20.8.18

कृष्णं वन्दे जगतगुरु


【 *शोध दृष्टिपत्र* 】
[ कृष्ण ईश्वर के अवतार हैं इस बात को नकारने का सामर्थ्य अब शेष नहीं होना चाहिए कुछ तर्कवादी एवं वामपंथी चिंतक ईश्वर एवम भारतीय सनातन के अस्तित्व को ही नकारने के उद्देश्य से कर्मयोगी कृष्ण एवं मर्यादा पुरुषोत्तम राम को सिरे से खारिज करने की चेष्टा में बरसों से सक्रिय हैं. जन्माष्टमी के पर्व पर कृष्ण के सन्दर्भ में अपनी बात रखते हुए महायोगी कृष्ण के अस्तिव के समर्थन में अपने विचार रख रहा हूँ , ]
मेरा मंतव्य है कि जिस कृष्ण से सर्वहारा के प्रति संवेदना भाव का प्रादुर्भाव हुआ उसे अस्वीकृत करना गैरवाज़िब ही नहीं सिरे से खारिज करने लायक है.
भारतीय सनातनी संस्कृति के महानायक कृष्ण को काल्पनिक कैरेक्टर की संज्ञा देना तथा महाभारत की घटनाओं से असहमति होना भी आयातित वैचारिक षडयंत्रों का एक नमूना ही है.
*श्रीकृष्ण काल का नियतन*
विकी पीडिया में दर्ज विवरण अनुसार कृष्ण का जीवन काल ईसा के 3200 से 3100 वर्ष पूर्व का होना अनुमानित है जबकि कुछ विद्वान कृष्ण के काल को ईसा के 1000 साल पूर्व का मानते हैं. हम भी महाभारत काल को मोटे तौर पर 5 से 6 हजार साल पूर्व का मानते हैं. यहाँ वैदिक काल का ज़िक्र आवश्यक है जो कर्मयोगी कृष्ण के जीवन काल के उपरांत का माना जाता है. इसे ईसा के 1500 वर्ष पूर्व का माना जाना चाहिए तो उसके 1500 वर्ष पूर्व का कालखंड कृष्ण का कालखंड कहा जा सकता है. पश्चिमी विचारकों ने अंतत: रामायण काल एवं महाभारत काल के प्रति सकारात्मक रूप से सहमती व्यक्त की किन्तु कुछ विचारकों ने इस पर ख़ास सहमति न देते हुए ऋग्वेद के हवाले से आर्यों और कृष्ण के वंश मध्य संघर्ष का जिक्र भी किया है. सनातन संस्कृति का अभ्युदय वैदिक काल के पूर्व का है. कृष्ण का कालखंड आर्य आगमन के पूर्व का माना जाए तो स्वाभाविक है कि कृष्ण के कुल के लोग जो पेशे से गोपालक थे का वैदिक कालीन समाज से संघर्ष अवश्यम्भावी है क्योंकि कृष्ण के समाधिष्ठ होने के बाद यदुवंश के हाथ से सत्ता का छूटना और आर्यों द्वारा सुनियोजित तरीके से प्रशासनिक एवं सामाजिक व्यवस्था हाथों में लेना संघर्ष का एक प्रमुख कारण हो सकता है. *आर्यों का कृष्ण से युद्ध नहीं हुआ बल्कि उनके वंश से सम्भव है ।*
जन्माष्टमी के अवसर पर हम इस बिंदु पर विमर्श करना चाहते हैं कि
क्या कृष्ण मानवतावादी न थे ..?
और
क्या उनको सिरे से खारिज कर देना चाहिए ?
प्रथम प्रश्न के उत्तर में मेरा मत है कि वास्तव में कृष्ण महान मानवतावादी व्यक्तित्व के धनी थे. उनका जीवनवृत देखने से इस बात की पुष्टि भी होती है कि वे केवल करुणाकर थे जिनने असम के पराक्रमी राजा नरकासुर की कैद से जिन्हौने 16 हजार स्त्रियों को मुक्त कराया और उनको अपने राज्य में सुरक्षा प्रदान की . कृष्ण की परन्तु उन्होंने आठ महिलाओं से शादी की। उनकी आठ पत्नियों के नाम रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, मित्रविंदा, नाग्नाजिती, भद्रा और लक्ष्मणा थीं . राधा से कृष्ण का मात्र आद्यात्मिक सम्बन्ध था.
दूसरा उदाहरण *कृष्ण ने किशोरावस्था में साथियों के साथ गोपियों के दूध दही माखन से भरे घड़ों को तोड़ कर मथुरा में दूध दही माखन की आपूर्ति रोक कर कंस के विरुद्ध क्रान्ति के संकेत दिए. कालान्तर में कंस का वध कर सामुदायिक दासता को ख़त्म करते हुए प्रशासनिक व्यवस्था अपने पास कर ली.*
