तेरे तरल प्रवाह फलक तट
वांग्मयी बातों का दौर ।।
एक सुदामा ज्ञान अकिंचन-
खोज रहा गुरु या कुछ और ।।
मित्रो आप भली प्रकार भिज्ञ हैं एक समय शरीर को भूख कम ही लगती है ऊर्जावान रहें उतना ही आहार ज़ायज़ होता है ।
परन्तु मानसिक रूप से भूख में अचानक इज़ाफ़ा देख खुद हतप्रभ हूँ । दुनियां भर के झंझावात के अवलोकन के बाद एक विस्तृत भीड़ में अकेला महसूस कर रहा हूँ । सोचा करता हूँ अब अकेला क्यों हूँ.... ? उम्र के साथ ऐसे ही बदलाव आते हैं.... खुद के बारे में सोचना भी लगभग बंद सा हो गया ।
रेवा के एक घाट पर आना जाना होता है । कल भी था सपत्नीक तिलवाराघाट गया था । अचेता और अनिच्छा से निकला पर प्रवास पर बाद में यही प्रवास इच्छानुकूलित प्रवास हो गया ।
मन में केवल माँ के बारे में सोच रहा था । अक्सर ऐसा ही होता है । ग्वारीघाट और तिलवाराघाट जाकर माँ बहुत याद आतीं हैं । जिनकी भस्मी इसी रेवा में प्रवाहित हुई थी । तो माँ रेवा में माँ का आभास हुआ । फिर लगा वाकई रिक्तता केवल मां ही भरती है । माँ कभी दिवंगत नहीं होती है । लगा रेवा से संवाद करूँ.... पर भिक्षुकों ने आ घेरा खीसे में जो भी फुटकर था बांट दिया फिर बाक़ी भिक्षुको को साफ तौर पर इंकार कर दिया श्रीमती जी ने तब तक रेवा में दुग्धाभिषेक कर दिया ।
इस बीच देखा शिव की प्रतिमा पर लादे गए विल्व धतूरे गेहूं की बालियां, बेर , देख मन खुश हुआ दुःख भी साथ साथ होने लगा । कुछ बच्चे तीन जिनमें मल्लाह, बर्मन, सरनेम वाले दो और एक शर्मा कुल का था । सभी छटी क्लास के थे पास के स्कूल के थे । एक बच्चा केवल कच्छे में था तो शेष सभी ने पतला शर्ट नेकर डाल रखी थी बारी बारी से शिव लिंग पर पड़ी सामग्री में से सिक्के तलाश रहे थे । बेहिचक संवादी हो गया उनके साथ । प्यार किया उनको और कहा - "डस्टबिन" में कचरा डाल दो शिव पर वैसे भी इस दुनिया ने बेहद बोझ डाल दिया है । बच्चे मेरी बात का आधा हिस्सा समझ पाए और काम में जुट गए शर्मा ने बाल्टी उठाई रेवा जल लाकर बेतरतीबी से प्रभु के इर्द गिर्द को धो दिया । बाक़ी सउत्साह चढ़ावा उठा कर डस्टबिन में डाल रहे थे । उधर Sulabha यानी श्रीमती जी बेतहाशा फोटोग्राफी में मशगूल हो गईं ।
बेटी Shraddha असहजता से हमको देख रही थी ।
मेरा मन अत्यधिक मस्तिष्क सक्रिय हो गया घाट की सफ़ाई के बारे में । यूं तो घाट अब अपेक्षाकृत साफ हैं पर भक्त के तौर पर मेरी भी ज़िम्मेदारी है ।
मन ने सोचा था कि शिवमहिम्न स्त्रोत का पाठ करूँ पर बुद्धि ने कहा आज तुम जितना भी हो सकता है तट को साफ कराओ । बस 6 गुणा 14 फ़ीट का हिस्सा साफ करा लिया । शिव की आसंदी साफ हो चुकी थी । असर ये भी हुआ कि लोग पालीथीन की थैलियों को साथ वापस ले जा रहे थे । कचरा डस्टबिन में डाल कर माँ को प्रणाम कर वापस हो रहे थे ।
स्वच्छता सिर्फ मोदी का मिशन नहीं हम सबका है । संस्कार फ़ोटो खिंचवा कर अख़बार में छपवा कर नहीं विस्तारित होते हैं उनके विस्तार के लिए यह सब कुछ करना होता है ।
. एक संकल्प लिया है #शुद्धि का जो मित्र तिलवाराघाट स्वच्छता अभियान में जुड़ना चाहते हैं कृपया कमेंट बॉक्स में सहमति दीजिये । हम केवल मंगलवार को एक दिन चलेंगे आप तैयार हैं तो एक सवाल ज़रूर करें कि- "क्या करना है"
मित्रो चलें तो वहां फिर क्या करेंगे और कैसे क्या करना है हम आप वहीं तय कर सकते हैं है न ...?
