प्रिय से मिलना जो पूजा है, लोग हमें क्यों रोक रहे .
हिलमिल के पूजन कर लें, दर्द रहे न शोक रहे . !
जब जब मौसम हुआ चुनावी, पलपल द्वार बजाते थे-
जैसे ही ये मौसम बदला,हम चिल्लर न थोक रहे .!!
बहन-बेटियाँ पेश करो ! शर्म न आई बेशर्मो –
भीड़ के जाहिल देखो कैसे जोर से ताली ठोक रहे ..?
लाखों प्राण निगलने वाले- झुलसाते हैं घाटी को –
बाईस इनके मरे तो देखो कैसे छाती ठोक रहे ?मनमानस के बंटवारे को, कैंची जैसी चली जुबां -
लाल माई के अब तो जागो- वो पथ में गढ्ढे खोद रहे .