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शुक्रवार, जुलाई 08, 2016

बच्चो जो निरंतर काम करता है वो हारता नहीं.. जीतता है ...


प्रिय बच्चो ,
             सबको ढेर सारा प्यार
          चकमक से आप का जुड़ जाना मुझे बहुत अच्छा लगा . प्यारे बच्चों मैं बालभवन जबलपुर में नन्हे मुन्नों का मित्र हूँ.   मेरे कमरे में साहित्य कक्षा भी लगती है.  बच्चे कविता,कहानी, लेख, लिखने के गुर सीखते हैं. शिप्रा दीदी अपने कमरे में गाना-वाना सिखातीं हैं, सोमनाथ जी तबला सिखाते हैं तो रेनू दीदी वाह क्या कहने वो तो कमाल हैं पेंटिंग, हस्तकला, मूर्तिकला, सिखातीं हैं. इन दिनों बच्चों को हमने कई बातें सिखाईं और उनसे ढेर सारी अच्छी बातें सीखीं . इस साल हमारे शिवा ने बालभवन गीत लिखा जिसे मध्य-प्रदेश के सभी बालभवनों का गीत के रूप में स्वीकार लिया. और हाँ इस गीत को गाया है आपके सत्शुभ्र मिश्रा अंकल ने जो खुद मेरी तरह विभाग के ऑफिसर हैं. बच्चो हम बड़े हो गए ... पर सच हम बच्चे नहीं बन पाएंगे... पर  हम लकी हैं जो आपके  आप सबके बीच  हैं अपने बीते बचपन को आप सबमें देख पा रहे हैं. आप सब आने वाले कल को सुन्दर बनायेंगे न तो कुछ बातें ज़रूर सोचना ....... जानते हो क्या सोचना है... आपको सोचना है... अगर कामयाब बनाना है तो कामयाबी के लिए कोई शार्ट-कट रास्ते नहीं होते ... कामयाबी के रास्ते कठिन लंबे होते हैं पर साफ़-सुथरे होते हैं. मुझे एक कामयाब आयकान ने हमेशा आकर्षित किया.. जानते हो वो कौन है... ? बिलकुल सही सोचा आपने .... मिसाइल मैन कलाम, साहब. वे सिर्फ काम पर भरोसा करते थे ..  है ..न...!
एक थी हेलेन केलर उनकी टीचर एनी सुलिवाना  ने उनको विश्व में एक महान हस्ती बनाया 1900 वाली शताब्दी की शुरुआत को महान बनाने वाली उस महान टीचर एनी सुलिवाना को आज की शिक्षा प्रणाली पुन: सामने शायद ही लाए . पर जानते हो अपने  बालभवन की दो टीचर शिप्रा और रेनू में वो अदभुत बात नज़र आती है. एक की मेहनत से एक मध्यम वर्गीय रोहित गुप्ता  तथा एक साधारण परिवार का बेटा शुभमराज़ अहिरवार   को बालश्री विजेता बनाया और एक दिव्यांग बच्चे अंकित को मूर्तिकार तो शिप्रा दीदी के छात्र संतलाल पाठक  जो नेत्र-दिव्यांग हैं कोबालश्री के योग्य बनाया.     वे ढेरों दिव्यांगों को संगीत का ज्ञान कराने में कसर न छोड़तीं.   
बच्चो जो निरंतर काम करता है वो हारता नहीं.. जीतता है ... हमेशा जीतता है.. चलिए जाते जाते एक गीत दे रहा हूँ ... जिसे आप सब ज़ल्द ही सुनेंगे अपने बचपन की यादों से जुड़ा गीत गौरैया.. बचाओ अभियान के लिए लिखा है.. अच्छा लगेगा बालभवन का हर बच्चा गाता है इसे सबको याद हो गया है शिप्रा दीदी ने सिखाया है सबको .....   
फुदक चिरैया उड़ गई भैया
माँ कहती थी आ गौरैया
कनकी चांवल खा गौरैया 
         
उड़ गई भैया  उड़ गई भैया ..!!

पंखे से टकराई थी तो 
         काकी चुनका लाई थी  !
दादी ने रुई के फाहे से
जल बूंदे टपकाई थी !!
होश में आई जब गौरैया उड़ गई भैया  उड़ गई भैया ..!!

गेंहू चावल ज्वार बाजरा
पापड़- वापड़, अमकरियाँ ,
पलक झपकते चौंच में चुग्गा
भर लेतीं थीं जो चिड़ियाँ !!
चिकचिक हल्ला करतीं  - आँगन आँगन गौरैया ...!!

जंगला साफ़ करो न साजन
चिड़िया का घर बना वहां ..!
जो तोड़ोगे घर इनका तुम
भटकेंगी ये कहाँ कहाँ ?
अंडे सेने दो इनको तुम  अपनी प्यारी गौरैया ...!!

हर जंगले में जाली लग गई
आँगन से चुग्गा  भी  गुम...!
बच्चे सब परदेश निकल गए-
घर में शेष रहे हम तुम ....!!
न तो घर में रौनक बाक़ी, न आंगन में गौरैया ...!!
शेष फिर कभी
नमस्ते
आपका
गिरीश बिल्लोरे



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