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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Muskan Soni live on me and my status official group of balbhavan

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Hi world Greetings From This is Balbhavan Jabalpur Me and My daughter's : official group of balbhavan Jabalpur 💐💐💐💐💐 Balbhavan Jabalpur is a government organisation under WCD MP for creative activity . During coronavirus pandemic: (lockdown05 ) Bal Bhawan is continuously working to promoting their artists especially girl child and student of institution. We have decided to include our Ex-Students of balbhavan in BalBhavan's live all Facebook *me and my daughters group.* Next and sixth episode the Muskaan Soni D/o Mrs. Maya & Mr. Rakesh will perform. She was very talented student of the Institutions since 2007 ( first batch ) She completed her study MBA recently. She is self composer and singer. Mr Sanjay Garg Davinder Singh Grover, of Natylok decided to add live music pit with theatre under guidance of Dr Shipra sullere & she became the backbone of the music pit. In my words -"Ye meri Sher Beti Hai..!" Please don't miss her l

कोरोना काल मे लिखी एक कविता

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नर्मदा के किनारे ध्यान में बैठा योगी सुनता है अब रेवा की धार से उभरती हुई कलकल कलकल सुदूर घाट पर आते गाते जत्थे लमटेरा लमटेरा सुन जोगी भावविह्लल हो जाता अन्तस् की रेवा छलकाता छलछल....छलछल . हो जाता है निर्मल...! नदी जो जीवित है मां कभी मरती नहीं ! सरिता का सामवेदी प्रवाह ! खींच लाता है... अमृतलाल वेगड़ की यादों को वाह ! सम्मोहित कर देता है ऐसा सरित  प्रवाह..!! नदी नहीं बूंदों का संग्रह है..! यह आपसी अंतर्संबंध और प्रेम और सामंजस्य भरा अनुग्रह .. है..!  है न ? शंकर याचक सा करबद्ध..! न मन में क्लेश न क्रोध ....! अंतत से निकली प्रार्थना गुरु को रक्षित करने का अनुरोध त्वदीय अपाद पंकजम करते हो न तुम सब ? सच कहा मां है ना रुक जाती है माँ ही बच्चे की पुकार सुन पाती है मां कभी नहीं मरती मां अविरल है ! माँ जो शास्वत निश्छल है ! मां रगों में दौड़ती है जैसे बूंदें मिलकर दौड़ती हैं रेवा की तरह आओ चलें इस कैदखाने से मुक्त होते ही नर्मदा की किनारे मां से मिलने #फोटोग्राफ Mukul Yadav #वीडियो #आशीष_पटेल लमटेरा (Lamtera Bundeli Folk Song) का अर्थ होता है ए

"जब भारत के गांव ठहाके लगाते हैं तो शहरों में ठहाके लगते हैं जिसे विश्व सुनता है"

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"जब भारत के गांव ठहाके लगाते हैं तो शहरों में ठहाके लगते हैं जिसे विश्व सुनता है"            मोदी जी ने जब आत्मनिर्भरता पर अपनी बात रखी तो कुछ लोग जोक बनाने लगे । कुछ सोशल मीडिया पर ट्रोल करते नज़र आ रहे हैं । पर हम जैसों को महसूस होता है कि -"गांधी जी ने सही कहा था कि आत्मनिर्भरता ही स्वतंत्रता का आधार है !" यहाँ संकेत साफ है कि गांधी जी के आत्मनिर्भरता के सन्देश में एक दीर्घकालिक चिंतन था । हर किसी ने उसे लॉक डाउन के दौर में महसूस किया है । गांधी जी स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे । वे अत्यधिक महत्व स्थानीय उत्पादन को देते थे । यहां तक की वैयक्तिक उत्पादन सबके लिए बहुत प्रेरक था । रुई तकली पौनी का अर्थ बैकवर्ड होना नहीं । हमें इसका अर्थ समझना चाहिए । लॉक डाउन के दौर में साफ हो गया कि यांत्रिक विकास से जब पहिए थम गए तब गांव याद आया । सबने देखा मज़दूरों और मजबूरों के पांव छलनी हुए थे है न...पसीना चुहचुहाता सड़कों को सींचता हुआ किसने नहीं देखा ?       रेल से मारे गए, बुखार ताप से मारे गए पथचारियों का दर्द कवियों ने लेखकों ने भी बखूबी महसूस किया । क्या सिर्फ हमें गांव छो

