महिला दिवस के पूर्व माँ दुर्गावती का स्मरण
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पग में लोहा बांध के
मस्तक कील सजाय
करधन बाँकैं अस्तर सबै
संग कटार छिपाए ।।
सरमन हौदा चढ़ गई
सुत बांधे माँ पीठ ।
मरहुँ पै झुखिबो नहीं
जा गौंड वंश की रीत ।
दक्कन के राजा कहें
नहिं आवा सुल्तान ?
कहे विदूषक नाच कै
पकड़े दुर्गा नै कान ।।
तपोभूमि जाबालि की
तँह रेवा को खण्ड ।
शिव दीन्हें आसीरबचन
दीनहुँ सुराज अखंड ।।
रानी के समराज में-
सुख वैभव चहुँ ओर ।
स्वर्ण मणि धनधान्य से
हर घर कोष अछोर ।।
फाग बरेदी ढिमरयाई कौ
गांवन गांवन शोर ।
न चोरी को भय कहूँ
खुले द्वार चहुँ ओर ।।
सुबह सुबह लमटेर से
गुंजित रेवा के तीर ।
कहुँ रेवा शांत सरल
कहुँ माँ व्यग्र अधीर ।।
रेवा की अनुरागिनी
दुर्गा नित दें सुख दान।
ज्ञानीजन के पूजे पगा
कर ग्राम भूमि धन दान ।।
चौंसठ जोगिन धाम को दुर्गा सदा सहाय ।
भाई आधार सिंह नित सत्कर्म सुझाय ।।
बरगी के चानक्य नै
गोंडन राज बिठाए ।
बामन गोंडन के प्रेम से
दुनिया झुलसी जाय ।।
ग्यारा सदी में सूर्य सम
मदन शाह को राज ।
बावन गढ़ वनवाय कै
बने मदन महाराज ।।
ग्राम्य कवि गावन लगे
इक थो बहादुर बाज़ ।
दुर्गा नै पर कांट कय
छीनो मालव को राज ।।
मातु नरमदा के तीर तट
सुत संगराम दलपत भये
गोंडवंश के बीर ।।
शेरशाह सूरी सहित मुगल में भड़कन लागी पीर ।।
खान मियाना ललचा गयो
गढ़ मंडला चढ़ धाय ।
रानी की रणनीति ने
लीन्हों बंदी बनाय ।।
सुन सखि ऐसी दुर्गावती
देवी दुर्गा को रूप ।
चेहरा कोउ न लख सकै
कोउ कामी नर नै भूप ।।
रानी के समराज में
नहिं जात पात को भेद ।
बाम्हन कायथ गोंड सब लगें
एक जात इक देश ।।
रानी नै होती अगर, दक्कन तलक
होत मुगलिया राज ।
जैसे हम सब आज हैं
वैसे होते न आज ।।
तबहुँ कहै कविराय मुकुल
दुर्गा को प्रतिपल पूजो ।
नारी-महिमा गान सम
गान नहिं कोई दूजो ।।