भारतरत्न श्रीयुत अटलबिहारी बाजपेई जी जन्म दिवस 25 दिसंबर भारतीय जहां जाता है , वहां लक्ष्मी की साधना में लग जाता है. मगर इस देश में उगते ही ऐसा लगता है कि उसकी प्रतिभा कुंठित हो जाती है. भारत जमीन का टुकड़ा नहीं , जीता-जागता राष्ट्रपुरुष है. हिमालय इसका मस्तक है , गौरीशंकर शिखा है , कश्मीर किरीट है , पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं. दिल्ली इसका दिल है. विन्ध्याचल कटि है , नर्मदा करधनी है. पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएं हैं. कन्याकुमारी इसके चरण हैं , सागर इसके पग पखारता है. पावस के काले-काले मेघ इसके कुंतल केश हैं. चांद और सूरज इसकी आरती उतारते हैं , मलयानिल चंवर घुलता है. यह वन्दन की भूमि है , अभिनन्दन की भूमि है. यह तर्पण की भूमि है , यह अर्पण की भूमि है. इसका कंकर-कंकर शंकर है , इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है. हम जिएंगे तो इसके लिए , मरेंगे तो इसके लिए. यह कथन कवि हृदय राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी का है. वह कहते हैं , अमावस के अभेद्य अंधकार का अंतःकरण पूर्णिमा की उज्ज्वलता का स्मरण कर थर्रा उठता है. निराशा की अमावस की गहन निशा के अंधकार में हम अपना मस्तक आत्म-गौरव के साथ