14.5.20

स्वमेव मृगेन्द्रता : स्वामी कल्पतरु



मोनालिसा, बुद्ध,और भारत के अशोक स्तंभ में दिख रही कोई 3 शेरों की मुस्कुराहट इसलिए कह रहा हूं कि चौथा शेर हमेशा छुप जाता है यह चारों शेर मुस्कुराते हैं । इसी क्रम में पालघर से ईश्वर के घर तक की यात्रा करने वाले योगी कल्पतरु की मुस्कुराहट हजारों हजार साल के बाद सामने आई है । ऐसी मुस्कुराहट कभी प्रभात लाखो हजारों वर्ष बाद नजर आती है। यह मुस्कान नहीं निर्भीकता की पहचान है।
देखो ध्यान से देखो मृत्यु पूर्व निर्दोष पवित्र और आध्यात्मिक मुस्कुराहट कभी देखी है किसी ने यह वही है इस मुस्कान को अगर परिभाषित करना चाहूं तो मेरा कहना है कि *यह आत्मा की मुस्कान है*। योगी कल्पतरु के साक्षी भाव का परिचय। आत्मा समझ रही है कि उसे अब निकलना होगा आत्मा हँस रही है मूर्खों पर
यह भी कह रही हो शायद ईश्वर इन्हें माफ कर देना ये नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। प्रभु यीशु में ऐसे निर्देश नहीं दिए थे ?
परंतु मूर्खों ने अकेले लगाकर एक जुर्म कर दिया। मैं यहां यीशु को जानबूझकर कोट कर रहा हूं । हे हत्यारों पहचान लो सनातन में प्रेम है अखंडता है समरसता है इसने है करुणा है। वही करुणा जो कुष्ठ रोगियों के शरीर से मवाद साफ करने वाली मां टेरेसा ने महसूस की थी।
ईश्वर की अदालत में यही एकमात्र साक्ष्य जाएगा और बाक़ी सब बाकी सब तुम संसारी लोग निपटते उलझते रहना..!
यही है *स्वमेव मृगेन्द्रता* यानी जो जन्मजात महान है वह महान सिंहासन पर आसीन हो ही जाता है। अर्थात आपने किसी भी शेर का राज्य अभिषेक होते देखा क्या..?
स्वामी कल्पतरु इस तरह एक शेर की तरह खुद को मेरे जेहन में तो स्थापित कर गई आपकी आप जाने...!
फिर पूछता हूं आपने देखी है कभी ऐसी मुस्कान नहीं ना बिल्कुल नहीं देखी होगी ?
देखेंगे भी कैसे ? इसे देखने समझने के लिए बुद्ध के रास्ते क्रूस पर जाने वाली प्रभु यीशु को समझना होगा। चलिए पहले महात्मा बुद्ध को समझते हैं।
महात्मा गौतम बुद्ध सिद्धार्थ ही बने रह जाते सिद्धार्थ तो उनका भी राज्याभिषेक हो जाता ?
परंतु सिद्धार्थ तो स्वमेव मृगेन्द्रता को ही सार्थक करना चाहते थे ना ? बस फिर क्या था तुरंत सिद्धार्थ ने राजकुमार वाले अपने लबादे को उतार फेंका संसारी लोग इसे मूर्खता कह रहे होंगे ?
लोग क्या जाने कि सिद्धार्थ को बड़ा राज्य चाहिए दूसरी ओर बड़ा राज्य हाँ...बहुत बड़ा राज्य सिद्धार्थ की प्रतीक्षा कर रहा था शो सिद्धार्थ बुद्ध हो गए। और फिर ऐसा मुस्कुराए कि उनकी मुस्कुराहट देखकर ना जाने कितनी पीढ़ियाँ उसके रहस्य को समझने के लिए आध्यात्मिक यात्रा कर चुकीं है और यह जात्रा पहले जारी है !
मैंने भी भज गोविंदम भज गोविंदम कहते कहते इस जात्रा में शामिल होना तय किया है आप भी करो मुस्कुराहट का मतलब समझ जाओगे।
बुध के मामले में जब कभी भी चिंतन करता हूं तो लगता है कि उनके साथ जन्म लेता तो बार-बार जन्म नहीं लेना पड़ता।
ईश्वर बार-बार जन्म नहीं लेता स्वेच्छा से आ जाता है अवतार बनकर। लौकिक क्रिया करता है ! चला जाता है ! मैं ईश्वर हूं अहम् ब्रह्मास्मि कहा तो है वेदों में..! इसका मतलब यह नहीं कि आप सब मुझे ईश्वर कहने लगे समझने वाली बात यह है की वही समर्पण और संविलियन का भाव मुझ में होना चाहिए। अहम् ब्रह्मास्मि और थोड़ी सी क्रियाएं करने वाले कुछ लोग तो निरर्थक दावा मी कर देते हैं कि मैं भगवान हूं!
जैसे आदरणीय चंद्र मोहन जैन बनाम प्रोफेसर चंद्र मोहन जैन बनाम आचार्य रजनीश बनाम भगवान रजनीश बनाम ओशो !
आत्म उद्घोषणा से कभी कोई भगवान होता है क्या संसारी भी यही सोचते हैं अध्यात्म भी यही कहता है। जो उद्घोषणा करता है वह भगवान नहीं होता वह ओशो भी नहीं होता वह क्या होता है उसे स्वयं वही व्यक्ति स्वयं जानता है या उसका ईश्वर।
कई बार लगता है स्वयंभू के होते हैं लोग। स्वयंभू होने की जरूरत ही क्या है अरे भाई सीधी सी बात है जैसे हो वैसे सामने आ जाओ जो हो वही बन कर आओ निरर्थक अक़्ल ना लगाओ।
यादें अदम गोंडवी साहब ने क्या कहा है
अक़्ल हर चीज़ को, इक ज़ुर्म बना देती है
बेसबब सोचना, बे-सूद पशीमा होना ..!
यहां रियासत में सियासत में रिवायत में सब में लोग अक़्ल लगा देते हैं। अदम साहब आपने सच्ची सच्ची बात कह दी हम भी यही कहते हैं मिर्ची लगती है ! मैं क्या करूं...?

मृत्यु…!!
तुम
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा !!
यह भाव ले आओ और मुस्कुराओ बुद्ध की तरह मोनालिसा की तरह और सारनाथ स्तंभ के शेरों की तरह यही तो है
*स्वमेव मृगेन्द्रता*
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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