15.3.11

प्रीत की तुम मथानी ले मेरा मन मथ के जाती हो


प्रीत की तुम मथानी ले  मेरा मन मथ के जाती हो
कभी फ़िर ख्वाब में  आके  मुझे  ही  थपथपातीं हो !
क़िताबों में तुम्हीं तो हो ,दीवारों पे तुम्ही तो हो -
बनके  मीठी  सी  यादें तुम मन  को  गुदगुदातीं हो..!
विरह की पोटली ले के कहो अब मैं किधर जाऊं
आ भी जाओ कि क्यों कर तुम मुझे अब आज़माती हो


 

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर!

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

bahut sunder!

Dr Varsha Singh ने कहा…

क़िताबों में तुम्हीं तो हो ,दीवारों पे तुम्ही तो हो -
बनके मीठी सी यादें तुम मन को गुदगुदातीं हो..!

सुन्दर कविता.. बेहद कोमल रचना और भाव !

मनीष सेठ ने कहा…

shabash baba...bahut khoob.

Wow.....New

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