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मई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वाट्सएप ग्रुप “समस्या_क्या हैं” ने दिया शान्ति को आसरा

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गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” पिछले सप्ताह इंदौर प्रवास के दौरान मुझे ऐसे युवकों से मिलाने का अवसर मिला जो अपने काम के साथ साथ लोक सेवी भी हैं परन्तु प्रचार प्रसार से दूर रहते हैं .   इंदौर   में नार्मदेय समाज के  युवा वाट्सएप पर एक  ग्रुप   “ समस्या _ क्या हैं” नाम से चलाते हैं . इस ग्रुप के युवा यश पाराशर को मित्र मित्र     के अमित शिकरवार   जी के माध्यम से सूचना मिली कि कोई  एक 80 वर्ष की बुजुर्ग महिला जिनको उनके बच्चो ने घर से निकाल दिया है और अब वह बुजुर्ग महिला रेलवे स्टेशन पर रहकर एवं मंदिर मंदिर से भीख मांगकर अपना गुजरा कर रही हे और वह बहुत पीड़ित भी है उनके पास रहने के लिए कोई सहारा नहीं है .. । इस जानकारी मिलते ही   यश पाराशर अपने मित्र रोहित त्रिवेदी के सहयोग से   बुजुर्ग महिला को अपनी स्कूटी से लेने गए और उन्हें स्कूटी पर बैठाकर आपने साथ लेकर नार्मदीय ब्राह्मणों द्वारा संचालित  श्रीराम निराश्रित बृद्धाश्रम में रहने की व्यवस्था की.  श्रीमती  शांति बाई नामक इन बुजुर्ग महिला को  उनके बच्चे उन्हें बहुत प्रताड़ित थे तथा उन्हें उन बच्चों ने घर से निकाल तक निकाल दिया  द

न तो हमको दुनिया को पढ़ने की तमीज है और न ही टेक्स्ट को ही ..!”

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एक चैनल    ने कहा चीलों को बूचड़खानों में   खाने का इंतज़ार रहा. बूचड़खानों को बरसों से लायसेंस का इंतज़ार था. मिल जाते तो  ?  चील   भूखे न   रहते   अवैध बूचड़खाने बंद न होते  ...   बूचड़खानों को   वैध करने की ज़िम्मेदारी और गलती  किसकी थी.   शायद कुरैशी साहब की जो बेचारे सरकारी दफ्तर में बूचड़खाने को लायसेंस दिलाने चक्कर काट रहे थे... ?  और सरफिरी व्यवस्था ने उनको तब पराजित कर दिया होगा.. ? काम कराने के लिए हम क्यों आज भी नियमों से जकड़ दिए जातें हैं . कुछ दिनों से एक इंटरनेट के लल्लनटॉप चैनल के ज़रिये  न्यूज़ मिल रही है कि गरीबों के लिए  राशनकार्ड बनवा लेना उत्तर-प्रदेश में आसान नहीं है..! ......... दुःख होता है.. दोष इसे दें हम सब कितने खुद परस्त हैं कि अकिंचन के भी काम न आ पाते हैं ... दोष देते हैं.. सरकारों पर जो अफसर , क्लर्क , चपरासी के लिबास में हम ही चलातें हैं. क्यों हम इतने गैर ज़िम्मेदार हैं.     आप सब  तो जानतें ही हैं कि रागदरबारी समकालीन सिस्टम का अहम सबूती दस्तावेज है.. स्व. श्रीलाल शुक्ल जी ने खुद अफसर होने के बावजूद सिस्टम की विद्रूपता को सामने लाकर

पुत्रीवती कहने में भय किस बात का

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जब हम दंपत्ति हुए हमने जिसको भी प्रणाम किया तब सब यही आशीर्वाद देते थे  - मुझे - आयुष्मान भव: और श्रीमती को पुत्रवती भव:   सच कहूं सोचता था कोई ये क्यों नहीं कहता - " पुत्रीवती भव: "  ऐसा आशीर्वाद न देना उनकी सामाजिक मज़बूरी हो सकती है .... परन्तु हममें साहस होना चाहिए यह  कहने का..! एक बार शुरू तो करिए देखना बदलाव सहज ही नज़र आएँगे हम बहुत छोटा सोच रहे हैं ... समाज जिस तेजी से बदल रहा है उसके मायने हैं कि हम सार्वभौमिक एम्पावरमेंट की बात करें . बदलाव वेस्टर्न नहीं बल्कि वैदिक आज्ञाओं में स्वीकार्य हैं. बेटियाँ कमजोर कहाँ कमजोर हमारी समझ है . मध्यकाल में मुस्लिम आतंकी शासकों ने देश की बिखरी सत्ताओं की कमजोरी का लाभ उठाया और बेहद दरिन्दगी से न केवल धर्म परिवर्तन किये वरन महिलाओं बच्चों पर अत्याचार भी किये . समाज ने नारियों को देहरी के भीतर रखने की आज्ञा दी . पर आज़ादी के बाद दृश्य बदले विश्व में बदलाव आया इंग्लैण्ड में वूमेन लिबरेशन का आन्दोलन खड़ा हुआ . भारत के अधिकांश महानार इस की चपेट में आए. यहाँ लिबर्टी का अर्थ वेस्टर्न था अर्थात उन्मुक्त कार्य व्यवहार पर भारत नें

के के निलोसे जी की कविताएँ

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इस बार अहा ज़िन्दगी के ताज़ा अंक में के के निलोसे जी की कविताएँ प्रकाशित हुईं .. के के दादा से मेरे दो नाते हैं... एक कवि होने का दूसरा बेटियों के मामा जी का .. दौनों ही रिश्ते बड़े विचित्र हैं .. दौनों रिश्तों के बीच संतुलन बनाने की ड्यूटी दादा भैया ही निभाते हैं.. बड़े हैं न

दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया

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मैं तुम और वो यानी कोई भी दाता होने का दावा न करे । दाता एक राम है । ये बुजुर्ग माह में एक बार आते हैं । भाव भरे भगवान हैं हमारे लिए । बाबूजी से लेकर श्रृद्धा तक सभी इनकी सेवा में तत्पर रहते हैं ।   भिक्षुक देवता किसी घर में नहीं घुसते न ही एक माह में दोबारा ही आते हैं ।   कल जब ये आए थे तब मैंने कहा- आईए भोजन तैयार है लेकिन भिक्षुक देवता ने इंकार करते हुए विनीत भाव से कहा - आज आपकी बारी नहीं  इन से हमें कुछ नहीं केवल आत्मिक आनंद मिलता है । भगवान की सेवा से आशीर्वाद मिले बस यही प्रार्थना है