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21.9.14

हम विकास की भाषा से अनजान हैं..

          विश्व में  शांति की बहाली को लेकर समझदार लोग बेहद बेचैन हैं  कि किस प्रकार विश्व में अमन बहाल हो ? चीनी राष्ट्रपति के भारत आगमन के वक़्त तो अचानक मानों चिंतन और चर्चा को पंख लग गए . जिधर देखिये उधर चीन की विस्तारवादी नीति के कारण प्रसूते सीमाई विवाद के चलते  व्यवसायिक अंतर्संबंधों को संदर्भित करते हुए  चर्चाओं में खूब ऊर्ज़ा खर्च की जा रही है . 
 
            हम भारतीयों की एक आदत है कि हम किसी मुद्दे को या तो सहज स्वीकारते हैं या एकदम सिरे से खारिज़ कर देते हैं. वास्तव में आज़कल जो भी वैचारिक रूप से परोसा जा रहा है उसे पूरा परिपक्व तो कहा नहीं जा सकता. आप जानते ही हैं कि जिस तरह अधपका भोजन शरीर के लिये फ़ायदेमंद नहीं होता ठीक उसी तरह संदर्भ और समझ विहीन वार्ताएं मानस के लिये . तो फ़िर इतना वैचारिक समर क्यों .. ? इस बिंदु की पड़ताल से पता चला कि बहस   कराने वाला एक ऐसे बाज़ार का हिस्सा है जो सूचनाओं के आधार पर अथवा सूचनाओं (समाचारों को लेकर ) एक प्रोग्राम प्रस्तुत कर रहा होता है. उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं कि संवादों के परिणाम क्या हो सकते हैं. 
             बाज़ार का विरोध करने वाले लोग, सांस्कृतिक संरचनाओं की बखिया उधेड़ने वाले लोग, सियासत, अर्थशास्त्र, सामाजिक मुद्दों पर चिंतन हेतु आधिकारिक योग्यता रखने वाले लोग बहुतायत में उन जगहों पर काम कर रहे हैं जहां ऐसी बहसें होतीं हैं. कई बार तो वार्ताएं अखाड़ों का स्वरूप ले लेतीं हैं. 
            चलिये चीन की जीवनशैली पर विचार करें तो हम पाते हैं कि वहां विकास   हमसे बेहतर हुआ है. और जापान भी हमसे तेज़ गति से गतिमान है. जिसका श्रेय केवल वहां के लोगों में काम करने की असाधारण क्षमता को जाता है.  विकास की बोली भाषा से भी अपरिचित हैं अगर थोड़ा जानते भी हैं तो सिर्फ़ ये कि सरकार की व्यस्था क्या है.. सरकार हमारे लिये क्या करेगी , सरकार को ये करना चाहिये वो करना चाहिये वगैरा वगैरा. लेकिन हम घर का कचरा सड़क पर फ़ैंक सरकारी सफ़ाई व्यवस्था के न होते ही मीडिया के सामने रोते झीखते हैं अथवा घर बैठकर कोसतें हैं व्यवस्था को .  मीडिया जो सूचनाओं का बाज़ार है उसे अपनी शैली में सामने ले आता है. बात इस हद तक उत्तम है कि मीडिया अपना काम कर देता है पर हम .. हम तो अपनी आदत से बाज़ नहीं आते हमको सदा ही घर साफ़ रखने और सड़क गंदी करने का वंशानुगत अभ्यास है. शायद ही कुछ गांव ऐसे मिलेंगें जहां शौचालयों को स्टोर रूम की तरह स्तेमाल न किया जा रहा हो. सुधि पाठको अभी हमें विकास की भाषा समझनी है न कि समझ विहीन वार्ताओं में शरीक होना है.. चलो गांधी जयंति नज़दीक आ रही है... जुट जाएं कुछ अच्छा करने के लिये स्वच्छता को ही आत्मसात करने की कोशिश तो करें .. शायद विकास गाथा यहीं से लिख  पाएं हम...........

