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27.12.11

रवींद्र बाजपेई सकारात्मक पत्रकारिता के संवाहक : श्री अनिल शर्मा


मंचासीन अतिथिगण
जबलपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष
श्री अनिल शर्मा सरस्वती पूजन करते हुए
 विद्युत मंडल के पी आर ओ श्रीराकेश पाठक 
वरिष्ठ पत्रकार श्री रवींद्र बाजपेई 
जबलपुर 24 दिसम्बर 2011 को स्थानीय फ़न-पार्क में जबलपुर का प्रतिष्ठापूर्ण समारोह   स्वर्गीय हीरालाल गुप्त स्मृति समारोह 2011 सम्पन्न हुआ. मुख्य अथिति के रूप में बोलते हुए सम्मान का आधार ही त्याग और तपस्या है. आज़ जिनकी स्मृति में सम्मान दिया जा रहा है वे पत्रकारिता एवम सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा के लिये कृत संकल्पित थे मैं ऐसे व्यक्तित्वो को नमन करते हुए  मित्र रवींद्र बाजपेई को शुभकामनाएं देता हूं कि वे मूर्धन्य पत्रकार हीरालाल गुप्त स्मृति प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित हुए हैं. युवा पत्र-संचालक भाई आशीष शुक्ल को मेरी अशेष शुभकामनाएं हैं जिन्हैं त्याग की मूर्ति सव्यसाची मां प्रमिला देवी की स्मृति में सम्मानित किया . 

अध्यक्षीय आसंदी से बोलते हुए समाज सेवी एवम जबलपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा ने कहा:- "रवींद्र बाजपेई सकारात्मक पत्रकारिता के संवाहक हैं उनका सम्मान करना बेशक नकारात्मकता को हतोत्साहित कर सृजनशीलता को समादरित करना है. साथ ही श्री आशीष शुक्ला को सव्यसाची मां प्रमिला देवी की स्मृति सम्मान से समादरित कर आयोजकों ने पत्रकारिता में युवा चेतना को प्रोत्साहित करने का मार्ग तय कर दिया है."
        विशिष्ठ अतिथि समाज सेवी श्री शेखर अग्रवाल संचालक डिजी टेलिविजन ने पंद्रह साल से जारी आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि मीडिया समाज को खबर देकर अपना दायित्व पूरा नहीं मान लेना चाहिये मीडिया समाज में सकारात्मकता के प्रसार का मूलाधार है. जिसे रवींद्र जी जैसे राष्ट्रीय स्तर के कलम कार विभिन्न विषयों के ज्ञाता और आशीष भाई जैसे कुशल प्रबंधक गति दे रहे हैं. 
       ड्रीमलैण्ड फ़नपार्क जबलपुर  में आयोजित कार्यक्रम का शुभारम्भ  सरस्वती प्रतिमा पूजन से हुआ  तदुपरांत अतिथियों एवम विभिन्न संस्थाओं से पधारे प्रतिनिधियों ने स्व०श्रीयुत हीरालाल गुप्त एवम मां सव्य-साची प्रमिला देवी बिल्लोरे के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की.
                  अतिथियों के स्वागत उपरांत विचार अभिव्यक्ति के क्रम में जादूगर एस के निगम ने पत्रकारिता के बदलते स्वरूप एवम गुप्त जी एवम उनकी समकालीन पत्रकारिता विषय पर विचार व्यक्त किये जबकि युवा ब्लागर एवम कवि गीतकार डा० विजय तिवारी किसलय ने 1997 से  प्रतिष्ठापूर्ण समारोह  के बारे में विस्तार से जानकारी दी.डा० किसलय का मत था कि  हम इस कार्यक्रम के ज़रिये संस्कारित सामाजिक चेतना में मीडिया की भूमिका को रेखांकित करणे की कोशिश करतें हैं जिसकी ज्योति  स्व० गुप्त जी जैसे कलमकारों ने अभावों से जूझते हुई जगाई थी. 
    

27.12.10

लिमटि खरे,समीर लाल स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त स्मृति समारोह “सव्यसाची प्रमिला देवी अलंकरण ” से विभूषित हुए

बवाल की पोस्ट : सम्मान समारोह, जबलपुर,और संदेशा पर संजू बाबा की पोस्ट  में विस्तार से जानकारी के अतिरिक्त आप को अवगत करा देना ज़रूरी है कि यह कार्यक्रम विगत 15 वर्षों से सतत जारी है . सम्मान देने की परम्परा  14 वर्षों से जारी है पूर्व के आलेखों में कतिपय स्थान पर 12 वर्ष मुद्रित हुआ था उसका मुझे व्यक्तिगत खेद है. जल्दबाजी में की गई गलती को सुधि पाठक क्षमा करेंगे.मामला केवल बुज़ुर्ग पीढ़ी के सम्मान का था. न तो हम पत्रकार हैं न ही आज की पत्रकारिता में शामिल किन्तु जब अखबारों में हम युवा साथियों को साहित्य की उपेक्षा एवं पत्रकारिता में हल्का सा पीलापन नज़र आने लगा तो बस हमारा जुनून हमारे सर चढ़ गया. कि चलो अब इस स्तम्भ की मदद की जाए और बताया जावे कि साहित्य से कितना करीब होते हैं अखबार जबलपुर में इसका स्वरुप क्या था. अब क्या होता नज़र आ रहा है ? बस इन सवालों का ज़वाब खोजने निकले चार हम युवा और  तय हुआ कि  स्व० गुप्त जी को याद करें हर साल और जाने उनकी पीढ़ी से ही इस बारे में.  जानें विस्तार से देखिये यहां "Girishbillore's Weblog"
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* श्री ललित बक्षी जी 1998,
* “बाबूलाल बडकुल 1999,
* “निर्मल नारद 2000,
* “श्याम कटारे 2001
* “डाक्टर राज कुमार तिवारी “सुमित्र” 2002
* “पं ० भगवती धर बाजपेयी 2003,
* “मोहन “शशि” 2004
* “पं ० हरिकृष्ण त्रिपाठी एवं प्रो० हनुमान वर्मा 2005 (को संयुक्त )
* ” अजित वर्मा 2006
* “पं०दिनेश् पाठक 2007
* श्री सुशील तिवारी 2008
* श्री गोकुल शर्मा दैनिक भास्कर जबलपुर 2009
* श्री महेश मेहेदेल स्वतंत्र-मत,जबलपुर,  एवं श्री कृष्ण कुमार शुक्ल   २०१०

