिए एक बोतल आधी बोतल अगर आपको शौक है तो और चखने के तौर पर चटपटे काले चने के साथ मिर्जा गालिब बन जाए ध्यान रहे ज्यादा नहीं उतनी ही जितनी रोजिना लेते हो

ग़ालिब ' छुटी शराब , पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़े-अब्रो-शबे-माहताब में ।
और फिर गुनगुनाए मेरे चंद शेर अरे चलिए पूरी ग़ज़ल की सही यह रही वो ग़ज़ल ताज़ा है -
कुछ और दे ना दे मुझको शराब तो दे दे ।
वह भी न दे खरीदने को माल'ओ असबाब तो दे दे ।।
एहसास ए समंदर हूं, तेरे वज़ूद का -
तू है कहीं, मुझे भी कोई एहसास तो दे दे ।।

मंदिर के ताले बंद हैं, सनम है मिरे घर में ,
तू भी इन्हें कुछ ऐसे ही एहसास तो दे दे ।।

है घुप्प अंधेरा, उसे जाना है बहुत दूर,
तू साथ है उसके, ये ऐसा
आभास तो दे दे ।।

मांगा नहीं है तुझसे कभी, पसारे नहीं हैं हाथ ।
दाता है मुकुल सबको, यह एहसास तो दे दे।
https://youtu.be/Trtd-esCymc

शनिवार, मई 02, 2020

कोटा : एजुकेशनल स्टेटस सिंबल धराशाही / इंजीनियर सौरभ पारे



महामारी के इन कठिन दिनों में एक नया विचार मन में आ रहा है।
कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने गए बच्चे बड़ी मशक्कत और कष्ट सहने के बाद अपने गृह-ज़िले में पहुँचे हैं।
प्रश्न यह है कि क्या बच्चों को अपने से दूर भेजना ज़रूरी था क्या?
क्या हम अपने शहर में ही बच्चों को पढ़ा नहीं सकते?

हमारे बच्चे का खयाल *हमसे* अच्छा कोई नहीं रख सकता।

कोई भी परीक्षा का परिणाम किसी बच्चे के जीवन से बढ़ कर तो नहीं!

अभी लॉकडाउन खुलने के पश्चात फ़िर ये प्रक्रिया होने वाली है,
"महाविद्यालयों में होने वाले एडमिशन"।
हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा एडमिशन की लाइन में लगेगा, जिसके कंधों पर अपने परिवार के सपनों का बोझ होगा।

हम सभी यह सोचते हैं कि बड़े बड़े महानगरों के बड़े कॉलेजों में अपने बच्चों को पढ़ाएंगे, बड़े महानगर में बच्चे का भविष्य सुरक्षित होगा...
अपने से व घर से दूर रह कर उनका भविष्य उज्ज्वल होगा,अच्छा भविष्य चाहिए तो घर से दूर रहना जरूरी है, यह सोच सर्वथा अनुचित है।

आज समय की मांग है कि बच्चों को घर से इतनी दूर न भेजा जाए कि ऐसी प्रतिकूल परिस्तिथी में वे चाह कर भी अपने घर नहीं आ सकें।

हम सभी सदा अपने से दूर के संसाधनों को उत्तम तथा अपने आसपास स्थित संसाधनों को दोयम दर्ज़े का समझते हैं, परंतु असल में ऐसा होता नहीं है। आज आपके शहर में स्थित महाविद्यालय में पढ़े हुए बच्चे, दुनिया में नाम कमा रहें है, कोई व्यवसाय के क्षेत्र में अग्रणी हो रहा है,
कोई यहां पढ़ने के बाद उन महानगरों में बहुत अच्छी नौकरी कर रहा है, तो कोई विदेशों में भारत का नाम रोशन कर रहा है। यह आपके शहर के या आसपास के ही शिक्षण संस्थान में पढ़े हुए बच्चे हैं, जिन्हें हम दोयम कह कर नकार देते थे।

जब यह सब अपने घर के आस पास रह कर पढ़ाई करे हुए बच्चे कर सकते हैं, तो उन्हें अपने से दूर क्यों भेजा जाए?

अंत में, अब यह सोचने का समय आ गया है कि हमारी आंख के तारों को क्या हमें इतनी दूर भेजना उचित है,
या तकनीक के इस दौर में अपने शहर के ही महाविद्यालयों में बच्चों का एडमिशन करवाना। इससे हमें हमारे बच्चों की भविष्यत की चिंता भी नहीं रहेगी तथा उनपर सदा आपकी नजर भी रहेगी।

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