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मंगलवार, फ़रवरी 26, 2019

सॉरी मां, हम झूठ न बोल सके.........जहीर अंसारी




मां हमें पता है कि इस वक्त पर आप पर क्या बीत रही होगी। हमारी लाशों को देखकर आपका कलेजा बाहर को निकल रहा होगा। हमें यह पता है कि आप कितना जज्ब कर रही होंगी। कभी परमात्मा को तो कभी खुद को कोस रही होंगी। हमारे मृत शरीर को देखकर आपकी आत्मा मरणासन्न अवस्था में होगी। मां तू तो फूटकर रो भी नहीं पा रही होगी। कितने नाजों से पाला था तूने हमें। तेरी कोख में जब हम जुड़वा भाई दुनिया में आने के लिए तैयार हुए थे तो कितना दर्द, कितनी तकलीफ सही थी तूने, हम इसके साक्षी हैं। हमारी पैदाईश के बाद अनगिनत रातें तूने जाग-जागकर बिताई थीं। अपना खाना-पीना दुख-दर्द भूलकर हम दोनों में अपनी खुशी ढूंढने क्या कुछ नहीं किया तूने। हम इस बात के भी साक्षी हैं कि तेरी एक-एक सांसों पर हमारा ही नाम होता था। पर क्या करूं मां, हमसे झूठ न बोला गया। उन दरिंदों ने हमें छोड़ने से पहले पूछा था कि क्या हमें पहचान लोगे, हम ने ‘हां’ कह दिया। कहते हैं न कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं इसलिये हम दोनों ने भी सच बोल दिया। एक सच की इतनी बड़ी सजा मिलेगी, यह अभी हमने सीखा कहां था। मां तूने भी तो अब तक बड़ों के चरणस्पर्श और ईश्वर को प्रणाम करना ही सिखाया था। ईश्वर की पूजा में अपने साथ लेकर बैठती थी और हमारी रक्षा की प्रार्थना करती थी। हम भी भोलेपन के साथ तेरे साथ बैठते, कभी उचकते, कभी तूझे सताते थे। तू प्रेमभरी खिसियाहट से हाथ पकड़कर बिठाल लिया करती थी। ईश्वर को प्रणाम करने कहती थी। तब से अब तक हमें यह मालूम न था कि परमात्मा क्या होता है, सच और झूठ क्या होता है, फरेब और लालच
क्या है। हम तो सिर्फ़ तेरी ममता के आंचल को जानते थे, तेरे हृदय की कोमलता को महसूस करते थे।
मां, अब समझ आया कि दुनिया कितनी जालिम है। सच और झूठ की हकीकत जानी। एक
झूठ शायद हमें तेरी गोद से दूर न कर पाता मगर यह झूठ बोलता कैसे, हमें तो इसकी समझ तक नहीं थी। झूठ की समझतो राजनेताओं को होती है, शासन प्रणाली को होती है, व्यवस्था संचालन के जिम्मेदार लोगों को होती है। उन्हें होती है जो धर्म, समाज और नैतिकता की पाठशाला चलाते हैं। मां, हमें जरा भी इन ठेकेदारों के आचरण-व्यवहार का ज्ञान होता है तो हम भी दो अक्षरों वाला शब्द ‘झूठ’ एक अक्षर में ‘न’ बोल देते। कह देते उन जालिमों से कि हम तूम्हें नहीं पहचान पाएंगे।
मां, एक बात समझ नहीं आई अब तक। अपना देश तो अति धार्मिक है। जितने भी धर्म यहां पलते-पुसते हैं सभी कहते हैं कि परमात्मा की आराधना करो, परमात्मा से डरो, इंसानों की सेवा करो, लोभ-लालच से दूर रहो। फिर ये धार्मिक प्रवृत्ति के लोग कैसे लोभ-लालच में आ जाते हैं, कैसे उन्मादी बन जाते हैं, कैसे आंतकवादी बन जाते हैं, कैसे लूट-खसोट, दुराचार-अत्याचार में लिप्त हो जाते हैं।
मां, जिन्होंने हमें मारा है उनके घर भी परमात्मा की तस्वीर रहेगी होगी। वो भी किसी न किसी ईशदेव को मानते होंगे। उनके घर पर भी नौनिहाल होंगे। बच्चों की किलकारियों उनके कानों में पड़ती होगी, उन्हें भी अपने बच्चों से प्रेम रहा होगा फिर भी उन्होंने हमें मार डाला।
मां, हमें पता है कि तेरे दिल की धड़कन तेज चल रही होगी, मन में ज्वाला की लपटें उठ रही होगीं, तू बदहवाश होगी, तेरे नयन सूखकर मरुस्थल बन गए होंगे, तेरी बाहें हमें समेटने को मचल रही होगीं
लेकिन अब हम दोनों तेरी उम्मीदों से बहुत दूर निकल गए हैं। इतनी दूर जहां से आज तक कोई लौटकर नहीं आया है।
मां, अब तू भी वही कर जो अब तक बताया गया है। नियति के लिखे को मान। धैर्य और संयम रख। हालांकि ऐसा करना तेरे लिये नामुमकिन है फिर भी मां तूझे ऐसा करना होगा। हमारे बिना तूझे जिन्दा
रहना होगा मां, हम तेरे साथ ही हैं मां।
मां, एक प्रश्न हम दोनों के मष्तिस्क में कौंध रहा है। हम जिस देश के वासी हैं उसे सनातन धर्म का जनक कहा जाता है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, और न जाने कितने धर्म यहां पलते-पुसते हैं। सभी
धर्मो में बाल अवस्था से सिखाया जाता है कि लोभ-लालच मत करो, मोह-माया में मत फँसो, मानवता का सम्मान करो, झूठ मत बोलो आदि-आदि। फिर भी इन धर्मावलंबियों के कथित अनुयायी वही सब करते हैं, कर रहे हैं जिसकी मनाही कठोरता से की गई है। ऐसे ही कुछ लालची-निर्दयी तत्वों ने तेरे दोनों नेत्र छीन लिये। सब धर्म कहते हैं कि सच परमात्मा को बहुत
पंसद है, सो हमने भी सच बोल दिया कि ‘ऐ दरिन्दों
हम तुम्हें पहचान जाएंगे’। निश्चित ही हमें सच बोलने का ईनाम परमात्मा अपने श्रीचरणों में रखकर देगा।
मां, हमें बहुत अफसोस हैं कि हम तेरी कोख का कर्ज उतारने से पहले ही तूझे छोड़ गए। पता है तेरे जख्म का कोई मलहम इस दुनिया में नहीं है। है अगर तो सिर्फ़ सब्र’। सब्र रख, सब्र मां। मां तू गर्व से कह सकती है कि तेरे लालों ने सत्य के हवन कुण्ड में आहूति दी है। बस अब मुझे परमात्मा से यही पूछना है कि आदमी आदमियत से कितना नीचे और गिरेगा। दुनिया के लोगों से भी बस एक ही प्रार्थना है कि बंद, मोमबत्ती, संवेदना, मातम, जांच, न्याय, गालियां, धर्म, जात, समाज और मौन से ऊपर उठकर स्वयं में स्थित होकर नैतिक और सभ्य बनो।
बाय मां, अपना और पापा का बहुत ख्याल रखना।
तुम्हारे जिगर का टुकड़ा...
प्रियांश और श्रेयांस
.......

जय हिन्द
जहीर अंसारी

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