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सोमवार, अक्तूबर 23, 2017

*समाज सुधार का रूमाल*


इन दिनों हमको समाज सुधार के प्रेत ने गुलाम बना लिया है । बहुत बड़ा काम है समाज सेवा कर समाज में सुधार लाना ।
समाज सुधार के प्रेत से हम पूछते हैं कि , प्रभू हमारे लिए आगे क्या आदेश हैं बाद में देना पहले आप हमारे सवालों के उत्तर देना जी । बड़ी ना नुकुर के प्रेत तैयार हुए सो सुधिजन आप भी मज़े लीजिये ।
हम - हे भाई समाज सुधार क्या है ?
प्रेत - समाज सुधार एक सादे रुमाल को फाड़कर सिलने की प्रक्रिया है । आप समाज के किसी ऐसे विषय को उठाइये जो आपके विरुद्ध हो या न हो सबमें प्रसिद्धि पाने के लिए उसे समाज के लिए गैरज़रूरी बताइये । यानी आपने सबसे पहले रुमाल निकाला जेब से ।
हम - फिर प्रभो ?
प्रेत - फिर बताइये इस रुमाल में असंख्यक जीवाणु हैं जिससे एक वर्गफीट से लाखों वर्ग किलोमीटर तलक बीमारियों के फैलने का ख़तरा है । आप एक ज़िम्मेदार शहरी हैं सो बस आप रुमाल को ..
हम - रूमाल को डस्टबिन में डाल दें
प्रेत - मूर्ख मानव इससे समस्या हल होगी क्या
हम - तो आप रूमाल के खिलाफ धरना प्रदर्शन आदि कर सम्पूर्ण समाज को बताएं कि इस रूमाल नें असंख्य बैक्टीरिया हैं । जो सिर्फ और सिर्फ इस रूमाल में पनपतें हैं । इन बैक्टेरियास की चपेट में अगर विश्वजनसँख्या आ गई तो तय है कि मानवता ओर सभ्यता का अंत शीघ्र तय है ।
हम - प्रभो इतना करने से बेहतर है कि हम रुमाल को स्टारलाइज़्ड कर दें ।
प्रेत - मूर्ख जैसी बात करते हो फिर काहे का समाज सुधार । अरे समाज सुधार सामाजिक समस्याओं के पहचानने एवम उसके निदान की प्रक्रिया है ।
हम :- ओ के तो हम तैयार हैं लाइये दीजिए रुमाल
प्रेत - जेब से निकाल बड़ा आया रुमाल मांगने वाला
हमने रुमाल निकाला और मालवीय चौक पे फोटोशूट करवाते हुए जम के रुमाली बैक्टेरियाज़ की भयानकता पर भाषण दिया । यार भाई नेशनल चैनल वाले तो ठीक थे पर ये क्या लोकल चैनल्स वाले तो मूँ में ठूंस रहे थे । हम तो क्या बताएं भैया ।
अगले पल सबसे तेज़ समाचार ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पे चलने लगे अगले दिन रूमाल में बैक्टेरिया के प्रभाव के पर लंबी खबरों से अखबार अटे थे ।
टीसरे दिन हमें क्या करना था हमने पूछा प्रेत से । प्रेत बोला - अब किसी साबुन वाले से बात कर इस समय हर्बल का ज़माना है जा बाबा रामदेव के पतंजलि से ही चर्चा कर ले । 99.99% बैक्टेरिया खात्मे की गारंटी से ज़्यादा मत देना गारंटी समझा । हमें 00.01 % की इस लिए नहीं देना है कि समाज 100 कभी सुधरता है क्या बताओ भला मितरो समझ गए न ?
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