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सोमवार, दिसंबर 11, 2017

आज ओशो ट्रेल कर ओशो प्रेमी करेंगे प्रेम का इज़हार

पलपल जबलपुर. साभार प्रेस कॉन्फ्रेंस रपट
प्रेसवार्ता का दृश्य 

ओशो ट्रेल के प्रति संस्कारधानी में लगातार बढ़ रही उत्सुकता को दूर करने विवेकानंद विजडम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर और इस ट्रेल के आयोजक प्रशांत कौरव ने एक पत्रकार वार्ता की. उनके साथ ही पत्रकार एवं सुदेशना गुरु सुरेन्द्र दुबे एवं अन्य आयोजको ने बताया की इस आयोजन के प्रति शहर वासियों और ओशोप्रेमियों में जितनी उत्सुकता है उसी तरह वे भी इस ट्रेल को लेकर बेहद उत्साहित हैं. उन्होंने कहा की यह उनका नहीं बल्कि शहरवासियों का है एक आयोजन हैं.
अब भी महसूस की जाती है ओशो की चेतना रूपी सूक्ष्म उपस्थिति
श्री कौरव ने बताया कि सत्ताइस साल पूर्व 19 जनवरी 1990 को ओशो इस संसार से भौतिक रूप से महाप्रयाण कर गए लेकिन समग्र अस्तित्व में उनकी चेतना रूपी सूक्ष्म उपस्थिति सतत महसूस की जा रही है, उनकी 750 से अधिक पुस्तकें और ऑडियो, वीडियो प्रवचन व चित्ताकर्षक स्टिल फोटोग्राफ्स देश-दुनिया में फैले करोड़ो ओशो प्रेमियों और जिज्ञासुओं के सम्मोहन का केन्द्र बने हुए हैं. ओशो का जबलपुर से 1951 से 1970 के मध्य यानी लगभग 2 दशक तक बेहद गहरा लगाव और जुड़ाव रहा.
जबलपुर को होम टाउन मानते थे ओशो
श्री कौरव ने बताया कि स्वयं ओशो ने अपने जीवनकाल में जबलपुर को अपने होम-टाउन का दर्जा दिया. उनका कथन था कि जबलपुर मेरा पर्वतस्थल है, जहां मैं सर्वाधिक ध्यानस्थ और आनंदित हुआ. यही वजह है कि जबलपुर को ओशो-सिटी की गरिमा हासिल है. अवतरण-ग्राम कुचवाड़ा के राजा नामक बालक और पैतृक-ग्राम गाडरवारा के रजनीश चन्द्रमोन जैन नामक युवक को इस ओशो-नगरी जबलपुर में ही पहले जातिमुक्त रजनीश चन्द्रमोहन, फिर क्रांतिकारी पत्रकार, लेखक, संगठनकर्ता, विचारक व युगकबीर-वक्ता रजनीश और आगे चलकर दर्शनशास्त्र के अनूठे व लोकप्रिय प्राध्यापक आचार्य रजनीश बतौर पहचान मिली. सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जबलपुर में प्रवासकाल के दौरान ही आचार्य रजनीश से विश्वविख्यात ओशो होने की संभावना के बीज का अंकुरण हुआ. 21 मार्च 1953 को जबलपुर के भंवरताल पार्क स्थित मौलश्री वृक्ष के तले उन्हें संबोधि की उपलब्धि हुई. इस दौरान उनका निवास स्थान नेपियर टाउन स्थित योगेश-भवन था. संबोधि के पूर्व आचार्य रजनीश को जबलपुर के नर्मदा तटीय संगमरमरी भेड़ाघाट ने सर्वाधिक आकर्षित किया, उन्होंने इसे संसार में अपना सबसे प्रिय स्थान कहा है. इसके अलावा खामोश वादियों से घिरी नैसर्गिक स्थली लघुकाशी देवताल की शिला पर ध्यानस्थ होना उन्हें अतिशय प्रिय था, जो अब ओशो संन्यास अमृतधाम के भीतर संरक्षित है. जबलपुर प्रवास के दौरान आचार्य रजनीश महाकोशल कॉलेज में दर्शनशास्त्र की कक्षाएं लेने के बाद एक मनपसंद ‘‘विश्राम-कुर्सी‘‘ पर आसीन हुआ करते थे, जो अब धरोहर बतौर कॉलेज लायब्रेरी में सुरक्षित है.
विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूलभेड़ाघाट की अनूठी पहल
इस तरह साफ है कि एक प्रतिभाशाली मानव आचार्य रजनीश से भगवत्तापूर्ण महामानव ओशो होने तक के सफर में जबलपुर का अमूल्य योगदान रहा. इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भेड़ाघाट स्थित ओशो की देशना पर आधारित अनूठी शिक्षण संस्था विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल ने ‘‘ओशो ट्रेल: रोमांचक पर्यटन यात्रा ओशो-नगरी की‘‘ नामक अनूठे प्रकल्प के 11 दिसम्बर, 2017 से श्शुभारंभ का संकल्प लिया है, जिसके पीछे जबलपुर में देशी-विदेशी पर्यटन को बढ़ावा देने की महत्वपूर्ण सोच भी समाहित है.
ओशो ट्रेल: टाइमलाइन
ओशो ट्रेल के तहत प्रातः 10 बजे ओशो ट्री, मौलश्री भंवरताल पार्क से शुरूआत के बाद ओशो-हाॅल, योगेश-भवन नेपियर टाउन ले जाया जाएगा. इन दोनों जगहों पर ओशो की चेतना को अनुभूत करने के बाद यात्रीगण भेड़ाधाट की तरफ प्रस्थान करेंगे, जहां पुण्यसलिला मां नर्मदा के तट पर स्थित ओशो-मार्बल का दर्शन-लाभ लजीज लंच के साथ होगा. भेड़ाघाट में ही स्थित विवेकानंद विज्डम इंटरनेशल पब्लिक स्कूल की विजिट के बाद ओशो ट्रेल का प्रवेश ओशो संन्यास अमृतधाम देवताल में होगा, जहां ओशो-राॅक के दर्शन कराए जाएंगे. 11 दिसम्बर ओशो का अवतरण दिवस है, जिसके उपलक्ष्य में आयोजित आनंदोत्सव में सभी यात्रीगण सहभागी होने का सौभाग्य अर्जित कर सकेंगे. इसके बाद सभी यात्रियों को उस महाकोशल कॉलेज स्थित ओशो चेयर के दर्शन कराए जाएंगे, जिसके काॅरीडोर और क्लास-रूम में कभी आचार्य रजनीश के कदम पड़ा करते थे. ओशो ट्रेल का समापन कल्चरल स्ट्रीट में होगा, जहां ओशो छविदर्शन चित्रप्रदर्शनी और व्हाइट रोब ब्रदरहुड के जरिए ओशो के संदेश ‘‘उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र‘‘ को साकार किया जाएगा. हाईटी-टेस्टी स्नैक्स ग्रहण करने के बाद सभी यात्री अपने-अपने गंतव्य की ओर रवाना होंगे.
यानि सोमवार 11 दिसम्बर 2017 को सुबह 10 बजे ओशो ट्री मौलश्री भंवरताल पार्क से ओशो ट्रेल का शुभारंभ होगा.....सवा 11 बजे तक ओशो हाॅल योगेश भवन नेपियर टाउन का दीदार करने के बाद ओशो ट्रेल ओशो को संसार में सबसे प्रिय रहे पुण्यसलिला मां नर्मदा के सुंदरतम-स्थल भेड़ाघाट की तरफ रवाना होगी.....1.15 बजे ओशो ट्रेल ओशो संन्यास अमृतधाम देवताल की तरफ रवाना होकर आश्रम में दोपहर 2 से 3.30 बजे तक आयोजित होने वाले ओशो अवतरण दिवस आनंदोत्सव में शामिल होगी.....4.30 बजे तक महाकोशल काॅलेज, सिविल लाइन्स में संरक्षित अद्वितीय ओशो चेयर का दर्शन करने के साथ ही शाम पौने 5 बजे ओशो ट्रेल ओशो छविदर्शन और व्हाइट रोब ब्रदरहुड के लिए कल्चरल स्ट्रीट पहुंचेगी. यहां 6.30 बजे तक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन ओशो के ‘‘उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र‘‘ जैसे प्रेरणादायी संदेश को साकार करते हुए किया जाएगा.
ओशो ट्रेल एक रोमांचक पर्यटन यात्रा
ओशो और जबलपुर अपने लांचिंग पेड जबलपुर से दार्शनिक और आध्यात्मिक उडान भरकर विश्व-गगन पर छाए क्रांतिदृश्टा संस्कारधानी के गौरव आचार्य रजनीश यानी विष्वविख्यात महान शख्सियत ओशो से संबंधित स्थानीय स्थलों का दर्शन आनंदायक, अविस्मरणीय और अनूठा होगा. सुदेशना यही है कि हम जबलपुर से जुड़ी ओशो की स्मृतियों व स्मारकों को संजोकर अधिकाधिक देशी-विदेशी पर्यटकों को अपने प्यारे श्शहर जबलपुर की तरफ आकर्षित करने में सफल होंगे.
