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बुधवार, जनवरी 26, 2011

जी यशवंत सोनवाने को व्यवस्था ने मारा है

       आत्म केंद्रित सोच स्वार्थ और आतंक का साम्राज्य है.चारों ओर छा चुका है  अब तो वो सब घट रहा है जो  इस जनतंत्र में कभी नहीं घटना था.  कभी चुनाव के दौरान अधिकारी/कर्मचारी  की हत्या तो कभी कर्तव्य परायण होने पर . भारतीय प्रजातंत्र में निष्ठुर एवम दमनकारी तत्व की ज़हरीली लक़ीरें साफ़ तौर पर नज़र आ रहीं हैं.. ब्यूरोक्रेसी की लाचार स्थिति, हिंसक होती मानसिकता, हम किस ओर ले जा रहे हैं विकास का रथ. कभी आप गांवों में गये हैं. ज़रूर गये होंगे   जनता की भावनाओं से कितना खिलवाड़ होता है देखा ही होगा. लोगों की नज़र में सरकारी-तंत्र को भ्रष्ट माना जाता है यह सामान्य दृष्टिकोण है.किंतु सभी को एक सा साबित करना गलत है. सामान्य रूप से सफ़ल अधिकारी उसे मानतें हैं जो येन केन प्रकारेण नियमों को ताक़ पर रख जनता के उन लोगों का काम करे जो स्वम के हित साधने अथवा बिचौलिए के पेशे में संलग्न है. यदि अधिकारी यह नही करे तो उसके चरित्र हनन ,मानसिक हिंसा, प्रताड़ना और हत्या तक पर उतारू होते हैं.  
  खबर ये है कि "मालेगांव के एडीएम यशवंत सोवानणे को तेल माफिआओं ने जिंदा जला दिया है। एडीएम का कसूर सिर्फ इतना था कि वो पैट्रोल में कैरोसिन की मिलावट रोक रहे थे ।"
                        ए डी एम साहब लोक कल्याण ही कर रहे थे उनको  उनके काम से रोकने का जो तरीका अपनाया गया भारतीय कानून-व्यवस्था को सरे आम चिंदी-चिंदी करना है. देश में सैकड़ों अधिकारीयों/कर्मचारियों  को रोज़  मारपीट, उनका अपमान, उनको अपना नौकर मानना , नियम विरुद्ध काम न करने या कि नानुकुर करने पर चरित्र हनन करना. बैठकों में   ज़लील करना और ज़लील करवाना फूहड़ समाचारों का प्रकाशन एवं प्रसारण करवाना जैसी स्थितियों का सामना करना होता है. 
ऐसी परिस्थियों में ही तो हो रहा है ब्रेन-ड्रेन क्या कभी आपने सोचा भारत में सरकारी सेवाओं के प्रति वितृष्णा के कारणों में ये भी एक कारण तो नहीं है ? पूछिये अपनी युवा संतान से .

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