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मंगलवार, अप्रैल 28, 2020

अत्यधिक लोकेषणा के शिकार हैं हम


सूचना क्रांति के युग में हम सब लोकेशणा के अत्यधिक शिकार हो गए हैं।
  गलती हमारी नहीं है।
  गलती हमारी तब मानी जाती जबकि हम बुद्धि का इस्तेमाल बुद्धि के होते हुए ना कर पाते। इस पंक्ति का अर्थ स्वयं ही  निकलता जाएगा... आलेख में आ गई पढ़ते जाइए और आईने में खुद को निहारिए। हम अपना चेहरा देखकर खुद डर जाएंगे।
   पूज्य गुरुदेव स्वामी श्रद्धानंद कहते थे नाटक बनो मत इससे उलट हम नाटक बन जाते हैं।
एक अंगुली दुख समीक्षा ग्रंथ सी
यह हमारी वृत्ति है। इसका एक दूसरा स्वरूप भी है हम जरा सा करते हैं और उसे बहुत बड़ा प्रचारित करने की कोशिश करते हैं।
बहुत सारे फोटो आते हैं पत्रकारों के पास  यह अच्छे-अच्छे फोटो आते हैं । इन फोटो में लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंस का पालन किए बिना फोटो के एंगल पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कभी-कभी तो पीछे से फोन दिया जाता है भैया नाम वाम देख लेना ज़रा ?
ईश्वर की आराधना का डॉक्यूमेंटेशन
कुछ लोग ऑनलाइन होकर कथित तौर पर अपनी साधना का विज्ञापन दे रहे हैं इतना ही नहीं उसकी विज्ञप्ति बनाकर भी भेज रहे हैं। प्रेस के पास जगह है छाप भी रहा है। यह प्रेरक गतिविधि नहीं है यह आत्मा प्रदर्शन का एक तरीका है। लोगों को यह सोचना चाहिए कि- " हमने ईश्वर की आराधना की हमारी और ईश्वर के बीच के अंतर संबंधों के लिए यह बहुत उपयुक्त प्रैक्टिक अथवा प्रक्रिया है। बहुत लोग आराधना कर रहे हैं चिंतन कर रहे हैं ध्यान कर रहे हैं अच्छा लग रहा है पर कुछ एक लोग विज्ञप्ति बनाकर अखबारों में भेज रहे हैं। सेवा और आराधना करने का डॉक्यूमेंटेशन करना इन संदर्भों में उचित है यह प्रश्न  है ?
जबकि हिमालय की कंदराओं में तपस्या करने वाले योगी गण अखबार में विज्ञप्ति देते फिरते हैं क्या या कोई कैमरामैन ले जाते हैं अपने साथ। सोचिए ईश्वर की आराधना पर केंद्रित खबर अखबारों में छपी और उस आराधना की खबर की कटिंग प्रभु के पास भेजी जा सकती है ना ही गरीबों को भोजन कराने की सेल्फी सूचना मां अन्नपूर्णा को पृष्ठांकित की जा सकती है । 
सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें जमके डाली जा रही है। और खुद कोई और डाले तो कहानी समझ में आती है कि चलिए इनके काम से प्रभावित होकर किसी ने तस्वीर पोस्ट कर दिया घटना का जिक्र कर दिया अच्छा लगता परंतु यह क्या। जबलपुर कलेक्टर जो 12 से 14 घंटे कार्य कर रहे हैं अपनी टीम के साथ इसके अतिरिक्त वे लोग जो दिनभर खटतें चाहे डॉक्टर सफाई कर्मी सरकारी कर्मचारी हूं राजस्व विभाग के अधिकारियों उनको कभी भी हमने अपनी तस्वीर शेयर करते नहीं देखा। परंतु जो घर में बैठे हैं वह जरूर इस दौड़ में शामिल है कि कैसे हमारा नाम पब्लिक जानने लगे और किस तरह मौके का फायदा उठा कर माइलेज लिया जाए।
  मेरे दो मित्र हैं प्रतिदिन लगभग  ₹700 का घास पशुओं को खिलाते हैं वहीं कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता घर से रोटियां बना कर गली के कुत्तों को खिलाती है यह सब बात जब मुझे पता चली तो मैंने कहा इन सबसे बढ़िया समाचार बनाया जा सकता है उन्होंने कहा बिल्कुल नहीं क्योंकि ड्यूटी के साथ अगर हम यह कर रहे हैं तो यह ईश्वर का काम है और इसे प्रचारित करना हमारे काम की कीमत को कम कर देगा। जनता की शुभकामनाएं जरूर मिलेंगी लेकिन सर हमें तो ईश्वर का आशीर्वाद चाहिए हम चाहते हैं कि ईश्वर आशीर्वाद स्वरुप हमें इस कठिन समय से से मुक्त कर दें।
     हमने कहा भाई हम बिना नाम के भेज देते हैं ताकि और लोग प्रेरित हो पर फोटो तो चाहिए फोटो भी भेजना जरूर विवरण तो हमने नोट कर लिया था उन अधिकारियों ने फोटो भेजें जिसमें उनका चेहरा नहीं था। यही है सच्चे वारियर हैं ।
            हम घर में बैठे बैठे अनुमान नहीं लगा सकते कि भारत कितना बदल रहा  है कितना आध्यात्मिक हो गया है जीवन का सच हमको लोकेषणा  से दूर रहना होगा फोटो इज अवर मोटो से बचना होगा इस आध्यात्मिक सोच को आगे बढ़ाइए। क्योंकि अखबार की कटिंग ईश्वर तक भेजने के लिए कोई साधन नहीं है और  न ही ईज़ाद  हुआ है।
              😢😢😢😢😢
कुंठित लोग मेरे विचार से क्रुद्ध हैं
आज़ एक  मजेदार बात हुई इस आलेख को मैंने अपने समाज के एक समूह में पेश कर दिया । दो लोग तत्काल नाराज हो
 गए और  स्वभाविक  था नाराज होना क्योंकि उन्होंने भी कुछ ऐसा ही किया था। शाम होते-होते पूरी गैंग एक्सपोज हो गई। अब बताइए ईश्वर की आराधना का प्रचार करना कहां तक उचित है। कुंठित लोगो  से तो बाद में ने निपटता रहूंगा आपको एक बात अवश्य बता देता हूं दान और आराधना तुरंत महत्वहीन हो जाती है जब इसका प्रयोग आप आत्म प्रदर्शन के लिए करें।
              😢😢😢😢😢
मित्रों अब पर्याप्त समय है टाइम मिलता है लिखने का मन भी करता है शुभ कल रात को यह आलेख लिखा है आप अपनी नाराजगी कमेंट बॉक्स में व्यक्त कर दीजिए
☺️😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊

