1975 स्मिता ने श्याम बेनेगल की फ़िल्म निशांत में काम किया. इसके बाद 1977 में उनकी भूमिका और मंथन जैसी कामयाब फ़िल्में प्रदर्शित हुईं. 1978 में उन्हें फ़िल्म भूमिका में सशक्त अभिनय करने के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के तौर पर नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड से नवाज़ा गया. इस फ़िल्म में उन्होंने 30-40 के दशक में मराठी रंगमच से जुड़ी अभिनेत्री हंसा वाडेकर की निजी ज़िंदगी को रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया था. इसी साल यानी 1978 में ही उन्हें मराठी फ़िल्म जॅत रे जॅत के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड दिया गया. इसके बाद 1981 में उन्हें फ़िल्म चक्र के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर और नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड दिया गया. 1980 में प्रदर्शित इस फ़िल्म में स्मिता पाटिल ने झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाली महिला का किरदार निभाया था. स्मिता पाटिल ने समानांतर सिनेमा के साथ-साथ व्यवसायिक सिनेमा में भी अपनी अभिनय प्रतिभा के जलवे बिखेरे. जहां उनकी बाज़ार, भीगी पलकें, अर्थ, अर्ध सत्य और मंडी जैसी कलात्मक फ़िल्में सराही गईं, वहीं दर्द का रिश्ता, आख़िर क्यों, ग़ुलामी, अमृत और नज़राना, नमक हलाल और शक्ति जैसी व्यवसायिक फ़िल्में भी लोकप्रिय हुईं. 1985 में आई उनकी फ़िल्म मिर्च-मसाला ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई. सौराष्ट्र की आज़ादी से पहले की पृष्ठभूमि पर बनी यह फ़िल्म उस दौर की सामंतवादी व्यवस्था के बीच पिसती एक महिला के संघर्ष को दर्शाती है. दुग्ध क्रांति पर बनी उनकी फ़िल्म मंथन के कुछ दृश्य आज भी टेलीविजन पर देखने को मिल जाते हैं. इस फ़िल्म के निर्माण के लिए गुजरात के तक़रीबन पांच लाख किसानों ने अपनी मज़दूरी में से दो-दो रुपये फ़िल्म निर्माताओं को दिए थे. स्मिता पाटिल की दूसरी फ़िल्मों की तरह यह भी कामयाब साबित हुई. स्मिता पाटिल ने महान फ़िल्मकार सत्यजीत रे के साथ भी काम किया. उन्होंने मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित टेली़फ़िल्म सद्गति में दमदार अभिनय कर इसे ऐतिहासिक बना दिया. स्मिता पाटिल को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए 1985 में पदमश्री से सम्मानित किया गया.
उन्होंने शादीशुदा अभिनेता राज बब्बर से प्रेम विवाह किया. उनके लिए राज बब्बर ने अपनी पत्नी नादिरा ज़हीर को छोड़ दिया था. स्मिता पाटिल अपनी नई ज़िंदगी से बहुत ख़ुश थीं, लेकिन क़िस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था. बहुत कम उम्र में वह इस दुनिया को छोड़ गईं. बेटे प्रतीक को जन्म देने के कुछ दिनों बाद 13 दिसंबर, 1986 को उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बाद 1988 में फ़िल्म वारिस प्रदर्शित हुई, जो उनकी यादगार फ़िल्मों में से एक है. अभिनेत्री रेखा ने इस फ़िल्म में स्मिता पाटिल के लिए डबिंग की थी.
