सियासी हलकों में पुजने लगा है .
दिया अदब का अब बुझने
लगा है .
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कटा सर आया था तो चुप था
वो, इक लफ्ज़ न बोला
वापस करने को सितारों से भरा झोला न खोला...!
भरोसा
अपना जुगनुओं से उठने लगा है ..!!
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सैकड़ों पुलिस वाले मारे,
मरे मज़लूम पटवारी
सुकमा में साबित हुए हो
कई बार अपचारी....!
तबका सोया हुआ तबका अब उठने लगा है ..!!
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तुम्हारी गोलबंदी अब न चलेगी जानते
हो तुम
अपने हालात को अच्छी तरह
पहचानते हो तुम ......!
तुम्हारी हर हकीकत से जो पर्दा उठने लगा है ..!!
@ गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”