जब हम
दंपत्ति हुए हमने जिसको भी प्रणाम किया तब सब यही आशीर्वाद देते थे - मुझे -
आयुष्मान भव: और श्रीमती को पुत्रवती भव:
सच कहूं
सोचता था कोई ये क्यों नहीं कहता - " पुत्रीवती भव: " ऐसा
आशीर्वाद न देना उनकी सामाजिक मज़बूरी हो सकती है .... परन्तु हममें साहस होना
चाहिए यह कहने का..! एक बार शुरू तो करिए देखना बदलाव सहज ही नज़र आएँगे
हम बहुत
छोटा सोच रहे हैं ... समाज जिस तेजी से बदल रहा है उसके मायने हैं कि हम
सार्वभौमिक एम्पावरमेंट की बात करें .
बदलाव
वेस्टर्न नहीं बल्कि वैदिक आज्ञाओं में स्वीकार्य हैं. बेटियाँ कमजोर कहाँ कमजोर
हमारी समझ है . मध्यकाल में मुस्लिम आतंकी शासकों ने देश की बिखरी सत्ताओं की
कमजोरी का लाभ उठाया और बेहद दरिन्दगी से न केवल धर्म परिवर्तन किये वरन महिलाओं
बच्चों पर अत्याचार भी किये . समाज ने नारियों को देहरी के भीतर रखने की आज्ञा दी
. पर आज़ादी के बाद दृश्य बदले विश्व में बदलाव आया इंग्लैण्ड में वूमेन लिबरेशन का
आन्दोलन खड़ा हुआ . भारत के अधिकांश महानार इस की चपेट में आए. यहाँ लिबर्टी का
अर्थ वेस्टर्न था अर्थात उन्मुक्त कार्य व्यवहार पर भारत नें जेंडर साम्यता के
सिद्धांत को माना नारी को समग्र विकास का हिस्सा माना . अब विकास की गतिविधि में
श्रम कौशल (लेबर एंड स्किल) के महत्व को देखते हुए शिक्षा में महिलाओं को बढ़ावा
मिला . हैल्थ विवाह आदि पर कानूनी व्यवस्थाएं दीं गईं कार्यक्रम चलाए गए . सोच में
बदलाव आया ऐसा नहीं कि सब कुछ बदल गया पर हमारा चिंतन पथ स्पष्ट है.
विकास के
इस आक्रामक वातावरण में जहां एक ओर निर्भया जैसी बेटियों के साथ दर्दनाक घटनाएं
हमें दहला रहीं हैं तो दूसरी ओर भारत महिलाओं के सशक्तिकरण का मुख्य केंद्र बन गया
है. किसी भी विकासशील समाज में भारतीय समाज खासकर भारतीय मध्यवर्ग समाज की बेटियाँ
आगे आ रहीं हैं. अर्थात मध्यवर्ग बेटियों को सशक्त बना रहा है. यही सशक्तिकरण के
प्रयास बेटियों के सहयोग से समाज के सकारात्मक
सम्पूर्ण विकास एवं सामाजिक चैतन्य का संकेत है.
निर्भया
काण्ड के बाद मुझे इव टीजिंग से अधिक कष्ट
होने लगा . किसी महिला को कमजोर समझ कर अपमानित करना बेशक दुखद और चैलेंजिंग लगा
अक्षय कुमार के मिशन से प्रेरित हो मैंने एक सैल्फ डिफेन्स ट्रेनिंग प्रोग्राम
“शौर्या-शक्ति” आरम्भ की है. आज दिनांक तक 1400 बेटियाँ सैल्फ डिफेन्स सीख चुकीं
हैं.
हरदा की
सौ. कुसुम किशोरे जी ने महिलाओं के जो
स्किल डेवलेपमेंट में जो कार्य किया वो सराहनीय है. श्रीमती अनिता राजवैद्य जी ने
भी उद्यमिता विकास के लिए जो किया वो सब अच्छे कार्य महत्वाकांक्षाओं के बबंडर में
विलुप्त हो गए. ये कुछ उदाहरण हैं बावजूद सरकारी कार्यक्रम अलग से जारी हैं .
हम
अपनी बेटियों को सबसे पहले बताएं कि उसे सायकल चलाने से लेकर आत्मरक्षा तक सब कुछ
सीखना है. रहा नारियों की क्षमता का सवाल to सुबह से शाम तक किसी महिला के काम काज
पर गौर कीजिये 100 में से 90 काम उसके
माथे हैं सिर्फ 10 काम पुरुष करते हैं ...... यकीन न हो तो गिन के देख लीजिये