शुक्रवार, अप्रैल 24, 2020

रहस्यमई जबलपुर शहर : भयंकर आपदा में भी सुरक्षित रहता है

मग्गा बाबा और स्वामी शिवदत्त जी
महाराज गोसलपुर वाले
ओशो के शब्दों में मग्गा बाबा की कहानी मुझे याद आ गई तो सोचा क्यों ना ऐसे ही रीड कर लिया जाए। मैं मग्गा बाबा वाला किस्सा पढ़ रहा था तब मुझे सारे शरीर में शहर अंशी हो रही थी रोंगटे भी खड़े हुए। और मुझे एहसास हो गया कि इस शहर को ध्वस्त होने से बचाने वाले 2 लोग हैं एक मशीन वाले बाबा जिन्होंने जबलपुर को भूकंप से बचाया अपने सीने पर लिया वह कष्ट। और उससे कई वर्ष पूर्व मग्गा बाबा थे ।
मशीन वाले बाबा को तो आप सब जानते ही हैं। पर मग्गा बाबा को जानने के लिए खुद आचार्य रजनीश को आना पड़ता था। यह तो मग्गा बाबा और आचार्य रजनीश के बीच के आध्यात्मिक अंतर्संबंध की बात है और दोनों खगो की भाषा वे दोनों ही जानते थे । आचार्य रजनीश ओशो पद धारण करने के बाद बताया कि मग्गा बाबा कोई और नहीं मोजेज थे ?
यह वह दो विभूतियां हैं जो जबलपुर को सुरक्षित रखें हुए हैं अब तक। 3 ओर से पर्वतों से घिरा हुआ शहर जैसा डॉ प्रशांत कौरव ने बताया आग्नेय कोण पर अवस्थित है इस शहर को कोई नहीं तोड़ सकता इसका नुकसान उतना नहीं होगा जितना की अन्य शहरों में हुआ है। आप देख रहे होंगे कि शहर में कोरोना से मौत कम ही हुई। आप जानते हैं कि जब भूकंप ने जबलपुर में कहर मचाया था तब एक योगी जिसे मशीन वाले बाबा कहते हैं ने अपने सीने पर वह तकलीफ रिसीव कर ली थी । घटना होना तय था इस कारण घटना हुई पर उस घटना से जो नुकसान होता है वह कम होगा। उस रात में जबलपुर में नहीं था मेरी पोस्टिंग थी टिमरनी में। मेरी बेटियां बहुत छोटी थी पूरा परिवार जबलपुर में था रात को मैं जबलपुर में था सोते समय गहरी नींद वाले सपने में अपने शहर को देख रहा था अजीब सा माहौल नजर आ रहा था । मुझे लग रहा था कि सब कुछ हिल रहा है रहस्योद्घाटन आज कर रहा हूं तभी सपने मुझे दो साधु मुझे दिखे जिन्हें मैं नहीं पहचानता और वह चेहरे पर गंभीर तनाव लिए हुए थे।
अर्ध निद्रा अवस्था थी। मेरे जीजाजी और बाजू में सो रहे और भाइयों ने बताया कि भाई देखिए यहां भी भूकंप के झटके महसूस हुए । सारा कस्बा सड़कों पर उतर आया हम भी अपने अपने बिस्तर से हटकर बाहर आ गए तभी किसी ने बताया कि उनकी जबलपुर में फोन पर बात हुई और जबलपुर में भयंकर भूकंप आया। जबलपुर फोन लगाकर बात करने की कोशिश की परंतु संभव नहीं हो सका तब लैंडलाइन फोन चला करते थे मोबाइल नहीं थे घर की कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। सुबह-सुबह लगभग 4:30 बजे फिर एक बार गहरी नींद आ गई। नींद में फिर वही स्वप्न एक साधु शरीर का व्यक्ति जिसके चेहरे पर तनाव था किंतु अपना पंजा दिखाकर मानो कह रहा हो कि सब ठीक है सब ठीक है। मैं पूछना चाह रहा था बाबा हमारे घर में क्या स्थिति है ? बाबा वैसा ही हाथ दिखाते रहे इन इशारों में मुझे समझ पाया कि सब ठीक है।
और दूसरे दिन अखबारों दूरदर्शन और रेडियो के समाचारों से शहर का हाल मिला टेलीफोन पर बहुत देर बाद यानी चौथे पांचवें दिन बात हो सके ।
*जबलपुर में 14 बरस पुराना हनुमान मंदिर भी है क्यों बदलती यह है कि उस मंदिर में स्वयं तुलसीदास जी आए थे मंदिर की स्थापना के लिए। सत्यता क्या है इस पर विमर्श किया जा सकता है खोज भी की जा सकती है। यह भी मान्यता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में शनिदेव् की जीवंत मौजूदगी है । यहां राजशेखर द्वारा विभिन्न पूजा ग्रहों का निर्माण कराया गया और उनमें से एक शनि मंदिर तिलवारा के पास भी है। जिस शहर में शनिदेव का आशीर्वाद होता है वहां की प्रशासनिक व्यवस्था हमेशा चुस्त और दुरुस्त ही होती है इस हिसाब से इस शहर में काम करने वाले शीर्ष अधिकारी सदा ही शहर के प्रति स्वयं को ही जवाबदार समझने लगते हैं इसके हजारों उदाहरण आप महसूस कर सकते हैं।
जहां तक जबलपुर से कटनी मार्ग तक की स्थिति है उसे देखने वाले स्वामी शिवदत्त महाराज है। जिनकी समाधि गोसलपुर रेलवे स्टेशन के पीछे स्थित है और दद्दा जी की सशरीर मौजूदगी भी इस शहर को और उसकी पेरिफेरी को सुरक्षित और संरक्षित रखे हुए हैं। अधिकांश जबलपुर वासी अपने शहर की कीमत नहीं पहचान सके हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण जाबालि ऋषि की भूमि भृगु की तपोभूमि बहुत ही महत्वपूर्ण और सुरक्षित है।
इन सब बातों को कि अलावा आप तो जानते हैं की नर्मदा के तट पर विकसित शहर या गांव कस्बे कभी भी अभागे नहीं होते ।
इन सब बातों को बताते हुए शहर वासियों को एक चेतावनी भी है शनि देव अनुशासन के देवता होते हैं कानून और न्याय के संरक्षक माने गए हैं। मित्रों मेरी बात समझ रहे हैं ना कभी भी राज आज्ञा का उल्लंघन करने की कोशिश करना व्यक्तिगत रूप से घातक होगा इसलिए कोशिश यह की जाए कि राजा क्या का उल्लंघन ना करें। वरना परिणाम बहुत जल्दी सामने आएंगे। आप अभी कोरोना संक्रमण के बारे में गंभीर नहीं है तो अब हो जाएं। आप सदा अमरत्व प्राप्त हनुमान एवं शनि देव से संरक्षित नर्मदा से आशीर्वाद प्राप्त भले ही हैं परंतु अगर आपने राज आज्ञा का उल्लंघन किया तो दंड स्वयमेव प्राप्त होगा भले ही आप राजदंड से बच जाए।

