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जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीवन एक मृत्यु पथ है.. और तुम मृत्युंजय नहीं हो

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तुम मैं   हम सब उधर ही जा रहें हैं जहां अंतिम सत्य प्रतीक्षा कर रहा है.. अहर्निश चलते चलो रुको मत घबराओ मत जीत लो समय को कहते हैं कि समय बलवान है बलवान से लड़ो परास्त करो उसे उस पर हावी रहो जो कहना है खुल के कहो... जो करना   है खुल के करो ... प्रेम करो ....... सब प्रेम चाहते हैं.. दुश्मन से भी ........ उसे मारो मत ..... क्योंकि वो भी # मृत्यु _ पथचारी है तुम्हारी तरह ... चलो उठो ........ मृत्यु एक नायिका है.. अभिसारिका सी प्रतीक्षारत है...यह मिलन देवताओं को भी नसीब कहाँ ?   जन्म से उससे मिलन पलों   के बीच बहुत ही ज़रा सा समय मिला है.. आनंद में बिता दो ... ! आनंद मिलेगा किन्नर अपाहिज , कमजोर , को सम्मान देने में. आनंद मिलेगा शरसेज पर लेटने में .. झूठ नहीं सत्य है. अद्वैत में एक है दूजा कोई नहीं तो वो अछूत ये विशुद्ध कैसा ? वो दलित क्यों ? प्राण ही है न तुम शरीर के सेवक मत बनो तुम प्राणों के दास बनो दास बनाना बुरा नहीं दास बनाना बुरा है । दास बनाके स्वामित्व का बोध होता है तुमको स्वामित्व सत्ता का एहसास कराता है सत्ता हिंसा के मार्ग का दर्शन कराती है । हिंसक मत बनो ऐ

बरगी बांध के सारे गेट खुलने का फर्जी वीडियो वायरल हुआ…!

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निरंतर जारी बारिश के मद्देनजर आज 24 जुलाई 2018 को प्रात: 11:30   बजे सारे 21 गेट खोलने पड़े । किन्तु ऐसी खबर गलत पाई गई . सोशल मीडिया पर धजी का सांप बनते देर नहीं लगती . बरगी बांध के सारे गेट खुलने का फर्जी   वीडियो वायरल हुआ . यह वीडिओ दिन भर वाट्सएप महाराज इधर से उधर घुमाते फिराते रहे . लोग भी नमक पे मिर्च मिर्च पे चायनीज़ मसाला , चायनीज़ मसाले पे देशी चाट मसाला डालते आगे भेजते नजर आए . मज़े की बात ये है कि इंसानी फितरत भी अजीब है. मार्क टुली कहते थे भारत में अफवाहें सर्वाधिक तेज़ी से फैलतीं हैं. मार्क टुली सही फरमा गए आज का दौर ठीक उसी बात को पुष्टिकृत करती है. न केवल पुष्टि करती है अपितु इस बात का भी खुलासा करती है कि तकनीकी के सहारे तो अफवाहें आम इंसानी दिलो-दिमाग पर बुरी तरह हावी है. कुल मिला के अफवाहें अब उन पर राज करतीं हैं. इन अफवाहों का दिमागों पर क्या असर होगा वायरल करने वालों को गोया मालूम नहीं . और जिनको मालूम है वे इसी का लाभ उठाते अपने अपने उल्लूओं को एकदम सीधा करने में लगे हुए हैं. उनके अपने नफे नुकसान हैं पर समाज का जो हिस्सा सहज हिप्नोटाईज हो जाता है उस

बाल विकास भविष्य के आदर्श भारत की आधारशिला है : पूर्व महाप्रबंधक भारतीय रेल सेवा डॉ आलोक दवे

