8.11.20

जो बायडन : विदेश नीति पर बदलाव नहीं करेंगे..!

बाइडन के कारण  भारत के संदर्भ में अमेरिकी नीतियां  नहीं बदलेंगी !
लेखक:- गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
जो बाइडन डेमोक्रेट उम्मीदवार हैं और लगभग राष्ट्रपति बन ही गए हैं । भारत के विद्यार्थियों एवम विचारकों में बहुत से सवाल हैं जैसे कि-
जो के आने के बाद अमेरिकी विदेश नीति में कौन सा परिवर्तन आने वाला है दक्षिण एशिया के साथ जो बाइडन कैसा संबंध रखेंगे ?
अथवा अमेरिका की भारत के संबंध में पॉलिसी क्या होगी ? और बदली हुई पॉलिसी में भारत का स्टेटस क्या होगा ?
आइए जानते हैं इन सवालों  के क्या क्या संतुष्टि कारक उत्तर हो सकते हैं ?
जो बाइडन को इलेक्शन जिताने में उनका व्यक्तित्व सबसे ज्यादा असरकारक रहा है। शायद ही अमेरिका में कोई कम पढ़ा लिखा अथवा अपेक्षित बौद्धिक क्षमता से कमतर होगा ! यहां अपवादों को अलग कर देना होगा । 


