12.1.10

एक महकमे को मुलजिम करार देना गलत है .

 सुमन जी के इस आलेख   से जोलखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशनपर सरकार के हत्यारे शीर्षक से  छपा है मैं असहमत हूँ क्योंकि इस आलेख से लगता है समूची भारतीय पुलिस व्यवस्था  को "हत्यारी-व्यवस्था"
है. दूसरा पक्ष कहे सुने  बिना पुलिस औरसरकार का मनोबल तोड़ना सर्वथा देश की क़ानून व्यवस्था का मज़ाक बना देना कहाँ तक अनुचित है. क़ानून के राज़ को सब मानें मध्य-प्रदेश  और आंध्र प्रदेश में हो रही नक्सली हिंसा को एक पक्ष सहज प्रतिक्रया मानता है ? क्यों क्या सरकारी नौकर ही सर्वथा गलत होता है. भारत में लागू प्रजातंत्र किसी को रक्त रंजित सियासी हथकंडों की अनुमति नहीं देता न ही भारत इतना असहिष्णु है कि किसी को भी सिरे से खारिज करे . हर विचारधारा का यहाँ सम्मान होता है. किन्तु रक्त-रंजन की इजाज़त कदापि नहीं पुलिस से यदि कुछ गलती हो रही है तो उसे रकने आवाज़ बुलंद ज़रूर कीजिये किन्तु यदि यह आरोप सब पुलिस वालों पर जड़ दिया जाए तो सिर्फ नकारात्मक बुद्धि का संकेत है  किसीको भी आतंकवादीयों के पक्ष में किसी को खड़े रहने की ज़रुरत नहीं है
देश में नक्सल बाडी आन्दोलन.धर्म के नाम पर क़त्ल-ए-आम,सियासती दंगे,सर्वहारा के नाम पे जंग,इस सब के लिए आज़ादी मिली थी क्या...?
मेरा कथन  साफ़ है कि "देश को  हिंसा से ज्यादा हिंसक-विचार धाराओं से खतरा है " आप यदि प्रतिक्रया वादी व्यवस्था के खिलाफ कुछ सुझाव दें तो स्वीकार्य है किन्तु किसी समूह को हत्यारा कह देना न्यायोचित नहीं जहां तक "प्रदीप शर्मा" का सवाल है उस का एक पक्ष यह भी है :-
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राम नारायण गुप्ता नाम के किसी बड़े गैंगेस्टर के बारे में आप भी पहली बार सुन रहे होंगे। लखन भैया के नाम से यह गुप्ता छोटा राजन के संदेश इधर उधर पहुंचाया करता था और कभी कभार वसूली करने भी जाता था। इतने छोटे से गुंडे के लिए दाऊद इब्राहीम खुद सुपारी देगा यह किसी के गले नहीं उतर रहा। दरअसल मुंबई पुलिस में एक बड़ी लॉबी है जो मराठा मूल के पुलिस वालों की हैं, और चाहती है कि प्रदीप शर्मा को किसी न किसी तरह से मैदान से हटाया जाए। कई बार प्रदीप शर्मा की जान पर हमला भी हो चुका है और उन्हें अतिरिक्त पुलिस सुरक्षा भी दी गई थी। इसी चक्कर में प्रदीप शर्मा पर आधे अधूरे आरोप लगा कर दाऊद और छोटा राजन दोनों से रिश्ते रखने के इल्जाम में मुंबई पुलिस से बर्खास्त कर दिया गया था। मगर ये मामले इतने कमजोर निकले कि प्रदीप शर्मा को बाहर करना पड़ा। अब प्रदीप शर्मा पहले पुलिस अधिकारी बन गए हैं जिन पर मुंबई में फर्जी मुठभेड़ करने का आरोप लगा हो। अंधेरी अदालत में पेश कर के उन्हें जेल भी भेज दिया गया है।
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 कदाचित आपको मेरी बात मिसफिट लगतीं होंगी किन्तु गौर से देखिये न तो मुझे इस इन्स्पेक्टर से कुछ लेना देना है न ही सुमन जी से कोई विरोध बल्कि मेरी राय में बात संतुलित तरीके से रखी जाए एक महकमे को मुलजिम करार देना गलत है .  

2 टिप्‍पणियां:

kulwant Happy ने कहा…

हर सिक्के दो पहलू होते हैं। एक आप ने देखा, एक उन्होंने देखा।

राज भाटिय़ा ने कहा…

सब गोलमाल है जी, जब कोई सख्त कानुण ही नही तो किसे क्या कहे??

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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