उसे रुको वह सच बोल रहा है.....! पुख्ता मकानों की छतें खोल रहा है

"रोको उसे वह सच बोल रहा है, पुख़्ता मकानों की छतें खोल रहा है"
     जबलपुर के एक मशहूर सिंगर जिन्हें आप जानते हैं जी हां चाचा लुकमान के शागिर्द शेषाद्री अय्यर ने जब अपने प्रोग्राम में यह शेर पढ़ा कि  "रोको उसे वह सच बोल रहा है, पुख़्ता मकानों की छतें खोल रहा है" बेशक यह शेर बहुत मजबूत है मेरे जेहन की दीवार पर पुश्तैनी खूंटी की तरह लगा हुआ है। सोच रहा था कि पर कभी कोई आर्टिकल लिख कर टांग दूंगा 10 साल पहले से ही याद रखा है शेर को और आज टांग रहा हूं एक टिप्पणी हामिद मीर के साथ हुए हादसे के बहाने बोलने की आजादी पर लिखे गए इस आर्टिकल को..
यह तस्वीर जो आप देख रहे हैं इन दिनों अखबारों में जो वीडियो आप देख रहे हैं पाकिस्तान से आने वाले वीडियो पाकिस्तान के सहाफी जिओटीवी के मशहूर पत्रकार हमिद मीर साहब के है। हामिद मीर एक बेहतरीन तरक्की पसंद और स्पष्ट वादी पत्रकार हैं। उनके आर्टिकल्स इंडियन विदेशों में भी शाया हुआ करते हैं । 
  भारतीय जर्नलिज्म के समानांतर अगर हम अपने हमसाया मुल्क के पत्रकारों के बारे में सोचें तो उन्हें कहने का बात करने का स्वतंत्र अभिव्यक्ति का कोई हक वाज़े तौर पर हासिल नहीं है । यहां अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल उठाने वाले बहुत दूर ना जाए चीन और पाकिस्तान के उदाहरणों से समझने की कोशिश करें कि किस तरह से हर लफ्ज़ पाबंद है।
हर लफ्ज़ पर पाबंदी लगाना इन दोनों मुल्कों की आदत में शुमार है। एक मीडिया इंटरव्यू में  पाकिस्तान के अब्दुल समद याकूब जो रूलिंग पार्टी यानी पीटीआई के ऑफिशियल प्रवक्ता हैं खुलकर कहते हैं कि-" हामिद मीर के साथ जो हुआ वह किसी भी मायने में दुरुस्त नहीं है। हालांकि यह उनकी निजी राय है परंतु वह यह बताते हैं कि प्राइम मिनिस्टर इमरान खान नियाजी जी उनके बेहतरीन दोस्त हैं.. 
    एक अन्य पत्रकार जनाब कस्वर क्लासरा कहते हैं कि हामिद मीर साहब के साथ जो हुआ गलत हुआ लेकिन उन्होंने पाकिस्तानी आर्मी और आईएसआई पर जो इल्ज़ामात लगाए हैं उनके सबूत देना चाहिए था मीर साहब को। इस पर अपना ओपिनियन देते हुए तारेक फतह लगभग हंसते हुए कहते हैं कि एक पाकिस्तानी पत्रकार किस तरह से अपने बचाव में क्या कुछ सबूत ला सकता है ? 
   उधर टैग टीवी के ताहिर गोरा अपने थर्ड ओपिनियन प्रोग्राम में बैरिस्टर हमीद बसानी से इस पर टिप्पणी लेते हैं तो बसानी साहब सीधे तौर पर पाकिस्तानी गवर्नमेंट को फौज को आईएसआई को फासीवाद के खाने में रख देते हैं।
पीटीआई के प्रवक्ता आई याकूब ने जो कहा उससे स्पष्ट हो जाता है कि-" भले ही पाकिस्तान की डेमोक्रेटिक सरकार या उसके प्रधानमंत्री भी कुछ कहना चाहते हैं परंतु नहीं कह सकते"  इसका  मतलब है कि आईएसआई और फौज का दबदबा बोलने की आजादी लिखने की आजादी पर भारी पड़ रहा है यहां तक कि पाकिस्तान के आईन भी।
  खुदा का शुक्र है कि हिंदुस्तान में वह तमाम बातें नहीं है जो हमसाए मुल्क में हैं। हमसाया मुल्क वहां के लोग किन-किन बंदिशों में इसका अंदाजा आप इस तरह लगा सकते हैं। इसी मौजूद पर एक शेर कहने को जी चाहता है
कहने को तो शहंशाह है, अपने वतन का वो...
उसकी ज़ुबाँ पे लटके डालो को  देखिए..!
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

टिप्पणियाँ

कविता रावत ने कहा…
आदमी की कुंडली देख उससे बात करने/कहने का चलन सब जगह है
लटके तालों को देखिये होना चाहिये शायद। सच बोलना कहते ही कुछ अजीब सी खुश्बू आने लगती है।

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