सूरदास की आवाज इकतारे की टुनटूनाहट के साथ भेड़ाघाट के धुआंधार के रास्ते पर जब भी गूंज उठती है तो लगता है कि कोई गंधर्व उतर आया हो इस जमीन पर।
बहुत से सांस्कृतिक पुरुष ने करते हैं इसी रास्ते से जलप्रपात के अनित्य सौंदर्य का रसास्वादन करें। निकलते हम भी हैं तुम भी हो ये भी हैं वह भी हैं... यानी हम सब सूरदास यहीं से निकलते हैं। उसके बिछाए बोरी पर कुछ सिक्के डाल देते हैं।
उस सूरदास को हम सूरदास बहुत देते हैं केवल उसे कलाकार होने का दर्जा कभी नहीं देख पाए हम जो सूरदास ठहरे ।
सुना है सांस्कृतिक विकास जोरों पर है। लोक कला लोक संस्कृति की कृतियाँ शहर के विद्यार्थी उनसे सीख लेते हैं और हो जाता है कोई सांस्कृतिक सम्मेलन सुनते हैं आमंत्रित करती है सरकार आवेदन राशि भी आवंटित करती है फाइलों के पीछे के चेहरे देखे बिना ।
बहुत कम होता है कि सूरदास को सरकारी तौर पर कलाकार माना जाए जैसा पंडवानी की गायिका तीजन पहचान पा सकी ।
सर्वहारा के लिए सांस्कृतिक आंदोलन बहुत जरूरी है . मुझे लगता है जरूरी यह है कि उन तक पहुंच जाए पर मुश्किल है ना सूरदास के पास लैपटॉप नहीं है कंप्यूटर नहीं है अकेला है ऑनलाइन आवेदन नहीं कर सकता कभी ध्यान दिया अपने इधर यह अभिशप्त गंधर्व स्वर्ग से सीधे आपके लिए जमीन पर सैकड़ों हजारों की तादाद में चित्र बनाते हैं इकतारे पर कबीर को गाते हैं । इन की खबरें नहीं सकती है अखबारों में हम जैसे मूर्ख कभी इनकी आवाज उठाते हैं और वह आवाज इस एलान के साथ दब जाती है यह तो मिसफिट है।
जब कभी नदी के तट पर देखता हूं मेले ठेले बुलाए जाते हैं हजारों हजार रुपए देकर नामचीन गंधर्व इन गंधर्वों पर बहुत खर्च होता है । जितने में 5 साल तक सूरदास अपना जीवन गुजार दें। सूरदास जिंदा है कि नहीं मुझे नहीं मालूम पता करना होगा। डब्ल्यू से पूछ लूंगा वह बताएगा कि सूरा कहां है पर एक बात है कि जब भी नर्मदा को नमन करने जाओ अमरकंटक से लेकर खंभात तक बहुत सारे सूरदास मिलेंगे। किसी एक पर नजर जरूर डालना यह अभिशप्त गंधर्व तुम्हें आशीर्वाद देंगे यही आशीर्वाद तुम्हारी जीवन को सुख देगा। ऐसे ही तो तलाशा था अकबर ने तानसेन को मांग लिया था गुरु से। ऐसे ही चुनी गई होगी तीजन बाई झाबुआ का फोक डांस
हम कहते हैं कि हम संस्कारधानी में सांस्कृतिक विकास कर रहे हैं। महसूस किजिए क्या यह सच है ?