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[ ] आपको मालूम ही है कि इस वक्त सूर्य एक प्राकृतिक घटना का केंद्र बना हुआ है। यह घटना है सौर तूफान की। इसका पृथ्वी पर सीधा-सीधा प्रभाव पड़ रहा है। इस बार मई अंत से माह जून 2024 तक अधिक तापमान बने रहने की संभावना है।
[ ] भारत के कई स्थानों में 50 से अधिक पर पहुंच चुका है। इस गर्मी का पृथ्वी के जल प्रत्येक जीव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से सामूहिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर होता नजर आ रहा है।
[ ] प्रजाति 37 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सह सकती है। इंसान के शरीर में एक खास तंत्र 'होमियोस्टैसिस' होता है। यह तंत्र इंसान को इस तापमान में भी सुरक्षित रखता है।
[ ] 43 से 50 डिग्री सेल्सियस ऐसा काफी ज्यादा तापमान है , इससे हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं में सबसे पहले घातक असर होने लगता है।
[ ] अत्यधिक तापमान से हमारे मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होने लगती है।
[ ] ब्रेन का बैलेंस बिगड़ जाएगा, शरीर बेहोशी की स्थिति तक पहुंच सकता है।
[ ] ब्रेन की कोशिकाएं खराब होने लगेंगी, यह स्थिति मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती है ।
[ ] त्वचा के नीचे रहने वाली खून की कोशिकाएं फट सकती हैं
[ ] आईए जानते हैं कि बढ़ा हुआ तापमान हमारे शरीर के अन्य हिस्सों में किस तरह से असर छोड़ता है - प्रारंभ में ही हम बता चुके हैं कि तापमान बढ़ने का सबसे पहले असर हमारे मस्तिष्क पर होता
[ ] मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र – एक शोध के मुताबिक, जब तापमान 46-60 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है , तब हमारी शारीरिक क्षमताओं के सापेक्ष मस्तिष्क कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं।
[ ] कोशिकाओं का इस प्रकार से नष्ट होना कोशिकाओं में अत्यधिक प्रोटीन का जमाव होने के कारण होने लगता है।
[ ] 39 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस तक पारा पहुंचते ही मस्तिष्क पर असर डालना प्रारंभ कर सकता है। यह मनुष्य की शारीरिक प्रतिरोधी क्षमता के आधार पर अर्थात व्यक्ति के रेजिस्टेंस पावर के अनुसार आघात प्रारंभ करता है।
[ ] अत्यधिक तापमान होने से अमीनो एसिड बढ़ना, मस्तिष्क से ब्लीडिंग और न्यूरोनल साइटोस्केलेटन के प्रोटियोलिसिस में अचानक वृद्धि होने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इस कारण हमारे मस्तिष्क पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है।
[ ] हृदय और ब्लड सरकुलेशन पर विपरीत प्रभाव – टेंपरेचर बढ़ने से शरीर में हृदय और हृदय के कारण रक्त प्रवाह की निरंतरता घातक रूप से प्रभावित होती है।
[ ] निर्जलीकरण का मांसपेशियों पर विपरीत प्रभाव – शरीर में 70% पानी तथा इलेक्ट्रोलाइट जैसे पोशक तत्वों का संतुलित प्रवाह और उपलब्धता जरूरी है। अत्यधिक गर्मी के कारण शरीर में निर्जलीकरण और इलेक्ट्रोलाइट की कमी की वजह से, शरीर की मांसपेशियों में गंभीर विपरीत असर होता है जो, अंततः हमारी मृत्यु का कारण भी हो सकता है।
[ ] त्वचा पर गर्मी का प्रभाव – अत्यधिक गर्मी में शरीर पर स्पॉट बनना, तथा त्वचा के कमजोर हिस्से से खून का बाहर आना स्वभाविक हो जाता है।
इससे शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचता है।
[ ] श्वसन तंत्र पर गर्मी का प्रभाव – वयस्क व्यक्ति के स्वस्थ शरीर द्वारा एक मिनट में 12 से 16 बार सांस ली जाती है, जबकि बच्चे 25 से 30 बार प्रति मिनट सांस लेते हैं। लेकिन गर्मियों के समय सांस लेने की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है। परंतु 40 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर तापक्रम पर यह प्रक्रिया और भी तेज हो जाती है। सांस लेने की फ्रीक्वेंसी में वृद्धि से सामान्य श्वसन प्रक्रिया नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। जिसका सीधा असर हमारे फेफड़ों और हृदय पर पड़ता है। ब्लड प्रेशर का बढ़ना भी ऐसी ही परिस्थितियों में देखा जाता है।
[ ] पाचन तंत्र तेज गर्मी का प्रभाव – निर्जलीकरण और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन के कारण मतली, उल्टी और दस्त हो सकते हैं. निर्जलीकरण के परिणाम स्वरूप शरीर के अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट भी कम होने लगते हैं। जिनकी पुनर्स्थापना करने में एक सप्ताह से 1 माह तक का समय लग सकता है।
[ ] अत्यधिक गर्मी से शरीर पर पढ़ने वाले अन्य प्रभाव - 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में लंबे समय तक रहने से गर्मी से थकावट, हीटस्ट्रोक और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है, अगर इसका तुरंत इलाज न किया जाए.