Me and my daughter's group

Hi world Greetings From This is Balbhavan Jabalpur      balbhavan Jabalpur is  organisation  for  creative activity .  coronavirus pandemic【 lockdown 5 】Bal Bhawan continuously working for their child artist. We will present BalBhavan's fifth live performance of Unnati Tiwari D/o Mrs Shobhana Tiwari & Mr. Gauri Shankar Tiwari Unnati brand is  ambassador for #POCSO_ACT awareness campaigning in Jabalpur district . She is appointed by the district collector Jabalpur after recommendation of district programme officer women and child development department Jabalpur.  Her mother Mrs Shobhana Tiwari is a house manager and her father Mr Gouri Shankar Tiwari is preacher and Purohit . She is a student of 10th class  in Kendriya Vidyalaya CMM Civil Line Jabalpur. Unnati is very laborious student of Bal Bhawan Jabalpur.      She is always busy in study as well as in music, oration , poetry and theater  . Unnati is a good performer and always tries  to achieve her goals . Unnati

कैसे हो आप सब इस कोरोना काल में ? - सखी सिंह

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लेखिका : सखी सिंह   भयंकर विपरीत समय चल रहा है जैसे, और ऐसे मे हाल पूछना कितनै सही है ? जबकि इस समय में कुछ राह में भटकते हुये दम तोड़ रहे है और भूंख से बेहाल है, मजबूर है, परेशान है, कुछ लोग अम्फन से भी त्रस्त है और कुछ जिंदगी के द्वारा अचानक सामने रखे गए इस प्रश्न से परेशान हैं कि उम्र के इस मोड़ पर पहुंच अचानक बेरोजगार है हम, अब परिवार का पालन पोषण कैसे हो? बच्चों की फीस कैसे भरे तमाम इतंजाम कैसे करें? जब तनख्वाह देने वाली नौकरी ही चली गयी।  भारत की बेरोजगारी दर 15 मार्च खत्म हुए हफ्ते में 6.74 प्रतिशत थी, जो मई में बढ़कर 27.11 प्रतिशत हो गई. कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों को भारी झटका लगा है।  बड़ी बड़ी कई कंपनियों ने व्हाट्सअप या मेल द्वारा मेसेज कर ढिया की अब उसकी नौकरी हमारे यहां खत्म। जिससे कितने ही लोग आज बेबस और लाचार हो गए हैं। जब हम समझ रहे थे कि हम सुविधा सम्पन्न हैं और विकसित राष्ट्र बन रहे हैं, तभी जैसे अपनी ही नज़र लग गयी हमें और हर तरफ