गुरुवार, अप्रैल 23, 2020

जिओ के साथ फेसबुक के आने का रहस्य

जिओ फेसबुक फ्रेंडशिप

पृथ्वी दिवस के अवसर पर अचानक की खबर आती है कि फेसबुक ने मात्र 9.99 प्रतिशत ठेकेदारी के लिए एक बड़ी रकम जिओ को सौंप दी है . . ?
इसके कई राजनीतिक एवं अन्य मायने निकाले जा रहे हैं। जब गंभीरता से पर विचार किया और परिस्थितियों का अवलोकन किया तो पता चलता है कि फेसबुक ने एक और चैट सर्विस से पहले हाथ मिला लिया...और वह सर्विस है हमारी सर्वाधिक लोकप्रिय सर्विस व्हाट्सएप . उधर 22 अप्रैल 2020 को फेसबुक ने जिओ को 43,574 करोड़ रुपए देखकर अपनी रिश्तेदारी पक्की कर ली है ।
बाकी सारे आंकड़े आपने अखबार में पढ़ ही लिए हैं उस पर ज्यादा विचार करना या उसे यहां पुनः लिखना अर्थहीन है। पर हम आपको बता दें कि यह एक ऐसी ट्रिनिटी संधि है जिसमें सब एक दूसरे का हाथ पकड़कर चलेंगे। फेसबुक जिओ और व्हाट्सएप। यहां तक तो बात बिल्कुल साफ है कि ऐसा अक्सर व्यवसाय में चलता है , यह नई बात तो है नहीं। पर इसमें नया एंगल क्या है ऐसा फेसबुक ने क्यों किया ?
यही सवाल सोच रहे हैं ना आप ।
तो समझिए के अब फेसबुक एक तरह से किसी ऐसे व्यवसाय में कूदना चाहता है जो उसे आने वाले समय में एक विकल्प के रूप में खड़ा कर दे और वह व्यवसाय हो सकता है ऑनलाइन मार्केटिंग ।
वर्तमान में इसके 3 बड़े खिलाड़ी है अलीबाबा अमेजॉन और फ्लिपकार्ट । भारत एक विशाल बाजार है। यह आप सब जानते हैं यद्यपि बता दिया। बाजार की नब्ज पकड़ना बहुत जरूरी है और नब्ज ट्रेडिशनल तरीकों से पकड़नी मुश्किल होगी।
फेसबुक बहुत ही अधिक चिंतित रहता है आपके बारे में उसे मालूम है कि आज आपके मित्र से 5 साल पहले मित्रता हुई थी। फेसबुक ना केवल मित्रता की याद दिलाएगा और आपकी एक्टिविटी के आधार पर हो सकता है कि आपको यह बता दे आपके मित्र को अमुक वस्तु ऑनलाइन गिफ्ट की जा सकती है। हो सकता है आपको मेरे सोचने पर हंसी आ जाए। लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी का मतलब भी यही है आप भले ही अपना डाटा किसी को ट्रांसफर ना करें फिर भी आपको क्या पसंद है इसका अनुमान इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी के जरिए पता लगाया जा सकता है। हमारा सबसे करीबी रिश्तेदार सोशल मीडिया फोरम है। चाइना के चित्र देखकर हमें हंसी आ जाया करती थी एक कैरीकेचर में कार्टूनिस्ट ने दर्शाया था कि चीन के रेलवे स्टेशन पर प्रत्येक हाथ में सेलफोन था। और सारी भीड़ सिर झुकाए खड़ी हुई थी। ट्रेन आती है प्रतीक्षारत यात्रियों की निगाहें दरवाजे तक पहुंचते-पहुंचते भी लगभग सेल फोन पर होती है।
इस तरह हम अत्यधिक हमारे व्यवहार से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को परिचित करा रहे होते हैं। और आपकी यह जानकारी यानी ट्रेंड का उपयोग आप को परोसे जाने वाले कंटेंट, को सुनिश्चित करता है। लेकिन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी कुछ कदम आगे और बढ़ रही है आपकी रुचि और आवश्यकता का आकलन करते हुए आपके सामने वह प्रोडक्ट रखा जाएगा जो लगभग आपकी रुचि के अनुकूल है। मित्रों अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें जियो से फेसबुक को क्या फायदा होगा ?
इससे फेसबुक जब अपना व्यवसाय विस्तारित करेगा तो वह निश्चित तौर पर डाटा सर्विस पर सर्वाधिक निर्भर करेगा और जिओ डाटा नेटवर्क के ग्राहक भरपूर मात्रा में जिओ के पास मौजूद है । चलिए देखते हैं आने वाले समय में क्या होता है कैसी लगी जानकारी आपको पसंद आए तो आप इसे शेयर कीजिए

बुधवार, अप्रैल 22, 2020

उत्तरकांड दोहा 120 से 121 का वायरल टेस्ट : संजय राजपूत

यह आलेख श्री संजय सिंह राजपूत गंभीर अध्ययन कर्ता हैं । श्री संजय राज्य ग्रामीण संस्थान जबलपुर में संकाय सदस्य के रूप में कार्यरत हैं और रचनात्मक लेखन उनकी विशेषता है। सोशल मीडिया पर वायरल उत्तरकांड के दोहा क्रमांक 120 से लेकर 121 तक को कुछ अध्ययन शील लोगों ने फोटो लगाकर इस कदर वायरल किया महात्मा तुलसीदास ने कोरोना वायरस चमगादड़ का जिक्र उत्तरकांड में उपरोक्त दोहों में कर दिया है । उत्तरकांड में चौपाइयां और दोहे सोरठे सरल तरीके से लिखे गए हैं जिनका अर्थ आसानी से लगाया जा सकता है परंतु हमारे बुद्धिमान पढ़े लिखे लोग भी इसे अनावश्यक वायरल करने से बाज नहीं आए। संजय जी ने इसका विश्लेषण कर मुझे भेजा है। कृपया पढ़िए और जानिए क्या लिखा है उत्तरकांड में 