 अमेरिकी जनता ने जो बाइडन जिताने से ज्यादा दिलचस्पी डोनाल्ड ट्रंप को हराने में दिखाई है ।  इसका अर्थ यह है कि-" अमेरिकी जनता ने ट्रंप की व्यक्तित्व को पूरी तरह खारिज कर दिया"
ट्रंप के भाषण अक्सर विचित्र भाषणों की श्रेणी में रखे जाने योग्य माने गए थे। कमोवेश विश्व में भी ऐसी ही छवि डोनाल्ड ट्रंप की बन गई थी। बावजूद इसके डोनाल्ड ट्रंप के शांति प्रयास उन्हें उत्तर कोरिया तक ले गए। परंतु ट्रंप की छवि यूरोपियन मीडिया द्वारा जिस तरह पोट्रेट की गई उसे वैश्विक स्तर पर भारी भरकम प्रजातंत्र के प्रतिनिधि को बहुत हल्के में लिया गया। अमेरिका के बाहर और अमेरिका के भीतर यह पोट्रेट हूबहू स्वीकार आ गया और विकल्प को यानी जो बाइडन  को इसका सीधा सीधा लाभ हुआ ।  यूएस मीडिया और विचारकों ऐसा ही नैरेटिव सेट कर दिया ताकि वोटर की मानसिकता में परिवर्तन आ जाए।
इधर जो बाइडन कमला हैरिस के साथ अपनी भूमि बनाने में सफल हो गए।
विश्वसनीय मीडिया की मानें तो अमेरिका के इलेक्शन में बड़े पैमाने पर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है।
अमेरिका की विदेश नीति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी प्रशासन ने निर्धारित कर ली है। आपको याद होगा कि फरवरी 2016 में बराक ओबामा ने ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप पर दस्तखत किए थे जिसमें बारह देश एकमत थे कि- एशिया में स्वेच्छाचारिता का आइकॉन बना चीन और उसका भाई उत्तर कोरिया प्रभावहीन हो जाए । इससे स्पष्ट है कि अमेरिका अपनी उन गलतियों को सुधारना चाहता है जो बिल क्लिंटन  एवं बराक ओबामा के कार्यकाल में चीन को खुली छूट दी गई थी और इस छूट के दुष्परिणाम अमेरिका ने ही देखें थे । अर्थात विश्व के साथ अमेरिका की विदेश नीति में आंशिक बदलाव के साथ चीन के प्रति आक्रामक होगी ।
इस आलेख के प्रारंभ में दक्षिण एशिया के संबंध में अमेरिका की पॉलिसी का जिक्र करना बहुत आवश्यक है।
दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र विचार योग्य बिंदु होगा वह भी व्यापारिक संदर्भ में । पेंटागन एवं अमेरिकी प्रशासन यह सुनिश्चित कर चुका है कि भारत उसके लिए बहुत बेहद महत्वपूर्ण है डेमोक्रेट प्रधान के रूप में जो बाइडन स्पेस न्यूक्लियर एनर्जी  तकनीकी बिंदुओं पर रिश्ते  डोनाल्ड ट्रंप से अधिक महत्व देंगे की एवं रक्षा संबंधों में 2 +2  पर हस्ताक्षरित दस्तावेजों को रिविज़िट नहीं करना पड़ेगा बल्कि ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप समझौते का आयोजित करते हुए अमेरिका चीन के प्रति वही मूड एवं रवैया रखेगा जो ट्रंप का था।
जहां तक कमला हैरिस की बात है तो भी कश्मीर मुद्दे को अब पेंटागन के नजरिए से समझेंगीं उम्मीद है कि कमला हैरिस कश्मीर मुद्दे पर कोई ऐसे वक्तव्य नहीं देंगी जिससे पाकिस्तान को कोई मदद मिल सके।
   यह बात सही है कि सर्व सुविधा संपन्न अमेरिका की कांग्रेस सदस्य धारा 370 और 35 इस संबंध में बहुत अधिक ध्यान नहीं रखते हैं। परंतु पाकिस्तान द्वारा गिलगित बालटिस्तान पर निकट भविष्य में उठाए जाने वाले कदम से पाकिस्तान स्वयं ही एक्सपोज हो जाएगा।
अफगानिस्तान के संदर्भ में अमेरिका अब अपनी पॉलिसी नए नेतृत्व में यथासंभव यथावत ही रखेगा जब तक कि कोई विशेष परिस्थिति निर्मित नहीं होती है।
हां यह अवश्य है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं भीषण आर्थिक संकट झेल रहे देशों के लिए इस शर्त पर कुछ पैकेज अवश्य उपलब्ध हो सकते हैं जिससे वहां के नागरिक न्यूनतम सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।
जो बाइडन सत्ता में आने के पुख्ता हो जाने के साथ ही भारत के पूंजी बाजार की स्थिति मजबूत होने लगी है। ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका में टैक्स और आयात ड्यूटी खास तौर पर चीन जैसे देशों के लिए बढ़ाई जाएंगी । साथ ही साथ संस्थागत निवेशकों विश्व पूंजी बाजार में भागीदारी के अवसर बढ़ जाएंगे।
जो बाइडन कोविड-19 के संकट को गंभीरता से ले सकेंगे। इस बिंदु पर भी कई बार रिपब्लिकन उम्मीदवार पर हमलावर भी हुए थे। अमेरिका के बाद भारत सर्वाधिक प्रभावित रहा है कोविड-19 से पर भारत ने कोरोना महामारी से  मौतों पर नियंत्रण किया जिसकी दर मात्र 1.5% से भी कम होती चली गई जो भारत की अपनी सफलता है।
   अमेरिकी प्रशासन खास तौर पर पेंटागन साइबर टेक्नोलॉजी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी पर विशेष ध्यान देगा अतः h1b वीजा सरल होना सुनिश्चित है । जिसका लाभ सीधा और साफ तौर  भारतीय युवाओं के लिए महत्वपूर्ण हो जाएगा।
कुल मिलाकर अमेरिकी विदेश नीति बराक ओबामा के कार्यकाल की नीतियां कुछ मामलों में पुनः स्थापित की जाएंगी और आंशिक बदलाव के साथ डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को यथावत स्थापित रखा जाना संभावित है। सुधि पाठक यह स्पष्ट रूप से समझ ले अमेरिका जॉर्ज वाशिंगटन से लेकर जो बाइडन तक अमेरिका के लिए ज्यादा संवेदी कि रहता है । चाहे वह रिपब्लिकन के नेतृत्व में हो या डेमोक्रेट्स के।
अंत में एक मज़ाकिया बात- बाइडन जी, किस देवता की मूर्ति अपने साथ रखेंगे..!
अरे...वे सजीव कमला देवी साथ हैं... जिसे आप देवी लक्ष्मी के रूप में पूजते हैं ! 
( girishbillore@gmail.com )

6.11.20

जर्मनी मीडिया डॉयचे वेले ने उठाए बेहूदा सवाल..!