कृष्ण व्यक्ति पूजा के विरोधी थे इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी सहज हो जाती है कि उनने इंद्र देव की पूजा के खिलाफ सभी को एकजुट किया और इंद्र के बदले की भावना से किये अत्याचार को रोकने पर्वत को छतरी बना कर जनता की रक्षा भी की .
कृष्ण ने दम्भी दुर्योधन के अत्याचार से मुक्ति के लिए जिस तरह पांडवों का साथ दिया उसे भारतीय सनातनी व्यवस्था का वो उज्जवल पक्ष उभरता है जिसमें सबसे पहले सबसे पीड़ित की मदद के लिए आगे आना चाहिए साथ ही आगे बढ़ क्र मदद करना चाहिए.
द्वापर में नारी के प्रति दोयम व्यवहार को कोई स्थान न था सो अगर हम मान लें कि आर्य कृष्ण के उपरांत भारत आए तथा वेदों की रचना की तो यह हमारी सनातन प्रणाली से ही लिया गया सन्देश था जिसे उन्होंने (आर्यों ने) स्वीकार्य किया कि स्त्री-पुरुष में समानता होनी चाहिए. तथा वेदों में लिपिबद्ध भी किया गया.
*वैदिक भारत में नारी की स्थिति*
संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी .
अस्पृश्यता, सती प्रथा, परदा प्रथा, बाल विवाह आदि का प्रचलन नहीं था .
शिक्षा एवं वर चुनने का अधिकार महिलाओं को था . विधवा विवाह, महिलाओं का उपनयन संस्कार, नियोग, गन्धर्व एवं अंतर्जातीय विवाह प्रचलित था.
वस्त्राभूषण स्त्री एवं पुरूष दोनों को प्रिय थे.
अपाला, घोष, मैत्रयी, विश्ववारा, गार्गी आदि विदुषी महिलाएं थीं।
उपरोक्त विवरण स्पष्ट रूप से साबित करने में सफल है कि आर्यों के काल के पूर्व अर्थात राम एवम कृष्ण काल में नारी को साम्य अवसर थे । कृष्ण काल में अधिक स्वाधीनता मिली थी जो रामायण काल में रक्ष-संस्कृति के पोषक रावण ने राज परिवार तक सीमित थी ।
वर्तमान सन्दर्भ में देखा जाए तो अत्याधुनिक विचारक जो भारत की सनातन व्यवस्था के खिलाफ हैं कृष्ण एवं उनके काल में सामाजिक व्यवस्था को क्या उनको सिरे से खारिज कर देना चाहते हैं जबकि द्वापर में अस्पृश्यता, दास-प्रथा, भिखारियों और कृषि दासों का न होना एक उल्लेखनीय तथ्य है जो वेदों में भी कालान्तर में लिखा गया .
सुधि पाठको रामायण एवं महाभारत के शीर्ष पुरुष राम एवं कृष्ण की गाथाएं न तो भ्रामक हैं न ही काल्पनिक अपितु मूल कथानक में दौनों ही अस्तित्व में थे जिसकी पुष्टि वैज्ञानिकों द्वारा भी की जा चुकी है और कार्बन टेस्ट से भी भारतीय संस्कृति के अस्तित्व को हाल में 50 से 55 हज़ार वर्ष पूर्व के मानव जीवन एवम अन्य अवशेष मिलने की पुष्टि हुई है । अत: उनको काल्पनिक मानना सनातनी व्यवस्था के साथ अतिचार होगा . अस्तु हम सनातनी व्यवस्था के समर्थन में सतत अध्ययन करते कराते रहें तथा वाम-विचारकों के अनर्गल प्रलाप को रोकने संकल्पित हों. साथ ही अपने घर आनेवाले अन्य वर्ण के लोगों एवम अपने बच्चों को सन्दर्भों के साथ बताएं कि भारतीय सनातन संस्कृति एवम परम्पराएं माइथ अर्थात काल्पनिक नहीं सत्य है । एक बात और ध्यान दीजिए कि क्रिश्चियन इतिहास 2500, मुस्लिम इतिहास 1500 वर्ष तक का है । जबकि हमारा इतिहास 50 हज़ार से अधिक पुराना है लिपिबध्द भी था जो तक्षशिला के उस ग्रंथालय में सुरक्षित था जिसे डाकू लुटेरे विदेशियों ने जला दिया था आपने सुना ही होगा कि तक्षशिला की लायब्रेरी की आग कई दिनों तक बुझी ही न थी ।

*शोध दृष्टिपत्र*
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
969/1, गेट नम्बर 4
स्नेह नगर रोड, जबलपुर
482002
girishbillore@gmail.com

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