14.11.17

ब्राह्मणों के विरुद्ध अभियान को उमेश सिंह का उत्तर


           मैं ब्राह्मण नही हूँ। कल एक वामी satya Raja मेरी पोस्ट पर ब्राह्मण के खिलाफ गालियां लिख रहा था। उस मनहूस को ये पोस्ट समर्पित करता हूँ।

सवर्णों में एक जाति आती है ब्राह्मण, जिस पर सदियों से राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी, भाजपा, सभी राजनीतिक पार्टियाँ, विभिन्न जातियाँ आक्रमण करते आ रहे हैं।

आरोप ये लगे कि ~ब्राह्मणों ने जाति का बँटवारा किया।

उत्तर - सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय है और जिसका संकलन वेद व्यास जी ने किया, जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।

18 पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास जी रचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गयी है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे।

ऐसे ही कालीदास आदि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के पक्षधर थे जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे।

अब मेरा प्रश्न उस satya raja के लिए

कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बताओ जिसमें जाति व्यवस्था लिखी गयी हो और उसे ब्राह्मण ने लिखा हो?

शायद एक भी नही मिलेगा। मुझे पता है तुम मनु स्मृति का ही नाम लोगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जो कि क्षत्रिय थे।

मनु स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही नही और पढ़ा भी तो टुकड़ों में कुछ श्लोकों को जिसके कहने का प्रयोजन कुछ अन्य होता है और हम समझते अपने विचारानुसार है।

मनु स्मृति पूर्वाग्रह रहित होकर सांगोपांग पढ़े। छिद्रान्वेषण की अपेक्षा गुणग्राही बनकर पढ़ने पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

अब रही बात " ब्राह्मणों "ने क्या किया ?तो नीचे पढ़े।

(1)यन्त्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ)-भरद्वाज

(2)वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु)- भरद्वाज

(3)सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा)-सुश्रुत

(4)चरकसंहिता (चिकित्सा)-चरक

(5)अर्थशास्त्र (जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय है)-कौटिल्य

(6)आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट

ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन,
परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में बिताए।

उसके पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु समय ही कहाँ शेष था?

कोई बताएगा समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए भी, सर्वशक्तिमान् होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा हो?

विदेशी मानसिकता से ग्रसित कम्युनिस्टों(वामपंथियों) ने कुचक्र रचकर गलत तथ्य पेश किये। आजादी के बाद इतिहास संरचना इनके हाथों सौपी गयी और ये विदेश संचालित षड्यन्त्रों के तहत देश में जहर बोने लगे।

ब्राह्मण हमेशा ये चाहता रहा किराष्ट्र शक्तिशाली हो,  अखण्ड हो,न्याय व्यवस्था सुदृढ़ हो।

सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।।

का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण,वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण, सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज और पुस्तक लिए चरैवेति चरैवेति का अनुसरण करता रहा।मन में एक ही भाव था लोक कल्याण।

ऐसा नहीं कि लोक कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही काम किया। बहुत सारे ऋषि, मुनि, विद्वान्, महापुरुष अन्य वर्णों के भी हुए जिनका महत् योगदान रहा है।

किन्तु आज ब्राह्मण के विषय में ही इसलिए कह रहा हूँ कि जिस देश  की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा।

जिसने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी यहाँ की संस्कृति और ज्ञान को बचाए रखा।

वेदों शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था तब ब्राह्मणों ने पूरा का पूरा वेद और शास्त्र कण्ठस्थ करके बचा लिया और आज भी वो इसे नई पीढ़ी में संचारित कर रहे है वे सामान्य कैसे हो सकते है?

उन्हे सामान्य जाति का कहकर आरक्षण के नाम पर सभी सरकारी सुविधाओं से रहित क्यों रखा जाता है ?