जर्मनी का एक मीडिया हाउस डॉयचे वेले है ने अपने फेसबुक डिस्पैच में कहा है-"भारत विश्व की 10 निरंकुश व्यवस्थाओं में से एक है"
डिस्पैच में मीडिया हाउस  ने वी डैम इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर स्टीफन लिग बैक की हालिया प्रकाशित रिपोर्ट  के आधार पर 180 देशों के 3000 शिक्षाविदों के साथ एक विशेष प्रश्नोत्तरी पर आधारित यह निष्कर्ष निकाला है । डॉयचे वेले का यह मानना है कि-"2014 के बाद से भारतीय आजादी के बाद प्रजातांत्रिक स्थिति में काफी गिरावट हुई है ...!"
   स्टीफन स्वयं भी इस संदर्भ में अपने बयान देते हुए नजर आते हैं।
डॉयचे वेले के इस डिस्पैच का खुलकर न केवल खंडन करना चाहिए बल्कि ऐसे डिस्पैच प्रस्तुत करने पर उसकी निंदा भी करनी चाहिए । हम वॉल्टेयर  के उस सिद्धांत का पालन करते हैं और स्वीकृति भी देते हैं कि असहमति का सम्मान करना चाहिए। परंतु 130 करोड़ भारतीय आबादी जो विश्व की सबसे बड़ी प्रजातांत्रिक व्यवस्था है के आयातित विचारधाराओं के साथ जुड़े शिक्षाविदों को कोई भी अधिकार नहीं है कि वह बिना तथ्य को समझे जाने  इस तरह के जवाब दें कि एक नेगेटिव दे कि एक नेगेटिव नैरेटिव को स्थापित किया जा सके ।
   2014 से किसकी सरकार है  यह आप सब समझते हैं। जहां तक एक भारतीय लेखक होने के नाते डॉयचे वेले से आग्रह करना चाहूंगा कि वे देश के कुछ गाँवो शहरों का भ्रमण उसी प्रश्नावली के साथ किसी वास्तविक भारतीय के साथ जाकर या स्वयं भी जाकर देखें तो पता चलेगा कि - "भारत में प्रजातंत्र की जड़ें कितनी मजबूत हैं..!" 
इस मीडिया हाउस ने यह भी मूल्यांकन नहीं किया कि सामान्य परिस्थितियों में एक बार आपातकाल की घोषणा की जा चुकी थी । 
 भारतीय प्रजातंत्र को निरंकुश साबित करने की कोशिश करना भारतीय मतदाताओं की खिलाफ एक नरेटिव के प्रयास के रूप में  आपके डिस्पैच को देखा जा रहा है । 
जर्मन के इस मीडिया हाउस को अगर यह तथ्य प्रस्तुत करना भी था तो वन साइडेड मूल्यांकन ना करते हुए वास्तविक परिस्थिति को भी समझना चाहिए था।

31.10.20

रौशनी की तिज़ारत वो करने लगा


घर के दीवट के दीपक जगाए नहीं
रोशनी की तिज़ारत वो करने लगा ।
ये मुसलसल करिश्मों भरा दौर है -
वक़्त-बेवक्त सूरज है ढलने लगा ।।
खुद ने, खुदको जो देखा डर ही गया
आईने अपने घर के,वो बदलने लगा ।।
खोलीं उसकी गिरह, हमने फिर कभी
पागलों की तरह वो, मचलने लगा ।।
दौर ऐसा कि सब हैं तमाशाई से
हरेक दिल में क्या रावण, पलने लगा ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

29.10.20

निकिता तुम एक सवाल हो.!

*निकिता तुम एक सवाल हो.!*

जिसे कोई हल कैसे करेगा ?
सब एर्दोगान से 
थर थर काँपते हैं..!
वो सब के सब 
तुम्हारी आख़िरी कराह का
और अपनी चाह का 
मीज़ान मापते हैं..!
तुम्हारी आखिरी सांसें 
धीमे धीमे बन्द होती आंखें 
अब किसी इंकलाब को
जन्म न दे सकेंगी ।
आने वाली तिथियां
तुम्हारे ही हलफनामें को
सामने रखेंगी ।
तुम तब तक 
ज़ेहन से सबके मन से 
हो चुकी होगी ओझल ।
तुम्हारी सखि माँ बापू भाई
को याद रहेगा वो पल ।।
इन चैनल्स पर नहीं आओगी
कभी किसी को भी 
सत्ताईस अक्टूबर के दिन 
याद नहीं आओगी.. !
तुम इस दुनियाँ में 
अफसर भी बन जाती तो 
क्या होता..?
क्या खाक बदलता ये समाज
ये हमेशा समझौता करेगा 
डर से आक्रांता से 
सामाज में बचे सम्मान से
डर कर  ।
समझौते जारी रहेंगे 
इस देश में 
मृत्यु तुल्य कष्ट 
सहकर ...! 
निकिता कल भी 
तुम ही हारोगी..!
सोचता हूँ आकाश ताकते हुए
तुम कब पलट कर मरोगी ..!!
सुनो अब जब आना 
हाथ में आयुध लेकर
इन रसूखदारों का 
इन बलात समझौताकारों का
इन आयातित विचारों के 
पैरोकारों का ...
मुँह जो नोंचना है ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

