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8.11.10

महफ़ूज़ मुझे खुद मुझसे ज़्यादा प्रिय हो..!

प्रिय महफ़ूज़
"असीम-स्नेह"
बज़ से जाना कि अब बिलकुल ठीक हो हम सबके लिये   खुशी की बात है. तुम्हारी कविता तुमको याद है न 

Fire is still alive.
But what of the fire?
Its wood has been scattered,
But the embers still dance.
Though the fire is tiny,
It survived.
Though the fire is weak,
It's still alive.

Mahfooz Ali

 महफ़ूज़ भाई तुम्हारे जीवन की कविता है सच  तुम वो आग हो जिसे कोई सहजता से खत्म कैसे कर सकता है. मैं क्या सारे लोग तुम्हारी ज़िंदगी के लिये अपने अपने तरीक़े से प्रार्थनारत थे. कौन हो किधर से हो कैसे हो मैं नहीं जानना चाहता. पर नेक़ दिल हो तभी तो "महफ़ूज़" हो. सारी बलाएं जो भी जब भी तुम पर आतीं हैं जिसकी आशंका मुझे सदा रहती है ईश्वर की कृपा से सच ज़ल्द निपट ही जातीं हैं.ज़िन्दगी में उतार-चढ़ाव सबके आतें हैं किन्तु तुममें प्रकृति ने जो ईर्षोत्पादक-तत्व  दिया है वो एक मात्र कारण है कि किसी न किसी की शिकारी निगाह तलाश ही लेतीं हैं तुमको. मेरे तुम्हारे जीवन में बस एक यही समरूपता है. मैं भी बार बार मारे जाने वाला इंसान हूं मुआं मरता ही नहीं  .वो.जो . जो बार बार पीछे से वार कर रहें है ईश्वर से विनत प्रार्थना करता हूं "प्रभू इन को माफ़ कर देना ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहें हैं..?" यक़ीन करो  तुम पर हमले वाले दिन बहुत बेक़ल फ़िर उस रात देर रात देखी तुम्हारी कविता और बस यकीं कर लिया महफ़ूज़ को  कोई मार नहीं सकता. महफ़ूज़ मुझे मालूम था शायद तुम मेरी स्थिति जान कर भावुक हो जाओगे रोने लगोगे तभी तो मैने अपना दर्द तुमसे शेयर नहीं किया. इन दिनों मैं बहुत तनाव जी रहा हूं लोग निरंतर कपट कर रहें हैं तुम भाग्यवान हो कि तुम्हारे शत्रु सामने हैं. मुझे दिखाई नहीं देते बस महसूस कर लेता हूं. २९  नवम्बर को  मेरा अड़तालीस का होना तय है  उम्र के इस मोड़ पर करूं तो क्या करूं खैर छोड़ो मेरे तनावों को गोली मारो... बस बताओ बिना संघर्ष के जीवन बेनूर नहीं लगता ? लगता है न हां तो संघर्ष में जीत का  पहला कवच सदा "धैर्य" ही होता है. जिसे मैं एक बार खोने जा रहा था पर बस सोचा "सवेरा तो रोज़ ही होता है न..? कब तक तिमिर रुक पाएगा. 
मेरे घरेलू एलबम में मेरी आठ माह की उम्र की एक तस्वीर हुआ करती थी "मरफ़ी-बेबी" तुलना करती थी मां फ़िर अक्सर  मुझे देखकर  आंखे भर आतीं थीं उनकी मैं बेखबर होता था यह घटना कई बार होती . एक बार मेरे चाचा जब आये और उनने यह दृश्य देखा तो मेरी फ़ोटो मांग ली ले भी गए अपने साथ अर्थ बहुत दिनों बाद समझ पाया कि मां की आंखें क्यों नम हो जाया करतीं थीं. रमेश काका फ़ोटो क्यों ले गये. मां-बाबूजी अक्सर मेरे भविष्य को लेकर चिंता करते थे इस बात का एहसास मुझे जब भी हुआ कोशिश की कि कुछ ऐसा करूं कि  वे निश्चिंत रहें .कोशिश की सफ़लता मिलीं किंतु आज़ बाबूजी मेरे लिये बेहद दु:खी हैं अस्सी बरस के बाबूजी का खून जल रहा है मेरा एक अफ़सर जिसके  बीमार पिता को मैंने अपने शरीर से खून दिया उसी ने सारे ऐसे-षड़यंत्र की रचना की है जो मेरे पिता के  खून जलाने का सर्व-प्रथम कारण  रहा उसे भी इस आलेख के ज़रिये उसे भी माफ़ कर रहा हूं . यह विवरण यहां इस लिये दे रहा हूं किसी  शत्रुओं से ज़्यादा खतरनाक होते हैं सबसे क़रीबी लोग होते हैं इनको पहचानना मुझे दे से आया तुम इनको ज़ल्द पहचानो मेरी मंशा है विश्वास भी है. इस बीच तुमको बताना चाहूंगा कि मेरे दो एलबम बहुत शीघ्र आएंगे अगर परिस्थियां अनुकूल रहीं एक तो टंग-ट्विस्टर गीतों का जो बच्चों के लिये होगा पूर्णत: चैरिटि के लिये होगा. दूसरे के लिये  आज़ ही सूचना मिली है. अब बताओ कि ज़िंदगी कितनी ज़रूरी है ईश्वर के हाथों सब कुछ संचालित होता है  दुश्मनों की सद गति के लिये हम सभी ईश्वर ये याचना करें यही जीवन का सर्वोच्च सत्य है. तुम्हारे और मेरे जीवन में एक अहम समानता है वो है दु:खों का आधिक्य तभी तो  महफ़ूज़ मुझे खुद मुझसे ज़्यादा प्रिय हो..!
अशेष शुभ कामनाओं के साथ दाल-बाटी खाने का न्योता भी दिये देता हूं

