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गुरुवार, अक्तूबर 12, 2017

पल पल रिसते रिश्ते


पल पल रिसते रिश्तों के बीच सबको जीना पड़ता है. बहुत दिनों से अजीबोगरीब कश्मकश के बीच आक्सीजन ले रहा हूँ . और रिश्ते हैं कि रिसते जा रहे हैं कभी इसे नाराज़गी, तो कभी उसको तकलीफ कभी इसका इगो तो कभी उसका दर्द ... मुझसे नाराज़ लोगों की भीड़ से बड़ी लोगों की लिस्ट है. 
एक चोर को चोरी न करने का मौका मिला तो बस लगा मुझे अनाप शनाप पोट्रेट करने . आजिज़ आ गया हूँ. परन्तु मेरे  हौसलों की मुझे सलाह है ... ठाठ से जियो .. जी रहा हूँ.. किसी से डरे बिना.

अब  तो मैं ...  क्या ..! क्यों...! कैसे ....! शब्दों से बात शुरू करता हूँ.. रुकता हूँ तो बस इतना पूछ कर क्यों रुकना है.. ! इन बातों को सुन पसीने छूट जाते हैं. लोगों के . पूछो ... मत उनसे कि  क्यों मुझे गलत पोट्रेट करते हो . इसके पीछे एक कारण हैं 
जाओ पोटली में बंद मत रहो खुलो अनावृत हो जाओ.. शर्मा ...... जाएंगे .... नजरें न मिला पाएंगे जीत तुम्हारी है . ज़िंदा हो न जीते रहो खुलकर किसी की परवाह न करो !"
क्रमश: 

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