सुकुमा काण्ड पर तीन कविताएँ
आतंकवादी वृथा कल्पनाओ से डरे सहमे बेतरतीब बेढंगे नकारात्मक विचारो का सैलाब शुष्क पथरीली संवेदना कटीले विचारो से लहू-लुहान सूखी-बंज़र भावनाओ का निर्मम " प्रहार " कोरी भावुकता रिश्ते रेत सामान हरियाली असमय वीरान उजड़ता घरोंदा बिखरते अरमान टूटती-उखड़ती साँसे जीवन " बेज़ान " स्वयं से डरी सहमी अंतरात्मा औरो को डराती शुष्क पथरीली पिशाची आत्मा का " अठ्ठाहास " वृथा कल्पनाओ से डरे सहमे बेतरतीब बेढंगे आतंकवादी सब के सब एक सामान आतंकवादी....... भगवानदास गुहा , रायपुर छत्तीसगढ़ मैं खामोश बस्तर हूँ , लेकिन आज बोल रहा हूँ। अपना एक-एक जख्म खोल रहा हूँ। मैं उड़ीसा , आंध्र , महाराष्ट्र की सीमा से टकराता हूँ। लेकिन कभी नहीं घबराता हूँ दरिन्दे सीमा पार करके मेरी छाती में आते हैं। लेकिन महुआ नहीं लहू पीकर जाते हैं। मैं अपनी खूबसूरत वादियों को टटोल रहा हूँ मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब लेकिन आज बोल रहा हूँ। गु