16.6.14

गृहणी श्रीमति विधी जैन के कोशिश से आयकर विभाग में हरक़त

        भारतीय भाषाओं के सरकारी एवम लोक कल्याणकारी , व्यावसायिक संस्थानों द्वारा अपनाने में जो  समस्याएं आ रही थीं वो कम्प्यूटर अनुप्रयोग से संबंधित थीं.  यूनिकोड की मदद से अब कोई भी हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को प्रयोग में लाने से इंकार करे तो जानिये कि संस्थान या तो तकनीकि के अनुप्रयोग को अपनाने से परहेज कर रहा है अथवा उसे भारतीय भाषाओं से सरोकार नहीं रखना है. 
           भारतीय भाषाओं की उपेक्षा अर्थात उनके व्यवसायिक अनुप्रयोग के अभाव में गूगल का व्यापक समर्थन न मिल पाना भी भाषाई सर्वव्यापीकरण के लिये बाधक हो रहा है. ये वही देश है जहां का युवा विश्व को सर्वाधिक तकनीकी मदद दे रहा है. किंतु स्वदेशी भाव नहीं हैं.. न ही नियंताओं में न ही समाज में और न ही देश के ( निर्णायकों में ? ) बदलाव से उम्मीद  है कि इस दिशा में भी सोचा जावे. वैसे ये एक नीतिगत मसला है पर अगर हिंदी एवम अन्य भारतीय भाषाई महत्व को प्राथमिकता न दी गई तो बेतरतीब विकास ही होगा. आपको आने वाले समय में केवल अंग्रेज़ियत के और कुछ नज़र नहीं आने वाला है. हम विदेशी भाषाओं के विरुद्ध क़दापि नहीं हैं किंतु भारतीय भाषाओं को ताबूत में जाते देखने के भी पक्षधर नहीं. भारत का दुर्भाग्य ये ही है यहां रोटी के लिये अंग्रेज़ी, कानूनी मदद के लिये अंग्रेजी, चिकित्सा- अभियांत्रिकी , यानी सब के लिये अंग्रेज़ी सर्वोपरि है. 
    यानी स्वतंत्रता के बाद भारतीय भाषाओं के विकास तथा उनके प्रशासनिक क़ानूनी, चिकित्सकीय, व्यवसायिक अनुप्रयोग के लिये एक संपृक्त कोशिशें की हीं नहीं गईं. विश्वविद्यालयों विद्वतजनों से क्षमा याचना के साथ हम उनको उनकी भूलों की तरफ़ ले जाना चाहेंगे. कि उन्हौंने भारतीय भाषाई विकास को तरज़ीह नहीं दी यहां तक कि सर्वाधिक उपयोग में लाई जाने वाली हिंदी की उपेक्षा होते देखा वरना क़ानून चिकित्सा, प्रशासन, व्यवसाय, अर्थात सभी  भी विषयों की भाषा हिंदी होती.  
मुझे प्राप्त एक ई संदेश में हिंदी की प्रतिष्ठा के लिये संघर्षरत श्री मोतीलाल गुप्ता ने आज एक मेल किया  में एक सफ़ल कोशिश का विवरण दर्ज़ है. विवरण अनुसार मुम्बई निवासी एक गृहणी श्रीमति विधि जैन  ने एक आवेदन लिख कर आयकर विभाग को हिंदी के अनुप्रयोग को बढ़ावा देने की अपेक्षा विभाग से की गई. 
श्रीमति विधि जैन
मुम्बई निवासी श्रीमति विधि जैन की कोशिश को अब आकार मिल सकता है . उनके आवेदन पर  राजस्व विभाग, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के उपनिदेशक (राजभाषा) श्री आर.एन.त्रिपाठी, ने  समुचित कार्यवाही करने के निर्देश आयकर निदेशालय को दे दिए हैं।
                  अब द्विभाषी पैन कार्ड की सम्भावना प्रबल हो गई है. 


ऑनलाइन आयकर विवरणी भरने और जमा करने की सुविधा केवल अंग्रेजी में होने से आम जनता परेशान  होती रहती है और अब तक आयकर सम्बन्धी सारा काम सलाहकारों के भरोसे होता है, उसे पता ही नहीं चलता कि सलाहकार क्या कर रहा है? श्रीमती जैन ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री से मांग की है कि आयकर सम्बन्धी सभी ऑनलाइन सेवाएँ अविलम्ब राजभाषा हिन्दी में और आगे देश की सभी प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध करवाने का अनुरोध किया है.
उन्होंने बताया कि उनका अगला लक्ष्य ऑनलाइन रेल टिकट बुक करने की सुविधा 10 प्रमुख  भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाने के लिए अभियान चलाना है ताकि आम यात्रा बिना परेशानी के इस सेवा का लाभ उठा सके.


              

14.9.08

हिन्दी-दिवस



आप भी इसका इस्तेमाल करें

हिन्दी,मराठी,गुजराती,बंगाली,कन्नड़,तमिल,उर्दू,उड़िया,पंजाबी,
इन भाषाओं को लेकर कोई भी बच्चा कभी किसी अन्य
बच्चे से नहीं लड़ा,"
बच्चों से सीखने के इस दौर में
आप भी इन के बीच जाइए
सदभाव के सत्य से परिचय पाइए
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देश में लिंग परीक्षण,दहेज़ सामाजिक असमानता जैसे कई विषय हैं जिन पर आज से ही आन्दोलन चालू करने ज़रूरी हैं, किंतु भारतवासियों राज़ की बात है हमारे लोग स्थान,भाषा,धर्म,रंग,के लिए आंदोलित हैं .... ईश्वर इनको सुबुद्धि दे जो हमारे देश में कई देश बना रहें हैं .....हमारे तुम्हारे का बेसुरा राग गा रहे हैं
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माँ, यकीन करो,मुझे अपनी किसी भी मौसी की भाषा से कोई गुरेज़ नहीं है माँ वो भी तो माँ...सी ही है....!
है न......?
माँ,
यू पी का भैया,मराठी काका,पंजाबी पापाजी,सब आएं है तुम्हें देखने जब से तुम बीमार हो माँ इन से इनकी भाषा में ज़बाब दूँ कैसे ...?
माँ बोली-बेटे,संवेदना,की कोई बोली भाषा नहीं होती उनको मेरे पास भेज दो मैं बात कर लूँ ज़रा उनसे ?
फ़िर सारे लोग मेरी मरणासन्न माँ के पास आए किस भाषा में कुशल-क्षेम की कामना व्यक्त हुई मुझे समझ में नहीं आई....!
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सव्यसाची अब मेरे साथ नहीं हमारे साथ नहीं हैं राज़ की बात ये है की वे सब लोग मेरी माँ को आज भी याद करतें हैं !
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भारत के निर्माण में बिहार,यू.पी.मध्य-प्रदेश,पंजाब,महाराष्ट्र,गुजरात,यानी सभी राज्यों का योगदान है आप को ऐसा क्यों लग रहा है कि केवल आप ही.....!
गाड़ीवान रात भर के सफर पर बैलों से पूछता है:-भाई,नंदियो रात में तुमको बेहद थकान हो गयी लगता है..?
बैल इस बात का ज़बाव देते इसके पहले उसका चितकबरा संकर नस्ल का स्वामी-भक्त बोल पडा-"स्वामी ये तो सो गए थे मैं जागा था....गाड़ी तो.....मैं ही "
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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...