रामचरित मानस के उत्तर काण्ड में
‘‘चमगादड़ और कफ आदि बीमारी’’ का व्हाट्सएप संदेश पर विचार-मंथन
(गोस्वामी तुलसीदास रचित -रामचरित मानस, उत्तर काण्ड,
दोहा नम्बर 120-121 के विशेष संदर्भ में)
विचार मंथन: डाॅ. संजय कुमार राजपूत, संकाय सदस्य
महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास एवं पंचायतराज संस्थान-मध्यप्रदेश, 
अधारताल, जबलपुर
पूरी दुनिया में कोरोना (COVID-19) वायरस महामारी का विकराल रूप देखने मिल रहा है। जिसका असर हमारे शरीर और मन दोनों पर पड़ रहा है। लाॅक डाउन के दौरान व्हाट्सअप पर कोरोना संक्रमण से संबंधित बहुत संदेश पढ़ने मिल रहे हैं।
ऐसा ही फारवर्डेड संदेश इन दिनों व्हाट्सऐप पर वायरल हो रहा है जिसमें रामचरित मानस उत्तर काण्ड के दोहा नम्बर 120 एवं 121 का संदर्भ देते हुये व्याख्या दी गई कि, ‘‘जब पृथ्वी पर निंदा बढ़ जाएगी, पाप बढ़ जाएंगे तब चमगादर (चमगादड़) अवतरित होंगे और चारों तरफ उनसे संबंधित बीमारी फैल जाएंगी और लोग मरेंगे। एक बीमारी जिसमें नर मरेंगे उसकी सिर्फ एक दवा है प्रभु भजन दान और समाधि रहना यानी लाॅक डाउन।’’ इसी प्रकार की भ्रामक व्याख्यायें मैसेज के साथ पढ़ने मिल रही हैं।
रामचरित मानस में इन दोहों के अर्थो को पढ़ने से मुझे जितना समझ आया उन्हें लिख रहा हूॅं। ये जरूरी नहीं कि आप मेरे विचारों से सहमत हों। सबसे पहली बात मुझे तो ये सही नहीं लगती है कि, गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड के दोहा नम्बर 120 और 121 में जिन विषयों को वर्तमान में फैले कोरोना जैसे संक्रमण महामारी से संबंधित हो। अब हम विचार करते हैं रामचरित मानस के उत्तर काण्ड के दोहा नम्बर 120 क-ख के बाद चैदहवीं चैपाई के संबंध में जिसमें लिखा है कि, ‘‘सब के निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होई अवतरहीं। सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा।। 
रामचरित मा
 डॉ संजय सिंह राजपूत 
नस के टीकाकारों ने इसका अर्थ लिखा है कि, जो मूर्ख मनुष्य सबकी निन्दा करते हैं, वे चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं। हे तात ! अब मानस-रोग सुनिये, जिनसे सब लोग दुःख पाया करते हैं। इसके आगे की चैपाईयों में मोह-अज्ञान को रोगों की जड़, काम को वात, लोग को बढ़ा हुआ कफ, क्रोध को पित्त के समान बताया है। 
दोहा नम्बर 121 क ‘‘एक ब्याधि बस नर मरहिं, ए असाधि बहु ब्याधि। पीड़हि संतत जीव कहुॅं, सो किमि लहै समाधि।। इसका मतलब ये है कि जब एक ही रोग के वश होकर मनुष्य मर जाते हैं, फिर ये तो बहुत-से असाध्य रोग हैं। ये जीवों को निरन्तर कष्ट देते रहते हैं, ऐसी दशा में वह समाधि (शान्ति) को कैसे प्राप्त करें ? इसके आगे के दोहों और चैपाईयों में नियम, धर्म, आचार (उत्तम आचरण), तप, ज्ञान, जप, दान जैसी औषधियों के साथ ही साथ अन्य उपायों को बताया गया है। 
सार की बात है कि, 
रामचरित मानस उत्तर काण्ड के दोहा नम्बर 120 क-ख के बाद चैदहवीं चैपाई में जब हम ‘‘सुनहु तात अब मानस रोगा’’ पढ़ते हैं तो सवाल ये उठता कि, ये ‘‘तात’’ कौन हैं और ये किससे - कब और किस संदर्भ में बात कर रहे हैं। 
इस जिज्ञासा का समाधान हमें मिलता है उत्तर काण्ड के 120 नम्बर की पहले के दोहों, चैपाईयों में ही। ये बातें कागभुशुण्डी जी ने गरूण जी से दुःख और सुख के संदर्भ में कहा है। इस विचार मंथन से नीचे लिखी तीन बातें सार के रूप में निकलती हैं:-
(1) गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड के दोहा नम्बर 120 और 121 ऐसा कुछ भी नहीं लिखा गया है जिसका सीधी संबंध इस समय महामारी के रूप में फैले संक्रमण ‘‘कोराना’’ से हो। 
(2) ये बातें कागभुशुण्डी जी ने गरूण जी से दुःख और सुख के संदर्भ में बताया है। जिसमें मानस रोग जैसे मोह-अज्ञान को रोगों की जड़, काम को वात, लोग को बढ़ा हुआ कफ, क्रोध को पित्त के समान बताया है। 
(3) इस प्रकार के बहुत-से असाध्य रोग हैं। ये जीवों को निरन्तर कष्ट देते रहते हैं, ऐसी दशा में वह समाधि (शान्ति) को कैसे प्राप्त करें ? इसके आगे के दोहों और चैपाईयों में नियम, धर्म, आचार (उत्तम आचरण), तप, ज्ञान, जप, दान जैसी औषधियों के साथ ही साथ अन्य उपायों को बताया गया है। 
तो अब आगे क्या ...
मेरा अनुरोध बस इतना ही है कि, व्हाट्सएप पर जब भी कोई संदेश आगे बढ़ावें तो उसके पहले एक बार ये जरूर सोचें कि क्या ये संदेश आगे बढ़ाने लायक है या नहीं। अब तो इस प्रकार के अनुपयुक्त और भ्रामक संदेशों को भी अपने मोबाईल में ‘‘लाॅक डाउन’’ करने की जरूरत दिखाई देने लगी है। ऐसा करने से हम भ्रांतियों के संक्रमण को रोकने में अपना सकारात्मक योगदान दे सकेंगे। 

