मेरी बेटी Shivani Billore
6 महीने
विदेश में रहेगी ... खुशी इस बात की नहीं है मुझे बल्कि खुश इस लिए हूँ कि वो मेरे एक गीत ( "मधुर सुर न सुनाई दे जिस घर में वो घर कैसा" ) को अर्थ दे
रही है..
"वो बेटी ही तो होती है
कुलों को जोड़ लेती है
अगर अवसर मिले तो वो मुहाने मोड़ देती है
युगों से बेटियों
को तुम परखते हो न जाने क्यूं..?
जनम लेने तो दो उसको जनम-लेने से डर कैसा..?
और
#अमेया वो हमारे कुल की बेटी जो पहली US नागरिक है.....
बड़ी बात क्या है........
बड़ी बात ये है कि - "दौनों बेटियाँ ही तो हैं "
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ये 1999 की एक यादगार तस्वीर है . मेरी बेटियों ने अपनी ममेरी बहनों के साथ तस्वीर खिंचवाई मुझे याद है दफ्तर से लौट कर इनसे निपटना बड़ा मुश्किल काम हुआ करता था. इस आलेख के लिखे जाने के ठीक 17 बरस पहले ... हम दौनों के पीछे फोटो खिंचवाने वाली ये बेटियाँ बेटों से कम कहाँ ..? बेटे न हमारे हैं न बच्चों के मामा जी के ..... लोगों से खूब आशीर्वाद मिले - पुत्रवती भव: कहा.. श्रीमती जी को व्रत-उपवास, आराधना के .. पर कोई नुस्खा काम न आया.. आशीर्वाद का असर अवश्य हुआ... चारों आज बेटियाँ हमसे आगे हैं ..
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जब हम दंपत्ति हुए हमने जिसको भी प्रणाम किया तब सब यही आशीर्वाद देते थे - मुझे - आयुष्मान भव: और श्रीमती को पुत्रवती भव: सच कहूं सोचता था कोई ये क्यों नहीं कहता - " पुत्रीवती भव: " ऐसा आशीर्वाद न देना उनकी सामाजिक मज़बूरी हो सकती है .... परन्तु हममें साहस होना चाहिए यह कहने का..! एक बार शुरू तो करिए देखना बदलाव सहज ही नज़र आएँगे ...