3.8.18

समय यात्रा असंभव है

          
 [ टाइम मशीन के ज़रिये समय यात्रा  {  time-tour } के सन्दर्भ में मेरा पिछ्ला आलेख :- ये भी नहीं अरे भाई ये नये भी नहीं ! आपने अगर न देखा हो तो कृपया इस लिंक पर पहले उसे देखिये फिर यहाँ उसी तारतम्य में इस आलेख को पढ़िए ]

ये भी नहीं अरे भाई ये न ये भी नहीं ! शीर्षक से लिखे आलेख में टाइम-ट्रेवल को या टाइम टूर को लेकर  तार्किक आधार पर पूरी ज़िम्मेदारी के साथ इस अवधारणा को खारिज करता हूँ. 
    यात्रा का अर्थ समझने के पूर्व सभी समझते ही हैं कि यात्रा एक भौतिक क्रिया है . जिसकी दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, और यात्री सब कुछ तय शुदा है. ये तय करने वाला शरीरी होता है जिसे यात्री कहा जाता कि उसे किस दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, से यात्रा करनी है. आइये आगे टाइम-ट्रेवल की थ्यौरी की विवशाताओं को  दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, आदि के साथ-साथ  कर लेते हैं 
दिशा :- हर यात्रा की दिशा तय है अर्थात दस डायरेक्शन में से कोई कहीं भी जा सकता है. तय जाने वाले को करना है. समय  की कोई दिशा तय नहीं होती . उदाहरणार्थ आज 3 जुलाई 2018 है कल 2 जुलाई 2018 थी. मुझे बीते कल के 12:45 बजे में जाना है तो कौन सी दिशा तय करूंगा ? समय-यात्रा का सिद्धांत यहाँ विवश है .    
गति :- मेरी गति क्या होनी चाहिए ? समय यात्रा का सिद्धांत यहाँ भी मौन ही होगा .
उद्देश्य :- सामान्य यात्रा एवं समय यात्रा दौनों  के  उद्देश्य निर्धारित है पर क्या समय यात्रा में पिछले दिन की घटना की छवि वास्तविक रूप से नज़र आ सकती है..? उत्तर न में ही होगा ..... क्योंकि कल मैं जिस समारोह का सह आयोजक था उसमें लगभग 500 लोग जुड़े थे और वे सब जब मैं यह लिख रहा हूँ सो रहे होंगे. वे भौतिक रूप से उस स्थान पर न आएँगे . न तो सूर्य का प्रकाश होगा न ही वैसी परिस्थितियाँ . केवल मेरे मष्तिष्क में दृश्य मौजूद हैं जिसे सिर्फ मैं ही महसूस करूंगा तो किसी मशीन को ज़रिया [माध्यम] बनाने की कल्पना बेवकूफी ही तो है.
माध्यम :- यात्रा किसी साधन से की जाती है सब जानते हैं- रेल, बस, कार, वायुयान, आदि आदि . जिनके उपयोग से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाया जा सकता है न कि एक समय से दूसरे समय तक . अर्थात 3 अगस्त 2018 मध्य रात्री 00:37 बजे  से पीछे या आगे जाने के लिए किसी मशीन की कल्पना ही आधारहीन सोच है. अगर मशीन बन भी गई तो वह आपको बेहोश करने की मशीन होगी जिसकी वज़ह से आप अन्य मुद्दों के लिए बेहोश हो जाएंगे और केवल भूत और भविष्य की काल्पनिक घटनाओं में खोते चले जाएंगें भौतिक रूप से आप मशीन में मरे हुए से पड़े होने . मष्तिष्क के साथ साथ केवल आपकी देख कर महसूस करने की प्रणाली ठीक  काम करेगी यह प्रणाली स्वप्न देखने की प्रणाली है जिसके लिए किसी मशीन की ज़रूरत नहीं होती शरीर ही वह मशीन है. 
मेरी विश्व को सलाह है कि इस आलेख के बाद कोई भी समय-यात्रा पर विमर्श / शोध / आदि पर समय व्यय न करे. 
    

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

Wow.....New

अलबरूनी का भारत : समीक्षा

   " अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार भारत के प्राचीनतम  इतिहास को समझने के लिए  हमें प...

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में