मंगलवार, अप्रैल 21, 2020

पालघर पर टिप्पणी मत करो सवाल के उत्तर देदो


इस आर्टिकल को किसी भी स्थिति में सांप्रदायिक नजरिए से पढ़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह आर्टिकल केवल लचर प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डाल रहा है। लल्लनटॉप के इस प्रसारण को देखें जिसमें स्थिति बेहतर स्पष्ट रुप से विश्वास करने योग्य है जिसमें उन्होंने आवश्यकता को रेखांकित किया है। इस रिपोर्ट में सौरभ द्विवेदी साफ तौर पर कहते हैं कि उस स्थान पर रहने वाले लोग उग्र थे कारण था उस क्षेत्र में बच्चोंं का अपहरण हो जाना। वहां के निवासियोंं द्वारा जन रक्षक समिति बनाकर अनजान लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने एक डॉक्टर और पुलिस को भी लिंचिंग का टारगेट बनाया। स्पष्टट है कि पल भर के पुलिस प्रशासन ने 8 दिन सेे चली आ रही कथित परिस्थिति पर कोई फुलप्रूफ कार्यक्रम तैयार नहीं किया। और यह घटना हो गई। इस आलेख का यह आशय कदापिि नहीं की हम किसी संप्रदाय बिंदु को यहां प्रमुखता दे रहे हैं
हमारे प्रश्न है कि सोशल मीडिया के रिस्पांस बिल ठेकेदार खासतौर पल-पल में ट्वीट करने वाली सेलिब्रिटी जो आधी रोटी में दाल लेकर उच्च करना शुरू कर देते हैं ने महाराष्ट्र सरकार को क्या क्या और कैसे कैसे सुझाव दिए। पर आप जानते हैं की
आयातित विचारधारा की  भीड़ ने  कसम खा ली है कि वह पालघर का जिक्र ना करेंगे और ना ही वे किसी भी स्थिति में अवार्ड वापस करेंगे। क्योंकि अब उनके पास अवार्ड नहीं बचे हैं और पालघर में जो हुआ वह होना ही था क्योंकि गलतफहमी हो गई थी । है न इस तरह की गलतफहमी का अर्थ है कि अगर आप यानी केवल आप गलतफहमी में  कानून हाथ में लें तो ले सकते हैं !
पता नहीं कौन सा संविधान इनके पास है जिस पर यह चलते हैं । यही आतंकवाद है यही नक्सलवाद है।
चलो ठीक है कुछ मत करो संवेदनाएं तो है नहीं तो व्यक्त क्या करोगे। यदि संवेदना नहीं है तो मेरे कुछ सवालों का जवाब दे दो । नीचे दिए प्रश्नों को देखकर आप महसूस करेंगे कि कुछ प्रश्न काफी तीखे हैं परंतु यह बात नहीं है ऐसे प्रश्न सहज और जरूरी भी तो हैं।
1. गलतफहमी या भ्रम किसी की हत्या का अधिकार देता है क्या ऐसा कोई संशोधन बिल महाराष्ट्र में पास हो गया है
2. जिन भी लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की है उनकी सूची साथ में जारी क्यों नहीं की गई
3. क्या वहां बच्चा चोरी करने की घटनाएं आमतौर पर होती रहती है पालघर से कितने बच्चे चोरी हुए हैं उनकी लिस्ट तो थाने में मौजूद होगी ना उसे प्रकाशित क्यों नहीं किया। यहां समझने की यह बात भी है कि पुलिस स्वयं कथित तौर पर मॉब लिंचिंग की शिकार हुई है तो क्या पुलिस ने कोई फुलप्रूफ कार्रवाई की।
4. पुलिसवाला मॉब को नियंत्रित रखने में सक्षम नहीं था तो क्या उस पास मोबाइल भी नहीं था कि वह अतिरिक्त फोर्स मांग ले क्या आपने उसकी एफ आई आर भी की है
5. गलती और गलतफहमी से हुई हत्या हत्या नहीं होती इसे किस रनिंग में रख रहे हैं आप ।
6. साधुओं की ₹50000 और सोने की कीमती धातु से बनी पूजन सामग्री गलती से लूटी है या गलतफहमी से
7. इसे मॉब लिंचिंग नहीं कहा जा सकता यह सुनियोजित हत्या है जिसमें महाराष्ट्र पुलिस का सिपाही भी शामिल है यद्यपि ऐसा लगता है कि वह स्वयं को असहाय महसूस कर रहा है। पुलिस वाला एक था या एक से अधिक किस बात की पुष्टि वीडियो से जो हमने देखा नहीं हो पा रही है
8. महाराष्ट्र के गांव में अव्यवस्था का अर्थ क्या निकालें
इन सवालों का जवाब आप देंगे या रवीश कुमार स्वरा भास्कर अथवा आयातित विचारधारा का कोई शीघ्र बताएं ।
आलेख में हम बार-बार यह कहना चाहते हैं कि यह व्यवस्था पर प्रहार है ना कि किसी जाति धर्म वर्ण से संबंधित ही है।

सोमवार, अप्रैल 20, 2020

"रघुवीर यादव : जबलपुर से मुंबई वाया ललितपुर...!"


