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मंगलवार, अप्रैल 23, 2013

तुम्हारी तापसी आंखों के बारे में कहूं क्या ? अभी तक ताप से उसके मैं उबरा नहीं हूं....!!

छायाकार वत्सल चावजी
तुम्हारी तापसी आंखों के बारे में कहूं क्या ?
अभी तक ताप से उसके मैं उबरा नहीं हूं....!!

समन्दर सी अतल गहराई वाली नीली आंखों ने
निमंत्रित किया है मुझको सदा ही डूब जाने को,
डूबता जा रहा हूं कोई तिनका भी नहीं मिलता ....
अगर मन चाहे जो  साहिल पे लौट आने को !
     तुम ही ने तो बुलाया है कहो क्या दोष है मेरा
     समंदर में प्रिये मैं खुद-ब़-खुद उतरा नहीं हूं..!!

तुम्हारे रूप का संदल महकता मेरे सपनों में
हुआ रुसवा बहुत,जब भी बैठा जाके अपनों में
किसी नेयेकहा और कोई कहकेवोमुस्काया
 मैं पागल हो गया हूं कहते सुना नुक्कड़ के मज़मों में .
     यूं अनदेखा कर कि जी पाऊंगा अब आगे-
      नज़र मत फ़ेर मुझसे गया गुज़रानहीं हूं मैं !!




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