25.3.11

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

आज दिनांक 25 मार्च 2011 को जबलपुर के माता गुजरी महाविद्यालय      
      जबलपुर में मेरा वक्तव्य था. वक्तव्य का एक अंश सुधि पाठकों के विचार हेतु 
सादर प्रस्तुत है   
              आज मैं अपनी बेटियों के साथ कल के भारत में उनकी भूमिका पर विमर्श करने आया हूं तो तय है कि यहां न तो मुझसे अतिश्योक्ति युक्त कुछ कहा जाएगा और न ही मैं कोई कहानी युक्त प्रवचन दे सकूंगा. मै यह भी साफ़ कर देना चाहता हूं कि :-“आप मुझे उतना ही स्वीकारें जितना युक्ति संगत हो न कि आप पूरी तरह मेरे वक्तव्य सहमत हो जाएं ऐसी मेरी मंशा भी नहीं है बल्कि आपको “चिंतन का पथ” किधर से है समझाने का प्रयास करूंगा”
बेटियो

अक्सर आप को अपनी विचार धारा और सोच का विरोध होते देख दु:ख होता है , है न …? ऐसा सभी के साथ होता है पर बालिकाओं के साथ कुछ ज़्यादा ही होता है क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था एवम पारिवारिक व्यवस्था इतनी उलझी हुई होती है कि कि बहुधा हम सोच कर भी अपने सपने पूरे नहीं कर पाते . बमुश्किल दस प्रतिशत बेटियां ही अपने सपनों को आकार दे पातीं हैं…!
पर क्या बेटियां सपने देखतीं हैं..?
हां, मुझे विश्वास है की वे सपने देखतीं हैं… परंतु कैसे ….क्या गहरी नींद वाले …क्योंकि कहा गया है कि जागते हुए सपने देखना वर्जित है…है न यही कारण न यह बात बिलकुल गलत है जागते हुए ही सपने देखो सोते वक्त मानस को बेफ़िक्री के हवाले कर दो  !
चलो एक बात पूछता हूं :- “विकास क्या है ?”
हां सही कहा विकास “डेवलपमेंट” ही है. जो किसी देश की स्थिति को दर्शाता है कि उसकी सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक दशा कैसी है.अब मैं पूछना चाहता हूं कि  “विकास में आपका कितना योगदान होना चाहिये पुरुष के सापेक्ष्य  ?
उत्तर तय है- “बराबरी का..”
पर क्या मिलता है..?
क्यों ..?
क्योंकि आप कमज़ोर हैं और कमजोर हिस्सा सबसे पहले धराशायी होता है जलजलों में. भारत की नारीयां कमज़ोर नहीं नब्बे प्रतिशत काम करतीं और फ़िर भी स्वयं आपको मज़बूत बनना है कैसे बनना है इसके सूत्र देता हूं आगे   
   पहले भ्रूण में आपकी उपस्थिति को रोकने वाली घटनाऒं पर विचार करो बेटियो घर में भ्रूण के लिंग-परीक्षण का विरोध करना नारी सशक्तिकरण की दिशा का पहला क़दम होगा
                आप का जन्म एक महत्व पूर्ण घटना है इस दुनियां के लिये आपका जन्म लेते ही रोना बायोलाजिकल क्रिया है किंतु माता-पिता का सुबकना, दादी का झिड़कना, ताने मिलना कितना हताश कर देता है. और आयु के साथ  तुम लड़की हो तुमको ये करना है ये नहीं करना है जैसी लक्ष्मण रेखाएं आपके इर्द गिर्द खींच दी जातीं हैं  ” 
मुझे तुम सबसे उम्मीद है कि तुम “सीता-रेखा” खींच सकोगी  और बता दोगी   सभ्य समाज की असभ्य अराजक व्यवस्था को अपनी ताक़त का नमूना.
नारीमुक्ति का शब्द  पाश्चात्य देशों का है  . तभी तो  सीमा हीन, उच्छंखताऒं भरा है यह आंदोलन. पर भारत में इसे जस का तस स्वीकारा नहीं गया. हमारा संकल्प है “नारी-सशक्तिकरण”  भारत में नारी के लिये चिंतन के लिये हमको पश्चिम की ओर मुंह ताक़ने की ज़रूरत नहीं. हमारे देश के संदर्भ में “नारी-सशक्तिकरण” के लिये रानी झांसी एक बेहतरीन उदाहरण है. सुभद्रा जी जो संस्कारधानी से ही थीं ने अपनी कविता में “मनु की सखियों का ज़िक्र किया किया-“बरछी,बाण,कृपाण कटारी उसकी यही सहेली थी. है न ?
आप को जीवन का युद्ध लड़ना है किसे अपनी सखी बनाएंगी ? मनु की तरह आपकी बरछी,बाण,कृपाण कटारी जैसी  सहेलियां कौन हैं ? कभी सोचा इस बारे में ! नहीं तो बता दूं कि वो है….
1.  आपका ग्यान
2.  आपकी सेहत
3.  आपका सकारात्मक चिंतन
4.  आपकी दृढ़ता
5.  आपके संकल्प
6.  आपकी जुझारू वृत्ति
      यही आपकी आंतरिक सखियां हैं जो आपके काम आयेंगी. क्या आप सुदृढ़ता चाहतीं हैं..? यानि आप में “स्वयम-सशक्तिकरण” की ज़िद है तो एक सूत्र देता हूं :-“हर दिन उन आईकान्स को देखो जो कभी कल्पना चावला है, तो कभी बछेंद्री पाल है, सायना-नेहवाल है जो आपके समकालीन आयकान हैं ” इनकी कम से कम छै: सहेलियां तो होंगी ही…
 (क्रमश:जारी)