स्वमेव मृगेन्द्रता : स्वामी विवेकानंद एवं महात्मा गांधी की प्रासंगिकता

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किसे क्या पता था कि युवा सन्यासी सनातनी व्यवस्था को श्रेष्ठ स्थान दिला देगा। लोगों के पास अपने अनुभव और अधिकारिता मौजूद थी। बड़ा अजीब सा समय था। तब हम ब्रिटिश भारत थे औपनिवेशिक वातावरण कैसा हो सकता है यह एहसास 47 के बाद प्रसूत हुए लोगों को क्या जब मालूम ? लोगों के विचार बापू के मामले में भिन्न हैं कोई कहता है - प्रयोगवादी महात्मा गांधी के socio-political चिंतन में कभी-कभी कमी नजर आती है परंतु ऐसा नहीं है कि वह इस कमी के लिए दोषी हैं। तो किसी ने कहा - महात्मा ने अध्यात्मिक चैतन्य को प्रमुखता नहीं दी। इसका यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि महात्मा गांधी ने आध्यात्मिक चैतन्य की मीमांसा नहीं की वे क्रिया रूप में यह सब करते रहे . कुछ तो मानते हैं कि गांधी जी चर्खे पर अटके हुए हैं । वे भारत का विकास स्वीकार रास्ता बनाते नज़र नहीं आते ! संक्षेप में कहें तो - लोगों को महात्मा से बहुत शिकायत हैं । इसमें गोडसे को शामिल नहीं किया । गोडसे के संदर्भ में बहुत बातें अलग से हो रहीं हैं और गोडसे ने तो गाँधी के साथ अक्षम्य अपराध किया पर कुछ चिंतक गांधी जी के विचारों को समूल विनिष्ट करते नज़र आ र

स्वमेव मृगेन्द्रता : स्वामी कल्पतरु

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मोनालिसा, बुद्ध,और भारत के अशोक स्तंभ में दिख रही कोई 3 शेरों की मुस्कुराहट इसलिए कह रहा हूं कि चौथा शेर हमेशा छुप जाता है यह चारों शेर मुस्कुराते हैं । इसी क्रम में पालघर से ईश्वर के घर तक की यात्रा करने वाले योगी कल्पतरु की मुस्कुराहट हजारों हजार साल के बाद सामने आई है । ऐसी मुस्कुराहट कभी प्रभात लाखो हजारों वर्ष बाद नजर आती है। यह मुस्कान नहीं निर्भीकता की पहचान है। देखो ध्यान से देखो मृत्यु पूर्व निर्दोष पवित्र और आध्यात्मिक मुस्कुराहट कभी देखी है किसी ने यह वही है इस मुस्कान को अगर परिभाषित करना चाहूं तो मेरा कहना है कि *यह आत्मा की मुस्कान है*। योगी कल्पतरु के साक्षी भाव का परिचय। आत्मा समझ रही है कि उसे अब निकलना होगा आत्मा हँस रही है मूर्खों पर यह भी कह रही हो शायद ईश्वर इन्हें माफ कर देना ये नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। प्रभु यीशु में ऐसे निर्देश नहीं दिए थे ? परंतु मूर्खों ने अकेले लगाकर एक जुर्म कर दिया। मैं यहां यीशु को जानबूझकर कोट कर रहा हूं । हे हत्यारों पहचान लो सनातन में प्रेम है अखंडता है समरसता है इसने है करुणा है। वही करुणा जो कुष्ठ रोगियों के शरीर से मवा

"तेरे हाथ की तरकारी याद आती है अम्मा ओ अम्मा"

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"मदर्स डे के अवसर पर भावात्मक एलबम अम्मा यूट्यूब पर जारी " "तेरे हाथ की तरकारी याद आती है अम्मा ओ अम्मा" *बहुत कम बोलते हैं बाल नायक मृगांक, सब कुछ कहा करतीं आँखें...!* मदर्स डे 10 मई 2020 के 2 दिन पूर्व यानी 8 मई 2020 को Indie Routes ने एलबम अम्मा रिलीज़ कर दिया रिलीज के आधे घंटे के भीतर इस एल्बम 1000 दशकों तक पहुंच गया। इस बार आभाष-श्रेयस जोशी ने फिर एक बार रविंद्र जोशी के शब्दों को गुनगुनाया है । इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एल्बम को देखने वाले दर्शकों की संख्या 4000 से ज़्यादा हो गई है। फीडबैक से पता चला है कि एक ओर बेतरीन निर्देशन संगीत और लिरिक्स की वजह से एलबम स्तरीय है वहीं माँ और पुत्र के कैरेक्टर्स का अभिनय बांधता भी है भिगोता भी है ।  इस एलबम में जबलपुर के बाल कलाकार मृगांक उपाध्याय ने आंखों को भिगो देने वाला काम किया है । माँ की भूमिका में श्रीमती ज्योति आप्टे नज़र आईं  वीडियो एल्बम के गीत का लेखन रविंद्र जोशी ने निर्माण एवं निर्देशन श्रीमती हर्षिता जोशी ने किया। इस एल्बम में स्वर एवं संगीत श्री श्रेयस जोशी एवं आभास जोशी का है ।  डायरेक्टर

