25.5.17

वाट्सएप ग्रुप “समस्या_क्या हैं” ने दिया शान्ति को आसरा


गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

पिछले सप्ताह इंदौर प्रवास के दौरान मुझे ऐसे युवकों से मिलाने का अवसर मिला जो अपने काम के साथ साथ लोक सेवी भी हैं परन्तु प्रचार प्रसार से दूर रहते हैं .   इंदौर  में नार्मदेय समाज के  युवा वाट्सएप पर एक  ग्रुप   “समस्या_क्या हैं” नाम से चलाते हैं . इस ग्रुप के युवा यश पाराशर को मित्र



मित्र
  के अमित शिकरवार  जी के माध्यम से सूचना मिली कि कोई  एक 80 वर्ष की बुजुर्ग महिला जिनको उनके बच्चो ने घर से निकाल दिया है और अब वह बुजुर्ग महिला रेलवे स्टेशन पर रहकर एवं मंदिर मंदिर से भीख मांगकर अपना गुजरा कर रही हे और वह बहुत पीड़ित भी है उनके पास रहने के लिए कोई सहारा नहीं है .. ।
इस जानकारी मिलते ही   यश पाराशर अपने मित्र रोहित त्रिवेदी के सहयोग से   बुजुर्ग महिला को अपनी स्कूटी से लेने गए और उन्हें स्कूटी पर बैठाकर आपने साथ लेकर नार्मदीय ब्राह्मणों द्वारा संचालित  श्रीराम निराश्रित बृद्धाश्रम में रहने की व्यवस्था की.
 श्रीमती  शांति बाई नामक इन बुजुर्ग महिला को  उनके बच्चे उन्हें बहुत प्रताड़ित थे तथा उन्हें उन बच्चों ने घर से निकाल तक निकाल दिया  दिया ! 
 यश पाराशर ने बताया कि उनका संगठन नार्मदेय युवा संगठन के नाम से लोक सेवा का कार्य करता है जिसे वे   एनडीवायएस नाम से संबोधित करते हैं . इंदौर जैसे शहर में  किसी को भी कही कोई बृद्ध बेसहारा पीड़ित व्यक्ति परेशानी में मिले तो उनके हैल्प लाइन नंबर    पर  तुरत संपर्क करे का अनुरोध करते हुए यश पाराशर ने श्रीराम निराश्रित  वृद्धाश्रम का हैल्प लाइन नंबर 09755550555  देते   कहा कि मेरा नाम बताए बिना आप  इस सन्देश को अधिक से अधिक शेयर करे ताकि किसी बेसहारा को सहारा मिल सके । परन्तु यश सहित ऐसे सभी युवाओं का कायल हो जाना स्वाभाविक है जो लोक कल्याण का काम बिना किसी स्वार्थ के करते हैं





17.5.17

न तो हमको दुनिया को पढ़ने की तमीज है और न ही टेक्स्ट को ही ..!”

