धुंध रोगन की पुती आकाश में
और हम हैं रौशनी की आस में ।
एक अंगुल दुःख समीक्षा ग्रंथ सी
चेतनाएँ है गुमशुदा संत्रास में ।
चार लोगों का कहा सच कहाँ ?
मथनियाँ डालो ज़रा जिज्ञास में ।
ज़िंदगी जी लो अरु जीतो भी उसे
रोए दुनियाँ रोती रहे संत्रास में । ।
ज़िन्दगी क्या है ? पूछा किसी ने
पढ़ के देखो प्रथम अंतिम सांस में ।।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*