इन प्रभावों को कम करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं
बचाव कैसे करें
• स्वस्थ शरीर को उसकी व्यक्ति के वजन एवं उसके शारीरिक संरचना अर्थात फिजिकल स्ट्रक्चर के हिसाब से 1.5 लीटर से 2.5 लीटर तक पानी की जरूरत होती है। गर्मियों में पानी तेजी से शरीर से खत्म होने लगता है। सामान्य रूप से हमें 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर गर्मी महसूस होने पर 2 लीटर से 3 लीटर तक पानी, और कम से कम एक बार नमक शक्कर के अनुपातिक मिश्रण वाला पानी अपने शरीर में पहुंचना चाहिए। धूप से बचने के लिए आयुर्वेद तथा एलोपैथ में कई तरीके बताए गए हैं। ग्रीष्म काल में अपने चिकित्सकों से सतत संपर्क में रहना आवश्यक है।
• भारत सरकार द्वारा शासकीय चिकित्सालय में विश्व हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी who द्वारा अनुशंसित ओआरएस का पैकेट तैयार किया है। जो सामान्य रूप से बाजार में मिलने वाले ORS से कहीं अधिक कारगर सिद्ध हुआ है। प्रत्येक गांव में स्वास्थ्य कर्मियों एवं आंगनबाड़ियों में इसके पर्याप्त उपलब्धता भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा कराई गई है।
• श्रमिक पूर्व काल में प्याज गुड नमक तथा पानी का प्रयोग करते थे। श्रम साध्य कार्यों में निर्जलीकरण की आवृत्ति बार-बार हो सकती है। अत श्रमिकों की तरह पर्याप्त मात्रा में कैसे पोषक तत्वों का सेवन करना चाहिए।
• निर्जलीकरण से बचने के लिए तथा शारीरिक ऊर्जा को बचाए रखने के लिए हमें धूप से बचना चाहिए। धूप से बचने के लिए लाइट कलर के कपड़े, यथासंभव सफेद कपड़े, सफेद टोपी या टोपी जो कॉटन से बनी हो का पहनना आवश्यक है। यह कपड़े हिट रिफ्लेक्टर का काम करते हैं।
घर से निकलने के पहले सर पर साफा टोपी के अलावा भर पेट भोजन, पानी पीकर निकालना चाहिए। साथ ही एक प्याज अपने साथ लेकर चलना चाहिए।
प्याज आपके शरीर पर पड़ने वाली गर्मी और वर्तमान सोलर तूफान के रेडिएशन के प्रभाव को रोकने के लिए, रक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।
यदि आप यह आर्टिकल पढ़ना नहीं चाहते तो
[ ] भारत के कई स्थानों में 50 से अधिक पर पहुंच चुका है। इस गर्मी का पृथ्वी के जल प्रत्येक जीव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से सामूहिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर होता नजर आ रहा है।
[ ] प्रजाति 37 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सह सकती है। इंसान के शरीर में एक खास तंत्र 'होमियोस्टैसिस' होता है। यह तंत्र इंसान को इस तापमान में भी सुरक्षित रखता है।
[ ] 43 से 50 डिग्री सेल्सियस ऐसा काफी ज्यादा तापमान है , इससे हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं में सबसे पहले घातक असर होने लगता है।
[ ] अत्यधिक तापमान से हमारे मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होने लगती है।
[ ] ब्रेन का बैलेंस बिगड़ जाएगा, शरीर बेहोशी की स्थिति तक पहुंच सकता है।
[ ] ब्रेन की कोशिकाएं खराब होने लगेंगी, यह स्थिति मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती है ।
[ ] त्वचा के नीचे रहने वाली खून की कोशिकाएं फट सकती हैं
[ ] आईए जानते हैं कि बढ़ा हुआ तापमान हमारे शरीर के अन्य हिस्सों में किस तरह से असर छोड़ता है - प्रारंभ में ही हम बता चुके हैं कि तापमान बढ़ने का सबसे पहले असर हमारे मस्तिष्क पर होता
[ ] मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र – एक शोध के मुताबिक, जब तापमान 46-60 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है , तब हमारी शारीरिक क्षमताओं के सापेक्ष मस्तिष्क कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं।
[ ] कोशिकाओं का इस प्रकार से नष्ट होना कोशिकाओं में अत्यधिक प्रोटीन का जमाव होने के कारण होने लगता है।
[ ] 39 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस तक पारा पहुंचते ही मस्तिष्क पर असर डालना प्रारंभ कर सकता है। यह मनुष्य की शारीरिक प्रतिरोधी क्षमता के आधार पर अर्थात व्यक्ति के रेजिस्टेंस पावर के अनुसार आघात प्रारंभ करता है।
[ ] अत्यधिक तापमान होने से अमीनो एसिड बढ़ना, मस्तिष्क से ब्लीडिंग और न्यूरोनल साइटोस्केलेटन के प्रोटियोलिसिस में अचानक वृद्धि होने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इस कारण हमारे मस्तिष्क पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है।