18.5.10

गिरीश का खुला खत कुंठितों के नाम

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj10akW7QU7RbpoOfNJZtbqUgYHgxReJjPHRTuhEIwl2CeKKy5mOezz4mKc0eF3frq8Xw-1-iHByvRigDgtQPYDKURqbzOn2zxo05rE4Zks6b43AFp0My4SXqMIJUTv07ZpEGW1NVDg26w/s1600/girish1.jpg


प्रिय
कुंठावानों
आपका जितना भी ज्ञान था कुंठा  की क्यारियों में रोप  आये हैं. आपके  बारे कहा जाता है कि -”उनके पास  अब तो शब्द भी चुक गये हैं . गाली गुफ़्तार एवम शारीरिक अक्षमता तक पर टिप्पणी करने लगे हैं.”
आप के सर पर जिन लोगों का हाथ है वे स्वयम कुंठा के सागर में हिलोरें लेतें हैं.आप को ब्लाग पर गलीच शब्दों का स्तेमाल करने का कोई अधिकार न था न है. जब किसी विवाद में खुद को फंसे देखते है तुरंत ही मित्रवत पोस्ट लिखने का दावा करवाते है, इन रीढ़ हीनों का वैयक्तिक-चरित्र क्या होगा ? यह सब जान-समझ  सकतें है, विवाद जो नहीं था दिनेश जी यदी यह सत्य है तो सब सोच रहे हैं कि यकीनन ये सब कुछ आपसी मिली-भगत थी. जो लोग मौज लेने के लिये किया करतें हैं......?वैसे यह स्वयं लेखक कहते तो गले उतरती ...! समकाल पर आई यह पोस्ट वास्तव में लीपा पोती का एक असफ़ल प्रयास है. इस आरोप को मैं अंगद की तरह पुष्ट मान रहा हूं. वैसे तो देशनामा पर स्पष्ट संकेत मिल गये होंगे. ट्राल किस्म के लोगों को समझ लेना चाहिये. कि ब्लागिंग भी सरस्वती साधना ही तो है. वर्ना हम तो यही गाते रहेंगे
खुश दीप भाई का तो अंदाज़ निराला था एक दो तीन में सबको ब्रहाण्ड दिखा गये  पता नहीं के वो लोग कितना समझे [nainital-8_edited.jpg]
इन दिनों लोग लोकेषणा से ग्रसित ज़्यादा नज़र आ रहे हैं. समीरलाल और अनूप शुक्ल के के बारे में जो पोस्ट पाण्डे जी ने पेश की वो बस एक उनका व्यक्तिगत एहसास था न कि उससे ब्लागिंग का कोई लेना देना था किन्तु ब्लाग पर थी तो मैने कुछ सवाल किये ज्ञानदत्त जी से गलती हुई है और ज्ञानदत्त जी बनाम ..? पर जो सिर्फ़ सवाल थे गालियां कदापि नहीं..... फ़िर जो किया गया {उनके द्वारा ही कहूंगा }बेहद घटिया जिसमें अश्लील गालिया तक थीं . यदि वे जागरूक एवम शांति पसंद ब्लागर होने का दावा करते हैं तो उस बेनामी को तपाक से ज़वाब देते रोकते लेकिन उनने ये न कर मौन स्वीकृति दी.हमारे सवाल साफ़ है 