एक चैनल  ने कहा चीलों को बूचड़खानों में खाने का इंतज़ार रहा. बूचड़खानों को बरसों से लायसेंस का इंतज़ार था. मिल जाते तो ? चील भूखे न रहते अवैध बूचड़खाने बंद न होते  ... 
बूचड़खानों को वैध करने की ज़िम्मेदारी और गलती  किसकी थी. शायद कुरैशी साहब की जो बेचारे सरकारी दफ्तर में बूचड़खाने को लायसेंस दिलाने चक्कर काट रहे थे...और सरफिरी व्यवस्था ने उनको तब पराजित कर दिया होगा..?
काम कराने के लिए हम क्यों आज भी नियमों से जकड़ दिए जातें हैं . कुछ दिनों से एक इंटरनेट के लल्लनटॉप चैनल के ज़रिये  न्यूज़ मिल रही है कि गरीबों के लिए  राशनकार्ड बनवा लेना उत्तर-प्रदेश में आसान नहीं है..! ......... दुःख होता है.. दोष इसे दें हम सब कितने खुद परस्त हैं कि अकिंचन के भी काम न आ पाते हैं ... दोष देते हैं.. सरकारों पर जो अफसर, क्लर्क, चपरासी के लिबास में हम ही चलातें हैं. क्यों हम इतने गैर ज़िम्मेदार हैं.    
आप सब  तो जानतें ही हैं कि रागदरबारी समकालीन सिस्टम का अहम सबूती दस्तावेज है.. स्व. श्रीलाल शुक्ल जी ने खुद अफसर होने के बावजूद सिस्टम की विद्रूपता को सामने लाकर आत्मचिंतन को बाध्य किया... !
कल कविता दिवस पर बच्चों  से वार्ता के दौरान हमने बताया था कि- “जिस तरह लोग साहित्य को पढ़ रहे हैं वो तरीका ठीक नहीं. आज एक और एहसास हुआ जिस तरह लोग सथियों को पढ़ रहे हैं आजकल वो भी तरीका ठीक नहीं ?”
तो फिर ठीक क्या है.. ठीक जो है वो ये कि हम अपनी अध्ययनशीलता को तमीज़दार बनाएं. चाहे वो किताब पढ़ने का मुद्दा हो या दुनिया के कारोबार का. दौनों  को पढ़ने का सलीका आना चाहिए.
दुनिया भर के खुशहाल देशों की आज एक लिस्ट जारी हुई जिसमें भारत को शोधकर्ताओं नें 117वें स्थान पर रखा है. रखना लाजिमी है... जब आम और  ख़ासवर्ग दोनों की समझदारी तेल लेने बाज़ार गई हो नौ मन तेल ज़रूरी है खुशियाली की राधा जी तभी न नाचेंगी...अब खरीददार ही कन्फ्यूज़ है तो तेल खरीदा भी न जाएगा न राधा जी नाचेंगी ये तय है.
“...........ऐसा क्यों..?
भाई ऐसा इसलिए क्योंकि न तो हमको  दुनिया को पढ़ने की तमीज है और न ही टेक्स्ट को ही ..!
आप यह दावा कैसे कर सकतें हैं ...?”
भाई हम ठहरे दो कौड़ी के लेखक .. हम तो कुछ भी कह सकतें हैं. अरे जब नेता जी की जुबां पर लगाम नहीं टीवी पर चिकल्लस करने वालों में तहजीब नहीं तो हम और क्या लिखें अच्छा लिखेंगे तो आप हमको बैकवर्ड कहोगे अच्छा आपको पढ़ना नहीं अब बताओ भैया कल एक मोहतरमा ने फेसबुक पर बलात्कार के के खिलाफ ऐसी पोस्ट लिखी जैसे वे किसी विजय वृत्तांत का विश्लेषण कर रहीं हों..उनके लिखने का मकसद अधिकतम पाठक जुटाना था न कि समाज को सुधार लाने के लिए उनकी कलम चली.
अब बताओ एनडीटीवी वालों ने अवैध  बूचड़खाने को चीलों की भूख से जोड़ा तो कौन सा गलत किया. प्रजातंत्र है सीधे को उलटा साबित करो फिर जब दुनिया दूसरे मुद्दों पर विचार करने लगे तो उस उलटे को सीधा साबित कर दो. यानी विक्रम का मुंह खुलवाओ और फुर्र से वैताल सरीखे आकाश मार्ग से जा लटको किसी पेड़ पर.
पांच साल तक उलटे लटके रहो फिर विक्रम आएगा..  तब तुम उसका मुंह खुलवाना वो बोला कि तुमको उलटे लटकने का शौक पूरा करने का मौका मिल जाएगा.. 
मुद्दा ये नहीं कि हम किसी डेमोक्रेटिक सिस्टम में कोई समस्या है मुद्दा तो ये है कि हम सिस्टम को खुद पढ़ रहे हैं या कोई हमको पढ़वा रहा है. डेमोक्रेटिक सिस्टम को अगर हम पढ़ ही रहें हैं तो हमारे अध्ययन का तरीका क्या है..?
टी वी पर चैनल्स पर  रोज बहुत तीखी बहसें हमें पढ़ा रहीं हैं.. हम असहाय से उसे ही पढ़ रहे हैं . हमारे पास न तो आर्थिक चिंतन हैं न ही सामाजिक सोच....... चंद  जुमले याद हैं जो वाट्सएप से फेसबुक से मिले हैं फिर शाम को टीवी चैनल्स का शास्त्रार्थ ............! 

मौलिकता हम से दूर है शायद जुमलों ट्वीटस - के सहारे हम राय बनाते हैं. हम सोचते हैं हम सही है पर आत्म चिंतन के लिए न तो हम तैयार हैं न ही हम अब उस लायक रह गए हैं. इसकी एक वज़ह है की हममें ज्ञान अर्जन की तमीज नहीं न तो हम टेक्स पढ़ पाते हैं.... और न ही स्थिति पढने की तमीज है.. मुझे भय है कि कहीं ऐसा न हो हम चेहरा बांचना भूल जाएं 