वांग्मयी बातों का दौर ।।
एक सुदामा ज्ञान अकिंचन-
खोज रहा गुरु या कुछ और ।।
मित्रो आप भली प्रकार भिज्ञ हैं एक समय शरीर को भूख कम ही लगती है ऊर्जावान रहें उतना ही आहार ज़ायज़ होता है ।
परन्तु मानसिक रूप से भूख में अचानक इज़ाफ़ा देख खुद हतप्रभ हूँ । दुनियां भर के झंझावात के अवलोकन के बाद एक विस्तृत भीड़ में अकेला महसूस कर रहा हूँ । सोचा करता हूँ अब अकेला क्यों हूँ.... ? उम्र के साथ ऐसे ही बदलाव आते हैं.... खुद के बारे में सोचना भी लगभग बंद सा हो गया ।
रेवा के एक घाट पर आना जाना होता है । कल भी था सपत्नीक तिलवाराघाट गया था । अचेता और अनिच्छा से निकला पर प्रवास पर बाद में यही प्रवास इच्छानुकूलित प्रवास हो गया ।
मन में केवल माँ के बारे में सोच रहा था । अक्सर ऐसा ही होता है । ग्वारीघाट और तिलवाराघाट जाकर माँ बहुत याद आतीं हैं । जिनकी भस्मी इसी रेवा में प्रवाहित हुई थी । तो माँ रेवा में माँ का आभास हुआ । फिर लगा वाकई रिक्तता केवल मां ही भरती है । माँ कभी दिवंगत नहीं होती है । लगा रेवा से संवाद करूँ.... पर भिक्षुकों ने आ घेरा खीसे में जो भी फुटकर था बांट दिया फिर बाक़ी भिक्षुको को साफ तौर पर इंकार कर दिया श्रीमती जी ने तब तक रेवा में दुग्धाभिषेक कर दिया ।
इस बीच देखा शिव की प्रतिमा पर लादे गए विल्व धतूरे गेहूं की बालियां, बेर , देख मन खुश हुआ दुःख भी साथ साथ होने लगा । कुछ बच्चे तीन जिनमें मल्लाह, बर्मन, सरनेम वाले दो और एक शर्मा कुल का था । सभी छटी क्लास के थे पास के स्कूल के थे । एक बच्चा केवल कच्छे में था तो शेष सभी ने पतला शर्ट नेकर डाल रखी थी बारी बारी से शिव लिंग पर पड़ी सामग्री में से सिक्के तलाश रहे थे । बेहिचक संवादी हो गया उनके साथ । प्यार किया उनको और कहा - "डस्टबिन" में कचरा डाल दो शिव पर वैसे भी इस दुनिया ने बेहद बोझ डाल दिया है । बच्चे मेरी बात का आधा हिस्सा समझ पाए और काम में जुट गए शर्मा ने बाल्टी उठाई रेवा जल लाकर बेतरतीबी से प्रभु के इर्द गिर्द को धो दिया । बाक़ी सउत्साह चढ़ावा उठा कर डस्टबिन में डाल रहे थे । उधर Sulabha यानी श्रीमती जी बेतहाशा फोटोग्राफी में मशगूल हो गईं ।
बेटी Shraddha असहजता से हमको देख रही थी ।
मेरा मन अत्यधिक मस्तिष्क सक्रिय हो गया घाट की सफ़ाई के बारे में । यूं तो घाट अब अपेक्षाकृत साफ हैं पर भक्त के तौर पर मेरी भी ज़िम्मेदारी है ।
मन ने सोचा था कि शिवमहिम्न स्त्रोत का पाठ करूँ पर बुद्धि ने कहा आज तुम जितना भी हो सकता है तट को साफ कराओ । बस 6 गुणा 14 फ़ीट का हिस्सा साफ करा लिया । शिव की आसंदी साफ हो चुकी थी । असर ये भी हुआ कि लोग पालीथीन की थैलियों को साथ वापस ले जा रहे थे । कचरा डस्टबिन में डाल कर माँ को प्रणाम कर वापस हो रहे थे ।
स्वच्छता सिर्फ मोदी का मिशन नहीं हम सबका है । संस्कार फ़ोटो खिंचवा कर अख़बार में छपवा कर नहीं विस्तारित होते हैं उनके विस्तार के लिए यह सब कुछ करना होता है ।
. एक संकल्प लिया है #शुद्धि का जो मित्र तिलवाराघाट स्वच्छता अभियान में जुड़ना चाहते हैं कृपया कमेंट बॉक्स में सहमति दीजिये । हम केवल मंगलवार को एक दिन चलेंगे आप तैयार हैं तो एक सवाल ज़रूर करें कि- "क्या करना है"
मित्रो चलें तो वहां फिर क्या करेंगे और कैसे क्या करना है हम आप वहीं तय कर सकते हैं है न ...?