हिंदी सिनेमा में स्मिता पाटिल की प्रतिद्वंद्विता शबाना आज़मी से थी. स्मिता पाटिल की तरह शबाना आज़मी भी श्याम बेनेगल की ही खोज थीं. स्मिता पाटिल और शबाना आज़मी के बीच मुक़ाबले की बातें काफ़ी चर्चित हुईं. फ़िल्म अर्थ और मंडी में दोनों अभिनेत्रियों ने साथ-साथ काम किया. दोनों फ़िल्मों की समीक्षकों ने ज़्यादा सराहना की. स्मिता पाटिल का मानना था कि उनकी भूमिका में काफ़ी बदलाव किया गया था. इसके बाद ही उन्होंने व्यवसायिक फ़िल्मों का रुख़ कर लिया. शुरू में उन्हें काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने ख़ुद को वक़्त के हिसाब से ढाल लिया. नतीजतन, उनकी व्यवसायिक फ़िल्में भी बेहद कामयाब रहीं. स्मिता पाटिल के साथ शक्ति और नमक हलाल जैसी फ़िल्मों में करने वाले अभिनेता अमिताभ बच्चन का कहना है कि स्मिता जी कमर्शियल फ़िल्में करने से हिचकिचाती थीं. वह नाचने-गाने में असहज महसूस करती थीं. जब भी वह इस तरह की कोई फ़िल्म करती थीं ख़ुद को पूरी तरह से निर्देशक के हाथों में सौप देती थीं. अमिताभ बच्चन उनकी महानता और सादगी के भी क़ायल रहे हैं. बक़ौल अमिताभ बच्चन, शक्ति की शूटिंग के दौरान हम फ़िल्म के कुछ हिस्से चेन्नई में फ़िल्मा रहे थे. स्मिता जी मेरे पास आईं और बोलीं, नमक हलाल करने के बाद लोग मुझे पहचानने लगे हैं. मुझे लगता है कि यह स्मिता जी की महानता थी, जो वह यह बात कह रही थीं, क्योंकि वह तो हिंदी सिनेमा का एक जाना माना नाम थीं.
स्मिता पाटिल की सादगी ही उन्हें ख़ास बनाती थी. स्मिता पाटिल के साथ फ़िल्म गमन में काम करने वाले नाना पाटेकर कहते हैं कि मैं और स्मिता एक दूसरे से काफ़ी हंसी-मज़ाक़ किया करते थे. मैं उसे काली-कलूटी कहकर चिड़ाता था, तो वह मुझे कहती थी कि ये काला रंग ही तो उसकी ख़ासियत है, तभी तो लोग उसे प्यार करते हैं. फ़िल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट स्मिता पाटिल का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि स्मिता पाटिल सुंदर और साहसी थीं. उनके ललाट पर ही शायद दुर्भाग्य लिखा था. मैं इसे खुलेआम स्वीकार करना चाहता हूं कि उनके आकस्मिक निधन से मैं कभी उबर नहीं पाया. नियति का खेल देखें कि वह मां बनीं. उन्होंने एक शिशु को जन्म दिया. एक जीवन देने के साथ ही वह मौत की आग़ोश में चली गईं. ग़म और कुछ नहीं के बीच मैं ग़म को अपनाना चाहूंगी, स्मिता पाटिल ने मेरी आत्मकथात्मक फ़िल्म अर्थ की कहानी सुनने के बाद मुझे यह नोट भेजा था. उसमें उन्हें एक पागल अभिनेत्री की भूमिका निभानी थी. तमाम विकल्पों के बीच उन्होंने उस फ़िल्म के लिए हां की थी. उसकी एक ही वजह थी कि उस किरदार से उन्हें सहानुभूति हुई थी. सहानुभूति की वजह यही हो सकती है कि उन दिनों वह स्वयं शादीशुदा राज बब्बर के साथ ख़तरनाक रिश्ते को जी रही थीं. अपने पास प्रेमी को रखने की चाह और एक घर तो़ड़ने के अपराध की भावना के बीच वह झूल रही थीं. इस भूमिका में इतना विषाद है कि इसे निभाने से मुझे राहत मिलेगी, अर्थ का पहला दृश्य करने के बाद उन्होंने कहा था. हम लोग एक पंचसितारा होटल के कमरे में उस दृश्य की शूटिंग कर रहे थे. इस दृश्य में वह अपने दुर्भाग्य