27.10.20

क्या सोचते हैं विस्तारवादी

     


बख्तावर खिलजी से लेकर तालिबान तक सभी  सभी के मस्तिष्क में एक ही बात चलती है अगर किसी राष्ट्र का अंत करना है तो उसके पहले उसकी संस्कृति अंत कर दो। पोल पॉट की जिंदगी का लक्ष्य  भी यही था । 1975 से लेकर 1979 तक  कंबोडिया के सांस्कृतिक वैभव को समाप्त करने के लिए पोलपॉट अपना एक लक्ष्य सुनिश्चित किया । उसने जैसे ही खमेररूज की की मदद से कंबोडिया पर कम्युनिस्ट शासन की स्थापना की सब से पहले कंबोडिया के 50 मुस्लिम आराधना स्थलों का सर्वनाश किया। क्योंकि नास्तिकों के मस्तिष्क में  आस्था के लिए कोई जगह नहीं है अतः पोल पॉट की सेना ने उसके स्थान पर कुछ दूसरा धार्मिक स्थल नहीं बनाया। किंतु बाबर इससे कुछ  अलग ही था । भारत में आक्रमणकारी  विदेशी ने सांस्कृतिक हमला भी बाकायदा सामाजिक परिस्थितियों को बदलने के लिए किया। तालिबान इससे पीछे नहीं रहे । स्वात से बुद्ध के वैभवशाली इतिहास को खत्म करना हो या कश्मीर के सनातनी सांस्कृतिक वैभव को नेस्तनाबूद करना हो ... विदेशी आक्रांता इस कार्य को सबसे प्राथमिकता के आधार पर किया करते थे।



     ऐसा अक्सर हुआ है इसमें कोई दो मत नहीं। अब कुछ इससे ज्यादा हटकर हो रहा है। अब वैचारिक स्तर पर हमले होना स्वाभाविक सी बात बन गई है ।
   सामाजिक परंपराओं को बदलने की प्रक्रिया अब तेजी से हो रही है। सामाजिक सहमति हो या ना हो बलपूर्वक सांस्कृतिक परिवर्तन करना एक सामान्य सा लक्ष्य था जो अब मीडिया के जरिए विस्तारित हो रहा है।
          बहुत वर्ष पहले की बात है, हाँ  लगभग 40 से 45 वर्ष पूर्व कन्वर्टटेड मुस्लिम के घर के मुखिया का नाम भगवानदास था उसकी पत्नी का नाम पार्वती बच्चे का नाम गुलाब । हमने जब उस परिवार से पूछा- आप जब मुस्लिम धर्म अपना चुके हैं तो आपके नाम हिंदुओं जैसे क्यों हैं ?
     भगवान दास का कहना था कि हमने धर्म बदला है ना कि हमने अपनी संस्कृति । यह घटना गोसलपुर की है जहां पर भगवानदास रेल विभाग में केबिन मैन के पद पर नौकरी किया करते थे । उनके घर में बाकायदा हिंदू त्यौहार होली दिवाली रक्षाबंधन आदि बनाए जाते थे । सांस्कृतिक बदलाव कभी भी आसानी से नहीं हो पाता था उस दौर तक। फिर अचानक क्या हुआ कि धर्म परिवर्तन के साथ साथ सांस्कृतिक बदलाव बहुत तेजी से हुए । उसके पीछे का कारण है - कट्टरपंथी सोच पूरे विश्व में एक साथ तेजी से उभरना है ।
    यह परिवर्तन उन्मादी होने का  पर्याप्त कारण है । अगर आप धार्मिक बदलाव के साथ मूल संस्कृति में कोई बदलाव नहीं करते तो सामाजिक सामंजस्य में भी किसी भी तरह का नेगेटिव चेंज नहीं आता है और शांति कायम रहती है । 

26.10.20

TANYA SHARMA ON VIJAYADASHAMI PRAV

*विजयादशमी पर हार्दिक बधाई*
🙏🙏🙏🙏
Tanya Sharma (D/O Mr. Sunil Sharma & Mrs Archana Sharma Bhopal)  presents Mahishasura Mardini Stotram. Tanya Sharma is winner of award 2019 organised by National Bal Bhawan Delhi. Tanya Sharma lost her vision but not her confidence and capability she has scored more then 90%  in her 10th board school examination.
https://youtu.be/4i3n4NVl5v4
Please Click "JAY JAY HE"

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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