मैं तुम्हारा
आखिरी खत जाने किसके हाथ आऊं
पढ़ो बस इक बार मुझको
नवल मैं संचार पाऊं !!
वेदनाएं हर किसी की कोई अब पढ़ता नहीं ..
क्रोंच आहत देख कविता अब कवि गढ़ता नहीं..
सबको अपना अपना गाना है सुहाता ..
गीत अब समभाव के है कौन गाता..!!
चेतना प्रस्तर हुई .. वेदना नि:शब्द है
युग भयातुर वक़्त भी अभिशप्त है !!
चलो ऐसे में चिंतन करें चिंता छोड़ दें..
भयावह भावों के मुहाने मोड़ दें..!!
* गिरीश मुकुल