रेलवे कॉलोनी के बंगले में मेरे मित्र संजय परौहा बाहर से ही आवाज लगाई और कहां तुरंत चले आओ रजत मयूर लेकर रघुवीर यादव आने वाले और हम एक आर्टिकल तैयार करते हैं देशबंधु के लिए 1985-86 की यह बात है ! फिल्म मेसी साहब के लिए यादव को रजत मयूर मिला। सुबह का 9:00 बजा था और हम दोनों मित्र रेलवे स्टेशन वाले हमारे बंगले से कुछ कर गए रघुवीर यादव से मिलने इंटरव्यू लेने। उन दिनों देशबंधु दिन में निकलने लगा था। सुरजन परिवार द्वारा प्रबंधित यह अखबार एक खास पर्व जिसे आप इंटेलेक्चुअल्स कह सकते हैं के बीच बहुत लोकप्रिय था । संजय के साथ जाकर हमने रघुवीर यादव का इंटरव्यू लिया। एक तस्वीर हम दोनों की हाथ में रजत मयूर छू कर देखा था हमने जबलपुर के लिए एक गरिमा में बात थी जबलपुर का एक भगोड़ा लड़का भागकर वापस आया तू उसके हाथ में एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। रघुवीर जी के नाना के स्कूल में वे अपनी गुरुजी प्रिंसिपल रासबिहारी पांडे जी से मिलने आए थे। बहुत थके थके थे किंतु उत्साह उमंग और खुशियां उस शॉर्ट हाईटेड इंसान को एफिल टावर का एहसास दे रही थी । कम से कम हमने तो यही महसूस किया। अकेले नहीं थे पूर्णिमा भी थीं उनके साथ में । भीड़भाड़ में उनसे बात करना बहुत दूभर हो रहा था और हम ना तो प्रोफेशनल पत्रकार पर हां इंटरव्यू वगैरह लेने के लिए मैंने कुछ सवाल तैयार किए थे। हमारी पारिवारिक संपर्क में बड़े भाई की तरह हैं छायाकार पप्पू शर्मा उन्होंने यादव जी से लिए गए इंटरव्यू को स्टील कैमरे में कैद किया था और शाम तक एक ब्लैक एंड वाइट फोटो ला कर दी। इस नीचे दिए हुए वीडियो में जो विवरण सुनेंगे लगभग वैसे ही जवाब रघुवीर जी ने दिए थे । उन्होंने यह भी बताया था कि वह किसके साथ घर से भागे थे पर मुझे स्पष्ट रूप से कह दिया था उस व्यक्ति का नाम छापने की जरूरत नहीं। आर्टिकल में जब उसका नाम नहीं देखा तो सम्पादक जी ने कहा इस व्यक्ति का नाम क्यों नहीं दे रहे सम्पादक जी को बताया गया कि उनका नाम लिखने के लिए मना किया है रघुवीर जी ने ।
ललितपुर पारसी थिएटर एनएसडी से लेकर संघर्ष के दिनों की पूरी दास्तां से हम परिचित हो चुके थे। हम चाहते हैं कि पूर्णिमा जी से भी कोई बात कर ली जाए परंतु हमें और उनको दोनों को ही केवल  15 मिनट मिल पाए थे। आज राज्यसभा टीवी मैं इस लिंक पर जाकर जब दिखा तब समझ में आया कि 70 के दशक में या उसके पहले का दौर कितना कठिन रहा होगा । जबलपुर जैसे कस्बाई शहर में कलाकार की जिंदगी जीना आज भी बहुत मुश्किल है तब तो और कठिन हो रही होगी। 25 जून 1957 को जन्मे रघुवीर यादव ने बताया था कि वह रिजल्ट के डर से भागे थे।
