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3.4.22

नवरात्रित् द्वितीय दिवस की आराध्या देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में

                 हिमालय पुत्री की मनोकामना थी  कि उनका विवाह  शिव के साथ हो। देवर्षि नारद उनकी मनोकामना की पूर्ति के लिए उन्हें कठोर तपस्या की सलाह देते हैं । सलाह मानते हुए हिमालय सुता ने 1000 वर्ष तक शिव की कठोर आराधना की और इस आराधना तपस्या के दौरान उन्होंने 1000 वर्ष केवल फल फूल खाए और 100 वर्षों तक केवल शाक आदि खाकर जीवन ऊर्जा प्राप्त की।
   आज यानी 3 अप्रैल 2022 को नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना के लिए हमें निम्नानुसार क्रियाएं करनी चाहिए...
 मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने कार्य में सदैव विजय प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। माता की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा- सामान्य रूप से कैसे करें
• इस दिन सुबह उठकर जल्दी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
• घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
• मां दुर्गा का गंगा जल अथवा पवित्र नदी का जल जो स्थानीय रूप से उपलब्ध है से अभिषेक करें।
• अब मां दुर्गा को अर्घ्य दें।
• मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
• धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
• मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
यदि मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र को आप याद ना रख सकें तो निम्न लिखित मंत्र को सहजता से याद किया जा सकता है और एकाग्र चित्त होकर मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जा सकती है-

• मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
या देवी सर्वभू‍तेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती:
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो ​तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
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            सनातन धर्म की विशेषता यह है कि वह इसी प्रकार की असंभव और कष्ट साध्य साधना के लिए साधक को बाध्य नहीं करता। जबकि अन्य संप्रदायों में जो हिंदू धर्म से अलग हैं कठोरता और भय समाविष्ट है परंतु सनातन में मन की शुचिता, आचार व्यवहार मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का होना आवश्यक है। और आप जिस जिस देवी मां अर्थात मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करेंगे वह स्वयं तो कठोर तापसी हैं किंतु अपने साधकों के प्रति दयालु भी हैं। ब्रह्मचारिणी की आराधना से जो फल की प्राप्ति होती है वह शक्ति पूजा में विशेष महत्व रखती है। हम 9 दिनों तक शक्ति पूजन करेंगे किंतु अगर हमारा मन मानस और चेतना समन्वित रूप से नहीं रह सकेगी तो हमारी पूजा का कोई अर्थ नहीं है। अतः हमें पूरी नवरात्रि के समय गंभीरता के साथ मन मानस और चेतना समन्वयन (सिंक्रोनाइज़ेशन) शुचिता के साथ करना चाहिए। अन्यथा पूजन का कोई अर्थ नहीं निकलता। शक्ति पूजा के दौरान मन में किसी भी तरह की विलासिता के भाव विशेष रुप से नहीं आने चाहिए । यदि आप मानसिक रूप से अपनी इंद्रियों को वश में नहीं कर सकते हैं तो पूजन अर्चन का अर्थ ही नहीं निकलेगा। आइए आज हम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर मां ब्रह्मचारिणी की आराधना का उपरोक्त बताई गई विधि से प्रारंभ करें

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