ब्राह्मण अपनी रोजी रोटी कैसे चलाये ? ब्राह्मण को देना पड़ता है पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा फीस और सरकारी सारी सुविधाएँ obc, sc, st, अल्पसंख्यक के नाम पर पूँजीपति या गरीब के नाम पर अयोग्य लोंगों को दी जाती है।

मैं अन्य जाति विरोधी नही हूँ लेकिन किसी ने ब्राह्मण को गाली देकर उकसाया है।

इस देश में गरीबी से नहीं जातियों से लड़ा जाता है। एक ब्राह्मण के लिए सरकार कोई रोजगार नही देती कोई सुविधा नही देती।

एक ब्राह्मण बहुत सारे व्यवसाय नही कर सकता
जैसे -- पोल्ट्रीफार्म, अण्डा, मांस, मुर्गीपालन,
कबूतरपालन, बकरी, गदहा,ऊँट, सूअरपालन, मछलीपालन, जूता,चप्पल, शराब आदि, बैण्डबाजा और विभिन्न जातियों के पैतृक व्यवसाय क्योंकि उसका धर्म एवं समाज दोनों ही इसकी अनुमति नही देते।

ऐसा करने वालों से उनके समाज के लोग सम्बन्ध नही बनाते।

वो शारीरिक परिश्रम करके अपना पेट पालना चाहे तो उसे मजदूरी नही मिलती, क्योंकि लोग ब्राह्मण से सेवा कराना पाप समझते है।

हाँ उसे अपना घर छोड़कर दूर मजदूरी, दरवानी आदि करने के लिए जाना पड़ता है। कुछ को मजदूरी मिलती है कुछ को नहीं।

अब सवाल उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है? जिसने संसार के लिए इतनी कठिन तपस्या की उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों?जिसने शिक्षा को बचाने के लिए सर्वस्व त्याग दिया उसके साथ इतनी भयानक ईर्ष्या क्यों?

मैं ब्राह्मण नहीं लेकिन बताना चाहूँगा की ब्राह्मण को किसी जाति विशेष से द्वेष नही होता है। उन्होंने शास्त्रों को जीने का प्रयास किया है अत: जातिगत छुआछूत को पाप मानते है।

मेरा सबसे निवेदन --गलत तथ्यों के आधार पर उन्हें क्यों सताया जा रहा है ?उनके धर्म के प्रतीक शिखा और यज्ञोपवीत, वेश भूषा का मजाक क्यों बनाया जा रहा हैं ?

मन्त्रों और पूजा पद्धति का उपहास होता है और आप सहन कैसे करते है?

विश्व की सबसे समृद्ध और एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत को हम भारतीय हेय दृष्टि से क्यों देखते है? हमें पता है आप कुतर्क करेंगे, आजादी के बाद भी 74 साल से अत्याचार होता रहा ।

हर युग में ब्राह्मण के साथ भेदभाव, अत्याचार होता आया है।

              कुमार अवधेश सिंह के वाल से  (साभार)

हिंदी में ग़ज़ल


धुंध रोगन की पुती आकाश में
और हम हैं रौशनी की आस में ।
एक अंगुल दुःख समीक्षा ग्रंथ सी
चेतनाएँ है गुमशुदा संत्रास में ।
चार लोगों का कहा सच कहाँ ?
मथनियाँ डालो ज़रा जिज्ञास में ।
ज़िंदगी जी लो अरु जीतो भी उसे
रोए दुनियाँ रोती रहे संत्रास में । ।
ज़िन्दगी क्या है ? पूछा किसी ने
पढ़ के देखो प्रथम अंतिम सांस में ।।

