पूरे शहर को मेरी कमियाँ गिना के आ
पूरे शहर को मेरी कमियाँ गिना के आ जितना भी मुझसे बैर हो, दूना निभा के आ । ************** कब से खड़ा हूं ज़ख्मी-ज़िगर हाथ में लिये सब आए तू न आया , मुलाक़ात के लिये ! तेरे दिये ज़ख्मों को तेरा ईंतज़ार है – वो हैं हरे तुझसे सवालत के लिये !! चल दुश्मनी का ही सही रिश्ता निभा ने आ ************** रंगरेज हूँ हर रंग की तासीर से वाकिफ जो लाता है दुआऐं मैं हूँ वही काज़िद । शफ़्फ़ाक हुआ करतीं हैं झुकी डालियाँ मिलके इक तू ही मेरी हकीकत न वाकिफ . आ मेरी तासीर को आज़माने आ . **************