लेकिन उनका उद्देश्य सिर्फ अपनी कला को निखारना था । रघुवीर यादव ने 1967 से संभवत 1975 तक खानाबदोश की जिंदगी बिताई। वे पारसी थियेटर के लोगों के साथ घुल मिल गए ढाई रुपए रोज में नौकरी करने वाला रजत मयूर पाकर संघर्ष की पूरी एक सफल दास्तान बन गया था। उनके वे हमउम्र अगर यह आर्टिकल पढ़ेंगे तो उन्हें शर्मिंदगी जरूर होगी कि जैसे ही पागल कहते थे और व्यंग कसते थे वह आज अपनी मंजिल पर सफलता का झंडा फहरा रहा है।
तो देखिए यह वीडियो लगभग वैसा ही है जैसा हमको यानी मुझे और संजय परोहा को रघुवीर जी ने इंटरव्यू में बताया था। सच कहूं तो उस दौर में मेरे काका श्री उमेश नारायण बिल्लोरे भी थिएटर किया करते थे। किंतु उस दौर में गायन नाटक इन सब विधाओं को अपनाने वालों को हिराक़त भरी नजर से दुनिया देखती थी उनको तो ताऊजी स्टेशन से ट्रेन से उतारकर वापस ले आए थे ।
    रघुवीर यादव संगीत के क्षेत्र में अपना ज्ञान बढ़ाना चाहते थे। रांझी का यह किशोर क्या आज नहीं सोचता होगा कैसे हो संगीत सीखे कहां जाएं क्या करें..?
सच बताओ रघुवीर जी उस दौर में अगर आज की तरह फैसिलिटी होती है तो आप अभिनेता नहीं बन पाते। मैसी साहब में हमने आपको बहुत करीब से परखा। आपका अभिनय दिल में आज तक बसा हुआ है। पता नहीं अब आप मुझे पहचानते हैं कि नहीं कई बार आप जब जबलपुर आते हैं संयोग ही कहिए मैं आपसे नहीं मिल पाता पर जो पक्को है हम तुमाय जबरा फैन हैं बड्डा😊😊😊😊 . और हां एक बात और बता देत हैं भौत दिन तक आपके इंटरव्यू की मैंनस्क्रिप्ट संभाल कर रखी हति मनौ को जानि कितै हिरा गई ।
https://youtu.be/DUDGwTi-O9s
आज मेरी एक विद्यार्थी ने कोक स्टूडियो में रिकॉर्डिंग का वीडियो शेयर किया तो आपकी याद ताजा हो गई। सोचा कि आप से बात कर दी जावे सो बस लिख दिया यह आर्टिकल ।
https://youtu.be/e94zMF2OSm8
😊😊😊😊😊😊
कोक स्टूडियो में रिकॉर्डिंग लमटेरा को सुनिए इसमें गायक स्वर हमारे रघुवीर भैया का है आपके रोंगटे ना खड़े हो जाए तो बताइएगा
https://youtu.be/Bft1EZxmp1Q
  यह जो बंबुलिया वाला दृश्य आप याद कर रहे हो ना मुझे भी बहुत याद आता है। सालेचौका भिटोनी गाडरवारा नरसिंहपुर गोसलपुर रेलवे कॉलोनी के पास से निकलने वाली नर्मदा भक्तों की भीड़ से यह आवाज जो दिमाग में बसी है मुझसे तो दूर नहीं हो सकती मुझे से क्या किसी से भी वही मिठास वही देसी एहसास आज आपका यह वीडियो मेरे रोंगटे खड़े कर देने के लिए पर्याप्त था।
आपके बारे में पतासाजी करते रहने का प्रमाणपत्र यह आर्टिकल है ।