13 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

bahut sundar vichaar ..sakartmak lekh.

राजीव तनेजा ने कहा…

सुन्दर एवं साकारात्मक विचार

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

“स्वयम-सशक्तिकरण” की ज़िद ,सकारात्मक चिंतन

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही उपयोगी आलेख!
आपने तो नारी जीवन का पूरा चित्र ही खींच दिया!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सार्थक ...विचार ...बहुत बढ़िया

Archana Chaoji ने कहा…

बहुत ही दमदार वक्तव्य........इन आन्तरिक शक्तियों का विकास ही सही मायने में बेटियों को विकसित करेगा।
आभार...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

नारीवाद पर सार्थक विमर्श...
महत्वपूर्ण एवं विचारणीय लेख के लिए बधाई.

शेष आगे की उत्सुकता से प्रतीक्षा है...

Dr Varsha Singh ने कहा…

बेटियों पर आपका यह लेख बहुत अच्छा लगा ...
बधाई...

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन आख्यान...जीत लिया दिल आपने...वाह!!

राज भाटिय़ा ने कहा…

जब बेटी की बात आती हे तो हम सब माडर्न बन जाते हे, बडी बडी बाते कहते लिखते हे, जब घर मे बहू आ जाये तो यही हमारे विचार बदल जाते हे... इस लिये हम जेसे हे बहुत अच्छॆ हे, जिन घरो मे प्यार हे उन्हे इन बातो से कोई असर नही पडता, अगर हम गलत थे तो आज से पहले पुराने जमाने मे तलाक के कितने केस होते थे? ओर आज कितने होते हे, पहले भी नारी आजाद थी ओर आज भी आजाद हे, यह सब संस्कारो पर हे नर हो या नारी जिस के अच्छॆ संस्कार होंगे वो सुखी ही रहे गा, शक ओर गलत संस्कार दुख ही देते हे, धन्यवाद

Archana Chaoji ने कहा…

राज जी की बात से सहमत हूँ और इससे भी कि -बेटी भी बहू होती है और बहू भी बेटी,नाम,संस्कार,रिश्ते हम ही देते हैं, विचार भी हमारे ही होते हैं और शक भी हम ही करते हैं। पुराने समय में भी बहुत कुछ होता था.. बस पता नहीं चलता था। नर हो या नारी सबको सम भाव से देखें तो ये छ:मित्र तो दोनों के ही होने चाहिए...

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

सभी का आभार
आगामी भाग के बाद मिलता हूं
प्रकाशित कर दी नईं पोस्ट

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अभी पूरी पोस्‍ट तो पढ़ ले फिर अपने विचार लिखेंगे। अभी तक तो सभी कुछ अच्‍छा लग रहा है।

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