गुलाबी चने, यूएफओ किचन, गोसलपुरी लब्दा और लोग डाउन 3.0

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लॉक डाउन के तीसरे पार्ट में Udan Tashtari यानी जबलपुरिया कनाडा वाले भाई समीर लाल से जानिए एक ऐसी रेसिपी जो शाम को आप चाय के साथ जरूर ले सकते हैं । इसके लिए आपको काले चने बनाने के आधे घंटे पहले पानी में भिगो लेना और बाकी क्या करना है समीर लाल से जानी है.. समीर लाल जी के चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए अरे भाई किसी दिन मुझसे कोई चूक हो गई तो मुश्किल होगा ना आप तक नई रेसिपी पहुंचेगी कैसे। याद होगा जब हम स्कूल जाते थे तो उबले हुए चने इसमें नमक मिर्च वाह और हां सूखे हुए उबले बेर का लब्दा बहुत बढ़िया लगता था। सुबह वाले स्कूल में लगभग नो 9:30 बजे लंच ब्रेक होता था। और तब गोसलपुर में स्कूल के सामने इमली के पेड़ के नीचे #लब्दा वाली बऊ दस्सी पंजी की उधारी भी हो जाती थी पर चने वाला दादा बहुत दुष्ट था उधार नहीं देता था। जेब खर्च में मिले चार आने बहुत होते थे भाई। आधे रुपए में यानी अठन्नी में तो बिल्कुल दादा के दुकान नुमा घर में बैठकर चटपटी चाट खा लेते थे। खास बात यह थी कि चाट के साथ पानी भी मिल जाता था। आधी छुट्टी के बाद श्रीवास्तव मशाल अंग्रेजी पढ़ाने आते थे। जो कभी आते ही ना थी। कहां रहते

कोटा : एजुकेशनल स्टेटस सिंबल धराशाही / इंजीनियर सौरभ पारे

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महामारी के इन कठिन दिनों में एक नया विचार मन में आ रहा है। कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने गए बच्चे बड़ी मशक्कत और कष्ट सहने के बाद अपने गृह-ज़िले में पहुँचे हैं। प्रश्न यह है कि क्या बच्चों को अपने से दूर भेजना ज़रूरी था क्या? क्या हम अपने शहर में ही बच्चों को पढ़ा नहीं सकते? हमारे बच्चे का खयाल *हमसे* अच्छा कोई नहीं रख सकता। कोई भी परीक्षा का परिणाम किसी बच्चे के जीवन से बढ़ कर तो नहीं! अभी लॉकडाउन खुलने के पश्चात फ़िर ये प्रक्रिया होने वाली है, "महाविद्यालयों में होने वाले एडमिशन"। हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा एडमिशन की लाइन में लगेगा, जिसके कंधों पर अपने परिवार के सपनों का बोझ होगा। हम सभी यह सोचते हैं कि बड़े बड़े महानगरों के बड़े कॉलेजों में अपने बच्चों को पढ़ाएंगे, बड़े महानगर में बच्चे का भविष्य सुरक्षित होगा... अपने से व घर से दूर रह कर उनका भविष्य उज्ज्वल होगा,अच्छा भविष्य चाहिए तो घर से दूर रहना जरूरी है, यह सोच सर्वथा अनुचित है। आज समय की मांग है कि बच्चों को घर से इतनी दूर न भेजा जाए कि ऐसी प्रतिकूल परिस्तिथी में वे चाह कर भी अपने घर नहीं आ सक