16.12.19

इश्क और जंग में सब कुछ जायज कैसे...?



एक दौर था हां वही जब युद्ध करते थे राजा अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए युद्ध जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था । युद्ध के बिना विस्तार की कल्पना मुश्किल थी ।
     रामायण और महाभारत के बाद शायद ही कोई ऐसी स्थिति बनी हो जबकि युद्ध के नियमों का पालन किया गया । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । डेमोक्रेटिक सिस्टम में युद्ध का स्वरूप बदल रहा है तो बदली हुई परिस्थिति में इश्क भी परिवर्तित हो ही गया है स्थाई तो दोनों नहीं हैं आजकल...
   हालिया दौर में लोगों के मस्तिष्क से विचारशीलता गुमशुदा हो गई है । और उसके पीछे लोगों के अपने तर्क हैं बदलते दौर में क्या कुछ होने जा रहा है वैसे मुझे घबराहट नहीं है आप भी ना घबराए क्योंकि वैचारिक व्यवस्था जब अत्यधिक कमजोर हो जाती है बेशक महान किलों की तरह गिर जाती हैं ।
     क्रांति सर्वकालिक साधन अब शेष नहीं है । खास कर ऐसी क्रांति जो जनता की संपत्ति की राख से बदलाव चाहती हो या खून की बूंदों से । कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो कम से कम हिंसक तरीके न अपनाएं । राष्ट्र की संपत्ति इन थे उनके मेरे तुम्हारे यानी हम सबके रक्त से पसीने से बनी हुई है । वांछित बदलाव के लिए आगजनी पत्थरबाजी का तरीका एकदम आदिम सभ्यता का पता देता है । बौद्धिक विलासिता के कारण समाज मैं युवा बेहद विचलन की स्थिति में है..... इसके पीछे आयोजन प्रयोजन सब कुछ हो सकता है बिना इस बात की परवाह किए हम चाहते हैं कि- डेमोक्रेसी आपको अपनी बात कहने का हक देती है यह हक अगर कोई छीने तो बेशक हम सब व्यवस्था के विरुद्ध हो जाएंगे पर अभी वह वक्त नहीं आया । हम चाहते हैं कि ना बसें चलाई जाएं किसी के माथे से खून बहाया जाए और तो और किसी से गुमराह होने की जरूरत नहीं है अपनी बात नहीं बेफिक्री से कहें बेखौफ कहीं । युद्ध के अपने नियम होते हैं मोहब्बत के भी अपने नियम होते हैं इन नियमों का बकायदा ध्यान रखें आप जानवर नहीं और आपको इस कहावत को झूठा साबित करना है । राष्ट्रीय संपदा के साथ इस तरह का बर्ताव करना कहां तक जायज है चाहे वह कोई करें राष्ट्र द्रोही है

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