*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

13.11.17

राष्ट्रीय बाल सभा एवं एकीकरण शिविर में भाग लेने बालभवन से सांस्कृतिक दल रवाना

                           राष्ट्रीय बाल सभा एवं एकीकरण शिविर में भाग लेने जबलपुर से 4 बच्चों सहित 6 सदस्यीय सांस्कृतिक दल को दिनांक 12 नवम्बर 17 को दिल्ली राष्ट्रीय बालभवन के लिए रवाना किया. ये बच्चे महाकौशल क्षेत्र की कला का प्रदर्शन करेंगें .                 
                      बुन्देली लोक नृत्य , लोक संगीत , गोंडी भित्ती चित्रकला , के अलावा बच्चे गिरीश बिल्लोरे द्वारा लिखे रानी दुर्गावती एवं दीवान आधारसिंह के बीच 16 वीं सदी की सामरिक परिस्थियों पर हुई चर्चा के विवरण एवं रानी दुर्गावती के बलिदान पर केन्द्रित विवरण का नाट्य रूपान्तारण, प्रस्तुत करेंगें.
                     संभागीय बालभवन जबलपुर में इनको एक माह तक श्री इंद्र पाण्डेय, डा. शिप्रा सुल्लेरे, कुमारी रेशम ठाकुर ,  सुश्री रूचि केशरवानी, संजय गर्ग व मनीषा तिवारी ने विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया गया है. बाल कलाकार 14 से 16 नवम्बर तक एकल एवं सामूहिक प्रस्तुतियों में शामिल होंगे. बालकलाकारों को मिष्ठान एवं दिल्ली के प्रदूषण से बचाव के लिए मास्क देकर श्रीमती सुलभा बिल्लोरे, एवं कार्यालयीन अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने बिदाई दी. इस अवसर पर बच्चों के अभिभावक भी उपस्थित थे . 

9.11.17

प्रमुख सचिव श्री जे एन कंसौटिया का बालभवन का दौरा

  
 `प्रमुख सचिव जी माननीय श्रीयुत जे एन कंसौटिया जी आदरणीया मनिषा लुम्बा जी ने संभागीय बालभवन जबलपुर का आज दिनाँक नवम्बर 2017 को भ्रमण किया ।

 भ्रमण के दौरान प्रमुख सचिव महोदय से भवन निर्माण हेतु भूमि वित्तीय मदद आदि स्थितियों पर विस्तृत चर्चा हुई । श्री कंसौटिया सर द्वारा आयुक्त नगर निगम से फोन पर चर्चा कर भूमि आवंटन अथवा स्मार्ट सिटी परियोजना में बालभवन को शामिल करने के लिए कहा गया ।
बालभवन की गतिविधियों को संप्रेक्षण ग्रहबालगृहदिव्यांग बच्चों के विशेष स्कूलों अजा जजा आवासीय स्कूलों तक गतिविधियों को जोड़ने के निर्देश संचालक को दिए ।

प्रमुख सचिव जी द्वारा बालिकाओं के लिए चलाए जा रहे *30 शौर्या शक्ति आत्मरक्षा प्रशिक्षण* कार्यक्रम की तारीफ की ।
 निरीक्षण के दौरान *चित्रकला एवम गायन वादन के दिव्यांग छात्र बालक मास्टर गौतम सोनी* के बारे में जानकर बेहद प्रसन्नता व्यक्त की गई तथा यह निर्देश दिए कि दिव्यांगता से ग्रसित बच्चो की संस्थाओं के बच्चों के लिए बालभवन की सेवा देने के लिए संचालक बालभवन संस्थाओं के साथ संपर्क कर सेवाएँ विस्तारित करें ।
 इस मौके पर संचालक बालभवन गिरीश बिल्लोरेश्री मनीष शर्मा जिला कार्यक्रम अधिकारी जबलपुरश्री अखिलेश मिश्र डॉ शिप्रा सुल्लेरे श्री इंद्र पांडे श्रीमती विजयलक्ष्मी अय्यर मीना सोनी श्री देवेन्द्र यादव श्री सोमनाथ सोनी के साथ कार्यालयीन स्टाफ उपस्थित था ।
   और कहां कहां भ्रमण किया प्रमुख सचिव श्री कंसौटिया जी ने

आदरणीय प्रमुख सचिव महोदय द्वारा जबलपुर में बालभवन के अलावा शिशुगृहआंगनवाड़ी केंद्रआई एल ए ट्रेनिंग आदि का भ्रमण/निरीक्षण किया गया तथा योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू करने के निर्देश दिए ।  शिशु गृह के भ्रमण के दौरान दिव्यांग बच्चों के गोदनामे के लिए अंतरजिला समन्वय के लिए निर्देशित किया और कहा कि - सबसे अधिक ज़रूरत मंद तक हमारी शीघ्र पंहुंच होनी चाहिए .







