ऋषिकेश मुंजे |
यही
नहीं..वेदों के अध्यायों ,श्लोकों एवं मंत्रों को भी
बड़ी सहजता से उद्ध्रित करते हैं । इस्लामिक विद्वान तो हैं ही साथ ही सनातन एवं ईसाई
धर्मों पर भी अच्छी पकड़ है। अपने तर्कों के द्वारा ये हर हाल में इस्लाम को सभी धर्मों
से श्रेष्ठ बताने में कोई कसर बाकी नहीं रखते हैं।...चलिए ये भी ठीक है...सभी धर्म
प्रचारक अपने अपने धर्मों को अच्छा ही साबित करना चाहते हैं। परंतु..अभी कुछ ही दिनों
पहले मैंने कहीं ये पढ़ा कि ये जनाब तो बिल्कुल ही गलत तरीकों से तथ्यों को तोड़ मरोड़
कर अपने मन मुताबिक बनाकर पेश कर देते हैं।...और ये काम अनजाने में नहीं ..बल्कि एक
"साजिश" के तहत करते हैं...जिसमें अर्थ का अनर्थ लगा कर इस्लाम को सभी धर्मों
की जननी के तौर पर बताते हैं। ये बातें तब और पुख्ता हुई जब एक न्यूज चैनल ने भी यही
बात बताई । मैं हैरान था कि ऐसे विद्वान व्यक्ति को ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी? ..
दुनिया जानती है कि इस्लाम धर्म की स्थापना हजरत मुहम्मद साहब ने की थी जिनका जन्म 570 ईस्वी में हुआ था ।...बावजूद इसके सनातन धर्म के वेदों - पुराणों में से "अन्य धार्मिक शब्दों" को ढूंढ कर निकालना कितनी बड़ी मूर्खता है? उसे यह भी परवाह नहीं की लोग उसकी विद्वता पर भी शक करेंगे।
दुनिया जानती है कि इस्लाम धर्म की स्थापना हजरत मुहम्मद साहब ने की थी जिनका जन्म 570 ईस्वी में हुआ था ।...बावजूद इसके सनातन धर्म के वेदों - पुराणों में से "अन्य धार्मिक शब्दों" को ढूंढ कर निकालना कितनी बड़ी मूर्खता है? उसे यह भी परवाह नहीं की लोग उसकी विद्वता पर भी शक करेंगे।
अब जरा उदाहरण देखिए...."यजुर्वेद" का एक श्लोक है....
"पश्येम् शरदः शतम जीवेम शरदः शतम ,
श्रुणुयां शरदः शतं प्रब्रवाम शरद शतमदीना"।
(अध्याय ३६,मंत्र २४)
अब जाकिर नाईक इस श्लोक के आधार पर यह बताता है कि..
" वेद भी यह मानता है कि हमें सौ साल तक "मदीना"में रहना चाहिए"।
उसे "शतमदीना"में "मदीना" दिखता है।जबकि यह शब्द "शतम्"और
"अदीना" से मिलकर बना है.."शतमदीना"।...
इस श्लोक का सही अर्थ है..." हे ईश्वर! हम सौ वर्षों की आयु तक भली भाँति
देख सकें..स्वस्थ होकर जी सकें..और सौ वर्षों में कभी दीन बन कर ना रहें,किसी के आगे लाचार नहीं रहें..ऐसा जीवन हम जी सकें"।
अब दूसरा उदाहरण "मनु स्मृति" से है.......
"मौलान् शाश्त्रविद् शूरान लब्ध लक्षान कुलोद्गतान्" । (गृहाश्रम प्रकरण ,श्लोक २९)
जाकिर नाईक इसका अर्थ यह निकालता है कि...
" हर बात मौलाना से पूछ कर ही करना चाहिए"। इसमें "मौलान" को
"मौलाना" बताता है।
जबकि सही अर्थ है...."किसी क्षेत्र के रीति रिवाज के बारे में जानकारी के
लिए वहाँ के किसी मूल निवासी , शास्त्रविद् या कुलीन व्यक्ति
से ही प्रश्न करें"।
अब तीसरा उदाहरण ऋगवेद से है......
"तेनोरासन्ता मुरूगायमद्य यूयं पात् स्वस्थिभिः सदा"। ( मंडल ७,सूक्त ३५,
मंत्र १५).
नाईक बताता है कि .." वेद के अनुसार मुरगा खाओ और मद्य (शराब) पीकर खुशी मनाओ"।.....
जबकि इसका सही अर्थ है...." हे ईश्वर! आज आप हमारे लिए कीर्ति प्रदान करने
वाली विद्या का उपदेश दें ,
और हमारी रक्षा करें"।
ऐसे ही कई श्लोंको का गलत अर्थ बताकर अपने श्रोताओं को खुश करता रहता है
एवं कभी कभार विशेष रूप से आमंत्रित गैर मुस्लिमों को भी भ्रमित कर अपने धर्म को श्रेष्ठ
साबित करता है ।
संभवतः ये बातें कुछ लोगों को पहले से पता हो,परंतु मैं अभी तक तो अनभिज्ञ ही था ।