हमारी इस पहल को माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे ने नयी पीड़ी के लिए भी प्रोत्साहन के उद्देश्य
अपने परिवार से सम्मान देने की पेशकश की और पिता जी श्री काशी नाथ बिल्लोरे ने
युवा पत्र कार को सम्मानित करने की सामग्री मय धनराशी के दे दी वर्ष 2000 से
* श्री मदन गर्ग 2000
* ” हरीश चौबे 2001
* ” सुरेन्द्र दुबे 2002
* ” धीरज शाह 2003
* ” राजेश शर्मा 2004,
माँ प्रमिला देवी के अवसान 28 /12 /2004 के बाद मित्रों ने इस सम्मान का कद बढाते हुए
“सव्यसाची प्रमिला देवी अलंकरण ” का रूप देते हुए निम्नानुसार प्रदत्त किये
* श्री गंगा चरण मिश्र 2005
* ” गिरीश पांडे 2006
* ” विजय तिवारी 2007
* ” श्री पंकज शाह 2008
* ” श्री सनत जैन भोपाल 2009
” श्री ओम कोहली, डिजी-केबल  जबलपुर एवं श्री लिमटी खरे नई दिल्ली   2010    
सव्यसाची चिट्ठाकार सम्मान :-
वर्ष 2007 जब मैं अंतरजाल से जुडा तब लगा कि यहाँ भी लिखने वाले कमतर नहीं कम से कम अखबार और मीडिया के अन्य प्रकारों सामान  ही तो हैं तो क्यों न जबलपुर में हिन्दी ब्लागिंग का परचम विश्व में लहराने वालों को सम्मान दें हम बिना किसी हिचक के मान लिया मेरा प्रस्ताव जो 2008 के आयोजन में रखा था मैंने सारे साथीयों  की हरी झंडी मिलते ही भाई महेंद्र मिश्र को सम्मानित किया गया 2009 में . और इस बरस दो विकल्प थे हमारे पास लिमटि खरे जी और समीरलाल बस क्या था दौनों को समिति ने स्वीकारा लिमटि जी तो आल राउंडर ठहरे पत्रकार और ब्लॉगर दौनों सो एक नया सम्मान पारित हुआ. और प्रदान किया इन व्यक्तित्वों को ....!!

किसलय जी की पोस्टपर प्रकाशित सामग्री ध्यान देने योग्य है:- 
इंसान पैदा होता है. उम्र के साथ वह अपनी एक जीवन शैली अपना कर निकल पड़ता है अपने जीवन पथ पर वय के पंख लगा कर. समय, परिवेश, परिस्थितियाँ, कर्म और योग-संयोग उसे अच्छे-बुरे अवसर प्रदान करता है. इंसान बुद्धि और ज्ञान प्राप्त कर लेता है परन्तु विवेक उसे उसके गंतव्य तक पहुँचाने में सदैव मददगार रहा है. विवेक आपको आपकी योग्यता का आईना भी दिखाता है और क्षमता भी. विवेक से लिया गया निर्णय अधिकांशतः सफलता दिलाता है. सफलता के मायने भी वक्त के साथ बदलते रहते हैं अथवा हम ही तय कर लेते हैं अपनी लाभ-हानि के मायने. कोई रिश्तों को महत्त्व देता है कोई पैसों को या फिर कोई सिद्धांतों को. समाज में यही सारे घटक समयानुसार प्रभाव डालते हैं. समाज का यही नजरिया अपने वर्तमान में किसी को अर्श और किसी को फर्श पर बैठाता है किन्तु एक विवेकशील और चिंतन शील व्यक्ति इन सारी चीजों की परवाह किये बिना जीवन की युद्ध-स्थली में अपना अस्तित्व और वर्चस्व बनाए रखता है. शायद एक निडर और कर्मठ इंसान की यही पहचान है. समाज में इंसान यदि कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी एवं मानवीय दायित्वों का स्मरण भी रखता है तो आज के युग में यह भी बड़ी बात है. आज जब वक्त की रफ़्तार कई गुना बढ़ गयी है, रिश्तों की अहमियत खो गयी है, यहाँ तक कि शील-संकोच-आदर गए वक्त की बातें बन गयी हैं, ऐसे में यदि कहीं कोई उजली किरण दिखाई दे तो मन को शान्ति और भरोसा होता है कि आज भी वे लोग हैं जिन्हें समाज की चिंता है. बस जरूरत है उस किरण को पुंज में बदलने की और पुंज को प्रकाश स्रोत में बदलने की. आगे (यहां से)

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