ओशो ट्रेल: मुख्य आकर्षण
1- ओशो ट्री- मौलश्री भंवरताल...आमंत्रण ओशो की दिलकश संबोधि-स्थली का.
2- ओशो हाॅल- नेपियर टाउन योगेश-भवन...आमंत्रण ओशो की तरंगों से ओतप्रोत निवास-स्थान का.
3- ओशो मार्बल- नर्मदा तट भेड़ाघाट...आमंत्रण ओशो की संसार में सबसे मनपसंद नयनाभिराम जगह का.
4- ओशो रॉक- अमृतधाम देवताल...आमंत्रण ओशो की पसंदीदा ध्यान में डुबोने वाली नैसर्गिक खामोश वादियों का
5- ओशो चेयर- महाकोशल काॅलेज सिविल लाइन्स...आमंत्रण ओशो की गरिमामय अध्यापन-स्थली का.
6- ओशो छविदर्शन और व्हाइट रोब ब्रदरहुड-कल्चरल स्ट्रीट जबलपुर...आमंत्रण ओशो के महासूत्र ‘‘उत्सव आमार जाति-आनंद आमार गोत्र‘‘ का.
ओशो ट्री
जबलपुर के भंवरताल पार्क में मौलश्री का वह परम-पावन वृक्ष संरक्षित है, जिसके तले 21 मार्च 1953 को आचार्य रजनीश को संबोधि की उपलब्धि हुई थी. इसे अब ‘‘ओशो ट्री‘‘ के रूप में जाना जाता है. नगर पालिक निगम, जबलपुर ने भंवरताल पार्क का रेनोवेशन करते हुए ओशो संबोधि स्थली मौलश्री को चातुर्दिक अत्यंत रमणीय और चित्ताकर्शण स्वरूप दे दिया है. गोलाकार जलप्रवाह के मध्य फेंस से घिरा मौलश्री महावृक्ष पूर्ण सुरक्षित है. ओशो के देश-दुनिया में फैले करोड़ों प्रेमियों के लिए इस स्थान का वैसा ही महत्व है, जैसा कि तथागत गौतम बुद्ध के अनुयायियों के लिए बोधिगया बिहार का है. इसीलिए ‘‘ओशो टेल‘‘ का शुभारम्भ-स्थल यही है.
ओशो हॉल
जबलपुर के नेपियर टाउन क्षेत्र में भंवरताल के नजदीक ही वह ऐतिहासिक मकान ‘‘योगेश भवन‘‘ स्थित है, जहां 1951 से 1970 की अवधि में आचार्य रजनीश निवास करते थे. जिस सभागार में उन्होंने प्रारंभिक स्तर पर अपनी तरफ खिंचे चले आने वाले अध्यात्म-प्रेमियों को प्रवचन के साथ शिथिल ध्यान के प्रयोग कराए, उसे ही अब ओशो हॉल कहा जाता है. इस मकान में रहते हुए आचार्य रजनीश ने अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया. ओशो हॉल की सभी अलमारियां उनकी मनपसंद किताबों से भरी थीं. जब उन्होंने जबलपुर को अलविदा कहकर मुंबई प्रस्थान किया तो उनकी सारी किताबें ट्रकों में भरकर मुंबई पहुंचा दी गईं. ओशो संबोधन से पहले भगवान रजनीश के रूप में ख्यातिलब्ध हुए जबलपुर के आचार्य रजनीश के ओशो हॉल में निवास-काल की स्मृति अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसीलिए इसे ओशो ट्रेल में दूसरा स्थान दिया गया है.
ओशो मार्बल
जबलपुर की शान भेड़ाघाट कलकल निनादिनी मां नर्मदा के अमरकंटक से लेकर खम्बात की खाड़ी तक के बीच समूचे प्रवाह-पथ में सबसे खूबसूरत रेवातट है. यही वजह है 1951 से 1970 तक जबलपुर निवास-काल के दौरान आचार्य रजनीश को इस जगह ने सम्मोहित कर लिया था. वे विश्वप्रसिद्ध जलप्रपात धुआंधार को खूब निहारते थे. कभी-कभी लम्हेटा राॅक्स और जिलेहरीघाट के किनारे ध्यान में डूब जाया करते थे, लेकिन भेड़ाघाट की संगमरमरी शिलाओं पर बैठकर ध्यानस्थ होना उन्हें अतिशत प्रिय था. यहां आज भी ओशो की तरंगें व्याप्त हैं. अपने सम्मोहक व्यक्तित्व के लिए दुनियाभर में विख्यात हुए ओशो को भेड़ाघाट की सुंदरता से सम्मोहित कर लिया था, इसीलिए ओशो मार्बल को ओशो ट्रेल में तीसरा स्थान दिया गया है. इसके साथ ओशो की देशना पर आधारित विश्व की एकमात्र शिक्षण-संस्था भेड़ाघाट स्थित विवेकानंद विज्डम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल का भी पूरक-दर्शन श्शामिल किया गया है.