रविवार, अप्रैल 19, 2020

भारत में विदेशी पूंजीगत निवेश मैं सतर्कता के संकेत


भारतीय अर्थव्यवस्था में कोरोना वायरस संक्रमण परिस्थिति के दौरान कठिनाइयों का आना स्वभाविक है। परंतु वर्तमान में ऐसा कुछ बहुत स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई दे रहा... दक्षिण एशियाई देशों भारत की सीमा से लगे देश अथवा विशेष रुप से कोरोना वायरस संक्रमण जैसी आपदाओं का लाभ उठाने वाली अवसरवादी आर्थिक व्यवस्था द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में सीधे दखलअंदाजी कर सकती है। भारतीय कंपनियों के माध्यम से अगर कोई कष्टप्रद निवेश हो सकता है तो वह होगा चाइना द्वारा। लेकिन वित्त मंत्रालय निश्चित रूप से इस पर सतर्कता बरतेगा ऐसा अर्थशास्त्रियों का मानना है।
आज भारत सरकार ने एक पत्र जारी कर एफडीआई निवेश पर अर्थात विदेशी डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के तहत 10% से अधिक निवेश को सरकारी अनुमति के बिना अनुमति नहीं दिए जाने की भी सूचना वित्त मंत्रालय से प्राप्त हो रही है।
जय सूचना होते ही लागू हो जाएगी इससे भारतीय कंपनियां चाइना जैसी अवसरवादी अर्थव्यवस्था से प्रभावित रहेगी। आप जानते हैं कि चीन ने अमेरिका की इस पर पकड़ ना रखने वाली पॉलिसी का लाभ उठाकर कई अमेरिकी कंपनीस पर अपना प्रभाव जमाने की पूरी तैयारी कमरकस के कर दी है। एफडीआई पॉलिसी में कुछ परिवर्तन किया है। जहां तक चाइना की व्यवसाई समझ का मामला है तो पाठकों को यह जानना आवश्यक है कि यह देश बेहद सुनियोजित तरीके से किसी भी राष्ट्र की मजबूरियों का फायदा उठा सकने में सक्षम है।
यहां प्रधानमंत्री द्वारा घोषित मेक इन इंडिया कार्यक्रम सह अस्तित्व पर आधारित माना जावेगा।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि एफडीआई पर इस तरह का प्रतिबंध लगाकर भारत सरकार ने समय रहते एक साहसिक कदम उठाया है।
आर्थिक विचारक यह भी मानते हैं कि-" इससे व्यवसाई कटुता बढ़ सकती है परंतु जब भारत एक बहुत बड़ा शॉपिंग कंपलेक्स है ऐसी स्थिति में कोई भी देश भारत के इस कदम पर कोई कमेंट नहीं कर पाएगा" किसी भी सरकार का ऐसा कर पाना साहसिक कदम की श्रेणी में आता है।
कोरोना वायरस संक्रमण काल में सेंसेक्स पर अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा है, इससे भारत की उपलब्धि ही कहा जाएगा।
जहां तक शेयर बाजार की गतिविधि को समझें तो स्थिति बहुत असामान्य उच्चावचन नहीं दिखा रही है।

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