                  


8.11.17

पुश्तैनी मकान , मकान नहीं घर होते थे

पुश्तैनी मकान , मकान नहीं घर होते थे
गोबर से लिपे सौंधी खुशबू वाले
आधा फीट छुई की ढीग से सजे
पुश्तैनी मकान ... दरवाजों पर खनकती कुण्डियाँ
देर रात जब बजतीं  चर्र से खुलते दरवाजे
दो घर दूर  वाले रामदीन के दादा
खांसते खकारते पूछते – बहू कालू आया क्या ..
हओ दद्दा हम आ गए ...
पूरा मुहल्ला जो रात नौ बजे सोता था पर
जागता एक साथ
सामान्य दशा में सुबह चार बजे या
रात को किसी अनियमित स्थिति में .,.
सभी मकान सिर्फ मकान थे ..?
न सभी मकान भर थे .. घरों का नाता थी
कॉमन दीवार ... जो मुहल्ले को किले में बदल देती थी...!
पुश्तैनी मकानों के वाशिंदे  प्रजा थे ..
जिनपर राज  था ......... राजा  प्रेम और रानी स्नेह का ..
किसी एक का शोक हर्ष सब पर लागू होता ..
जब कालू हँसता तो सब हँसते जब दुर्गा रोती तो सब रोते
तुलसी क्यारे में
कभी हवा से तो कभी तेल चुकने तक
दीपशिखा नाचती
मोहल्ले वाले पटवारी को न बुलाते
घरों को नापवाने ..
पुश्तैनी घर ज़िंदा देह थे
ज़िंदा देहों को कोई पटवारी मापता है क्या.. ?
पुश्तैनी मकान अमर होते
हमने मारा है उनको ..
बिलखते होंगे पुरखे
हमारे मुकद्दमों ने ..
काश तुम न मरते पुश्तैनी मकान ..
हम अभी किराए के मकानों में
किश्तों के साथ
जिन्दगी जी रहे हैं.. क्योंकि
हम हत्यारे हैं हमने मारा है
पुराने चरमराते दरवाजों वाले जीव-वान घरों को
अरे हाँ ...... पुश्तैनी मकानों को
     

   

6.11.17

तो फिर महिलाओं को मुफ़्त दो सेनेटरी नैप्किन.. ज़हीर अंसारी

ज़हीर भाई का यह आलेख उनकी सरोकारी पत्रकार होने का सजीव प्रमाण है । भाई साहब की चिंता अक्षरश: दे रहा हूँ पर आप सब ये जानिए कि मध्यप्रदेश सरकार ने उदिता प्रोजेक्ट के तहत नॉमिनल शुल्क पर सैनेटरी नैपकिन देने की व्यवस्था की है ।
      इतने साल उतने साल सुनकर देश थक गया है। जिसे देखो अतीत के किससे कहानियां सुना जाता है। ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ। ऐसा होना चाहिए वैसा होना चाहिए। उन्होंने ये नहीं किया, उन्होनें वो नहीं किया। इसी में सब वक्त बर्बाद कर रहे हैं| किसी को भी मातृशक्ति की तरफ देखने-सोचने की फुर्सत नहीं है| सभी राजनैतिक दल सत्ता के हवन में जनता की भावनाओं का 'होम' लगा रहे हैं| हवन का सुफल सत्ता के रुप में जब मिल जाता है तो 'होम' के रुप में इस्तेमाल की गई जनता की अपेक्षाओं और भावनाओं को हवन की राख समझकर फेंक दिया जाता है| यह कितने अफसोस का विषय है कि आजादी के 70 साल बाद भी देश की मातृशक्ति को सैनेटरी नैप्किन उपलब्ध नहीं है| यह कितने शर्मसार करने वाली बात है कि लगभग 43 करोड़ महिलाएं सैनेटरी नैप्किन खरीदने के काबिल नहीं है| 23 फीसदी बेटियां माहवारी शुरु होने पर स्कूल जाना छोड़ देती हैं|
मां दुर्गा, मां काली, मां पार्वती और सीता मैया की धरती पर जननी की इतनी खराब हालत क्यों है| इस पर किसी ने आज तक गौर नहीं किया| न ही धर्म गुरुओं ने, न ही सामाजिक संगठनों ने और न ही राजनैतिक दलों ने| अलबत्ता कुछ एनजीओ ने इस विषय पर अध्ययन किया है| रिपोर्टस तैयार कर केन्द्र और राज्य सरकारों को जमा की हैं| कुर्सी के मद में चूर अफसरों को जनसरोकार से जुड़ी रिपोर्टस देखने और उस पर निर्णय कराने का वक्त नहीं मिलता उन्हें तो नेताओं और खुद के फायदे वाली योजनाएं और रणनीतियों को अमलीजामा पहनाने में मजा आता है|

