2.10.19

और बापू मुस्कुराए : भाग 1

और बापू मुस्कुराए आलेख का प्रथम भाग आपके समक्ष पेश है स्वर्गीय महात्मा गांधी के जीवन से जो मुझे हासिल हुआ उसे लिखने की कोशिश कर रहा हूं
*और बापू मुस्कुराए*
बापू तुमने बरसों पहले कहा होगा पिछली शताब्दी में मैंने उसे अपनी विचारों की गठरी में रख लिया था .... रखता भी क्यों ना ?
गठरी खाली थी और रखता भी क्या खाली जगह में अच्छी चीजें ही अच्छी लगती है ना ?
अब बताओ क्या बंदूके रखता चाकू छुरी रखता बम पटाखे रखता नहीं यह मुझसे नहीं होता माँ ने रखवाईं... थीं...बहुत सारी कहानियां कुछ हरिश्चंद्र की कुछ बालक ध्रुव की,  राम की कहानी कृष्ण की भी तो रखवाईं थीं कहानियाँ और तुम्हारी बातें भी बापू जी ।
    उन सबको मैंने संभाल कर रख लिया ।
    अजीब हो तुम किसी से लड़ने भी नहीं देते क्यों करूं गाल उसके सामने जो मुझे मार रहा है...?
उस दिन की घटना याद है जब मुझे मेरी एक बदतमीज साथी ने अपमानित किया था ?
       सच बताऊं उस दिन सोचा था कि मैं अपनी गठरी से पत्थर निकालूं और मार दूँ..!
               पर यह ना हो सका शिव समझकर मैंने उसे अपनी गठरी में जो रखा था अब जब शिव समझ ही लिया है तो फिर उसे जाने क्यों दूं फिर लगा तमाचे जड़ देता हूं...?
     यह भी नहीं हो सका मां ने कहा था - "अहिंसा बहुत बड़ा आयुध है..!"
      पोटली में अहिंसा बांधी थी पर मिली नहीं मैं घबरा गया लगभग रुआंसा हो गया था । तभी तुमने पीछे से पीठ थपथपा कर कहा था- "बेटे... तुम्हारे जिस्म में विलीन हो गई है वह शंकर जी की बटैया जो तुम नर्मदा के भीतर से लाए थे.. और आप उसका कण-कण तुम्हारे ज़ेहन में बस चुका है ... अब तुम कुछ नहीं कर सकती हाथों में पिस्तौल भी होना तो गोली नहीं चला पाओगे फिर पत्थर फेंकना क्यों चाहती हो"
याद है न मैंने कहा था - प्रतिकार लेना है !

  1. इस पर तुमने कहा था उसे उपहार दे दो । मैंने वही तो किया था बापू तब तुम मुस्कुराए थे । वहीं मृदुल स्मित मुस्कान मेरे ज़ेहन में आज तक चस्पा है । बापू आज बहुत दिनों के बाद बच्चों ने पूरे उत्साह के साथ वही प्रतिमा गढ़ कर लाए... तो लगा कि तुम अमर हो तुम्हारी मुस्कान अमर है पावन हो पवित्र हो मैं तुम्हें क्या दे सकता हूं सिवाय भावपूर्ण नमन के..!

*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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