संदेश

जून, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेहनतकश बच्चो के लिए प्रेरणास्पद गीत

चित्र
"हर हाल मे हम सच का बयान करेंगे..  बहरे तक सुन ले वो गान करेंगे  खुद को अल्लाह जो मानने लगे  ऐसे हर शख्स को इंसान करेंगे".....ये पंक्तियां है गिरीश पंकज जी के ब्लॉग सद्भावना दर्पण से सुनिये उनके इसी ब्लॉग से ये गीत----(एडिट किया है पद्मसिंह जी ने ) अगर हम ठान लें मन में, सफलता पास आती है, भले मौसम हो कैसा भी, कली यह खिल ही जाती है . कहाँ तकदीर लिखती है, उजाला सबके हिस्से में, कहाँ खुशियाँ नज़र आती हैं, अक्सर अपने किस्से में. मगर मेहनत कड़ी कर लें, खुशी तब मुस्कराती है. अगर हम ठान लें मन में, सफलता पास आती है... कहा था ईश ने हमको, करो संघर्ष जीवन में, तभी मै दे सकूंगा ओ मनुज, उत्कर्ष जीवन में. इसी के वास्ते संघर्ष, अपनी आज थाती है.. अगर हम ठान लें मन में, सफलता पास आती है.. अँधेरे से लड़े हैं हम, उजाला तब मिला हमको, चले आओ कि हम भी बाँट दें, उजियार कुछ तुमको. जो हैं श्रम के पुजारी, रौशनी उनको सुहाती है... अगर हम ठान लें मन में, सफलता पास आती है... नहीं मिलता यहाँ कुछ भी, सरलता से कभी साथी, अगर हम चाहते हैं रोशनी, जल जाये बस बाती. सफलता साधको के द्वार में झाड़

वो आदमी सुलगाया जाता है..!!

चित्र
सुबह   अखबार बांचते ही चाय की चुस्कियों के साथ एकाध गाली निकल जाती है अचानक मुंह से उसके व्यवस्था के खिलाफ़ ! फ़िर अचानक बत्ती का गुम होना बिजली वालों की मां-बहनों से शाब्दिक दुराचरण सब्जी के दाम सुन कर फ़िर उसी अंदाज़ में एक बार फ़िर मंत्र की तरह गूंजती गालियां..!! अचानक मोबाईल पर बास का न्योता भी उसे पसंद नहीं..आता हर बार तनाव के कारणों पर वो बौछार कर देता है अश्लील गालियों की शाम बेटी के हाथ से रिमोट ले समाचार देखता वो झल्ला जाता है पर्फ़्यूम के “ब्लू-फ़िल्मिया-एड” देख कर ..! फ़िर लगा लेता है मिकी-माउस वाला चैनल  अच्छा है उसमें इतनी तमीज़ तो है बेटी के सामने गाली न देने की..!! सोचता हूं.. फ़िर भी दिन भर में कितनी बार और क्यों भभकता है ये आदमी करता है कितनों की  मां बहनों से शाब्दिक दुराचरण..? नहीं सच है  वो ये सब न करता था पहले कभी ! सुलगता भी न था भभकता भी तो न था आज़कल क्या हुआ उसे तभी सेंटर-टेबिल पर रखा अखबार फ़ड़फ़ड़ाया दीवार पर टंगा टी.वी. मुस्कुराया अब समझा वो आदमी सुलगाया जाता है रोज़ इन्हीं के ज़रिये