इन दिनों रियलिटी शो का माहौल इस कदर दिमाग पर
हावी है कि कला साधक बच्चों का लक्ष्य केवल रियलिटी शो तक सीमित रह गया है।
अभिभावक जी रियलिटी शो के लिए अपने बच्चों को चुने जाने के सपने में दिन-रात डूबे
रहते हैं।
नृत्य संगीत तक समाज को सीमित रखने वाली इन
ग्लैमरस कार्यक्रमों में संवेदना उनका भरपूर दोहन किया जाता है। दर्शकों के मन में
बच्चे की गरीबी अथवा उसकी अन्य कोई विवशता को प्रदर्शित करके टीआरपी में आसानी से
ऊंचाई हासिल करने का हुनर उन्हें करोड़ों रुपए के विज्ञापनों से लाभ दिलवाता है।
मेरा दावा है कि अगर मौलिक कंपोजीशन पर
केंद्रित गैर फिल्मी गीतों पर आधारित कोई रियलिटी शो आयोजित किया जाए तो ना तो
बच्चे खुद को सक्षम पाएंगे और ना ही अभिभावक ऐसे कार्यक्रमों मैं बच्चों को शामिल
करने की कोशिश करेंगे। टेलीविजन चैनल भी ऐसा करने के लिए ना तो मानसिक रूप से
तैयार है और ना ही उनमें ऐसे काम करने की कोई विशेष योग्यता है।
जबलपुर नगर का ही उदाहरण ले लीजिए। नगर से अब
तक कई बच्चे ऐसे संगीत शो में शामिल हुए हैं परंतु स्थायित्व कितनों को मिला है यह
एक विचारणीय प्रश्न है?
ऐसे रियलिटी शो के कारण दूरदर्शन तथा अन्य
चैनल पर आने वाले क्विज कार्यक्रम भी समाप्त हो चुके हैं। भारत को समझने के लिए
भारत की निगाह चाहिए। परंतु रियलिटी शो के मकड़जाल ने बच्चों को इस कदर जकड़ रखा
है कि वह 100 200 गीत गाकर अपने आपको महान गायक मानने लगे हैं। कुछ गायक तो यह समझते हैं
कि वे अमुक महान गायक के विकल्प हैं। वास्तविकता इससे उलट है। मेरा मानना है की
कराओके पर गाना गा लेना श्रेष्ठ गायकी का कोई पैमाना नहीं होना चाहिए। इन दिनों यह
इडियट बॉक्स केवल कॉपी पेस्ट कलाकार पैदा कर रहा है और उन्हें प्रचारित कर रहा है।
जबकि भारत को लता मंगेशकर मोहम्मद रफी किशोर कुमार कुमार गंधर्व पंडित भीमसेन जोशी
जैसे महान कलाकारों की जरूरत है। मुझे अधिकांश बच्चों के अंतिम लक्ष्य की जानकारी
प्राप्त होने महसूस हुआ संगीत कला के ऊपरी हिस्से तक भी यह बच्चे नहीं पहुंच पाए
हैं। आप जानते हैं कि इन दिनों गीतों की उम्र मुश्किल से एक माह से लेकर अधिकतम 12 माह तक होती है। आजकल गीत देखे जाते हैं ना कि सुने जाते हैं। 50
60 के दशकों में जो गीत रचे जाते थे गाए जाते थे वह आज भी जिंदा है।
मुंबई महा नगरी में जहां गीत दिखाने के लिए बनते हैं वहां केवल और केवल संगीत का
व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है। हाल ही में कुछ शो इस फॉर्मेट पर बनाए गए कि लोग
उस चैनल विशेष का ऐप डाउनलोड करें और अपने मनपसंद कलाकार के लिए वोटिंग करें। इसका
सीधा सीधा लाभ केवल चैनल को हासिल होता है। ऐप डाउनलोड होने से टीआरपी में वृद्धि
होती है और आमदनी भी होती है।
मेरे संस्थान की एक बालिका इशिता तिवारी बच्चों
के किसी रियलिटी शो के लिए सेलेक्ट ना हो पाई तो उसने आकर मुझसे अपना दुख व्यक्त
किया। बच्ची ने यह भी कहा कि मैं योग्य नहीं हूं। इस पर मैंने उसे समझाया बेटा
संगीत महान साधना के बिना हासिल नहीं किया
जा सकता। और उसका मूल्यांकन टीवी चैनल कर
भी नहीं सकते। संगीत साधना कठोर तपस्या की तरह ही होती है। पंडित छन्नूलाल मिश्र
की गायकी उस बच्ची को सुना कर मैंने बताया कि- यह उन महान गायकों में से हैं
जिन्होंने अपनी साधारण आवाज को कर्णप्रिय आवाज के रूप में परिवर्तित कर दिया। ऐसे
महान गायक किसी टीवी शो के मोहताज नहीं थे।
हम अपने संस्थान में कॉपी पेस्ट गीत संगीत को
बिल्कुल महत्व नहीं देते। जब इस देश को अच्छे तैयार कलाकारों की जरूरत है तो हम
क्यों ना ऐसी कोशिशें करें जो क्षणिक प्रसिद्धि दिलाने वाली व्यवसायिक मनोरंजन प्रणाली से बच्चों को मुक्त करें।
इन रियलिटी शोज में जिन बच्चों को मौका नहीं
मिलता वह अपने आप को अयोग्य मानने लगते हैं , यहां तक कि उनके अभिभावक भी यही सोचते हैं कि
मेरे बच्चे में प्रतिभा की कमी है? अभिभावक यह विचार करें की
कॉपी पेस्ट करके या नकल उतार के कौन महान कलाकार बन सका है? बस
अगर इतना आप सोचेंगे तो तय है कि आप रियलिटी शो के इस मकड़जाल से बाहर होंगे।