विकास की जब भी बात होती है तो सब विकसित या विकासशील देशों के आईने में अपनी शक्ल देखकर तुलना करते हैं| शक्ल तो बड़े गर्व से देखते हैं लेकिन उनकी सीरत से अपनी सीरत का मिलान नहीं करते| उनके सिस्टम, कार्यप्रणाली और नैतिक ईमारदारी का अनुसरण नहीं करते हैं| इन्हीं मक्कारियों की वजह से देश की 80 फीसदी महिलाएं सैनेटरी नैप्किन का इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं| बाजार में मिलने वाली सैनेटरी नैप्किन की कीमत इतनी होती है कि गरीब, निम्न मध्यम वर्गीय और मजदूर वर्ग की महिलाएं इसे खरीद ही नहीं पातीं| बहुतेरी महिलाएं अभी भी शर्म-हया की जकड़न में जकड़ी हुई हैं| संकोचवश अपनों को बोल नहीं पातीं और न बाजार से खरीद पाती हैं| बाजार में इनकी कीमत कोई कम नहीं है| सैनेटरी नैप्किन का एक पैकेट 25 से 35 रुपये में आता है| जिसमें 6 से 8 पैड होते हैं|

यह सर्वविदित है कि बच्चियों में 10 से 14 वर्ष की आयु में माहवारी शुरु हो जाती है और अमूमन 45-47 साल की उम्र तक रहती है जोकि प्राकृतिक प्रक्रिया है| सैनेटरी नैप्किन की जगह कुछ भी इस्तेमाल कर लेने की प्रवृत्ति महिलाओं के लिए द्यातक बन जाती है| अधिकांश महिलाएं एंडोमीट्रिओसिस, पेल्विक इंफेक्शन और रिप्रोडक्टिव ट्रेक्ट इंफेक्शन जैसी बीमारी से ग्रसित हो जाती हैं| उपयुक्त समय पर ध्यान न देने पर यही कैंसर जैसे द्यातक रोगों का कारण बन जाते हैं|

अफसोस इस बात है कि हम उन माताओं के लिए अपनी जान कुर्बान करने तैयार रहते हैं जो हमारी आस्था का प्रतीत है पर उन जननी माताओं के स्वास्थ्य पर कभी गौर नहीं करते जो साक्षात हमारे बीच विद्यमान हैं| यही साक्षात माता-बहनें अपने परिवार में ऐसे बच्चों को जन्म देती हैं और उनका पालन-पोषण करती हैं जो बढ़े होकर देश के भागीदार बनते हैं|
सरकारें वोट की ख़ातिर तरह-तरह की मुफ़्तख़ोरी वाली योजनाएँ चलाती हैं। कर्मठ को अकर्मणय बनाने में जी-तोड़ मेहनत करते हैं तो मातृशक्ति के लिए मुफ़्त सेनेटरी नैप्किन क्यों नहीं बाँट सकते?मातृशक्ति के स्वास्थ्य की चिंता की ही जाना चाहिए भले इसके लिए नया 'सेस' वसूल ले सरकार।
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जय हिन्द
ज़हीर अंसारी

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धर्म और संप्रदाय

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