  1. क्या मानसिक हलचल पर आई पोस्ट उचित थी 
  2. क्या समीक्षा इसे कहते हैं
  3. क्या बेनामींयों को जो  गलीच भाषा का प्रयोग करतें हैं को इग्नोर करें 
                          मित्रों के स्नेहिल आदेश से लौट आया हूं पर ध्यान रहे दुष्टता और पाखण्ड को सदा खोलता रहूंगा सबके सामने यही शपथ ली है मैने जिस किसी को यह पसंद न आये मेरे ब्लाग पर न आये .
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इनका आभार






ब्लॉगर सूर्यकान्त गुप्ता




ब्लॉगर महेन्द्र मिश्र




ब्लॉगर ललित शर्मा ने कहा…




ब्लॉगर योगेन्द्र मौदगिल




ब्लॉगर girish pankaj




ब्लॉगर राज भाटिय़ा




ब्लॉगर राजीव तनेजा 




ब्लॉगर बवाल




ब्लॉगर अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी




























ब्लॉगर ललित शर्मा




हटाएँ
























अन्तर सोहिल
साथ ही इन  मित्रों स्नेही जनो का आभार आनेस्टी  प्रोजेक्ट  डेमोक्रेसी.यशवन्त मेहता "यश",नीरज  रोहिल्ला, मिथिलेश  दुबे,'अदा', राजकुमार सोनी,  नरेश सोनी,जी.के. अवधिया, एम.वर्मा ,अजय कुमार झा, महेन्द्र मिश्र,राधे, अन्तर सोहिल,शिखा वार्ष्णेय , डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,विजय  तिवारी  'किसलय ', 'उदय', सुलभ § सतरंगी,कविता रावत,राज भाटिय़ा,संजीत  त्रिपाठी ,शरद कोकास, उन्मुक्त,Kumar Jaljala, हर्षिता,बवाल,
 ललित भाई की पोस्ट ने मन में उछाह वापसी की तो श्याम भाई ने भी खूब हंसाया सो मित्रो मै लौट आया अमरकंटक से अपनी बहन शोभना के स्नेह से अभीभूत हूं.
अन्त में समीर जी को बता दूं इग्नोर करना ऐसी भयानक स्थितियों का मार्ग देना है. इग्नोरेन्स की सीमा होनी चाहिये
मित्र दीपक मशाल का विशेष आभार जिन्हौने मन को बेहद हल्का किया. गत रात्री जब इन्हौने  हां न भरवाली तब तक हटे नहीं जी टाक से फ़िर ब्लाग पर सन्देश जारी किया  मेरी वापसी का मिथलेश ने तो बेलन से पिटवाने का इंतज़ाम कर दिया था.....हा हा
[avinashchitra.jpg]अविनाश भैया सच आपकी बात को कैसे टालूं सोच रहा था वापस आ गया 

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