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5.4.22

नवरात्रि पांचवा दिवस : स्कंदमाता की आराधना

नवरात्रि का पांचवा दिवस : स्कंदमाता की आराधना
  भारतीय भक्ति दर्शन में जीवन मोक्ष के लिए जिया जाता है, जो मनुष्य स्वर्ग की कामना  के बिना भक्ति मार्ग को अपनाते हैं *मुमुक्ष* कहलाते हैं . नवरात्रि का यह दिन आराधना के साथ-साथ आत्मोत्कर्ष के लिए शक्ति की आराधना करने का दिन है। आज हम आराध्या देवी माता स्कंदमाता का स्मरण करेंगे। स्कंदमाता पथभ्रष्ट चिंतन को सही मार्ग पर लाने वाली शक्ति का प्रतीक है।
    ज्योतिष कहा गया है कि जिन जातकों का बृहस्पति कमजोर है वी स्कंध माता की आराधना करें तो उनका बृहस्पति उनके अनुकूल होगा ।
   स्कंदमाता को पीला रंग पसंद है साधक को आज पीले रंग के वस्त्र धारण करके मां की आराधना करनी चाहिए ।
   जिन बालक बालिकाओं का विवाह नहीं हो रहा है उन्हें ना केवल पंचमी के दिन बल्कि हमेशा स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिए। स्कंदमाता बुद्धि ज्ञान एवं प्रपंच योग के लिए अनुकूल अवसर उपलब्ध करातीं हैं ।
    जिनके गुरु कुंडली में कमजोर हैं उन्हें गुरु माता अर्थात गुरुदेव की पत्नी मां महिला शिक्षिका या ज्ञान देने वाली किसी भी महिला के प्रति समान भाव रखना होगा। जातक को यथासंभव पंचमी में व्रत रखना चाहिए।
   पूजन के समय जब आप माता की प्रतिमा की सजावट करते हैं उन्हें नहीं लाते हैं उनका वात्सल्य पाने के लिए या
नवरात्र का पांचवा दिन मां स्कंदमाता के नाम होता है। मां के हर रूप की तरह यह रूप भी बेहद सरस और मोहक है। स्कंदमाता अपने भक्त को मोक्ष प्रदान करती है। चाहे जितनाभी बड़ा पापी क्यों ना हो अगर वह मां के शरण में पहुंचता है तो मां उसे भी अपने प्रेम के आंचल से ढ़क लेती है। मां स्कंदमाता की पूजा नीचे लिखे मंत्र से आरंभ करनी चाहिए।
1 बाधा मुक्ति के लिए मंत्र
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:,
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:
2 आत्मरक्षा के लिए मंत्र
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे, सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते'
3 विवाह के लिए मंत्र
'पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्, तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्  ।
    यदि आज आप यह सब नहीं कर पाते हैं तो भी मां कभी अपने पुत्रों पुत्रियों के प्रति क्रोध का भाव नहीं रखती है। अगर हम यह सब नहीं कर सकते तो हम आज एक ऐसी महिला के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करें जो विदुषी अथवा किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट ज्ञान रखती है, ऐसी महिला आपकी मां बहन पुत्री पत्नी कोई भी हो सकती है ।
   हमें इन 9 दिनों में विशेष रुप से ना तो अपमानित करना है ना ही उनकी उपेक्षा करनी है।
    सनातन धर्म ने 365 दिनों में 18 दिवस क्वार एवं चेत्र माह में इस शक्ति साधना के लिए पूर्ण विराम ताकि यह अभ्यास हमारी जीवन में स्थाई रूप से आदत में परिवर्तित हो जावे।
    सनातन धर्म नारी की स्थिति श्रेष्ठतम स्थान पर है। अन्य विदेशी संप्रदायों में अत्यंत प्रतिबंध असामान्य व्यवहार क्रूरता उपेक्षा और दासता पर कोई नियम निर्देशित नहीं है ।

