24.7.16

हम न चिल्लर न थोक रहे .!!

प्रिय से मिलना जो पूजा है, लोग हमें क्यों रोक रहे .
हिलमिल के पूजन कर लें, दर्द रहे न शोक रहे . !
जब जब मौसम हुआ चुनावी, पलपल द्वार बजाते थे-
जैसे ही ये मौसम बदला,हम  चिल्लर न थोक रहे .!!
बहन-बेटियाँ पेश करो ! शर्म न आई बेशर्मो –
भीड़ के जाहिल देखो कैसे जोर से ताली ठोक रहे ..?
लाखों प्राण निगलने वाले- झुलसाते हैं घाटी को –
बाईस इनके मरे तो देखो कैसे छाती ठोक रहे ?
मनमानस के बंटवारे को, कैंची जैसी चली जुबां -
लाल माई के अब तो जागो- वो पथ में गढ्ढे खोद रहे . 

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