ब्रिटिश भारत के दौर में जब शिक्षा का आंकड़ा बहुत कमजोर था तब जबकि समाज बेहद जटिल समस्याओं से भी जूझ रहा था पर गांधी ने चरखी और तकलीफ पर कते सूत से पूरे देश को एक करने की कोशिश की । गांधी जी पर बहुत सारे सवाल उठते हैं उनसे आज के दौर को कोई लेना देना नहीं क्योंकि गांधी अंतरराष्ट्रीय चेहरा बन चुके हैं । ज़िद्दी तो प्रिटोरिया में भी थे महात्मा जब उन्हें फर्स्ट क्लास के डब्बे से बाहर कर दिया था और उन्होंने अपने हक की लड़ाई शुरू कर दी पहला आंदोलन का युवा गांधी का बेशक और वह भी दक्षिण अफ्रीका में ?
फिर वहां से यानी अफ्रीका से लौटे समाज के नायक ज़िद्दी गांधी ने नमक बना दिया खादी पहना दी और कहा कि स्वतंत्रता से पहले स्वच्छता जरूरी है हम उसे कैसे भूल सकते हैं । गांधी की व्यवसाई बुद्धि तो थी क्यों ना होती कम लागत पर अधिक लाभ आजादी का युद्ध कुछ इसी तरह से लड़ने के लिए प्रेरित किया न ज़्यादा खून बहाने की जरूरत महसूस की थी उनने भले ही बाद में कहना पड़ा करो या मरो की भी एक सीमा थी होती भी है पर विपरीत ध्रुव पर खड़े नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें अपना द्रोणाचार्य माना गांधी के प्रयोग के साथ साथ गरम दल के लोगों ने भी वही किया जो करना था बेशक युद्ध क्या संघर्ष क्या आंदोलन क्या गांधी तो वही सा के लिए प्रतिबद्ध थे और परिणाम आप देख रहे हैं यहां उन वीर शहीदों को अनदेखा नहीं कर रहा हूं जिन्होंने दायर की गोलियां खाई या आजाद हिंद सेनानी के रूप में अपना बलिदान दिया होना भी यही चाहिए पूर्ण प्राथमिकता के साथ ऐसे शहीदों को नमन करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता भी होनी चाहिए । केवल हिंसा नहीं जरूरत पड़ने पर कृष्ण भी बनो जो हमेशा जरूरी भी है....
कुछ बातें कुछ मुद्दे और कुछ तर्क गांधी जी के जीवन को कटघरे में भले ही खड़ा कर दें परंतु औसतन महात्मा के व्यक्तित्व को देखा जाए तो वे विश्व के सबसे ज्यादा चर्चित और मोहक व्यक्तित्व को पेश करने में सफल हुए । 150 साल 150 साल बहुत बड़ी अवधि है.. !
हां यह सच है कि गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में स्वतंत्रता और सेल्फ रिस्पेक्ट यानी आत्म सम्मान की रक्षा के लिए डिफेंसिव आक्रमण किया और आक्रमण भी अनोखा सत्याग्रह अहिंसा ऐसे अस्त्रों का प्रयोग केवल और केवल महात्मा ही कर सकते थे आज भी गांधीजी इसीलिए जरूरी है । एक आयातित विचार पोषक साहित्यकार सह पत्रकार ने पंद्रह साल पहले अपने भाषण में जब गांधी जी को सामयिक बताया उस दिन मैं अवाक रह गया था ! अवाक रहना स्वभाविक था गांधी जी के सिद्धांतों से सुविधाजनक दूरी बनाए रखने वाले विचारकों ने गांधी को जरूरी बता दिया तब मुझे लगा कि वर्तमान में भी इन विचारकों के दिमाग में हिचकिचाहट है वह स्वीकार नहीं पा रहे हैं कि गांधी आज के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि भविष्य के लिए भी अति महत्वपूर्ण हैं । महात्मा का सार्वकालिक होना स्वभाविक है । गांधीवाद भारतीय सामाजिक व्यवस्था पर बेहद सकारात्मक असर छोड़ता है । जब ग्रामोद्योग की बात चलती है तब लगता है कितना सच सोच रहे थे तत्कालीन लोकनायक महात्मा गांधी । अगर महात्मा गांधी में इतनी सकारात्मक सोच ना होती तो उनका लोकप्रिय होना भी नामुमकिन था सार्वजनिक स्वीकृति की बात तो बहुत दूर हो जाती है परंतु कुछ लोगों को छोड़कर महात्मा जी को सार्वजनिक स्वीकृति मिली है इसे कोई नकार नहीं सकता । गोलमेज सम्मेलन और फिर सिलसिलेवार हुए अहिंसक आंदोलनों सड़कों पर आंदोलनकारियों ने अपनी ओर से रक्त पात नहीं कराया ।