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          " बच्चों में सदाचार वृत्तियों का बीजारोपण करने का दायित्व माता-पिता का ही है । बदलते परिवेश में अब अधिक सजगता एवम सतर्कता की ज़रूरत है ।आज संचार माध्यमों के ज़रिए जो कुछ भी हासिल हो रहा है उससे बच्चों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को लेकर हर अभिभावकों में चिंता व्याप्त है । अब ज़रूरत है 5 से 10 वर्ष की आयु तक के बच्चों से सतत संवाद करते रहने की क्योंकि हर बच्चा अनमोल है" - तदाशय के विचार पूर्व महाप्रबंधक भारतीय रेल सेवा डॉ आलोक दवे ने बालभवन में आयोजित *बदलते सामाजिक परिवेश में अभिभावकों के दायित्व* विषय पर आयोजित आमंत्रित   अभिभावकों के सम्मेलन में बोल रहे थे । श्री दवे सेवा निवृत्ति के उपरांत सत्य साईं सेवा समिति में बालविकास की गतिविधियों के लिए मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी हैं । सम्मेलन का शुभारंभ करते हुये संस्कार शिक्षा प्रशिक्षक (मानसेवी) डॉ. अपर्णा तिवारी , ने बालभवन में 2010 से संचालित संस्कार कक्षाओं का संक्षिप्त विवरण देते हुए सम्पूर्ण बाल विकास में बच्चों के लिए संस्कार शिक्षा की उपयोगिता एवम औचित्य पर विस्तार से विचार रख

नीरज जी को नमन

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*गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी* *ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए* इस गीत ने नीरज जी का दीवाना बना दिया मुझे । मित्रो नीरज जी का जबलपुर आना जाना उस दौर में लगा रहता था जब हम भी स्कूल और कॉलेज के दौर में थे । दरअस्ल उस दौर का युवा कान्वेन्ट वाला न था । उसे सुकोमल भावना को पल्लवित पुष्पित करने हिंदी कविता के इर्दगिर्द होना पसंद था । *नीरज जी के सुरों पर सवार शब्दों के शहज़ादे शाहज़ादियाँ जब उन्मुक्त होकर वातावरण में छाते तो प्रकृति संगीत देती नीरज जी का सृजन दिलो-दिमाग और छा जाता .* आज भी वे मंज़र आ जाते हैं सामने । नीरज जी जैसे लोग आज के मंचीय वातावरण के लिए चुनौती थे । उस दौर में सियासी नज़रिए से कम ही लिखा पढ़ा जाता था न ही मंच पर टोटके होते है । दौर अदभुत था कविवर सिरमौर थे दिल दिमाग में जिंदा हैं और रहेंगे नीरज जी विनत श्रद्धा सुमन अर्पित हैं अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए। प्य

क्वांटम फिज़िक्स और वेदांत फिलॉसफी : सलिल समाधिया का शोध आलेख

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आम तो कतई नहीं ख़ास हैं सलिल समाधिया  फेसबुक पर इन दिनों मेरे मित्र सलिल समाधिया के चर्चे हैं. लोग उनकी पोस्ट का इंतज़ार करते हैं.. जबलपुरिया भाषा में कहूं तो तके रहत हैं. एक पोस्ट का मुझे भी इंतज़ार था आज आ भी गई. फेसबुक पर  इन शब्दों से शुरू पोस्ट    ये रही वो पोस्ट , जिसका सबको इंतजार था.. क्वांटम फिज़िक्स और वेदांत फिलॉसफी पर हमारा Research Article... आत्मा क्या है , चेतना क्या है , अहम क्या है , द्वैत क्या है , मृत्यु क्या है , बुद्धत्त्व क्या है ?? बुद्ध , ओशो , जे. कृष्णमूर्ति , ऑरोबिंदो , विवेकानंद क्या कहना चाहते हैं , वे किस और इंगित कर रहे हैं ?? इन गूढ़ आध्यात्मिक बातों पर 2018 तक की front-line scientific findings क्या कहती हैं ? क्या विश्व में अंतिम क्रांति "आध्यात्मिक क्रांति" सम्भव है ? मैं पूरे ऐतबार के साथ ये बात कह सकता हूं कि आने वाले युग में सिर्फ ..वही धर्म चलेगा जिसके पास पदार्थ और चेतना ( matter & consciousness के unified होने का समग्र विज्ञान हो.. 21 वीं सदी में पूरा विश्व सिर्फ उसी धर्म को accept करेगा..... जिसकी epistemology. On