17.5.22

उपासना अधिनियम विशेष उपबंध 1991 बनाम स्मारक एवं पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958


    उपासना अधिनियम 1991 जो 18 सितंबर 1991 को लागू हो गया है , किस अधिनियम में केवल उपासना स्थल की 15 अगस्त 1947 के पूर्व पश्चात की स्थिति संबंध में विचार विमर्श किया गया है ।
इस अधिनियम के औचित्य पर अब तक विमर्श नहीं किया गया। यह अधिनियम गंभीर चिंतन एवं पुनरीक्षण के लिए आज भी तत्पर है।
    यह अधिनियम केवल उपासना स्थलों पर प्रभावी है न कि उन स्थलों के लिए जो ऐतिहासिक महत्व के हैं। इसे समझने के लिए हमें प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 को पढ़ना चाहिए। पुरावशेषों के संरक्षण के लिए पूरा उसे  अवशेषों को  नियंत्रित करना या हटाया जाना केंद्रीय सरकार की शक्ति में सन्निहित है केंद्र सरकार चाहे तो पूरा अवशेष और को संरक्षित  है। इतना ही नहीं इस अधिनियम की धारा यह भी कहती है कि ऐसे पुरावशेषों के नुकसान और हानि के लिए प्रतिकार का निर्धारण भी किया जा सकता है।
     मोटे तौर पर देखा जाए तो उपासना अधिनियम 1991 ना तो ऊपर वर्णित अधिनियम को अधिक्रमित करता है और ना ही उसे रोकने का कोई प्रावधान इस अधिनियम में किया गया  है। पुरावशेष क्या हो सकते हैं पुरावशेष के रूप में ऐसे या ऐसा सिक्का रूपकृति हस्तलेख,पुरालेख, अथवा अन्य कलाकृति या कारीगरी का काम कोई वस्तु पदार्थ या चीज जो किसी निर्माण या गुफा से विलन है कोई वस्तु पदार्थ चीज या गति युगों  के विज्ञान कला कारीगरियों, साहित्य धर्म रूढ़ियों नैतिक आचार या राजनीतिक दृष्टांत स्वरूप है, अथवा ऐतिहासिक रूचि की कोई वस्तु पदार्थ या चीज तथा कोई वस्तु पदार्थ चीज जिसका इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए पुरावशेष जिसका इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए पुरावशेष होना केंद्रीय सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित किया गया है।
पुरावशेष के संबंध में उल्लिखित उपरोक्त समस्त की परिधि में जो भी संरचना मूर्त अमूर्त रूप में उपलब्ध है 1991 के अधिनियम की सीमा में नहीं आता।
    संरक्षित स्मारक की भी परिभाषा इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से वर्णित है। ऐसे स्मारकों का अनुरक्षण अभी रक्षा के संदर्भ में यह अधिनियम पठनीय रही है ताकि आप स्पष्ट रूप से एएसआई के कार्यों और कर्तव्य को समझ सके। 1991 का अधिनियम के अध्ययन में मुझे ऐसी कोई बात दृष्टिगोचर नहीं हुई जो किसी ऐतिहासिक विवरण के आधार पर चिन्हित पुरावशेष के लिए किसी को भी ऐसा अधिकार नहीं देता कि वह 100 वर्ष पूर्व के पुरावशेष के महत्व को और उस पर किए जाने वाले परीक्षण के लिए बाधा उत्पन्न करता हो।
    आप अगर विगत 100 वर्षों से अब तक की परिस्थितियों का अध्ययन करें तो आप वस्तुतः भारतीय सांस्कृतिक पुरातात्विक विरासतों को की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की परीक्षा करना चाहते हैं तो उसमें कोई भी कानूनी बाधा नहीं प्रतीत होती। ऐसी मेरी धारणा है हो सकता है कि इस अभिव्यक्ति का लीगल नजरिया कुछ और हो यह विधिवेत्ताओं का विषय होगा ।


 

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