#अमेया मेरे भतीजे Ankur Billore की बेटी एक हफ्ते तक हमारी आदत में शुमार थी । कुछ दिनों में अपने दादू का देश छोड़ वापस ट्रम्प दादू के देश फुर्र हो जाएगी । कब आएगी कौन जाने । थैंक्स मीडिया के नए वर्जन को जिसके के ज़रिए मिलती रहेगी । हज़ारों लाखों परिवार बच्चों को सीने पे पत्थर रख भेजते हैं । विकास के इस दौर में गोद में बिठाकर घण्टों बच्चों से गुटरगूँ करते रहने का स्वप्न केवल स्वप्न ही रह जाता है । देश के कोने कोने के चाचे मामे ताऊ माँ बाबा दादा दादी इस परदेशियों के लिए तड़पते हैं मुझे इस बात का मुझे और हम सबको अंदाज़ है ।
पहली बार रू ब रू मिला वो मुझे पहचान गई 2 बरस का इन्वेस्टमेंट था नींद तब आती थी जब अमेया से नेट के ज़रिए मस्ती न कर लूं । दिन भर Balbhavan के बच्चों में अमेया मिला करती है ।
प्रवास से देश का विकास ज़रूरी भी है । इस देश में यूं तो कुछ हासिल नहीं होता योग्यताएं सुबकतीं है तो तय ही है बच्चों का प्रवासी पंछी बन जाना ।
साउथ एशिया में भारत के योग्य बच्चे भले ही विदेशों में राजनीतिक रूप से महिमा मंडित किये जाते हैं किंतु किसी बड़बोले सियासी की जुबान पर ये नहीं आया कि बच्चों बाहर मत जाओ हम तुमको तुम्हारी योग्यता का यथोचित सम्मान देने का वादा करते हैं ।
हम ज़रूर ये कहतें हैं मेरा एक बेटा यहां है दूसरा वहां हैं पर हम इस नाबालिग व्यवस्था में रोज़ रात उनकी याद में आंसू से तकिया ज़रूर भिगोते हैं ।
इस दिवाली बेटी के पास चेन्नई में था बेटी की सारी मित्र सामान्य वर्ग से हैं एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सब तेज़ दिमाग़ कर्मठ सबसे कहा तुमने अपना ब्रेन आखिर किसी की सेवा में लगाया है वो तुम्हारी वज़ह से जो कमा रहा है उसका 5% भी तुमको नहीं देता क्यों नहीं सरकारी क्षेत्र में
सब की भौंहें तन सी गईं - बेटी ने बड़े सादगीपूर्ण पूर्ण तरीके से कहा - पापा व्यवस्था में प्रतिभा का दमन तो मैंने देखा है इन सबने भी सब सरकारी कामकाज को अच्छे से समझते हैं ।
आपको समझने की ज़रूरत है ब्रेन क्यों बह के सुदूर सात समंदर पार जा रहा है ?
यह भी कि कहीं न कहीं प्रतिमा का दमन तो हो रहा है कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी भाई भतीजा वाद से , भ्रष्टाचार से सब कुछ स्पष्ट है ।
मेरे बड़े भाई साहब कहते हैं - घर तो एयर पोर्ट के नज़दीक होना चाहिए ।
मित्रो अमेया अब कब इंडिया आएगी ये मेरा सरदर्द है अब व्यवस्था के सर में दर्द उठना चाहिये कि उसके 87 साल के पितामह से अमेया दूर क्यों है ?
देखें ये टीवी चैनलों पर ध्वनि विचार प्रदूषण फैलाने वाले इस दिशा में कितना सोचते हैं
पहली बार रू ब रू मिला वो मुझे पहचान गई 2 बरस का इन्वेस्टमेंट था नींद तब आती थी जब अमेया से नेट के ज़रिए मस्ती न कर लूं । दिन भर Balbhavan के बच्चों में अमेया मिला करती है ।
प्रवास से देश का विकास ज़रूरी भी है । इस देश में यूं तो कुछ हासिल नहीं होता योग्यताएं सुबकतीं है तो तय ही है बच्चों का प्रवासी पंछी बन जाना ।
साउथ एशिया में भारत के योग्य बच्चे भले ही विदेशों में राजनीतिक रूप से महिमा मंडित किये जाते हैं किंतु किसी बड़बोले सियासी की जुबान पर ये नहीं आया कि बच्चों बाहर मत जाओ हम तुमको तुम्हारी योग्यता का यथोचित सम्मान देने का वादा करते हैं ।
हम ज़रूर ये कहतें हैं मेरा एक बेटा यहां है दूसरा वहां हैं पर हम इस नाबालिग व्यवस्था में रोज़ रात उनकी याद में आंसू से तकिया ज़रूर भिगोते हैं ।
इस दिवाली बेटी के पास चेन्नई में था बेटी की सारी मित्र सामान्य वर्ग से हैं एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सब तेज़ दिमाग़ कर्मठ सबसे कहा तुमने अपना ब्रेन आखिर किसी की सेवा में लगाया है वो तुम्हारी वज़ह से जो कमा रहा है उसका 5% भी तुमको नहीं देता क्यों नहीं सरकारी क्षेत्र में
सब की भौंहें तन सी गईं - बेटी ने बड़े सादगीपूर्ण पूर्ण तरीके से कहा - पापा व्यवस्था में प्रतिभा का दमन तो मैंने देखा है इन सबने भी सब सरकारी कामकाज को अच्छे से समझते हैं ।
आपको समझने की ज़रूरत है ब्रेन क्यों बह के सुदूर सात समंदर पार जा रहा है ?
यह भी कि कहीं न कहीं प्रतिमा का दमन तो हो रहा है कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी भाई भतीजा वाद से , भ्रष्टाचार से सब कुछ स्पष्ट है ।
मेरे बड़े भाई साहब कहते हैं - घर तो एयर पोर्ट के नज़दीक होना चाहिए ।
मित्रो अमेया अब कब इंडिया आएगी ये मेरा सरदर्द है अब व्यवस्था के सर में दर्द उठना चाहिये कि उसके 87 साल के पितामह से अमेया दूर क्यों है ?
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