16.5.17

पुत्रीवती कहने में भय किस बात का


जब हम दंपत्ति हुए हमने जिसको भी प्रणाम किया तब सब यही आशीर्वाद देते थे  - मुझे - आयुष्मान भव: और श्रीमती को पुत्रवती भव:  
सच कहूं सोचता था कोई ये क्यों नहीं कहता - " पुत्रीवती भव: "  ऐसा आशीर्वाद न देना उनकी सामाजिक मज़बूरी हो सकती है .... परन्तु हममें साहस होना चाहिए यह  कहने का..! एक बार शुरू तो करिए देखना बदलाव सहज ही नज़र आएँगे
हम बहुत छोटा सोच रहे हैं ... समाज जिस तेजी से बदल रहा है उसके मायने हैं कि हम सार्वभौमिक एम्पावरमेंट की बात करें .
बदलाव वेस्टर्न नहीं बल्कि वैदिक आज्ञाओं में स्वीकार्य हैं. बेटियाँ कमजोर कहाँ कमजोर हमारी समझ है . मध्यकाल में मुस्लिम आतंकी शासकों ने देश की बिखरी सत्ताओं की कमजोरी का लाभ उठाया और बेहद दरिन्दगी से न केवल धर्म परिवर्तन किये वरन महिलाओं बच्चों पर अत्याचार भी किये . समाज ने नारियों को देहरी के भीतर रखने की आज्ञा दी . पर आज़ादी के बाद दृश्य बदले विश्व में बदलाव आया इंग्लैण्ड में वूमेन लिबरेशन का आन्दोलन खड़ा हुआ . भारत के अधिकांश महानार इस की चपेट में आए. यहाँ लिबर्टी का अर्थ वेस्टर्न था अर्थात उन्मुक्त कार्य व्यवहार पर भारत नें जेंडर साम्यता के सिद्धांत को माना नारी को समग्र विकास का हिस्सा माना . अब विकास की गतिविधि में श्रम कौशल (लेबर एंड स्किल) के महत्व को देखते हुए शिक्षा में महिलाओं को बढ़ावा मिला . हैल्थ विवाह आदि पर कानूनी व्यवस्थाएं दीं गईं कार्यक्रम चलाए गए . सोच में बदलाव आया ऐसा नहीं कि सब कुछ बदल गया पर हमारा चिंतन पथ स्पष्ट है.
विकास के इस आक्रामक वातावरण में जहां एक ओर निर्भया जैसी बेटियों के साथ दर्दनाक घटनाएं हमें दहला रहीं हैं तो दूसरी ओर भारत महिलाओं के सशक्तिकरण का मुख्य केंद्र बन गया है. किसी भी विकासशील समाज में भारतीय समाज खासकर भारतीय मध्यवर्ग समाज की बेटियाँ आगे आ रहीं हैं. अर्थात मध्यवर्ग बेटियों को सशक्त बना रहा है. यही सशक्तिकरण के प्रयास बेटियों के सहयोग से समाज के सकारात्मक  सम्पूर्ण विकास एवं सामाजिक चैतन्य का संकेत है.
निर्भया काण्ड के बाद  मुझे इव टीजिंग से अधिक कष्ट होने लगा . किसी महिला को कमजोर समझ कर अपमानित करना बेशक दुखद और चैलेंजिंग लगा अक्षय कुमार के मिशन से प्रेरित हो मैंने एक सैल्फ डिफेन्स ट्रेनिंग प्रोग्राम “शौर्या-शक्ति” आरम्भ की है. आज दिनांक तक 1400 बेटियाँ सैल्फ डिफेन्स सीख चुकीं हैं.
हरदा की सौ. कुसुम किशोरे जी ने महिलाओं के  जो स्किल डेवलेपमेंट में जो कार्य किया वो सराहनीय है. श्रीमती अनिता राजवैद्य जी ने भी उद्यमिता विकास के लिए जो किया वो सब अच्छे कार्य महत्वाकांक्षाओं के बबंडर में विलुप्त हो गए. ये कुछ उदाहरण हैं बावजूद सरकारी कार्यक्रम अलग से जारी हैं . 
 हम अपनी बेटियों को सबसे पहले बताएं कि उसे सायकल चलाने से लेकर आत्मरक्षा तक सब कुछ सीखना है. रहा नारियों की क्षमता का सवाल to सुबह से शाम तक किसी महिला के काम काज पर गौर कीजिये 100  में से 90 काम उसके माथे हैं सिर्फ 10 काम पुरुष करते हैं ...... यकीन न हो तो गिन के देख लीजिये

 


15.5.17

के के निलोसे जी की कविताएँ

इस बार अहा ज़िन्दगी के ताज़ा अंक में के के निलोसे जी की कविताएँ प्रकाशित हुईं .. के के दादा से मेरे दो नाते हैं... एक कवि होने का दूसरा बेटियों के मामा जी का .. दौनों ही रिश्ते बड़े विचित्र हैं .. दौनों रिश्तों के बीच संतुलन बनाने की ड्यूटी दादा भैया ही निभाते हैं.. बड़े हैं न


3.5.17

दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया

मैं तुम और वो यानी कोई भी दाता होने का दावा न करे । दाता एक राम है । ये बुजुर्ग माह में एक बार आते हैं । भाव भरे भगवान हैं हमारे लिए । बाबूजी से लेकर श्रृद्धा तक सभी इनकी सेवा में तत्पर रहते हैं । 
भिक्षुक देवता किसी घर में नहीं घुसते न ही एक माह में दोबारा ही आते हैं । 
कल जब ये आए थे तब मैंने कहा- आईए भोजन तैयार है
लेकिन भिक्षुक देवता ने इंकार करते हुए विनीत भाव से कहा - आज आपकी बारी नहीं 
इन से हमें कुछ नहीं केवल आत्मिक आनंद मिलता है ।
भगवान की सेवा से आशीर्वाद मिले बस यही प्रार्थना है

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...