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19.12.20

कविता कब लौटेगी, बीते दिन की मेरी तेरी राम कहानी ।।

वो किवाड़ जो खुल जाते थे, 
पीछे वाले आंगन में
गिलकी लौकी रामतरोई , 
मुस्कातीं थीं छाजन में ।
हरी मिर्च, और धनिया आलू, अदरक भी तो  मिलते थे-
सौंधी साग पका करती थी , 
मिटटी वाले बासन में ।।

वहीं कहीं कुछ फुदक चिरैया, कागा, हुल्की आते थे-
अपने अपने गीत हमारे, 
आँगन को दे जाते थे ।।
सुबह सकारे दूर कहीं से 
सुनके लमटेरों की  धुन
जितना भी हम समझे 
दिन 
भर राग लगाके गाते थे ।। 

कुत्ते के बच्चे की कूँ कूँ, 
तोते ने रट डाली थी
चिरकुट बिल्ली घुस चौके में, 
दूध मलाई खाती थी ।
वो दिन दूर हुए हमसे अब, 
नैनों में छप गई कथा
चने हरे भुनते, खुश्बू से , 
भीड़ जमा हो जाती थी ।।

गांव पुराने याद पुरानी, 
दूर गांव की गज़ब कहानी ।
कब लौटेगी, बीते दिन की 
मेरी तेरी राम कहानी ।।
शाम ढले गुरसी जगती थी, 
सबके घर की परछी में-
दादी हमको कथा सुनाती, 
एक था राजा एक थी रानी ।।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

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