4.4.22

नवरात्रि का तीसरा दिन : माता चंद्रघंटा की आराधना

आज 4 अप्रैल 2022 को नवरात्र का तीसरा दिन है और इस दिन हम मां चंद्रघंटा की आराधना करेंगे। मां चंद्रघंटा की विग्रह की आराधना के लिए जिस श्लोक से आवाहन किया जाएगा वह निम्नानुसार
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | 
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता 
यदि यह श्लोक आप याद ना कर पाए तो निम्नलिखित श्लोक को पढ़िए
*या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।*
    देवी के स्वरूप को समझने के लिए निम्न विवरण को अवश्य देखिए
माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।
  मां चंद्रघंटा साधक को आत्मिक शांति एवं दुष्ट पर शक्तियों से मुक्त करती हैं।
सनातन पूजा प्रणाली में केवल मूर्ति पूजा का महत्व ही नहीं है बल्कि साकार आराधना को भी महत्वपूर्ण माना है। मां चंद्रघंटा के पूजन के लिए अगर आप अनुकूल वातावरण महसूस नहीं कर पा रहे हैं या आपको अनुकूल वातावरण नहीं मिलता है तो आप किसी भी श्यामवर्णी तेजस्विनी विवाहित महिला को बुलाकर उन्हें सम्मान देते हुए उनका पूजन करें तथा उन्हें आहार सम्मान सहित खिलाए आहार में दही और हलवा अवश्य दिया जाना चाहिए।
   सनातन को अपमानित करने वालों के लिए यह बता देता हूं कि-" सनातन में नारी का सम्मान करना सर्वोपरि धर्म है।"

3.4.22

नवरात्रित् द्वितीय दिवस की आराध्या देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में

                 हिमालय पुत्री की मनोकामना थी  कि उनका विवाह  शिव के साथ हो। देवर्षि नारद उनकी मनोकामना की पूर्ति के लिए उन्हें कठोर तपस्या की सलाह देते हैं । सलाह मानते हुए हिमालय सुता ने 1000 वर्ष तक शिव की कठोर आराधना की और इस आराधना तपस्या के दौरान उन्होंने 1000 वर्ष केवल फल फूल खाए और 100 वर्षों तक केवल शाक आदि खाकर जीवन ऊर्जा प्राप्त की।
   आज यानी 3 अप्रैल 2022 को नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना के लिए हमें निम्नानुसार क्रियाएं करनी चाहिए...
 मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने कार्य में सदैव विजय प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। माता की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा- सामान्य रूप से कैसे करें
• इस दिन सुबह उठकर जल्दी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
• घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
• मां दुर्गा का गंगा जल अथवा पवित्र नदी का जल जो स्थानीय रूप से उपलब्ध है से अभिषेक करें।
• अब मां दुर्गा को अर्घ्य दें।
• मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
• धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
• मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
यदि मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र को आप याद ना रख सकें तो निम्न लिखित मंत्र को सहजता से याद किया जा सकता है और एकाग्र चित्त होकर मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जा सकती है-

• मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
या देवी सर्वभू‍तेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती:
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो ​तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
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            सनातन धर्म की विशेषता यह है कि वह इसी प्रकार की असंभव और कष्ट साध्य साधना के लिए साधक को बाध्य नहीं करता। जबकि अन्य संप्रदायों में जो हिंदू धर्म से अलग हैं कठोरता और भय समाविष्ट है परंतु सनातन में मन की शुचिता, आचार व्यवहार मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का होना आवश्यक है। और आप जिस जिस देवी मां अर्थात मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करेंगे वह स्वयं तो कठोर तापसी हैं किंतु अपने साधकों के प्रति दयालु भी हैं। ब्रह्मचारिणी की आराधना से जो फल की प्राप्ति होती है वह शक्ति पूजा में विशेष महत्व रखती है। हम 9 दिनों तक शक्ति पूजन करेंगे किंतु अगर हमारा मन मानस और चेतना समन्वित रूप से नहीं रह सकेगी तो हमारी पूजा का कोई अर्थ नहीं है। अतः हमें पूरी नवरात्रि के समय गंभीरता के साथ मन मानस और चेतना समन्वयन (सिंक्रोनाइज़ेशन) शुचिता के साथ करना चाहिए। अन्यथा पूजन का कोई अर्थ नहीं निकलता। शक्ति पूजा के दौरान मन में किसी भी तरह की विलासिता के भाव विशेष रुप से नहीं आने चाहिए । यदि आप मानसिक रूप से अपनी इंद्रियों को वश में नहीं कर सकते हैं तो पूजन अर्चन का अर्थ ही नहीं निकलेगा। आइए आज हम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर मां ब्रह्मचारिणी की आराधना का उपरोक्त बताई गई विधि से प्रारंभ करें

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