[ ] हृदय और ब्लड सरकुलेशन पर विपरीत प्रभाव – टेंपरेचर बढ़ने से शरीर में हृदय और हृदय के कारण रक्त प्रवाह की निरंतरता घातक रूप से प्रभावित होती है।
[ ] निर्जलीकरण का मांसपेशियों पर विपरीत प्रभाव – शरीर में 70% पानी तथा इलेक्ट्रोलाइट जैसे पोशक तत्वों का संतुलित प्रवाह और उपलब्धता जरूरी है। अत्यधिक गर्मी के कारण शरीर में निर्जलीकरण और इलेक्ट्रोलाइट की कमी की वजह से, शरीर की मांसपेशियों में गंभीर विपरीत असर होता है जो, अंततः हमारी मृत्यु का कारण भी हो सकता है।
[ ] त्वचा पर गर्मी का प्रभाव – अत्यधिक गर्मी में शरीर पर स्पॉट बनना, तथा त्वचा के कमजोर हिस्से से खून का बाहर आना स्वभाविक हो जाता है।
इससे शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचता है।
[ ] श्वसन तंत्र पर गर्मी का प्रभाव – वयस्क व्यक्ति के स्वस्थ शरीर द्वारा एक मिनट में 12 से 16 बार सांस ली जाती है, जबकि बच्चे 25 से 30 बार प्रति मिनट सांस लेते हैं। लेकिन गर्मियों के समय सांस लेने की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है। परंतु 40 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर तापक्रम पर यह प्रक्रिया और भी तेज हो जाती है। सांस लेने की फ्रीक्वेंसी में वृद्धि से सामान्य श्वसन प्रक्रिया नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। जिसका सीधा असर हमारे फेफड़ों और हृदय पर पड़ता है। ब्लड प्रेशर का बढ़ना भी ऐसी ही परिस्थितियों में देखा जाता है।
[ ] पाचन तंत्र तेज गर्मी का प्रभाव – निर्जलीकरण और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन के कारण मतली, उल्टी और दस्त हो सकते हैं. निर्जलीकरण के परिणाम स्वरूप शरीर के अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट भी कम होने लगते हैं। जिनकी पुनर्स्थापना करने में एक सप्ताह से 1 माह तक का समय लग सकता है।
[ ] अत्यधिक गर्मी से शरीर पर पढ़ने वाले अन्य प्रभाव - 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में लंबे समय तक रहने से गर्मी से थकावट, हीटस्ट्रोक और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है, अगर इसका तुरंत इलाज न किया जाए.
इन प्रभावों को कम करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं
बचाव कैसे करें
• स्वस्थ शरीर को उसकी व्यक्ति के वजन एवं उसके शारीरिक संरचना अर्थात फिजिकल स्ट्रक्चर के हिसाब से 1.5 लीटर से 2.5 लीटर तक पानी की जरूरत होती है। गर्मियों में पानी तेजी से शरीर से खत्म होने लगता है। सामान्य रूप से हमें 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर गर्मी महसूस होने पर 2 लीटर से 3 लीटर तक पानी, और कम से कम एक बार नमक शक्कर के अनुपातिक मिश्रण वाला पानी अपने शरीर में पहुंचना चाहिए। धूप से बचने के लिए आयुर्वेद तथा एलोपैथ में कई तरीके बताए गए हैं। ग्रीष्म काल में अपने चिकित्सकों से सतत संपर्क में रहना आवश्यक है।
• भारत सरकार द्वारा शासकीय चिकित्सालय में विश्व हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी who द्वारा अनुशंसित ओआरएस का पैकेट तैयार किया है। जो सामान्य रूप से बाजार में मिलने वाले ORS से कहीं अधिक कारगर सिद्ध हुआ है। प्रत्येक गांव में स्वास्थ्य कर्मियों एवं आंगनबाड़ियों में इसके पर्याप्त उपलब्धता भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा कराई गई है।
• श्रमिक पूर्व काल में प्याज गुड नमक तथा पानी का प्रयोग करते थे। श्रम साध्य कार्यों में निर्जलीकरण की आवृत्ति बार-बार हो सकती है। अत श्रमिकों की तरह पर्याप्त मात्रा में कैसे पोषक तत्वों का सेवन करना चाहिए।
• निर्जलीकरण से बचने के लिए तथा शारीरिक ऊर्जा को बचाए रखने के लिए हमें धूप से बचना चाहिए। धूप से बचने के लिए लाइट कलर के कपड़े, यथासंभव सफेद कपड़े, सफेद टोपी या टोपी जो कॉटन से बनी हो का पहनना आवश्यक है। यह कपड़े हिट रिफ्लेक्टर का काम करते हैं।
घर से निकलने के पहले सर पर साफा टोपी के अलावा भर पेट भोजन, पानी पीकर निकालना चाहिए। साथ ही एक प्याज अपने साथ लेकर चलना चाहिए।
प्याज आपके शरीर पर पड़ने वाली गर्मी और वर्तमान सोलर तूफान के रेडिएशन के प्रभाव को रोकने के लिए, रक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।
यदि आप यह आर्टिकल पढ़ना नहीं चाहते तो