ओशो रॉक
जबलपुर के उपनरीय क्षेत्र गढ़ा अंतर्गत लघुकाशी देवताल में अत्यंत नयनाभिराम पर्वतीय उपत्यकाओं के मध्य ओशो संन्यास अमृतधाम स्थित है. यहां एक शिला-विशेश पर आचार्य रजनीश सर्वाधिक ध्यानस्थ हुए. इसीलिए उसे ‘‘ओशो राॅक‘‘ की गरिमा हासिल है. ओशो आश्रम, ओशो संन्यास अमृतधाम देवताल के संचालक स्वामी आनंद विजय आचार्य रजनीश के सबसे नजदीकी संन्यासियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने सद्गुरू ओशो के इशारे को समझकर ओशो ध्यान शिला के समीप आश्रम विकसित किया. ओशो ने स्वयं कहा था कि जबलपुर मेरा पर्वतस्थल है, जहां मैं सर्वाधिक आनंदित हुआ....इस दृश्टि से ‘‘ओशो राॅक‘‘ अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसीलिए इसे ओशो ट्र्रेल में चौथा स्थान दिया गया है.
ओशो चेयर
जबलपुर के सिविल लाइन्स क्षेत्र में सबसे पुराना राबर्टसन कॉलेज स्थित है, जो अब महाकोशल और साइंस काॅलेज में विभाजित हो गया है. दर्शनशास्त्र के उद्भट विद्वान आचार्य रजनीश यहीं अध्यापन कराते थे. खाली समय में वे शीशम की लकड़ी से बनी एक शानदार आराम कुर्सी पर ध्यानस्थ हो जाया करते थे. वह कुर्सी अब ‘‘ओशो चेयर‘‘ बतौर बेशकीमती धरोहर बन गई है. महाकोशल कॉलेज की लायब्रेरी में उसे पूरे सम्मान के साथ सहेजा गया है. ओशो चेयर के समीप एक अलमारी में ओशो साहित्य भी संग्रहित है.महाकोशल कॉलेज में फिलाॅसफी के प्रोफेसर रहते हुए आचार्य रजनीश की ख्याति देश-दुनिया में फैलने लगी थी. उनसे मिलने दूर-दूर से जिज्ञासुओं का जबलपुर आगमन होने लगा था. इस दौरान आगंतुकों से ज्यादातर मुलाकातें मनपसंद आराम-कुर्सी पर बैठकर ही की गईं, इसीलिए ओशो चेयर रूपी अनमोल विरासत को ‘‘ओशो ट्रेल‘‘ में पांचवा स्थान दिया गया है.
जबलपुर में ओशो ट्रेल क्यों?
11 दिसम्बर 1931 से 19 जनवरी 1990 तक, कुल 59 वर्ष के जीवनकाल में से 1951 से 1970 तक, कुल 19 वर्ष ओशो जबलपुर में रहे. यह अवधि ननिहाल रायसेन कुचवाड़ा में 1931 संे 1939 तक, कुल 9 वर्ष, पैतृक ग्राम गाडरवारा में 1939 से 1951 तक, कुल 11 वर्ष, मुंबई 1970 से 1974 तक, कुल 4 वर्ष पुणे 1974 से 1981 तक, कुल 7 वर्श और अमेरिका 1981 से 1985 तक, कुल 4 वर्ष और अंततः विश्वभ्रमण और पुणे वापिसी काल 1985 से 1990 तक, कुल 5 वर्ष के मुकाबले सर्वाधिक रही है. इससे साफ है कि ओशो ने विश्वगगन पर अपने लांचिंग-पेड, अपनी कर्मभूमि जबलपुर का नाम रोशन किय इसीलिए ओशो और जबलपुर के परस्पर गहरे जुड़ाव को ओशो ट्रेल के जरिए रेखांकित करने का कत्र्तव्य पूरा किया गया है. ओशो ट्रेल को निरंतरता देकर जबलपुर में अधिकाधिक ओशो प्रेमी देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया जाए, यही इस प्रकल्प के पीछे मूल सुदेशना है.

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