और अवैध संबंध का रोना रो रही थीं. अर्थ का सेट उनके लिए आईना था, जिसमें वह अपने दर्दनाक वर्तमान की झलक देख रही थीं. वह हर दिन सुबह खेल के मैदान में जा रहे बच्चे के उत्साह के साथ सेट पर आती थीं और पिछले दिन अपने प्रेमी के साथ गुज़रे अनुभव और पीड़ा को कैमरे के सामने उतार देती थीं. प्रकृति ने उन्हें अकेलेपन का क़ीमती उपहार दिया था. इस अकेलेपन ने ही उनकी कला को जन्म दिया था. वह प्राय: कहा करती थीं, इस इंडस्ट्री में हर व्यक्ति अकेला है. एक रात मैं थोड़ी देर से घर लौटा तो मेरी बीवी ने बताया कि लिविंग रूम में कोई मेरा इंतज़ार कर रहा है. कमरे में दाख़िल होने के बाद मैंने देखा कि स्मिता पाटिल मेरी तरफ़ पीठ किए खड़ी थीं और बड़े ग़ौर से अपनी हथेली निहार रही थीं. वह रो रही थीं. उन्होंने अपनी हथेली मेरी तरफ़ ब़ढाते हुए कहा, क्या आपने मेरी हथेली में जीवनरेखा देखी है? यह बहुत छोटी है. मैं ज़्यादा दिनों तक ज़िंदा नहीं रहूंगी. उसके बाद उन्होंने जो बात कहीं, वह मैं अपनी अंतिम सांस तक नहीं भूल सकता. उन्होंने आगे कहा कि महेश, मरने का डर सबसे बड़ा डर नहीं होता. जीने का डर मरने से बड़ा होता है. वह मेरे सामने रात भर पत्तों की तरह कांपती रहीं. शायद अपनी मौत के बारे में सोच कर वह घबरा रही थीं. सुबह होने पर वह अपने घर लौटीं. सुबह की नीम रोशनी में पूरी तरह से टूटी हुई, लड़खड़ाते क़दमों से अपनी कार की तरफ़ जाती उनकी छवि आज भी मेरे दिमाग़ में कौंधती है. वह बहुत सुंदर दिख रही थीं. मुझे यह मानने में कोई गुरेज़ नहीं है कि अर्थ में जो भावनात्मक उबाल मैं दिखा पाया था, वह स्मिता की निजी ज़िंदगी के ईंधन के बिना मुमकिन नहीं होता.
हिंदी के अलावा मराठी, गुजराती, तेलुगू, बांग्ला, कन्ऩड और मलयालम फ़िल्मों में भी काम किया. उनकी हिंदी फ़िल्मों में चरणदास चोर, निशांत, मंथन, कोंद्रा, भूमिका, गमन, द नक्सलिटाइस, आक्रोश, सद्गति, अल्बर्ट पिंटो को ग़ुस्सा क्यों आता है, चक्र, तजुर्बा, भीगी पलकें, बाज़ार, दिल-ए-नादान, नमक हलाल, बदले की आग, शक्ति, सुबह, मंडी, अर्थ, चटपटी, घुंघरू, दर्द का रिश्ता, हादसा, क़यामत, अर्धसत्य, पेट प्यार और पाप, शपथ, क़ानून मेरी मुट्ठी में, मेरा दोस्त मेरा दुश्मन, गिद्ध, तरंग, फ़रिश्ता, शराबी, आनंद और आनंद, आज की आवाज़, रावण, क़सम पैदा करने वाले की, जवाब, आख़िर क्यों, हम दो हमारे दो, ग़ुलामी, मेरा घर मेरे बच्चे, अंगारे, कांच की दीवार, दिलवाला, आपके साथ, अमृत, तीसरा किनारा, अनोखा रिश्ता, दहलीज़, सूत्रधार, नज़राना, शेर शिवाजी, देवशिशु, इंसानियत के दुश्मन, मिर्च मसाला, डांस डांस, राही, अवाम, ठिकाना, आकर्षण, हम फ़रिश्ते नहीं, वारिस, गलियों का बादशाह और सितम आदि शामिल हैं.
भले ही आज स्मिता पाटिल हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपनी फ़िल्मों के ज़रिये वह हमेशा अपने प्रशंसकों के बीच रहेंगी. बहरहाल, इस साल के शुरू में अभिनेता और कांग्रेस सांसद राज बब्बर ने कहा था कि अब वह ए बुक ऑफ पैन नामक किताब लिखने वाले हैं, जिसमें वह अपने और स्मिता पाटिल के प्रेम के बारे में भी लिखेंगे.
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